शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता का सोलहवें अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ से बीसवें अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ तक (From the sixteenth chapter to the twentieth chapter of Shiv Purana Vidyeshwara Samhita)
शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£
विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता
सोलहवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
"देव पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ का पूजन तथा शिवलिंग के वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• सà¥à¤µà¤°à¥‚प का विवेचन"
ऋषियों ने कहा :- साधॠशिरोमणि सूत जी! हमें देव पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ के पूजन की विधि बताइà¤, जिससे अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है।
सूत जी बोले :- हे महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! मिटà¥à¤Ÿà¥€ से बनाई हà¥à¤ˆ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ का पूजन करने से पà¥à¤°à¥à¤·-सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सà¤à¥€ के मनोरथ सफल हो जाते हैं। इसके लिठनदी, तालाब, कà¥à¤†à¤‚ या जल के à¤à¥€à¤¤à¤° की मिटà¥à¤Ÿà¥€ लाकर सà¥à¤—ंधित दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ से उसको शà¥à¤¦à¥à¤§ करें, उसके बाद दूध डालकर अपने हाथ से सà¥à¤‚दर मूरà¥à¤¤à¤¿ बनाà¤à¤‚। पदमासन दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ का आदर सहित पूजन करें। गणेश, सूरà¥à¤¯, विषà¥à¤£à¥, शिव, पारà¥à¤µà¤¤à¥€ की मूरà¥à¤¤à¤¿ और शिवलिंग का सदैव पूजन करें। संपूरà¥à¤£ मनोरथों की सिदà¥à¤§à¤¿ के लिठसोलह उपचारों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पूजन करें। किसी मनà¥à¤·à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ शिवलिंग पर à¤à¤• सेर नैवेदà¥à¤¯ से पूजन करें। देवताओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ शिवलिंग को तीन सेर नैवेदà¥à¤¯ अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें तथा सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ शिवलिंग का पूजन पांच सेर नैवेदà¥à¤¯ से करें। इससे अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। इस पà¥à¤°à¤•ार सहसà¥à¤° बार पूजन करने से सतà¥à¤¯à¤²à¥‹à¤• की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। बारह अंगà¥à¤² चौड़ा और पचà¥à¤šà¥€à¤¸ अंगà¥à¤² लंबा यह लिंग का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है और पंदà¥à¤°à¤¹ अंगà¥à¤² ऊंचा लोहे या लकड़ी के बनाठहà¥à¤ पतà¥à¤° का नाम शिव है। इसके अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• से आतà¥à¤®à¤¶à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿, गंध चढ़ाने से पà¥à¤£à¥à¤¯, नैवेदà¥à¤¯ चढ़ाने से आयॠतथा धूप देने से धन की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। दीप से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और तांबूल से à¤à¥‹à¤— मिलता है। अतà¤à¤µ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ आदि छः पूजन के अंगों को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। नमसà¥à¤•ार और जाप संपूरà¥à¤£ अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ फलों को देने वाला है। à¤à¥‹à¤— और मोकà¥à¤· की इचà¥à¤›à¤¾ रखने वाले लोगों को पूजा के अंत में सदा जाप और नमसà¥à¤•ार करना चाहिà¤à¥¤ जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ जिस देवता की पूजा करता है, वह उस देवता के लोक को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है तथा उनके बीच के लोकों में उचित फल को à¤à¥‹à¤—ता है। हे महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! à¤à¥‚-लोक में शà¥à¤°à¥€à¤—णेश पूजनीय हैं। शिवजी के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ तिथि, वार, नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° में जो विधि सहित इनकी पूजा करता है उसके सà¤à¥€ पाप à¤à¤µà¤‚ शोक दूर हो जाते हैं और वह अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ फलों को पाकर मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है ।
यदि मधà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥à¤¨ के बाद तिथि का आरंठहोता है तो रातà¥à¤°à¤¿ तिथि का पूरà¥à¤µ à¤à¤¾à¤— पितरों के शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ आदि करà¥à¤® के लिठउतà¥à¤¤à¤® होता है तथा बाद का à¤à¤¾à¤—, दिन के समय देवकरà¥à¤® के लिठअचà¥à¤›à¤¾ होता है। वेदों में पूजा शबà¥à¤¦ को ठीक पà¥à¤°à¤•ार से परिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ नहीं किया गया है—‘पूः' का अरà¥à¤¥ है à¤à¥‹à¤— और फल की सिदà¥à¤§à¤¿ जिस करà¥à¤® से संपनà¥à¤¨ होती है, उसका नाम 'पूजा' है। मनोवांछित वसà¥à¤¤à¥ तथा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ हैं। लोक और वेद में पूजा शबà¥à¤¦ का अरà¥à¤¥ विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ है। नितà¥à¤¯ करà¥à¤® à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में फल देने वाले होते हैं। लगातार पूजन करने से शà¥à¤à¤•ामनाओं की पूरà¥à¤¤à¤¿ होती है । तथा पापों का कà¥à¤·à¤¯ होता है। इसी पà¥à¤°à¤•ार शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥ à¤à¤—वान तथा अनà¥à¤¯ देवताओं की पूजा उन देवताओं के वार, तिथि, नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में रखते हà¥à¤ तथा सोलह उपचारों से पूजन à¤à¤µà¤‚ à¤à¤œà¤¨ करने से अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। शिवजी सà¤à¥€ मनोरथों को पूरà¥à¤£ करने वाले हैं। महा आरà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ माघ कृषà¥à¤£à¤¾ चतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¥€ को शिवजी का पूजन करने से आयॠकी वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। à¤à¤¸à¥‡ ही और à¤à¥€ नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚, महीनों तथा वारों में शिवजी की पूजा व à¤à¥‹à¤œà¤¨, à¤à¥‹à¤— और मोकà¥à¤· देने वाला है। कारà¥à¤¤à¤¿à¤• मास में देवताओं का à¤à¤œà¤¨ विशेष फलदायक होता है। विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठयह उचित है कि इस महीने में सब देवताओं का à¤à¤œà¤¨ करें। संयम व नियम से जाप, तप, हवन और दान करें, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि कारà¥à¤¤à¤¿à¤• मास में देवताओं का à¤à¤œà¤¨ सà¤à¥€ दà¥à¤–ों को दूर करने वाला है। कारà¥à¤¤à¤¿à¤• मास में रविवार के दिन जो सूरà¥à¤¯ की पूजा करता है और तेल व कपास का दान करता है, उसका कà¥à¤·à¥à¤ रोग à¤à¥€ दूर हो जाता है। जो अपने तन-मन को जीवन परà¥à¤¯à¤‚त शिव को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर देता है, उसे शिवजी मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं। 'योनि' और 'लिंग' इन दोनों सà¥à¤µà¤°à¥‚पों के शिव सà¥à¤µà¤°à¥‚प में समाविषà¥à¤Ÿ होने के कारण वे जगत के जनà¥à¤® निरूपण हैं, और इसी नाते से जनà¥à¤® की निवृतà¥à¤¤à¤¿ के लिठशिवजी की पूजा का अलग विधान है। सारा जगत बिंदà¥-नादसà¥à¤µà¤°à¥‚प है। 'बिंदॠ'शकà¥à¤¤à¤¿' है और नाद 'शिव'। इसलिठसारा जगत शिव-शकà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤µà¤°à¥‚प ही है। नाद बिंदॠका और बिंदॠइस जगत का आधार है। आधार में ही आधेय का समावेश अथवा लय होता है। यही 'सकलीकरण' है इस सकलीकरण की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में ही, सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•ाल में जगत का आरंठहà¥à¤† है। शिवलिंग बिंदॠनादसà¥à¤µà¤°à¥‚प है। अतः इसे जगत का कारण बताया जाता है। बिंदॠ'देव' है और नाद 'शिव', इनका संयà¥à¤•à¥à¤¤ रूप ही शिवलिंग कहलाता है। अतः जनà¥à¤® के संकट से छà¥à¤Ÿà¤•ारा पाने के लिठशिवलिंग की पूजा करनी चाहिà¤à¥¤ बिंदà¥à¤°à¥‚पा देवी 'उमा' माता हैं और नादसà¥à¤µà¤°à¥‚प à¤à¤—वान 'शिव' पिता। इन माता-पिता के पूजित होने से परमानंद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। देवी उमा जगत की माता हैं और शिव जगत के पिता। जो इनकी सेवा करता है, उस पà¥à¤¤à¥à¤° पर इनकी कृपा नितà¥à¤¯ बढ़ती रहती है। वह पूजक पर कृपा कर उसे अपना आंतरिक à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं।
अतः शिवलिंग को माता-पिता का सà¥à¤µà¤°à¥‚प मानकर पूजा करने से, आंतरिक आनंद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। à¤à¤°à¥à¤— (शिव) पà¥à¤°à¥à¤·à¤°à¥‚प हैं और à¤à¤°à¥à¤—ा (शकà¥à¤¤à¤¿) पà¥à¤°à¤•ृति कहलाती है। पà¥à¤°à¥à¤· आदिगरà¥à¤ है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वही पà¥à¤°à¤•ृति का जनक है। पà¥à¤°à¤•ृति में पà¥à¤°à¥à¤· का संयोग होने से होने वाला जनà¥à¤® उसका पà¥à¤°à¤¥à¤® जनà¥à¤® कहलाता है। 'जीव' पà¥à¤°à¥à¤· से बारंबार जनà¥à¤® और मृतà¥à¤¯à¥ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। माया दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤•ट किया जाना ही उसका जनà¥à¤® कहलाता है। जीव का शरीर जनà¥à¤®à¤•ाल से ही छः विकारों से यà¥à¤•à¥à¤¤ होता है। इसीलिठइसे जीव की संजà¥à¤žà¤¾ दी गई है ।
जनà¥à¤® लेकर जो पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पाशों अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ बंधनों में पड़ता है, वह जीव है। जीव पशà¥à¤¤à¤¾ के पाश से जितना छूटने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करता है, उसमें उतना ही उलà¤à¤¤à¤¾ जाता है। कोई à¤à¥€ साधन जीव को जनà¥à¤®-मृतà¥à¤¯à¥ के चकà¥à¤° से मà¥à¤•à¥à¤¤ नहीं कर पाते। शिव के अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ से ही महामाया का पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ जीव को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है और मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ मारà¥à¤— पर अगà¥à¤°à¤¸à¤° होता है। जनà¥à¤®-मृतà¥à¤¯à¥ के बंधन से मà¥à¤•à¥à¤¤ होने के लिठशà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• शिवलिंग का पूजन करना चाहिà¤à¥¤
गाय के दूध, दही और घी को शहद और शकà¥à¤•र के साथ मिलाकर पंचामृत तैयार करें तथा इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अलग-अलग à¤à¥€ रखें। पंचामृत से शिवलिंग का अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• व सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करें। दूध व अनà¥à¤¨ मिलाकर नैवेदà¥à¤¯ तैयार कर पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° का जाप करते हà¥à¤ उसे à¤à¤—वान शिव को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर दें। पà¥à¤°à¤£à¤µ को ‘धà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤²à¤¿à¤‚ग’, 'सà¥à¤µà¤¯à¤‚à¤à¥‚लिंग' और नादसà¥à¤µà¤°à¥‚प होने के कारण 'नादलिंग' तथा बिंदà¥à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प होने के कारण 'बिंदà¥à¤²à¤¿à¤‚ग' के रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। अचल रूप से पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित शिवलिंग को मकार सà¥à¤µà¤°à¥‚प माना जाता है। इसलिठवह 'मकारलिंग' कहलाता है । सवारी निकालने में 'उकारलिंग' का उपयोग होता है। पूजा की दीकà¥à¤·à¤¾ देने वाले गà¥à¤°à¥ आचारà¥à¤¯ विगà¥à¤°à¤¹ आकार का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• होने से 'अकारलिंग' के छः à¤à¥‡à¤¦ हैं। इनकी नितà¥à¤¯ पूजा करने से साधक जीवन मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है
शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£
विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता
सतà¥à¤°à¤¹à¤µà¤¾à¤ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
"पà¥à¤°à¤£à¤µ का माहातà¥à¤®à¥à¤¯ व शिवलोक के वैà¤à¤µ का वरà¥à¤£à¤¨"
ऋषि बोले :- महामà¥à¤¨à¤¿ ! आप हमें 'पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤°' का माहातà¥à¤®à¥à¤¯ तथा 'शिव' की à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿-पूजा का विधान सà¥à¤¨à¤¾à¤‡à¤ ।
"पà¥à¤°à¤£à¤µ का माहातà¥à¤®à¥à¤¯"
सूत जी ने कहा :– महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! आप लोग तपसà¥à¤¯à¤¾ के धनी हैं तथा आपने मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¤²à¤¾à¤ˆ के लिठबहà¥à¤¤ ही सà¥à¤‚दर पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ किया है। मैं आपको इसका उतà¥à¤¤à¤° सरल à¤à¤¾à¤·à¤¾ में दे रहा हूं। 'पà¥à¤°' पà¥à¤°à¤•ृति से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ संसार रूपी महासागर का नाम है। पà¥à¤°à¤£à¤µ इससे पार करने के लिठनौका सà¥à¤µà¤°à¥‚प है। इसलिठओंकार को पà¥à¤°à¤£à¤µ की संजà¥à¤žà¤¾ दी गई है। पà¥à¤°-पà¥à¤°à¤ªà¤‚च, न— नहीं है, वः – तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ लिठ। इसलिठ'ओमà¥' को पà¥à¤°à¤£à¤µ नाम से जाना जाता है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ पà¥à¤°à¤£à¤µ वह शकà¥à¤¤à¤¿ है, जिसमें जीव के लिठकिसी पà¥à¤°à¤•ार का à¤à¥€ पà¥à¤°à¤ªà¤‚च अथवा धोखा नहीं है। यह पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° सà¤à¥€ à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को मोकà¥à¤· देता है। मंतà¥à¤° का जाप तथा इसकी पूजा करने वाले उपासकों को यह नूतन जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देता है। माया रहित महेशà¥à¤µà¤° को à¤à¥€ नव अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ नूतन कहते हैं। वे परमातà¥à¤®à¤¾ के शà¥à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤µà¤°à¥‚प हैं। पà¥à¤°à¤£à¤µ साधक को नया अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ शिवसà¥à¤µà¤°à¥‚प देता है। इसलिठविदà¥à¤µà¤¾à¤¨ इसे पà¥à¤°à¤£à¤µ नाम से जानते हैं, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह नव दिवà¥à¤¯ परमातà¥à¤® जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤•ट करता है। इसलिठयह पà¥à¤°à¤£à¤µ है।
पà¥à¤°à¤£à¤µ के दो à¤à¥‡à¤¦ हैं— 'सà¥à¤¥à¥‚ल' और 'सूकà¥à¤·à¥à¤®'। 'à¥' सूकà¥à¤·à¥à¤® पà¥à¤°à¤£à¤µ व 'नमः शिवाय' यह पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° सà¥à¤¥à¥‚ल पà¥à¤°à¤£à¤µ है। जीवन मà¥à¤•à¥à¤¤ पà¥à¤°à¥à¤· के लिठसूकà¥à¤·à¥à¤® पà¥à¤°à¤£à¤µ के जाप का विधान है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह सà¤à¥€ साधनों का सार है। देह का विलय होने तक सूकà¥à¤·à¥à¤® पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° का जाप, अरà¥à¤¥à¤à¥‚त परमातà¥à¤®-ततà¥à¤µ का अनà¥à¤¸à¤‚धान करता है। शरीर नषà¥à¤Ÿ होने पर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प शिव को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। इस मंतà¥à¤° का छतà¥à¤¤à¥€à¤¸ करोड़ बार जाप करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ योगी हो जाता है। यह अकार, उकार, मकार, बिंदॠऔर नाद सहित अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ 'अ', 'ऊ', 'म' तीन दीरà¥à¤˜ अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ और मातà¥à¤°à¤¾à¤“ं सहित 'पà¥à¤°à¤£à¤µ' होता है, जो योगियों के हृदय में निवास करता है। यही सब पापों का नाश करने वाला है। 'अ' शिव है, 'उ' शकà¥à¤¤à¤¿ और 'मकार' इनकी à¤à¤•ता है।
पृथà¥à¤µà¥€, जल, तेज, वायॠऔर आकाश - पांच à¤à¥‚त तथा शबà¥à¤¦, सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ आदि पांच विषय कà¥à¤² मिलाकर दस वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की कामना के विषय हैं। इनकी आशा मन में लेकर जो करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का अनà¥à¤·à¥à¤ ान करते हैं वे पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ मारà¥à¤—ी कहलाते हैं तथा जो निषà¥à¤•ाम à¤à¤¾à¤µ से शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का अनà¥à¤·à¥à¤ ान करते हैं वे निवृतà¥à¤¤ मारà¥à¤—ी हैं। वेद के आरंठमें तथा दोनों समय की संधà¥à¤¯à¤¾ वंदना के समय सबसे पहले उकार का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करना चाहिà¤à¥¤ पà¥à¤°à¤£à¤µ के नौ करोड़ जाप से पà¥à¤°à¥à¤· शà¥à¤¦à¥à¤§ हो जाता है। फिर नौ करोड़ जाप से पृथà¥à¤µà¥€ की, फिर इतने ही जाप से तेज की, फिर नौ करोड़ जाप से वायॠकी और फिर नौ-नौ करोड़ जाप से गंध की सिदà¥à¤§à¤¿ होती है।
बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ सहसà¥à¤° ओंकार मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का रोजाना जाप करने से पà¥à¤°à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§ व शà¥à¤¦à¥à¤§ योगी हो जाता है। फिर जितेंदà¥à¤°à¤¿à¤¯ होकर पांच करोड़ का जाप करता है तथा शिवलोक को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है ।
कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾, तप और जाप के योग से शिवयोगी तीन पà¥à¤°à¤•ार के होते हैं। धन और वैà¤à¤µ से पूजा सामगà¥à¤°à¥€ à¤à¤•तà¥à¤° कर अंगों से नमसà¥à¤•ार आदि करते हà¥à¤ इषà¥à¤Ÿà¤¦à¥‡à¤µ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठजो पूजा में लगा रहता है, वह कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¯à¥‹à¤—ी कहलाता है। पूजा में संलगà¥à¤¨ रहकर जो परिमित à¤à¥‹à¤œà¤¨ करता है à¤à¤µà¤‚ बाहà¥à¤¯ इंदà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को जीतकर वश में करता है उसे तपोयोगी कहते हैं। सà¤à¥€ सदà¥à¤—à¥à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ होकर सदा शà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¤¾à¤µ से समसà¥à¤¤ कारà¥à¤¯ कर शांत हृदय से निरंतर जो जाप करता है, वह 'जप योगी' कहलाता है। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ सोलह उपचारों से शिवयोगी महातà¥à¤®à¤¾à¤“ं की पूजा करता है, वह शà¥à¤¦à¥à¤§ होकर मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है ।
"जपयोग का वरà¥à¤£à¤¨"
ऋषियो! अब मैं तà¥à¤®à¤¸à¥‡ जपयोग का वरà¥à¤£à¤¨ करता हूं। सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤®, मनà¥à¤·à¥à¤¯ को अपने मन को शà¥à¤¦à¥à¤§ कर पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° 'नमः शिवाय' का जाप करना चाहिà¤à¥¤ यह मंतà¥à¤° संपूरà¥à¤£ सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। इस पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° के आरंठमें 'à¥' (ओंकार) का जाप करना चाहिठगà¥à¤°à¥ के मà¥à¤– से पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° का उपदेश पाकर कृषà¥à¤£ पकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ से लेकर चतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¥€ तक साधक रोज à¤à¤• बार परिमित à¤à¥‹à¤œà¤¨ करे, मौन रहे, इंदà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को वश में रखे, माता-पिता की सेवा करे, नियम से à¤à¤• सहसà¥à¤° पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° का जाप करे तà¤à¥€ उसका जपयोग शà¥à¤¦à¥à¤§ होता है। à¤à¤—वान शिव का निरंतर चिंतन करते हà¥à¤ पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° का पांच लाख जाप करे। जपकाल में शिवजी के कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤®à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करे। à¤à¤¸à¤¾ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करे कि à¤à¤—वान शिव कमल के आसन पर विराजमान हैं। उनका मसà¥à¤¤à¤• गंगाजी और चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ की कला से सà¥à¤¶à¥‹à¤à¤¿à¤¤ है। उनकी बाईं ओर à¤à¤—वती उमा विराजमान हैं। अनेक शिवगण वहां खड़े होकर उनकी अनà¥à¤ªà¤® छवि को निहार रहे हैं। मन में सदाशिव का बारंबार सà¥à¤®à¤°à¤£ करते हà¥à¤ सूरà¥à¤¯à¤®à¤‚डल से पहले उनकी मानसिक पूजा करे। पूरà¥à¤µ की ओर मà¥à¤– करके पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° का जाप करे। उन दिनों साधक शà¥à¤¦à¥à¤§ करà¥à¤® करे तथा अशà¥à¤¦à¥à¤§ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ से बचा रहे । जाप की समापà¥à¤¤à¤¿ के दिन कृषà¥à¤£à¤ªà¤•à¥à¤· की चतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¥€ को शà¥à¤¦à¥à¤§ होकर शà¥à¤¦à¥à¤§ हृदय से बारह सहसà¥à¤° जाप करे। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ ईशान, ततà¥à¤ªà¥à¤°à¥à¤·, अघोर, वामदेव तथा सदà¥à¤¯à¥‹à¤œà¤¾à¤¤ के पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• सà¥à¤µà¤°à¥‚प पांच शिवà¤à¤•à¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ का वरण कर, शिव का पूजन विधिपूरà¥à¤µà¤• कर होम पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकरें।
विधि-विधान से à¤à¥‚मि को शà¥à¤¦à¥à¤§ कर वेदी पर अगà¥à¤¨à¤¿ पà¥à¤°à¤œà¥à¤µà¤²à¤¿à¤¤ करे। गाय के घी से गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ सौ अथवा à¤à¤• हजार आहà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ दे या à¤à¤• सौ आठआहà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ से दिलाठ। दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ के रूप में à¤à¤• गाय अथवा बैल देना चाहिà¤à¥¤ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•रूप पांच बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ के चरणों को धोठतथा उस जल से मसà¥à¤¤à¤• को सींचे। à¤à¤¸à¤¾ करने से अगणित तीरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में ततà¥à¤•ाल सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ का फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। इसके उपरांत बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को à¤à¤°à¤ªà¥‚र à¤à¥‹à¤œà¤¨ कराकर देवेशà¥à¤µà¤° शिव से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करे। फिर पांच लाख जाप करने से समसà¥à¤¤ पापों का नाश हो जाता है। पà¥à¤¨à¤ƒ पांच लाख जाप करने पर, à¤à¥‚तल से सतà¥à¤¯ लोक तक चौदह à¤à¥à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ पर अधिकार पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाता है।
"करà¥à¤® माया और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ माया का तातà¥à¤ªà¤°à¥à¤¯"
मां का अरà¥à¤¥ है लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ उससे करà¥à¤®à¤à¥‹à¤— पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। इसलिठयह माया अथवा करà¥à¤® माया कहलाती है। इसी से जà¥à¤žà¤¾à¤¨-à¤à¥‹à¤— की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। इसलिठउसे माया या जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤®à¤¾à¤¯à¤¾ à¤à¥€ कहा गया है। उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ सीमा से नीचे नशà¥à¤µà¤° à¤à¥‹à¤— है और ऊपर नितà¥à¤¯ à¤à¥‹à¤— । नशà¥à¤µà¤° à¤à¥‹à¤— में जीव सकाम करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का अनà¥à¤¸à¤°à¤£ करता हà¥à¤† विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ योनियों व लोकों के चकà¥à¤•र काटता है। बिंदॠपूजा में ततà¥à¤ªà¤° रहने वाले उपासक नीचे के लोकों में घूमते हैं। निषà¥à¤•ाम à¤à¤¾à¤µ से शिवलिंग की पूजा करने वाले ऊपर के लोक में जाते हैं। नीचे करà¥à¤®à¤²à¥‹à¤• है और यहां सांसारिक जीव रहते हैं। ऊपर जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤²à¥‹à¤• है जिसमें मà¥à¤•à¥à¤¤ पà¥à¤°à¥à¤· रहते हैं और आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• उपासना करते हैं।
"शिवलोक के वैà¤à¤µ का वरà¥à¤£à¤¨"
जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ सतà¥à¤¯ अहिंसा से à¤à¤—वान शिव की पूजा में ततà¥à¤ªà¤° रहते हैं, कालचकà¥à¤° को पार कर जाते हैं। काल चकà¥à¤°à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° की सीमा तक महेशà¥à¤µà¤° लोक है। उससे ऊपर वृषठके आकार में धरà¥à¤® की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ है। उसके सतà¥à¤¯, शौच, अहिंसा और दया चार पाद हैं। वह साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ शिवलोक के दà¥à¤µà¤¾à¤° पर खड़ा है। कà¥à¤·à¤®à¤¾ उसके सींग हैं, शम कान हैं। वह वेदधà¥à¤µà¤¨à¤¿à¤°à¥‚पी शबà¥à¤¦ से विà¤à¥‚षित है। à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ उसके नेतà¥à¤° व विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ और बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ मन कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ आदि धरà¥à¤®à¤°à¥‚पी वृषठहैं, जिस पर शिव आरूढ़ होते हैं। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ और महेश की आयॠको दिन कहते हैं। कारण सà¥à¤µà¤°à¥‚प बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ के सतà¥à¤¯à¤²à¥‹à¤• परà¥à¤¯à¤‚त चौदह लोक सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं, जो पांच à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• गंध से परे हैं। उनसे ऊपर कारणरूप विषà¥à¤£à¥ के चौदह लोक हैं तथा इससे ऊपर कारणरूपी रà¥à¤¦à¥à¤° के अटà¥à¤ ाईस लोकों की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ है। फिर कारणेश शिव के छपà¥à¤ªà¤¨ लोक विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ हैं। सबसे ऊपर पांच आवरणों से यà¥à¤•à¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤®à¤¯ कैलाश है, जहां पांच मंडलों, पांच बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤•ालों और आदि शकà¥à¤¤à¤¿ से संयà¥à¤•à¥à¤¤ आदिलिंग है, जिसे शिवालय कहा जाता है। वहीं पराशकà¥à¤¤à¤¿ से यà¥à¤•à¥à¤¤ परमेशà¥à¤µà¤° शिव निवास करते हैं। वे सृषà¥à¤Ÿà¤¿, पालन, संहार, तिरोà¤à¤¾à¤µ और अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ आदि कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में कà¥à¤¶à¤² हैं। नितà¥à¤¯ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ देवताओं का पूजन करने से शिव-ततà¥à¤µ का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार होता है। जिन पर शिव की कृपादृषà¥à¤Ÿà¤¿ पड़ चà¥à¤•ी है, वे सब मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाते हैं। अपनी आतà¥à¤®à¤¾ में आनंद का अनà¥à¤à¤µ करना ही मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ का साधन है। जो पà¥à¤°à¥à¤· कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾, तप, जाप, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रूपी धरà¥à¤®à¥‹à¤‚ से शिव का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार करके मोकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेता है, उसके अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ को à¤à¤—वान शिव दूर कर देते हैं।
"शिवà¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ का सतà¥à¤•ार"
साधक पांच लाख जाप करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ à¤à¤—वान शिव की पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ के लिठमहाà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• à¤à¤µà¤‚ नैवेदà¥à¤¯ से शिव à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ का पूजन करे । à¤à¤•à¥à¤¤ की पूजा से à¤à¤—वान शिव बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हैं। शिव à¤à¤•à¥à¤¤ का शरीर शिवरूप ही है। जो शिव के à¤à¤•à¥à¤¤ हैं और वेद की सारी कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं को जानते हैं, वे जितना अधिक शिवमंतà¥à¤° का जाप करते हैं, उतना ही शिव का सामीपà¥à¤¯ बढ़ता है। शिवà¤à¤•à¥à¤¤ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ का रूप पारà¥à¤µà¤¤à¥€ देवी का है तथा मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का जाप करने से देवी का सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाता है। साधक सà¥à¤µà¤¯à¤‚ शिवसà¥à¤µà¤°à¥‚प होकर पराशकà¥à¤¤à¤¿ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ पारà¥à¤µà¤¤à¥€ का पूजन शकà¥à¤¤à¤¿, बेर तथा लिंग का चितà¥à¤° बनाकर अथवा मिटà¥à¤Ÿà¥€ से इनकी आकृति का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करके, पà¥à¤°à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा कर इसका पूजन करे। शिवलिंग को शिव मानकर अपने को शकà¥à¤¤à¤¿ रूप समà¤à¤•र शकà¥à¤¤à¤¿ लिंग को देवी मानकर पूजन करे शिवà¤à¤•à¥à¤¤ शिव मंतà¥à¤° रूप होने के कारण शिव के सà¥à¤µà¤°à¥‚प है। जो सोलह उपचारों से उनकी पूजा करता है, उसे अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ फलों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। उपासना के उपरांत शिव à¤à¤•à¥à¤¤ की सेवा से विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर शिवजी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हैं। पांच, दस या सौ सपतà¥à¤¨à¥€à¤• शिवà¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ को बà¥à¤²à¤¾à¤•र आदरपूरà¥à¤µà¤• à¤à¥‹à¤œà¤¨ कराà¤à¥¤ शिव à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ रखते हà¥à¤ निषà¥à¤•पट पूजा करने से à¤à¥‚तल पर फिर जनà¥à¤® नहीं होता।
शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£
विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता
अठारहवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
"बंधन और मोकà¥à¤· का विवेचन शिव के à¤à¤¸à¥à¤®à¤§à¤¾à¤°à¤£ का रहसà¥à¤¯"
ऋषि बोले :- सरà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¥‹à¤‚ में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ सूत जी! बंधन और मोकà¥à¤· कà¥à¤¯à¤¾ है? कृपया हम पर कृपा कर हमें बताà¤à¤‚?
सूत जी ने कहा :- महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! मैं बंधन और मोकà¥à¤· के सà¥à¤µà¤°à¥‚प व उपाय का वरà¥à¤£à¤¨ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ लिठकर रहा हूं। पृथà¥à¤µà¥€ के आठबंधनों के कारण ही आतà¥à¤®à¤¾ की जीव संजà¥à¤žà¤¾ है। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ बंधनों में बंधा हà¥à¤† जीव 'बदà¥à¤§' कहलाता है और जो उन बंधनों से छूटा हà¥à¤† है उसे 'मà¥à¤•à¥à¤¤' कहते हैं। पà¥à¤°à¤•ृति, बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿, तà¥à¤°à¤¿à¤—à¥à¤£à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• अहंकार और पांच तनà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤à¤‚ आदि आठततà¥à¤µà¥‹à¤‚ के समूह से देह की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆ है। देह से करà¥à¤® होता है और फिर करà¥à¤® से नूतन देह की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ होती है। शरीर को सà¥à¤¥à¥‚ल, सूकà¥à¤·à¥à¤® और कारण के à¤à¥‡à¤¦ से जानना चाहिà¤à¥¤ सà¥à¤¥à¥‚ल शरीर वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° कराने वाला, सूकà¥à¤·à¥à¤® शरीर इंदà¥à¤°à¤¿à¤¯ à¤à¥‹à¤— पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला तथा शरीर को आतà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤‚द की अनà¥à¤à¥‚ति कराने वाला होता है। करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही जीव पाप और पà¥à¤£à¥à¤¯ à¤à¥‹à¤—ता है। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ से सà¥à¤–-दà¥à¤– की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है । अतः करà¥à¤®à¤ªà¤¾à¤¶ में बंधकर जीव शà¥à¤à¤¾à¤¶à¥à¤ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चकà¥à¤° की à¤à¤¾à¤‚ति घà¥à¤®à¤¾à¤¯à¤¾ जाता है। इससे छà¥à¤Ÿà¤•ारा पाने के लिठमहाचकà¥à¤° के करà¥à¤¤à¤¾ à¤à¤—वान शिव की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ और आराधना करनी चाहिà¤à¥¤ शिव ही सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž, परिपूरà¥à¤£ और अनंत शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को धारण किठहैं। जो मन, वचन, शरीर और धन से बेरलिंग या à¤à¤•à¥à¤¤à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ में शिव à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ करके उनकी पूजा करते हैं, उन पर शिवजी की कृपा अवशà¥à¤¯ होती है। शिवलिंग में शिव की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ ने शिव à¤à¤•à¥à¤¤à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ में शिव की à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ करके उनकी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ के लिठपूजा करनी चाहिà¤à¥¤ पूजन शरीर, मन, वाणी और धन से कर सकते हैं। à¤à¤—वान शिव पूजा करने वाले पर विशेष कृपा करते हैं और अपने लोक में निवास का सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं। जब तनà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤à¤‚ वश में हो जाती हैं, तब जीव जगदंबा सहित शिव का सामीपà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेता है। à¤à¤—वान का पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने पर बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ वश में हो जाती है । सरà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¤à¤¾ और तृपà¥à¤¤à¤¿ शिव के à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ हैं। इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पाकर मनà¥à¤·à¥à¤¯ की मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ हो जाती है। इसलिठशिव का कृपा पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठउनà¥à¤¹à¥€à¤‚ का पूजन करना चाहिà¤à¥¤ शिवकà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾, शिव तप, शिवमंतà¥à¤° जाप, शिवजà¥à¤žà¤¾à¤¨ और शिव धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ से रात को सोते समय तक, जनà¥à¤® से मृतà¥à¤¯à¥ तक करना चाहिठà¤à¤µà¤‚ मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ और विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ से शिव की पूजा करनी चाहिà¤à¥¤ à¤à¤¸à¤¾ करने से à¤à¤—वान शिव का लोक पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है।
ऋषि बोले :– उतà¥à¤¤à¤® वà¥à¤°à¤¤ का पालन करने वाले सूत जी! शिवलिंग की पूजा कैसे करनी चाहिà¤? कृपया हमें बताइà¤?
सूत जी ने कहा :- बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹! सà¤à¥€ कामनाओं को पूरà¥à¤£ करने वाले लिंग के सà¥à¤µà¤°à¥‚प का मैं तà¥à¤®à¤¸à¥‡ वरà¥à¤£à¤¨ कर रहा हूं। सूकà¥à¤·à¥à¤®à¤²à¤¿à¤‚ग निषà¥à¤•ल होता है और सà¥à¤¥à¥‚ल लिंग सकल। पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° को सà¥à¤¥à¥‚ल लिंग कहते हैं। दोनों ही लिंग साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ मोकà¥à¤· देने वाले हैं। पà¥à¤°à¤•ृति à¤à¤µà¤‚ पौरà¥à¤· लिंग के रूपों के बारे में à¤à¤•मातà¥à¤° à¤à¤—वान शिव ही जानते हैं और कोई नहीं जानता। पृथà¥à¤µà¥€ पर पांच लिंग हैं, जिनका विवरण मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¾ हूं।
पहला 'सà¥à¤µà¤¯à¤‚à¤à¥‚ शिवलिंग', दूसरा 'बिंदà¥à¤²à¤¿à¤‚ग', तीसरा 'पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित लिंग', चौथा 'चरलिंग', और पांचवां 'गà¥à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग' है। देवरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तपसà¥à¤¯à¤¾ से संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ हो उनके समीप पà¥à¤°à¤•ट होने के लिठपृथà¥à¤µà¥€ के अंतरà¥à¤—त बीजरूप में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ à¤à¤—वान शिव वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ के अंकà¥à¤° की à¤à¤¾à¤‚ति à¤à¥‚मि को à¤à¥‡à¤¦à¤•र 'नादलिंग' के रूप में वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ हो जाते हैं। सà¥à¤µà¤¤à¤ƒ पà¥à¤°à¤•ट होने के कारण ही इसका नाम 'सà¥à¤µà¤¯à¤‚à¤à¥‚लिंग' है। इसकी आराधना करने से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। सोने-चांदी, à¤à¥‚मि, वेदी पर हाथ से पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° लिखकर à¤à¤—वान शिव की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा और आहà¥à¤µà¤¾à¤¨ करें तथा सोलह उपचारों से उनकी पूजा करें। à¤à¤¸à¤¾ करने से साधक को à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। देवताओं और ऋषियों ने आतà¥à¤®à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¿ के लिठ'पौरà¥à¤· लिंग' की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की है। यही 'पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित लिंग' कहलाता है। किसी बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ अथवा राजा दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मंतà¥à¤°à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ किया गया लिंग à¤à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित लिंग कहलाता है, किंतॠवह 'पà¥à¤°à¤¾à¤•ृत लिंग' है। शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ और नितà¥à¤¯ होने वाला 'पौरà¥à¤· लिंग' तथा दà¥à¤°à¥à¤¬à¤² और अनितà¥à¤¯ होने वाला 'पà¥à¤°à¤¾à¤•ृत लिंग' कहलाता है।
लिंग, नाà¤à¤¿, जीà¤, हृदय और मसà¥à¤¤à¤• में विराजमान आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• लिंग को 'चरलिंग' कहते हैं। परà¥à¤µà¤¤ को 'पौरà¥à¤· लिंग' और à¤à¥‚तल को विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ 'पà¥à¤°à¤¾à¤•ृत लिंग' मानते हैं। पौरà¥à¤· लिंग समसà¥à¤¤ à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। पà¥à¤°à¤¾à¤•ृत लिंग धन पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। 'चरलिंग' में सबसे पà¥à¤°à¤¥à¤® 'रसलिंग' बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को अà¤à¥€à¤·à¥à¤Ÿ वसà¥à¤¤à¥ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। 'सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ लिंग' वैशà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को धन, 'बाणलिंग' कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को राजà¥à¤¯, 'सà¥à¤‚दर लिंग' शूदà¥à¤°à¥‹à¤‚ को महाशà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। बचपन, जवानी और बà¥à¤¢à¤¼à¤¾à¤ªà¥‡ में सà¥à¤«à¤Ÿà¤¿à¤•मय शिवलिंग का पूजन सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को समसà¥à¤¤ à¤à¥‹à¤— पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है।
समसà¥à¤¤ पूजा करà¥à¤® गà¥à¤°à¥ के सहयोग से करें । इषà¥à¤Ÿà¤¦à¥‡à¤µ का अà¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ अगहनी के चावल की बनी खीर तथा नैवेदà¥à¤¯ अरà¥à¤ªà¤£ करें। निवृतà¥à¤¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को 'सूकà¥à¤·à¥à¤® लिंग' का पूजन विà¤à¥‚ति के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ करना चाहिà¤à¥¤ विà¤à¥‚ति लोकागà¥à¤¨à¤¿à¤œà¤¨à¤¿à¤¤, वेदागà¥à¤¨à¤¿à¤œà¤¨à¤¿à¤¤ और शिवागà¥à¤¨à¤¿à¤œà¤¨à¤¿à¤¤ तीन पà¥à¤°à¤•ार की होती हैं। लोकागà¥à¤¨à¤¿à¤œà¤¨à¤¿à¤¤ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ लौकिक à¤à¤¸à¥à¤® को शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के लिठरखें। मिटà¥à¤Ÿà¥€, लकड़ी और लोहे के पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ की धानà¥à¤¯, तिल, वसà¥à¤¤à¥à¤° आदि की à¤à¤¸à¥à¤® से शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होती है। वेदों से जनित à¤à¤¸à¥à¤® को वैदिक करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के अंत में धारण करना चाहिà¤à¥¤ मूरà¥à¤¤à¤¿à¤§à¤¾à¤°à¥€ शिव का मंतà¥à¤° पढ़कर बेल की लकड़ी जलाà¤à¤‚। कपिला गाय के गोबर तथा शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलताश और बेर की लकड़ियों से अगà¥à¤¨à¤¿ जलाà¤à¤‚, इसे शà¥à¤¦à¥à¤§ à¤à¤¸à¥à¤® माना जाता है। à¤à¤—वान शिव ने अपने गले में विराजमान पà¥à¤°à¤ªà¤‚च को जलाकर à¤à¤¸à¥à¤®à¤°à¥‚प से सारततà¥à¤µ को गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया है। उनके सारे अंग विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं के सार रूप हैं। à¤à¤—वान शिव ने अपने माथे के तिलक में बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ और रà¥à¤¦à¥à¤° के सारततà¥à¤µ को धारण किया है। सजल à¤à¤¸à¥à¤® को धारण करके शिवजी की पूजा करने से सारा फल मिलता है। शिव मंतà¥à¤° से à¤à¤¸à¥à¤® धारण कर शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ आशà¥à¤°à¤®à¥€ होता है। शिव की पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ करने वाले को अपवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ और सूतक नहीं लगता। गà¥à¤°à¥ शिषà¥à¤¯ के राजस, तामस और तमोगà¥à¤£ का नाश कर शिव का बोध कराता है। à¤à¤¸à¥‡ गà¥à¤°à¥ के हाथ से à¤à¤¸à¥à¤® धारण करनी चाहिà¤à¥¤
जनà¥à¤® और मरण सब à¤à¤—वान शिव ने ही बनाठहैं, जो इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उनकी सेवा में ही अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर देता है, वह बंधनों से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है। सà¥à¤¥à¥‚ल, सूकà¥à¤·à¥à¤® और कारण को वश में कर लेने से मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। जो शिव की पूजा में ततà¥à¤ªà¤° हो, मौन रहे, सतà¥à¤¯ तथा गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ हो, कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾, जाप, तप करता रहे, उसे दिवà¥à¤¯ à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है तथा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का उदय होता है। शिवà¤à¤•à¥à¤¤ यथायोगà¥à¤¯ कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤·à¥à¤ ान करें तथा धन का उपयोग कर शिव सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में निवास करें। à¤à¤—वान शिव के माहातà¥à¤®à¥à¤¯ का सà¤à¥€ के सामने पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° करें। शिव मंतà¥à¤° के रहसà¥à¤¯ को उनके अलावा कोई नहीं जानता है, इसलिठशिवलिंग का नितà¥à¤¯ पूजन करें।
शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£
विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता
उनà¥à¤¨à¥€à¤¸à¤µà¤¾à¤ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
"पूजा का à¤à¥‡à¤¦"
ऋषि बोले :–हे सूत जी! आप हम पर कृपा करके पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ महेशà¥à¤µà¤° की महिमा का वरà¥à¤£à¤¨, जो आपने वेद-वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी से सà¥à¤¨à¤¾ है, सà¥à¤¨à¤¾à¤‡à¤à¥¤
सूत जी बोले :– हे ऋषियो! मैं à¤à¥‹à¤— और मोकà¥à¤· देने वाली पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ पूजा पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ का वरà¥à¤£à¤¨ कर रहा हूं। पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग सà¤à¥€ लिंगों में सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ है। इसके पूजन से मनोवांछित फलों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। अनेक देवता, दैतà¥à¤¯, मनà¥à¤·à¥à¤¯, गंधरà¥à¤µ, सरà¥à¤ª à¤à¤µà¤‚ राकà¥à¤·à¤¸ शिवलिंग की उपासना से अनेक सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर चà¥à¤•े हैं। जिस पà¥à¤°à¤•ार सतयà¥à¤— में रतà¥à¤¨ का, तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾ में सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ का व दà¥à¤µà¤¾à¤ªà¤° में पारे का महतà¥à¤µ है, उसी पà¥à¤°à¤•ार कलियà¥à¤— में पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग अति महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है। शिवमूरà¥à¤¤à¤¿ का पूजन तप से à¤à¥€ अधिक फल पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। जिस पà¥à¤°à¤•ार गंगा नदी सà¤à¥€ नदियों में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ à¤à¤µà¤‚ पवितà¥à¤° मानी जाती है, उसी पà¥à¤°à¤•ार पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग सà¤à¥€ लिंगों में सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ है। जैसे सब वà¥à¤°à¤¤à¥‹à¤‚ में शिवरातà¥à¤°à¤¿ का वà¥à¤°à¤¤ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ है, सब दैवीय शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में दैवी शकà¥à¤¤à¤¿ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ है, वैसे ही सब लिंगों में 'पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग' शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ है।
'पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग' का पूजन धन, वैà¤à¤µ, आयॠà¤à¤µà¤‚ लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ देने वाला तथा संपूरà¥à¤£ कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पूरà¥à¤£ करने वाला है। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ à¤à¤—वान शिव का पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग बनाकर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पूजा करता है, वह शिवपद à¤à¤µà¤‚ शिवलोक को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। निषà¥à¤•ाम à¤à¤¾à¤µ से पूजन करने वाले को मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ मिल जाती है। जो बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ कà¥à¤² में जनà¥à¤® लेकर à¤à¥€ पूजन नहीं करता, वह घोर नरक को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है।
शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£
विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता
बीसवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
"पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग पूजन की विधि"
पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग की शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ ता तथा महिमा का वरà¥à¤£à¤¨ करते हà¥à¤ सूत जी ने कहा :- हे शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! वैदिक करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ रखने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठपारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग पूजा पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ ही परम उपयोगी à¤à¤µà¤‚ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ है तथा à¤à¥‹à¤— à¤à¤µà¤‚ मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली है। सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® सूतà¥à¤°à¥‹à¤‚ की विधि से सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करें। सांधà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ के उपरांत बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¯à¤œà¥à¤ž करें। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ देवताओं, ऋषियों, मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ और पितरों का तरà¥à¤ªà¤£ करें। सब नितà¥à¤¯ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ को करके शिव à¤à¤—वान का सà¥à¤®à¤°à¤£ करते हà¥à¤ à¤à¤¸à¥à¤® तथा रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤· को धारण करें। फिर पूरà¥à¤£ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ-लिंग की पूजा अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ करें। à¤à¤¸à¤¾ करने से संपूरà¥à¤£ मनोवांछित फलों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। किसी नदी या तालाब के किनारे, परà¥à¤µà¤¤ पर या जंगल में या शिवालय में अथवा अनà¥à¤¯ किसी पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर, पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ पूजन करना चाहिà¤à¥¤ पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की मिटà¥à¤Ÿà¥€ से शिवलिंग का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करना चाहिà¤à¥¤ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ शà¥à¤µà¥‡à¤¤ मिटà¥à¤Ÿà¥€ से, कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ लाल मिटà¥à¤Ÿà¥€ से, वैशà¥à¤¯ पीली मिटà¥à¤Ÿà¥€ से à¤à¤µà¤‚ शूदà¥à¤° काली मिटà¥à¤Ÿà¥€ से शिवलिंग का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करें।
शिवलिंग हेतॠमिटà¥à¤Ÿà¥€ को à¤à¤•तà¥à¤° कर उसे गंगाजल से शà¥à¤¦à¥à¤§ करके धीरे-धीरे उससे लिंग का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करें तथा इस संसार के सà¤à¥€ à¤à¥‹à¤—ों को तथा संसार से मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने हेतॠपारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग का पूजन à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से करें। सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® 'ॠनमः शिवाय' मंतà¥à¤° का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करते हà¥à¤ समसà¥à¤¤ पूजन सामगà¥à¤°à¥€ को à¤à¤•तà¥à¤° कर उसे जल से शà¥à¤¦à¥à¤§ करें। 'à¤à¥‚रसि' मंतà¥à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° की सिदà¥à¤§à¤¿ करें। फिर जल का संसà¥à¤•ार करें। सà¥à¤«à¤Ÿà¤¿à¤• शिला का घेरा बनाà¤à¤‚ तथा कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ करें। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ शिवलिंग की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ा करें तथा वैदिक रीति से पूजा-उपासना करें। à¤à¤—वान शिव का आवाहन करें तथा आसन पर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करके उनके समकà¥à¤· आसन पर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बैठजाà¤à¤‚। शिवलिंग को दूध, दही और घी से सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराà¤à¤‚, ऋचाओं से मधॠ(शहद) और शकà¥à¤•र से सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराà¤à¤‚। ये पांचों वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ – दूध, दही, घी, शहद और शकà¥à¤•र 'पंचामृत' कहलाते हैं। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं से लिंग को सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराà¤à¤‚। तदोपरांत उतà¥à¤¤à¤°à¥€à¤¯ धारण कराà¤à¤‚। चारों ऋचाओं को पढ़कर à¤à¤—वान शिव को वसà¥à¤¤à¥à¤° और यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें तथा सà¥à¤—ंधित चंदन à¤à¤µà¤‚ रोली चढ़ाà¤à¤‚ तथा अकà¥à¤·à¤¤, फूल और बेलपतà¥à¤° अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। नैवेदà¥à¤¯ और फल अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ रà¥à¤¦à¥à¤°à¥‹à¤‚ का पूजन करें तथा पूजन करà¥à¤® करने वाले पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ को दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ दें। हर, महेशà¥à¤µà¤°, शंà¤à¥, शूल-पाणि, पिनाकधारी, शिव, पशà¥à¤ªà¤¤à¤¿, महादेव, गिरिजापति आदि नामों से पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ-लिंग का पूजन करें तथा आरती करें शिवलिंग की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करें तथा à¤à¤—वान शिव को साषà¥à¤Ÿà¤¾à¤‚ग पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करें। पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° तथा सोलह उपचारों से विधिवत पूजन करें। इस पà¥à¤°à¤•ार पूजन करते हà¥à¤ à¤à¤—वान शिव से इस पà¥à¤°à¤•ार पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करें—
सबको सà¥à¤–-समृदà¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले हे कृपानिधान, à¤à¥‚तनाथ शिव! आप मेरे पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ में बसते हैं। आपके गà¥à¤£ ही मेरे पà¥à¤°à¤¾à¤£ हैं। आप मेरे सबकà¥à¤› हैं। मेरा मन सदैव आपका ही चिंतन करता है। हे पà¥à¤°à¤à¥! यदि मैंने कà¤à¥€ à¤à¥‚लवश अथवा जानबूà¤à¤•र à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• आपका पूजन किया हो तो वह सफल हो जाà¤à¥¤ मैं महापापी हूं, पतित हूं जबकि आप पतितपावन हैं। हे महादेव सदाशिव! आप वेदों, पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ और शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚तों के परम जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ हैं। अब तक कोई à¤à¥€ आपको पूरà¥à¤£ रूप से नहीं जानता है फिर à¤à¤²à¤¾ मà¥à¤ जैसा पापी मनà¥à¤·à¥à¤¯ आपको कैसे जान सकता है? हे महेशà¥à¤µà¤°! मैं पूरà¥à¤£ रूप से आपके अधीन हूं। हे पà¥à¤°à¤à¥ ! कृपा कर मà¥à¤ पर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होइठऔर मेरी रकà¥à¤·à¤¾ कीजिठइस पà¥à¤°à¤•ार पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने के बाद à¤à¤—वान शिव को फूल अकà¥à¤·à¤¤ चढ़ाकर पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® कर आदरपूरà¥à¤µà¤• विसरà¥à¤œà¤¨ करें । हे मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹ ! इस पà¥à¤°à¤•ार की गई à¤à¤—वान शिव की पूजा, à¤à¥‹à¤— और मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली à¤à¤µà¤‚ à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤µ बढ़ाने वाली है।