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Shiva Purana Sri Rudra Samhita (1st volume) From the eighth chapter to the fifteenth chapter

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता (पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡) के आठवें अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ से पंदà¥à¤°à¤¹à¤µà¥‡à¤‚ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ तक (From the eighth chapter to the fifteenth chapter of the Shiva Purana Sri Rudra Samhita (1st volume)

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡ आठवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾-विषà¥à¤£à¥ को भगवान शिव के दरà¥à¤¶à¤¨"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;– मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  नारद! हम दोनों देवता घमंड को भूलकर निरंतर भगवान शिव का सà¥à¤®à¤°à¤£ करने लगे। हमारे मन में जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग के रूप में पà¥à¤°à¤•ट परमेशà¥à¤µà¤° के वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• रूप का दरà¥à¤¶à¤¨ करने की इचà¥à¤›à¤¾ और पà¥à¤°à¤¬à¤² हो गई। शिव शंकर गरीबों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤²à¤•, अहंकारियों के गरà¥à¤µ को चूर करने वाले तथा सबके अविनाशी पà¥à¤°à¤­à¥ हैं। वे हम पर दया करते हà¥à¤ हमारी उपासना से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हो गà¤à¥¤ उस समय वहां उन सà¥à¤°à¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  से 'à¥' नाद सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ रूप से सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देता था। उस नाद के विषय में मैं और विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ दोनों यही सोच रहे थे कि यह कहां से सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ पड़ रहा है। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लिंग के दकà¥à¤·à¤¿à¤£ भाग में सनातन आदिवरà¥à¤£ अकार का दरà¥à¤¶à¤¨ किया। उतà¥à¤¤à¤° भाग में उकार का, मधà¥à¤¯ भाग में मकार का और अंत में 'à¥' नाद का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤­à¤µ किया। दकà¥à¤·à¤¿à¤£ भाग में पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ आकार का सूरà¥à¤¯ मणà¥à¤¡à¤² के समान तेजोमय रूप देखकर, जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उतà¥à¤¤à¤° भाग में देखा तो वह अगà¥à¤¨à¤¿ के समान दीपà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ दिखाई दिया। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ 'à¥' को देखा, जो सूरà¥à¤¯ और चंदà¥à¤°à¤®à¤£à¥à¤¡à¤² की भांति सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे और जिनके शà¥à¤°à¥‚ à¤à¤µà¤‚ अंत का कà¥à¤› पता नहीं था तथा सतà¥à¤¯ आनंद और अमृत सà¥à¤µà¤°à¥‚प परबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® परायण ही दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤—ोचर हो रहा था। परंतॠयह कहां से पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤† है? इस अगà¥à¤¨à¤¿ सà¥à¤¤à¤‚भ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ कहां से हà¥à¤ˆ है? यह शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ सोचने लगे तथा इसकी परीकà¥à¤·à¤¾ लेने के संबंध में विचार करने लगे। तब शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ ने भगवान शिव का चिंतन करते हà¥à¤ वेद और शबà¥à¤¦ के आवेश से यà¥à¤•à¥à¤¤ हो अनà¥à¤ªà¤® अगà¥à¤¨à¤¿ सà¥à¤¤à¤‚भ के नीचे जाने का निरà¥à¤£à¤¯ लिया। मैं और विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ विशà¥à¤µà¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ शिव का चिंतन कर रहे थे, तभी वहां à¤à¤• ऋषि पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ ऋषि के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ परमेशà¥à¤µà¤° विषà¥à¤£à¥ ने जाना कि इस शबà¥à¤¦ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤®à¤¯ शरीर वाले परम लिंग के रूप में साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ परबà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प महादेव जी पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ हैं। ये चिंतारहित रà¥à¤¦à¥à¤° हैं। परबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® परमातà¥à¤®à¤¾ शिव का वाचक पà¥à¤°à¤£à¤µ ही है। वह à¤à¤• सतà¥à¤¯ परम कारण, आनंद, अकृत, परातà¥à¤ªà¤° और परमबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® है। पà¥à¤°à¤£à¤µ के पहले अकà¥à¤·à¤° 'अकार' से जगत के बीजभूत अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ का बोध होता है। दूसरे अकà¥à¤·à¤° 'उकार' से सभी के कारण शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ विषà¥à¤£à¥ का बोध होता है। तीसरा अकà¥à¤·à¤° 'मकार' से भगवान शिव का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होता है। 'अकार' सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•रà¥à¤¤à¤¾, 'उकार' मोह में डालने वाला और 'मकार' नितà¥à¤¯ अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ करने वाला है। 'मकार' अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ भगवान शिव बीजी अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ बीज के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ हैं, तो 'अकार' अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बीज हैं। 'उकार' अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ योनि हैं। महेशà¥à¤µà¤° बीजी, बीज और योनि हैं। इन सभी को नाद कहा गया है। बीजी अपने बीज को अनेक रूपों में विभकà¥à¤¤ करते हैं। बीजी भगवान शिव के लिंग से 'उकार' रूप योनि में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ होकर चारों तरफ ऊपर की ओर बढ़ने लगा। वह दिवà¥à¤¯ अणà¥à¤¡ कई वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक जल में रहा।

हजारों वरà¥à¤· के बाद भगवान शिव ने इस अणà¥à¤¡ को दो भागों में विभकà¥à¤¤ कर दिया। तब इसके दो भागों में से पहला सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤®à¤¯ कपाल ऊपर की ओर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हो गया, जिससे सà¥à¤µà¤°à¥à¤—लोक उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤† तथा कपाल के नीचे के भाग से पांच ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ वाली पृथà¥à¤µà¥€ पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ˆà¥¤ उस अणà¥à¤¡ से चतà¥à¤°à¥à¤®à¥à¤– बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤, जो समसà¥à¤¤ लोकों के सृषà¥à¤Ÿà¤¾ हैं। भगवान महेशà¥à¤µà¤° ही ‘अ’, ‘उ' व 'म' तà¥à¤°à¤¿à¤µà¤¿à¤§ रूपों में वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ हैं। इसलिठजà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग सà¥à¤µà¤°à¥‚प सदाशिव को 'à¥' कहा गया है। इसकी सिदà¥à¤§à¤¿ यजà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦ में भी होती है। देवेशà¥à¤µà¤° शिव को जानकर विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ ने शकà¥à¤¤à¤¿ संभूत मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उतà¥à¤¤à¤® à¤à¤µà¤‚ महान अभà¥à¤¯à¥à¤¦à¤¯ से शोभित भगवान शिव की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करनी शà¥à¤°à¥‚ कर दी। इसी समय मैंने और विशà¥à¤µà¤ªà¤¾à¤²à¤• भगवान विषà¥à¤£à¥ ने à¤à¤• अदà¥à¤­à¥à¤¤ व सà¥à¤‚दर रूप देखा। जिसके पांच मà¥à¤–, दस भà¥à¤œà¤¾, कपूर के समान गौरवरà¥à¤£, परम कांतिमय, अनेक आभूषणों से विभूषित, महान उदार, महावीरà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¨ और महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के लकà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ था और जिसके दरà¥à¤¶à¤¨ पाकर मैं और विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ धनà¥à¤¯ हो गà¤à¥¤ तब परमेशà¥à¤µà¤° महादेव भगवान पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर अपने दिवà¥à¤¯à¤®à¤¯ रूप में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हो गà¤à¥¤ 'अकार' उनका मसà¥à¤¤à¤• और आकार ललाट है। इकार दाहिना और ईकार बायां नेतà¥à¤° है । उकार दाहिना और ऊकार बायां कान है। ऋकार दायां और ऋकार बायां गाल है। ऌ, रà¥à¤²à¤¿à¤‚ उनकी नाक के छिदà¥à¤° हैं। à¤à¤•ार और à¤à¤•ार उनके दोनों होंठ हैं। ओकार और औकार उनकी दोनों दंत पकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ हैं। अं और अः देवाधिदेव शिव के तालॠहैं। 'क' आदि पांच अकà¥à¤·à¤° उनके दाहिने पांच हाथ हैं और 'च' आदि बाà¤à¤‚ पांच हाथ हैं। 'त' और 'ट' से शà¥à¤°à¥‚ पांच अकà¥à¤·à¤° उनके पैर हैं। पकार पेट है, फकार दाहिना और बकार बायां पारà¥à¤¶à¥à¤µ भाग है। भकार कंधा, मकार हृदय है। हकार नाभि है। 'य' से 'स' तक के सात अकà¥à¤·à¤° सात धातà¥à¤à¤‚ हैं जिनसे भगवान शिव का शरीर बना है।

इस पà¥à¤°à¤•ार भगवान महादेव व भगवती उमा के दरà¥à¤¶à¤¨ कर हम दोनों कृतारà¥à¤¥ हो गà¤à¥¤ हमने उनके चरणों में पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया तब हमें पांच कलाओं से यà¥à¤•à¥à¤¤ à¥à¤•ार जनित मंतà¥à¤° का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार हà¥à¤†à¥¤ ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ महादेव जी 'ॠततà¥à¤µà¤®à¤¸à¤¿' महावाकà¥à¤¯ दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤—ोचर हà¥à¤†, जो परम उतà¥à¤¤à¤® मंतà¥à¤°à¤°à¥‚प है। इसके बाद धरà¥à¤® और अरà¥à¤¥ का साधक बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प चौबीस अकà¥à¤·à¤°à¥€à¤¯ गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤†, जो पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤°à¥‚पी फल देने वाला है। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ मृतà¥à¤¯à¥à¤‚जय मंतà¥à¤° फिर पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° - तथा दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾à¤®à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ व चिंतामणि का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार हà¥à¤†à¥¤ इन पांचों मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ को विषà¥à¤£à¥ भगवान ने गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर जपना आरंभ किया। ईशों के मà¥à¤•à¥à¤Ÿ मणि ईशान हैं, जो पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¤à¥à¤µ पà¥à¤°à¥à¤· हैं, हृदय को पà¥à¤°à¤¿à¤¯ लगने वाले, जिनके चरण सà¥à¤‚दर हैं, जो सांप को आभूषण के रूप में धारण करते हैं, जिनके पैर व नेतà¥à¤° सभी ओर हैं, जो मà¥à¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ के अधिपति, कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी तथा सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤ªà¤¾à¤²à¤¨ à¤à¤µà¤‚ संहार करने वाले हैं। उन वरदायक शिव की मेरे साथ भगवान विषà¥à¤£à¥ ने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ वचनों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ चितà¥à¤¤ से सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ की।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡ नवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"देवी उमा à¤à¤µà¤‚ भगवान शिव का पà¥à¤°à¤¾à¤•टà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ उपदेश देना"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- नारद ! भगवान विषà¥à¤£à¥ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की गई अपनी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¨à¤•र कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤®à¤¯à¥€ शिव बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ और देवी उमा सहित वहां पà¥à¤°à¤•ट हो गà¤à¥¤ भगवान शिव के पांच मà¥à¤– थे और हर मà¥à¤– में तीन-तीन नेतà¥à¤° थे, मसà¥à¤¤à¤• में चंदà¥à¤°à¤®à¤¾, सिर पर जटा तथा संपूरà¥à¤£ अंगों में विभूति लगा रखी थी । दसभà¥à¤œà¤¾ वाले गले में नीलकंठ, आभूषणों से विभूषित और माथे पर भसà¥à¤® का तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥à¤£à¥à¤¡ लगाठथे। उनका यह रूप मन को मोहित करने वाला और परम आनंदमयी था। महादेव जी के साथ भगवती उमा ने भी हमें दरà¥à¤¶à¤¨ दिठउनको देखकर मैंने और विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ पà¥à¤¨à¤ƒ उनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करनी शà¥à¤°à¥‚ कर दी। तब पापों का नाश करने वाले तथा अपने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर सदा कृपादृषà¥à¤Ÿà¤¿ रखने वाले महेशà¥à¤µà¤° ने मà¥à¤à¥‡ और भगवान विषà¥à¤£à¥ को शà¥à¤µà¤¾à¤¸ से वेद का उपदेश दिया। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें गà¥à¤ªà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया। वेद का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर कृतारà¥à¤¥ हà¥à¤ विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ और मैंने भगवान शिव और देवी के सामने अपने दोनों हाथ जोड़कर नमसà¥à¤•ार किया तथा पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की ।

विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ ने पूछा ;- हे देव! आप किस पà¥à¤°à¤•ार पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हैं? तथा किस पà¥à¤°à¤•ार आपकी पूजा और धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करना चाहिà¤? कृपया कर हमें इसके बारे में बताà¤à¤‚ तथा सदà¥à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ देकर धनà¥à¤¯ करें।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ कहते हैं ;– नारद! इस पà¥à¤°à¤•ार शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ की यह बात सà¥à¤¨à¤•र अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ कृपानिधान शिव ने पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• यह बात की।

शà¥à¤°à¥€à¤¶à¤¿à¤µ बोले ;- मैं तà¥à¤® दोनों की भकà¥à¤¤à¤¿ से बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हूं। मेरे इसी रूप का पूजन व चिंतन करना चाहिà¤à¥¤ तà¥à¤® दोनों महाबली हो । मेरे दाà¤à¤‚-बाà¤à¤‚ अंगों से तà¥à¤® पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ हो। लोकपिता बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ मेरे दाहिने पारà¥à¤¶à¥à¤µ से और पालनहार विषà¥à¤£à¥ मेरे बाà¤à¤‚ पारà¥à¤¶à¥à¤µ से पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ हो। मैं तà¥à¤® पर मैं भली-भांति पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हूं और तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ मनोवांछित फल देता हूं। तà¥à¤® दोनों की भकà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¦à¥ƒà¥ हो । मेरी आजà¥à¤žà¤¾ का पालन करते हà¥à¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ आप जगत की रचना करें तथा भकà¥à¤¤ विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ आप इस जगत का पालन करें।

भगवान विषà¥à¤£à¥ बोले ;— पà¥à¤°à¤­à¥‹ ! यदि आपके हृदय में हमारी भकà¥à¤¤à¤¿ से पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ है और आप हम पर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर हमें वर देना चाहते हैं, तो हम यही वर मांगते हैं कि हमारे हृदय में सदैव आपकी अननà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ अविचल भकà¥à¤¤à¤¿ बनी रहे।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- नारद ! विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ की यह बात सà¥à¤¨à¤•र भगवान शंकर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤à¥¤ तब हमने दोनों हाथ जोड़कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया।

शिवजी कहते हैं ;-- मैं सृषà¥à¤Ÿà¤¿, पालन और संहार का करà¥à¤¤à¤¾ हूं। मेरा सà¥à¤µà¤°à¥‚प सगà¥à¤£ और निरà¥à¤—à¥à¤£ है! मैं ही सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤‚द निरà¥à¤µà¤¿à¤•ार परमबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® और परमातà¥à¤®à¤¾ हूं। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना, रकà¥à¤·à¤¾ और पà¥à¤°à¤²à¤¯à¤°à¥‚प गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के कारण मैं ही बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ और रà¥à¤¦à¥à¤° नाम धारण कर तीन रूपों में विभकà¥à¤¤ हà¥à¤† हूं। मैं भकà¥à¤¤à¤µà¤¤à¥à¤¸à¤² हूं और भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ को सदैव पूरी करता हूं। मेरे इसी अंश से रà¥à¤¦à¥à¤° की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ होगी। पूजा की विधि-विधान की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से हममें कोई अंतर नहीं होगा। विषà¥à¤£à¥, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और रà¥à¤¦à¥à¤° तीनों à¤à¤•रूप होंगे। इनमें भेद नहीं है। इनमें जो भेद मानेगा, वह घोर नरक को भोगेगा। मेरा शिवरूप सनातन है तथा सभी का मूलभूत रूप है। यह सतà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ à¤à¤µà¤‚ अनंत बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® है, à¤à¤¸à¤¾ जानकर मेरे यथारà¥à¤¥ सà¥à¤µà¤°à¥‚प का दरà¥à¤¶à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤ मैं सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ की भृकà¥à¤Ÿà¤¿ से पà¥à¤°à¤•ट होऊंगा। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ आप सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ बनो, शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ विषà¥à¤£à¥ इसका पालन करें तथा मेरे अंश से पà¥à¤°à¤•ट होने वाले रà¥à¤¦à¥à¤° पà¥à¤°à¤²à¤¯ करने वाले हैं। 'उमा' नाम से विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ परमेशà¥à¤µà¤°à¥€ पà¥à¤°à¤•ृति देवी है। इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ की शकà¥à¤¤à¤¿à¤­à¥‚ता वागà¥à¤¦à¥‡à¤µà¥€ सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ की अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚गिनी होंगी और दूसरी देवी, जो पà¥à¤°à¤•ृति देवी से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होंगी, लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ रूप में विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ की शोभा बढ़ाà¤à¤‚गी तथा काली नाम से जो तीसरी शकà¥à¤¤à¤¿ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होगी, वह मेरे अंशभूत रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¦à¥‡à¤µ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होंगी। कारà¥à¤¯à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¿ के लिठवे जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥‚प में पà¥à¤°à¤•ट होंगी। उनका कारà¥à¤¯ सृषà¥à¤Ÿà¤¿, पालन और संहार का संपादन है। मैं ही सृषà¥à¤Ÿà¤¿, पालन और संहार करने वाले रज आदि तीन गà¥à¤£à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ और रà¥à¤¦à¥à¤° नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हो तीन रूपों में पà¥à¤°à¤•ट होता हूं। तीनों लोकों का पालन करने वाले शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ अपने भीतर तमोगà¥à¤£ और बाहर सतà¥à¤µà¤—à¥à¤£ धारण करते हैं, तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤• का संहार करने वाले रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¦à¥‡à¤µ भीतर सतà¥à¤µà¤—à¥à¤£ और बाहर तमोगà¥à¤£ धारण करते हैं तथा तà¥à¤°à¤¿à¤­à¥à¤µà¤¨ की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ करने वाले बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बाहर और भीतर से रजोगà¥à¤£à¥€ हैं। इस पà¥à¤°à¤•ार बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ तथा रà¥à¤¦à¥à¤° तीनों देवताओं में गà¥à¤£ हैं तो शिव गà¥à¤£à¤¾à¤¤à¥€à¤¤ माने जाते हैं। हे विषà¥à¤£à¥‹! तà¥à¤® मेरी आजà¥à¤žà¤¾ से सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पालन करो। à¤à¤¸à¤¾ करने से तà¥à¤® तीनों लोकों में पूजनीय होओगे।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡ दशवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ को सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रकà¥à¤·à¤¾ का भार à¤à¤µà¤‚ तà¥à¤°à¤¿à¤¦à¥‡à¤µ को आयà¥à¤°à¥à¤¬à¤² देना"

परमेशà¥à¤µà¤° शिव बोले ;– हे उतà¥à¤¤à¤® वà¥à¤°à¤¤ का पालन करने वाले विषà¥à¤£à¥ ! तà¥à¤® सरà¥à¤µà¤¦à¤¾ सब लोकों में पूजनीय और मानà¥à¤¯ होगे। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ रचे लोक में कोई दà¥à¤– या संकट होने पर दà¥à¤–ों और संकटों का नाश करने के लिठतà¥à¤® सदा ततà¥à¤ªà¤° रहना। तà¥à¤® अनेकों अवतार गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर जीवों का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ कर अपनी कीरà¥à¤¤à¤¿ का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° करोगे । मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ सहायता करूंगा और तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ शतà¥à¤°à¥à¤“ं का नाश करूंगा। तà¥à¤®à¤®à¥‡à¤‚ और रà¥à¤¦à¥à¤° में कोई अंतर नहीं है, तà¥à¤® à¤à¤• दूसरे के पूरक हो। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ रà¥à¤¦à¥à¤° का भकà¥à¤¤ होकर तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ निंदा करेगा, उसका पà¥à¤£à¥à¤¯ नषà¥à¤Ÿ हो जाà¤à¤—ा और उसे नरक भोगना पड़ेगा। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को तà¥à¤® भोग और मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले और उनके परम पूजà¥à¤¯ देव होकर उनका निगà¥à¤°à¤¹, अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ आदि करोगे।

à¤à¤¸à¤¾ कहकर भगवान शिव ने मेरा हाथ विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ के हाथ में देकर कहा- तà¥à¤® संकट के समय सदा इनकी सहायता करना तथा सभी को भोग और मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करना तथा सभी मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की कामनाओं को पूरा करना । तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ शरण में आने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ को मेरा आशà¥à¤°à¤¯ भी मिलेगा तथा हममें भेद करने वाला मनà¥à¤·à¥à¤¯ नरक में जाà¤à¤—ा।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ कहते हैं ;- देवरà¥à¤·à¤¿ नारद! भगवान शिव का यह वचन सà¥à¤¨à¤•र मैंने और भगवान विषà¥à¤£à¥ ने महादेव जी को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® कर धीरे से कहा- हे करà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ भगवान शंकर! मैं आपकी आजà¥à¤žà¤¾ मानकर सब कारà¥à¤¯ करूंगा। मेरा जो भकà¥à¤¤ आपकी निंदा करे, उसे आप नरक पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें। आपका भकà¥à¤¤ मà¥à¤à¥‡ अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¿à¤¯ है।

महादेव जी बोले ;- अब बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ और रà¥à¤¦à¥à¤° के आयà¥à¤°à¥à¤¬à¤² को सà¥à¤¨à¥‹à¥¤ चार हजार यà¥à¤— का बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ का à¤à¤• दिन होता है और चार हजार यà¥à¤— की à¤à¤• रात होती है। तीस दिन का à¤à¤• महीना और बारह महीनों का à¤à¤• वरà¥à¤· होता है ! इस पà¥à¤°à¤•ार के वरà¥à¤·-पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ से बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ की सौ वरà¥à¤· की आयॠहोती है और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ का à¤à¤• वरà¥à¤· विषà¥à¤£à¥ का à¤à¤• दिन होता है। वह भी इसी पà¥à¤°à¤•ार से सौ वरà¥à¤· जिà¤à¤‚गे तथा विषà¥à¤£à¥ का à¤à¤• वरà¥à¤· रà¥à¤¦à¥à¤° के à¤à¤• दिन के बराबर होता है और वह भी इसी कà¥à¤°à¤® से सौ वरà¥à¤· तक सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रहेंगे। तब शिव के मà¥à¤– से à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ शà¥à¤µà¤¾à¤¸ पà¥à¤°à¤•ट होता है, जिसमें उनके इकà¥à¤•ीस हजार छ: सौ दिन और रात होते हैं। उनके छः बार सांस अंदर लेने और छोड़ने का à¤à¤• पल और आठ घड़ी और साठ घड़ी का à¤à¤• दिन होता है। उनके सांसों की कोई संखà¥à¤¯à¤¾ नहीं है इसलिठवे अकà¥à¤·à¤¯ हैं। अतः तà¥à¤® मेरी आजà¥à¤žà¤¾ से सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करो । उनके वचनों को सà¥à¤¨à¤•र विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करते हà¥à¤ कहा कि आपकी आजà¥à¤žà¤¾ मेरे लिठशिरोधारà¥à¤¯ है। यह सà¥à¤¨à¤•र भगवान शिव ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ दिया और अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो गà¤à¥¤ उसी समय से लिंग पूजा आरंभ हो गई।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤µà¤¾à¤ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिव पूजन की विधि तथा फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿"

ऋषि बोले :– हे सूत जी! अब आप हम पर कृपा कर हमें बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ व नारद के संवादों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° शिव पूजन की विधि बताइà¤, जिससे भगवान शिव पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हैं। बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£, कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯, वैशà¥à¤¯ और शूदà¥à¤° आदि चारों वरà¥à¤£à¥‹à¤‚ को शिव पूजन किस पà¥à¤°à¤•ार करना चाहिà¤? आपने वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी के मà¥à¤– से जो सà¥à¤¨à¤¾ हो, कृपया हमें भी बताइà¤à¥¤ महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के ये वचन सà¥à¤¨à¤•र सूत जी ने ऋषियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पूछे गठपà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का उतà¥à¤¤à¤° देते हà¥à¤ कहना आरंभ किया।

सूत जी बोले ;– हे मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤µà¤°! जैसा आपने पूछा है, वह बड़े रहसà¥à¤¯ की बात है। मैंने इसे जैसा सà¥à¤¨à¤¾ है, उसे मैं अपनी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° आपको सà¥à¤¨à¤¾ रहा हूं। पूरà¥à¤µà¤•ाल में वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी ने सनतà¥à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° जी से यही पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ किया था। फिर उपमनà¥à¤¯à¥ जी ने भी इसे सà¥à¤¨à¤¾ था और इसे भगवान शà¥à¤°à¥€à¤•ृषà¥à¤£ को सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ था। वही सब मैं अब बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾-नारद संवाद के रूप में आपको बता रहा हूं।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा ;- भगवान शिव की भकà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤–मय, निरà¥à¤®à¤² à¤à¤µà¤‚ सनातन रूप है तथा समसà¥à¤¤ मनोवांछित फलों को देने वाली है। यह दरिदà¥à¤°à¤¤à¤¾, रोग, दà¥à¤– तथा शतà¥à¤°à¥ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दी गई पीड़ा का नाश करने वाली है। जब तक मनà¥à¤·à¥à¤¯ भगवान शिव का पूजन नहीं करता और उनकी शरण में नहीं जाता, तब तक ही उसे दरिदà¥à¤°à¤¤à¤¾, दà¥à¤–, रोग और शतà¥à¤°à¥à¤œà¤¨à¤¿à¤¤ पीड़ा, ये चारों पà¥à¤°à¤•ार के पाप दà¥à¤–ी करते हैं। भगवान शिव की पूजा करते ही ये दà¥à¤– समापà¥à¤¤ हो जाते हैं और अकà¥à¤·à¤¯ सà¥à¤–ों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। वह सभी भोगों को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर अंत में मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। शिवजी का पूजन करने वालों को धन, संतान और सà¥à¤– की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£, कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯, वैशà¥à¤¯ और शूदà¥à¤°à¥‹à¤‚ को सभी कामनाओं तथा पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ की सिदà¥à¤§à¤¿ के लिठविधि अनà¥à¤¸à¤¾à¤° पूजा-उपासना करनी चाहिठ।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤®à¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ में उठकर गà¥à¤°à¥ तथा शिव का सà¥à¤®à¤°à¤£ करके तीरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का चिंतन à¤à¤µà¤‚ भगवान विषà¥à¤£à¥ का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करें। फिर मेरा सà¥à¤®à¤°à¤£-चिंतन करके सà¥à¤¤à¥‹à¤¤à¥à¤° पाठ पूरà¥à¤µà¤• शंकरजी का विधिपूरà¥à¤µà¤• नाम लें। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ उठकर शौचकà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ करने के लिठदकà¥à¤·à¤¿à¤£ दिशा में जाà¤à¤‚ तथा मल-मूतà¥à¤° तà¥à¤¯à¤¾à¤— करें। बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ गà¥à¤¦à¤¾ की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के लिठउसमें पांच बार शà¥à¤¦à¥à¤§ मिटà¥à¤Ÿà¥€ का लेप करें और धोà¤à¤‚। कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ चार बार, वैशà¥à¤¯ तीन बार और शूदà¥à¤° दो बार यही कà¥à¤°à¤® करें। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ बाà¤à¤‚ हाथ में दस बार और दोनों हाथों में सात बार मिटà¥à¤Ÿà¥€ लगाकर धोà¤à¤‚। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• पैर में तीन-तीन बार मिटà¥à¤Ÿà¥€ लगाà¤à¤‚। सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को भी इसी पà¥à¤°à¤•ार कà¥à¤°à¤® करते हà¥à¤ शà¥à¤¦à¥à¤§ मिटà¥à¤Ÿà¥€ से हाथ-पैर धोने चाहिà¤à¥¤ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को बारह अंगà¥à¤², कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ को गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹, वैशà¥à¤¯ को दस और शूदà¥à¤° को नौ अंगà¥à¤² की दातà¥à¤¨ करनी चाहिà¤à¥¤ षषà¥à¤ à¥€, अमावसà¥à¤¯à¤¾, नवमी, वà¥à¤°à¤¤ के दिन सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ के समय, रविवार और शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ के दिन दातà¥à¤¨ न करें। दातà¥à¤¨ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ जलाशय में जाकर सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करें तथा विशेष देश-काल आने पर मंतà¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤°à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करें। फिर à¤à¤•ांत सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर बैठकर विधिपूरà¥à¤µà¤• संधà¥à¤¯à¤¾ करें तथा इसके उपरांत विधि-विधान से शिवपूजन का कारà¥à¤¯ आरंभ करें। तदà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤‚त मन को सà¥à¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤° करके पूजा गà¥à¤°à¤¹ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करें तथा आसन पर बैठें।

सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® गणेश जी का पूजन करें। उसके उपरांत शिवजी की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करें । तीन बार आचमन कर तीन पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¾à¤¯à¤¾à¤® करते समय तà¥à¤°à¤¿à¤¨à¥‡à¤¤à¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¥€ शिव का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करें। महादेव जी के पांच मà¥à¤–, दस भà¥à¤œà¤¾à¤à¤‚ और जिनकी सà¥à¤«à¤Ÿà¤¿à¤• के समान उजà¥à¤œà¥à¤µà¤² कांति है। सब पà¥à¤°à¤•ार के आभूषण उनके शà¥à¤°à¥€à¤…ंगों को विभूषित करते हैं तथा वे बाघंबर बांधे हà¥à¤ हैं। फिर पà¥à¤°à¤£à¤µ-मंतà¥à¤° अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ ओंकार से शिवजी की पूजा आरंभ करें। पादà¥à¤¯, अरà¥à¤˜à¥à¤¯ और आचमन के लिठपातà¥à¤°à¥‹à¤‚ को तैयार करें। नौ कलश सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करें तथा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤¶à¤¾à¤“ं से ढककर रखें। कà¥à¤¶à¤¾à¤“ं से जल लेकर ही सबका पà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾à¤²à¤¨ करें। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ सभी कलशों में शीतल जल डालें। खस और चंदन को पादà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¤à¥à¤° में रखें। चमेली के फूल, शीतल चीनी, कपूर, बड़ की जड़ तथा तमाल का चूरà¥à¤£ बना लें और आचमनीय के पातà¥à¤° में डालें। इलायची और चंदन को तो सभी पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ में डालें। देवाधिदेव महादेव जी के सामने नंदीशà¥à¤µà¤° का पूजन करें। गंध, धूप तथा दीपों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ भगवान शिव की आराधना आरंभ करें।

'सदà¥à¤¯à¥‹à¤œà¤¾à¤¤à¤‚ पà¥à¤°à¤ªà¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤®à¤¿' मंतà¥à¤° से शिवजी का आवाहन करें। 'ॠवामदेवाय नमः' मंतà¥à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ भगवान महेशà¥à¤µà¤° को आसन पर सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करें। फिर 'ईशानः सरà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤¾à¤®à¥' मंतà¥à¤° से आराधà¥à¤¯ देव का पूजन करें। पादà¥à¤¯ और आचमनीय अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर अरà¥à¤˜à¥à¤¯ दें। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ गंध और चंदन मिले हà¥à¤ जल से भगवान शिव को विधिपूरà¥à¤µà¤• सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराà¤à¤‚। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ पंचामृत से भगवान शिव को सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराà¤à¤‚। पंचामृत के पांचों ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ - दूध, दही, शहद, गनà¥à¤¨à¥‡ का रस तथा घी से नहलाकर महादेव जी के पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° को बोलते हà¥à¤ उनका अभिषेक करें। जलपातà¥à¤°à¥‹à¤‚ में शà¥à¤¦à¥à¤§ व शीतल जल लें। सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® महादेव जी के लिंग पर कà¥à¤¶, अपामारà¥à¤—, कपूर, चमेली, चंपा, गà¥à¤²à¤¾à¤¬, सफेद कनेर, बेला, कमल और उतà¥à¤ªà¤² पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ चंदन को चढ़ाकर पूजा करें। उन पर अनवरत जल की धारा गिरने की भी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करें। जल से भरे पातà¥à¤°à¥‹à¤‚ से महेशà¥à¤µà¤° को नहलाà¤à¤‚। मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ से भी पूजा करनी चाहिà¤à¥¤ à¤à¤¸à¥€ पूजा समसà¥à¤¤ अभीषà¥à¤Ÿ फलों को देने वाली है ।

पावमान मंतà¥à¤°, रà¥à¤¦à¥à¤° मंतà¥à¤°, नीलरà¥à¤¦à¥à¤° मंतà¥à¤°, पà¥à¤°à¥à¤· सूकà¥à¤¤, शà¥à¤°à¥€ सूकà¥à¤¤, अथरà¥à¤µà¤¶à¥€à¤°à¥à¤· मंतà¥à¤°, शांति मंतà¥à¤°, भारà¥à¤£à¥à¤¡ मंतà¥à¤°, सà¥à¤¥à¤‚तरसाम, मृतà¥à¤¯à¥à¤‚जय मंतà¥à¤° à¤à¤µà¤‚ पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ से पूजन करें। शिवलिंग पर à¤à¤• सहसà¥à¤° या à¤à¤• सौ जलधाराà¤à¤‚ गिराने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करें। सà¥à¤«à¤Ÿà¤¿à¤• के समान निरà¥à¤®à¤², अविनाशी, सरà¥à¤µà¤²à¥‹à¤•मय परमदेव, जो आरंभ और अंत से हीन तथा रोगियों के औषधि के समान हैं, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शिव के नाम से पहचाना जाता है à¤à¤µà¤‚ जो शिवलिंग के रूप में विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ हैं, उन भगवान शिव के मसà¥à¤¤à¤• पर धूप, दीप, नैवेदà¥à¤¯ और तांबूल आदि मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। अरà¥à¤˜à¥à¤¯ देकर भगवान शिव के चरणों में फूल अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। फिर महेशà¥à¤µà¤° को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® कर आतà¥à¤®à¤¾ से शिवजी की आराधना करें और पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करते समय हाथ में फूल लें। भगवान शिव से कà¥à¤·à¤®à¤¾à¤¯à¤¾à¤šà¤¨à¤¾ हà¥à¤ कहें- हे कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी शिव! मैंने अनजाने में अथवा जानबूà¤à¤•र जो जप-तप पूजा आदि सतà¥à¤•रà¥à¤® किठहों, आपकी कृपा से वे सफल हों। हरà¥à¤·à¤¿à¤¤ मन से शिवजी को फूल अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤à¤¿ वाचन कर, अनेक आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करें। भगवान शिव से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करें कि 'पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• जनà¥à¤® में मेरी शिव में भकà¥à¤¤à¤¿ हो तथा शिव ही मेरे शरणदाता हों।' इस पà¥à¤°à¤•ार परम भकà¥à¤¤à¤¿ से उनका पूजन करें। फिर सपरिवार भगवान को नमसà¥à¤•ार करें।

जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ भकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ भगवान शिव की पूजा करता है, उसे सब सिदà¥à¤§à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती हैं। उसे मनोवांछित फलों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। उसके सभी रोग, दà¥à¤–, दरà¥à¤¦ और कषà¥à¤Ÿ समापà¥à¤¤ हो जाते हैं। भगवान शिव की कृपा से उपासक का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ होता है। भगवान शंकर की पूजा से मनà¥à¤·à¥à¤¯ में सदà¥à¤—à¥à¤£à¥‹à¤‚ की वृदà¥à¤§à¤¿ होती है ।

में यह सब जानकर नारद अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हà¥à¤ अपने पिता बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ को धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ देते हà¥à¤ बोले कि आपने मà¥à¤ पर कृपा कर मà¥à¤à¥‡ शिव पूजन की अमृत विधि बताई है। शिव भकà¥à¤¤à¤¿ समसà¥à¤¤ भोग और मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली है।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

बारहवां अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

देवताओं को उपदेश देना

नारद जी बोले :- बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€! आप धनà¥à¤¯ हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आपने अपनी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ को शिव चरणों में लगा रखा है। कृपा कर इस आनंदमय विषय का वरà¥à¤£à¤¨ सविसà¥à¤¤à¤¾à¤° पà¥à¤¨à¤ƒ कीजिà¤à¥¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा – हे नारद! à¤à¤• समय की बात है। मैंने सब ओर से देवताओं और ऋषियों को बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ और कà¥à¤·à¥€à¤°à¤¸à¤¾à¤—र के तट पर भगवान विषà¥à¤£à¥ की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ किया।

भगवान विषà¥à¤£à¥ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर बोले :- हे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€! à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ देवगणो। आप यहां कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पधारे हैं? आपके मन में कà¥à¤¯à¤¾ इचà¥à¤›à¤¾ है? आप अपनी समसà¥à¤¯à¤¾ बताइà¤à¥¤ मैं निशà¥à¤šà¤¯ ही उसे दूर करने का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करूंगा।

यह सà¥à¤¨à¤•र बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले :- हे भगवनॠ! दà¥à¤–ों को दूर करने के लिठकिस देवता की सेवा करनी चाहिà¤?

तब भगवान विषà¥à¤£à¥ ने उनके पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का उतà¥à¤¤à¤° देते हà¥à¤ कहा :- हे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¨à¥ ! भगवान शिव शंकर ही सब दà¥à¤–ों को दूर करने वाले हैं। सà¥à¤– की कामना करने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ को उनकी भकà¥à¤¤à¤¿ में सदैव लगे रहना चाहिà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ में मन लगाठऔर उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ का चिंतन करे । जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ शिव भकà¥à¤¤à¤¿ में लीन रहता है, जिसके मन में वे विराजमान हैं, वह मनà¥à¤·à¥à¤¯ कभी दà¥à¤–ी नहीं हो सकता। पूरà¥à¤µ जनà¥à¤® में किठगठपà¥à¤£à¥à¤¯à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ शिवभकà¥à¤¤à¤¿ से ही पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को सà¥à¤‚दर भवन, आभूषणों से विभूषित सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚, मन का संतोष, धन-संपदा, सà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥ शरीर, पà¥à¤¤à¥à¤°-पौतà¥à¤°, अलौकिक पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾, सà¥à¤µà¤°à¥à¤— के सà¥à¤– à¤à¤µà¤‚ मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। जो सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ या पà¥à¤°à¥à¤· पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ भकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• शिवलिंग की पूजा करता है उसको हर जगह सफलता पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है। वह पापों के बंधन से छूट जाता है। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ गणों ने भगवान विषà¥à¤£à¥ के उपदेश को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• सà¥à¤¨à¤¾à¥¤ भगवान विषà¥à¤£à¥ को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® कर, कामनाओं की पूरà¥à¤¤à¤¿ हेतॠउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शिवलिंग की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की।

तब शà¥à¤°à¥€ विषà¥à¤£à¥ ने विशà¥à¤µà¤•रà¥à¤®à¤¾ को बà¥à¤²à¤¾à¤•र कहा :- हे मà¥à¤¨à¥‡! तà¥à¤® मेरी आजà¥à¤žà¤¾ से देवताओं के लिठशिवलिगों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करो।' तब विशà¥à¤µà¤•रà¥à¤®à¤¾ ने मेरी और शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ की आजà¥à¤žà¤¾ को मानते हà¥à¤, देवताओं के लिठउनके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° लिंगों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया।

मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  नारद ! सभी देवताओं को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ शिवलिंगों के विषय में सà¥à¤¨à¥‹à¥¤ सभी देवता अपने दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ लिंग की पूजा उपासना करते हैं। पदà¥à¤®à¤ªà¤°à¤¾à¤— मणि का लिंग इंदà¥à¤° को, सोने का कà¥à¤¬à¥‡à¤° को, पà¥à¤–राज का धरà¥à¤®à¤°à¤¾à¤œ को, शà¥à¤¯à¤¾à¤® वरà¥à¤£ का वरà¥à¤£ को, इंदà¥à¤°à¤¨à¥€à¤²à¤®à¤£à¤¿ का विषà¥à¤£à¥ को और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ हेमलय लिंग को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर उसका भकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पूजन करते हैं। इसी पà¥à¤°à¤•ार विशà¥à¤µà¤¦à¥‡à¤µ चांदी के लिंग की और वसà¥à¤—ण पीतल के बने लिंग की भकà¥à¤¤à¤¿ करते हैं। पीतल का अशà¥à¤µà¤¿à¤¨à¥€ कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को, सà¥à¤«à¤Ÿà¤¿à¤• का लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ को, तांबे का आदितà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को और मोती का लिंग चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया गया है। वà¥à¤°à¤œ-लिंग बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ के लिठव मिटà¥à¤Ÿà¥€ का लिंग बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ की सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठहै। मयासà¥à¤° चंदन दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बने लिंग का और नागों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मूंगे के बने शिवलिंग का आदरपूरà¥à¤µà¤• पूजन किया जाता है। देवी मकà¥à¤–न के बने लिंग की अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ करती हैं। योगीजन भसà¥à¤®-मय लिंग की, यकà¥à¤·à¤—ण दधि से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ लिंग की, छायादेवी आटे के लिंग और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤ªà¤¤à¥à¤¨à¥€ रतà¥à¤¨à¤®à¤¯ शिव लिंग की पूजा करती हैं। बाणासà¥à¤° पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ लिंग की पूजा करता है। भगवान विषà¥à¤£à¥ ने देवताओं को उनके हित के लिठशिवलिंग के साथ पूजन विधि भी बताई। देवताओं के वचनों को सà¥à¤¨à¤•र मेरे हृदय में हरà¥à¤· की अनà¥à¤­à¥‚ति हà¥à¤ˆà¥¤ मैंने लोकों का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ करने वाली शिव पूजा की उतà¥à¤¤à¤® विधि बताई। यह शिव भकà¥à¤¤à¤¿ समसà¥à¤¤ अभीषà¥à¤Ÿ फलों को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली है।

इस पà¥à¤°à¤•ार लिंगों के विषय में बताकर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने शिवलिंग व शिवभकà¥à¤¤à¤¿ की महिमा का वरà¥à¤£à¤¨ किया। शिवपूजन भोग और मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ जनà¥à¤®, उचà¥à¤š कà¥à¤² में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करना अतà¥à¤¯à¤‚त दà¥à¤°à¥à¤²à¤­ है। इसलिठमनà¥à¤·à¥à¤¯ रूप में जनà¥à¤® लेकर मनà¥à¤·à¥à¤¯ को शिव भकà¥à¤¤à¤¿ में लीन रहना चाहिà¤à¥¤ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बताठगठमारà¥à¤— का अनà¥à¤¸à¤°à¤£ करते हà¥à¤, जाति के नियमों का पालन करते हà¥à¤ करà¥à¤® करें। संपतà¥à¤¤à¤¿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° दान आदि दें। जप, तप, यजà¥à¤ž और धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करें। धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही परमातà¥à¤®à¤¾ का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार होता है। भगवान शंकर अपने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के लिठसदा उपलबà¥à¤§ रहते हैं।

जब तक जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ न हो, तब तक करà¥à¤®à¥‹à¤‚ से ही आराधना करें। इस संसार में जो-जो वसà¥à¤¤à¥ सत-असत रूप में दिखती है अथवा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देती है, वह परबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® शिव रूप है। ततà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ न होने तक देव की मूरà¥à¤¤à¤¿ का पूजन करें। अपनी जाति के लिठअपनाठगठकरà¥à¤® का पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पालन करें। आराधà¥à¤¯ देव का पूजन शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• करें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पूजन और दान से ही हमारी सभी विघà¥à¤¨ व बाधाà¤à¤‚ दूर होती हैं। जिस पà¥à¤°à¤•ार मैले कपड़े पर रंग अचà¥à¤›à¥‡ से नहीं चढ़ता, परंतॠसाफ कपड़े पर अचà¥à¤›à¥€ तरह से रंग चढ़ता है, उसी पà¥à¤°à¤•ार देवताओं की पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ से मनà¥à¤·à¥à¤¯ का शरीर पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ निरà¥à¤®à¤² हो जाता है। उस पर जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का रंग चढ़ता है और वह भेदभाव आदि बंधनों से छूट जाता है। बंधनों से छूटने पर उसके सभी दà¥à¤–-दरà¥à¤¦ समापà¥à¤¤ हो जाते हैं और मोह-माया से मà¥à¤•à¥à¤¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ शिवपद पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेता है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ जब तक गृहसà¥à¤¥ आशà¥à¤°à¤® में रहे, तब तक सभी देवताओं में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  भगवान शंकर की मूरà¥à¤¤à¤¿ का पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पूजन करे। भगवान शंकर ही सभी देवों के मूल हैं। उनकी पूजा से बढ़कर कà¥à¤› भी नहीं है। जिस पà¥à¤°à¤•ार वृकà¥à¤· की जड़ में पानी से सींचने पर जड़ à¤à¤µà¤‚ शाखाà¤à¤‚ सभी तृपà¥à¤¤ हो जाती हैं उसी पà¥à¤°à¤•ार भगवान शिव की भकà¥à¤¤à¤¿ है। अतः मनोवांछित फलों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठशिवजी की पूजा करनी चाहिठ। अभीषà¥à¤Ÿ फलों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ तथा सिदà¥à¤§à¤¿ के लिठसमसà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सदैव लोक कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी भगवान शिव का पूजन करना चाहिà¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

तेरहवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिव-पूजन की शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  विधि"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ कहते हैं :– हे नारद! अब मैं शिव पूजन की सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® विधि बताता हूं। यह विधि समसà¥à¤¤ अभीषà¥à¤Ÿ तथा सà¥à¤–ों को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली है। उपासक बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤®à¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ में उठकर जगदंबा पारà¥à¤µà¤¤à¥€ और भगवान शिव का सà¥à¤®à¤°à¤£ करे। दोनों हाथ जोड़कर उनके सामने सिर à¤à¥à¤•ाकर भकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करे- हे देवेश! उठिà¤, हे तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•ीनाथ! उठिà¤, मेरे हृदय में निवास करने वाले देव उठिठऔर पूरे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ का मंगल करिठहे पà¥à¤°à¤­à¥! मैं धरà¥à¤®-अधरà¥à¤® को नहीं जानता हूं। आपकी पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ से ही मैं कारà¥à¤¯ करता हूं। फिर गà¥à¤°à¥ चरणों का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करते हà¥à¤ कमरे से निकलकर शौच आदि से निवृतà¥à¤¤ हों। मिटà¥à¤Ÿà¥€ और जल से देह को शà¥à¤¦à¥à¤§ करें। दोनों हाथों और पैरों को धोकर दातà¥à¤¨ करें तथा सोलह बार जल की अंजलियों से मà¥à¤‚ह को धोà¤à¤‚। ये कारà¥à¤¯ सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ से पूरà¥à¤µ ही करें । हे देवताओ और ऋषियो! षषà¥à¤ à¥€, पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾, अमावसà¥à¤¯à¤¾, नवमी और रविवार के दिन दातà¥à¤¨ न करें। नदी अथवा घर में समय से सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करें। मनà¥à¤·à¥à¤¯ को देश और काल के विरà¥à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ नहीं करना चाहिà¤à¥¤ रविवार, शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§, संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति, गà¥à¤°à¤¹à¤£, महादान और उपवास वाले दिन गरम जल में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ न करें। कà¥à¤°à¤® से वारों को देखकर ही तेल लगाà¤à¤‚। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ नियमपूरà¥à¤µà¤• रोज तेल लगाता है, उसके लिठतेल लगाना किसी भी दिन दूषित नहीं है । सरसों के तेल को गà¥à¤°à¤¹à¤£ के दिन पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में न लाà¤à¤‚। इसके उपरांत सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ पूरà¥à¤µ या उतà¥à¤¤à¤° की ओर मà¥à¤– करके करें।

सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के उपरांत सà¥à¤µà¤šà¥à¤› अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ धà¥à¤²à¥‡ हà¥à¤ वसà¥à¤¤à¥à¤° को धारण करें। दूसरों के पहने हà¥à¤ अथवा रात में सोते समय पहने वसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को बिना धà¥à¤²à¥‡ धारण न करें। सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के बाद पितरों à¤à¤µà¤‚ देवताओं को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ करने हेतॠतरà¥à¤ªà¤£ करें। उसके बाद धà¥à¤²à¥‡ हà¥à¤ वसà¥à¤¤à¥à¤° धारण करें और आचमन करें। पूजा हेतॠसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को गोबर आदि से लीपकर शà¥à¤¦à¥à¤§ करें। वहां लकड़ी के आसन की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करें । à¤à¤¸à¤¾ आसन अभीषà¥à¤Ÿ फल देने वाला होता है। उस आसन पर बिछाने के लिठमृग अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ हिरन की खाल की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करें। उस पर बैठकर भसà¥à¤® से तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥à¤£à¥à¤¡ लगाà¤à¤‚। तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥à¤£à¥à¤¡ से जप-तप तथा दान सफल होता है तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥à¤£à¥à¤¡ लगाकर रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤· धारण करें। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करते हà¥à¤ आचमन करें। पूजा सामगà¥à¤°à¥€ को à¤à¤•तà¥à¤° करें। फिर जल, गंध और अकà¥à¤·à¤¤ के पातà¥à¤° को दाहिने भाग में रखें। फिर गà¥à¤°à¥ की आजà¥à¤žà¤¾ लेकर और उनका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करते हà¥à¤ सपरिवार शिव का पूजन करें। विघà¥à¤¨ विनाशक गणेश जी का बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿-सिदà¥à¤§à¤¿ सहित पूजन करें। 'ॠगणपतये नमः' का जाप करके उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नमसà¥à¤•ार करें तथा कà¥à¤·à¤®à¤¾ याचना करें। कारà¥à¤¤à¤¿à¤•ेय à¤à¤µà¤‚ गणेश जी का à¤à¤• साथ पूजन करें तथा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बारंबार नमसà¥à¤•ार करें। फिर दà¥à¤µà¤¾à¤° पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ लंबोदर नामक दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤ªà¤¾à¤² की पूजा करें। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ भगवती देवी की पूजा करें। चंदन, कà¥à¤®à¤•à¥à¤®, धूप, दीप और नैवेदà¥à¤¯ से शिवजी का पूजन करें। पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• नमसà¥à¤•ार करें। अपने घर में मिटà¥à¤Ÿà¥€, सोना, चांदी, धातॠया अनà¥à¤¯ किसी धातॠकी शिव पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ बनाà¤à¤‚। भकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• शिवजी की पूजा कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नमसà¥à¤•ार करें। मिटà¥à¤Ÿà¥€ का शिवलिंग बनाकर विधिपूरà¥à¤µà¤• उसकी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करें तथा उसकी पà¥à¤°à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ करें ।

घर में भी मंतà¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤° करते हà¥à¤ पूजा करनी चाहिà¤à¥¤ पूजा उतà¥à¤¤à¤° की ओर मà¥à¤– करके करनी चाहिà¤à¥¤ आसन पर बैठकर गà¥à¤°à¥ को नमसà¥à¤•ार करें। अरà¥à¤˜à¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¤à¥à¤° से शिवलिंग पर जल चढ़ाà¤à¤‚। शांत मन से पूरà¥à¤£ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤µà¤¨à¤¤ होकर महादेव जी का आवाहन इस पà¥à¤°à¤•ार करें।

जो कैलाश के शिखर पर निवास करते हैं और पारà¥à¤µà¤¤à¥€ देवी के पति हैं। जिनके सà¥à¤µà¤°à¥‚प का वरà¥à¤£à¤¨ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में है। जो समसà¥à¤¤ देवताओं के लिठपूजित हैं। जिनके पांच मà¥à¤–, दस हाथ तथा पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• मà¥à¤– पर तीन-तीन नेतà¥à¤° हैं। जो सिर पर चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ का मà¥à¤•à¥à¤Ÿ और जटा धारण किठहà¥à¤ हैं, जिनका रंग कपूर के समान है, जो बाघ की खाल बांधते हैं। जिनके गले में वासà¥à¤•ि नामक नाग लिपटा है, जो सभी मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को शरण देते हैं और सभी भकà¥à¤¤à¤—ण जिनकी जय-जयकार करते हैं। जिनका सभी वेद और शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में गà¥à¤£à¤—ान किया गया है। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ जिनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करते हैं। जो परम आनंद देने वाले तथा भकà¥à¤¤à¤µà¤¤à¥à¤¸à¤² हैं, à¤à¤¸à¥‡ देवों के देव महादेव भगवान शिवजी का मैं आवाहन करता हूं।

इस पà¥à¤°à¤•ार आवाहन करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ उनका आसन सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करें। आसन के बाद शिवजी को पादà¥à¤¯ और अरà¥à¤˜à¥à¤¯ दें। पंचामृत के दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिवलिंग को सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराà¤à¤‚ तथा मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ सहित दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ सà¥à¤—ंधित चंदन का लेप करें तथा सà¥à¤—ंधित जलधारा से उनका अभिषेक करें। फिर आचमन कर जल दें और वसà¥à¤¤à¥à¤° अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ भगवान शिव को तिल, जौ, गेहूं, मूंग और उड़द अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। पà¥à¤·à¥à¤ª चढ़ाà¤à¤‚। शिवजी के पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• मà¥à¤– पर कमल, शतपतà¥à¤°, शंख-पà¥à¤·à¥à¤ª, कà¥à¤¶ पà¥à¤·à¥à¤ª, धतूरा, मंदार, दà¥à¤°à¥‹à¤£ पà¥à¤·à¥à¤ª, तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤² तथा बेलपतà¥à¤° चढ़ाकर पराभकà¥à¤¤à¤¿ से महेशà¥à¤µà¤° की विशेष पूजा करें। बेलपतà¥à¤° समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करने से शिवजी की पूजा सफल होती है। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ सà¥à¤—ंधित चूरà¥à¤£ तथा सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¤¿à¤¤ तेल बड़े हरà¥à¤· के साथ भगवान शिव को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। गà¥à¤—à¥à¤—à¥à¤² और अगरॠकी धूप दें। घी का दीपक जलाà¤à¤‚। पà¥à¤°à¤­à¥‹ शंकर! आपको हम नमसà¥à¤•ार करते हैं। आप अरà¥à¤˜à¥à¤¯ को सà¥à¤µà¥€à¤•ार करके मà¥à¤à¥‡ रूप दीजिà¤, यश दीजिठऔर भोग व मोकà¥à¤· रूपी फल पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कीजिठयह कहकर अरà¥à¤˜à¥à¤¯ अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। नैवेदà¥à¤¯ व तांबूल अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। पांच बतà¥à¤¤à¥€ की आरती करें। चार बार पैरों में दो बार नाभि के सामने, à¤à¤• बार मà¥à¤– के सामने तथा संपूरà¥à¤£ शरीर में सात बार आरती दिखाà¤à¤‚। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ शिवजी की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करें।

हे पà¥à¤°à¤­à¥ शिव शंकर! मैंने अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से अथवा जान-बूà¤à¤•र जो पूजन किया है, वह आपकी कृपा से सफल हो। हे भगवन मेरे पà¥à¤°à¤¾à¤£ आप में लगे हैं। मेरा मन सदा आपका ही चिंतन करता है। हे गौरीनाथ! भूतनाथ! आप मà¥à¤ पर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होइठ। पà¥à¤°à¤­à¥‹ ! जिनके पैर लड़खड़ाते हैं, उनका आप ही à¤à¤•मातà¥à¤° सहारा हैं। जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कोई भी अपराध किया है, उनके लिठआप ही शरणदाता हैं। यह पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करके पà¥à¤·à¥à¤ªà¤¾à¤‚जलि अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें तथा पà¥à¤¨à¤ƒ भगवान शिव को नमसà¥à¤•ार करें।

देवेशà¥à¤µà¤° पà¥à¤°à¤­à¥‹! अब आप परिवार सहित अपने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को पधारें तथा जब पूजा का समय हो, तब पà¥à¤¨à¤ƒ यहां पधारें। इस पà¥à¤°à¤•ार भगवान शंकर की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करते हà¥à¤ उनका विसरà¥à¤œà¤¨ करें और उस जल को अपने हृदय में लगाकर मसà¥à¤¤à¤• पर लगाà¤à¤‚।

हे महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! इस पà¥à¤°à¤•ार मैंने आपको शिवपूजन की सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® विधि बता दी है, जो भोग और मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली है ।

ऋषिगण बोले :- हे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€! आप सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  हैं। आपने हम पर कृपा कर शिवपूजन की सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® विधि का वरà¥à¤£à¤¨ हमसे किया, जिसे सà¥à¤¨à¤•र हम सब कृतारà¥à¤¥ हो गà¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

चौदहवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिव पूजा का माहातà¥à¤®à¥à¤¯"

ऋषियों ने पूछा :– हे महाभाग ! अब आप यह बताइठकि भगवान शिवजी की किन-किन फूलों से पूजा करनी चाहिà¤? विभिनà¥à¤¨ फूलों से पूजा करने पर कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं?

सूत जी बोले :- हे ऋषियो! यही पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ नारद जी ने बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ से किया था। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिवजी की पूजा के माहातà¥à¤®à¥à¤¯ को बताया।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा :- नारद! लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ धन की कामना करने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ को कमल के फूल, बेल पतà¥à¤°, शतपतà¥à¤° और शंख पà¥à¤·à¥à¤ª से भगवान शिव का पूजन करना चाहिà¤à¥¤ à¤à¤• लाख पà¥à¤·à¥à¤ªà¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ भगवान शिव की पूजा होने पर सभी पापों का नाश हो जाता है और लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। à¤à¤• लाख फूलों से शिवजी की पूजा करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ को संपूरà¥à¤£ अभीषà¥à¤Ÿ फलों से की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। जिसके मन में कोई कामना न हो, वह उपासक इस पूजन से शिव सà¥à¤µà¤°à¥‚प हो जाता है ।

मृतà¥à¤¯à¥à¤‚जय मंतà¥à¤° के पांच लाख जाप पूरे होने पर महादेव के सà¥à¤µà¤°à¥‚प के दरà¥à¤¶à¤¨ हो जाते हैं। à¤à¤• लाख जाप से शरीर की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होती है। दूसरे लाख के जाप से पहले जनà¥à¤® की बातें याद आ जाती हैं। तीसरे लाख जाप के पूरà¥à¤£ होने पर इचà¥à¤›à¤¾ की गई सभी वसà¥à¤¤à¥à¤“ं की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हो जाती है। चौथे लाख जाप पूरà¥à¤£ होने पर भगवान शिव सपनों में दरà¥à¤¶à¤¨ देते हैं। पांचवां लाख जाप पूरा होने पर वे पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· दरà¥à¤¶à¤¨ देते हैं। मृतà¥à¤¯à¥à¤‚जय मंतà¥à¤° के दस लाख जाप करने से संपूरà¥à¤£ फलों की सिदà¥à¤§à¤¿ होती है। मोकà¥à¤· की कामना करने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ को à¤à¤• लाख दरà¥à¤­à¥‹à¤‚ (दूरà¥à¤µà¤¾) से शिव पूजन करना चाहिà¤à¥¤ आयॠवृदà¥à¤§à¤¿ की इचà¥à¤›à¤¾ करने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ को à¤à¤• लाख दà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤“ं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पूजन करना चाहिठ। पà¥à¤¤à¥à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ की इचà¥à¤›à¤¾ रखने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ को à¤à¤• लाख धतूरे के फूलों से पूजा करनी चाहिà¤à¥¤ पूजन में लाल डंठल वाले धतूरे को शà¥à¤­à¤¦à¤¾à¤¯à¤• माना जाता है। यश पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठà¤à¤• लाख अगसà¥à¤¤à¥à¤¯ के फूलों से पूजा करनी चाहिà¤à¥¤ तà¥à¤²à¤¸à¥€à¤¦à¤² दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिवजी की पूजा करने से भोग और मोकà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। अड़हà¥à¤² (जवा कà¥à¤¸à¥à¤®) के à¤à¤• लाख फूलों से पूजा करने पर शतà¥à¤°à¥à¤“ं की मृतà¥à¤¯à¥ होती है। à¤à¤• लाख करवीर के फूलों से शिव पूजन करने पर समसà¥à¤¤ रोगों का नाश हो जाता है। दà¥à¤ªà¤¹à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ के फूलों के पूजन से आभूषण तथा चमेली के फूलों से पूजन करने से वाहन की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। अलसी के फूलों से शिव पूजन करने से विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ भी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हैं। बेलों के फूलों से अरà¥à¤˜à¥à¤¯ देने पर अचà¥à¤›à¥‡ जीवन साथी की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। जूही के फूलों से पूजन करने पर घर में धन-संपदा का वास होता है तथा अनà¥à¤¨ के भंडार भर जाते हैं। कनेर के फूलों से पूजा करने पर वसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। सेदà¥à¤†à¤°à¤¿ और शेफालिका के फूलों से पूजन करने पर मन निरà¥à¤®à¤² हो जाता है। हारसिंगार के फूलों से पूजन करने पर सà¥à¤–-संपतà¥à¤¤à¤¿ की वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। राई के à¤à¤• लाख फूलों से पूजन करने पर शतà¥à¤°à¥ मृतà¥à¤¯à¥ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं। चंपा और केवड़े के फूलों से शिव पूजन नहीं करना चाहिà¤à¥¤

ये दोनों फूल महादेव के पूजन के लिठअयोगà¥à¤¯ होते हैं। इसके अलावा सभी फूलों का पूजा में उपयोग किया जा सकता है। महादेवी जी पर चावल चढ़ाने से लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। ये चावल अखणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ होने चाहिà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विधिपूरà¥à¤µà¤• अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। रà¥à¤¦à¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ मंतà¥à¤° से पूजन करते हà¥à¤, शिवलिंग पर वसà¥à¤¤à¥à¤° अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। गंध, पà¥à¤·à¥à¤ª और शà¥à¤°à¥€à¤«à¤² चढ़ाकर धूप-दीप से पूजन करने से पूजा का पूरा फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। उसी पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में बारह बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को भोजन कराà¤à¤‚। इससे सांगोपांग पूजा संपनà¥à¤¨ होती है। à¤à¤• लाख तिलों से शिवजी का पूजन करने पर समसà¥à¤¤ दà¥à¤–ों और कà¥à¤²à¥‡à¤¶ का नाश होता है। जौ के दाने चढ़ाने पर सà¥à¤µà¤°à¥à¤—ीय सà¥à¤– की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। गेहूं के बने भोजन से लाख बार शिव पूजन करने से संतान की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है। मूंग से पूजन करने पर उपासक को धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥ और काम-भोग की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है तथा वह पूजा समसà¥à¤¤ सà¥à¤–ों को देने वाली है।

उपासक को निषà¥à¤•ाम होकर मोकà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठभगवान शिव की पूजा करनी चाहिà¤à¥¤ भकà¥à¤¤à¤¿à¤­à¤¾à¤µ से विधिपूरà¥à¤µà¤• शिव की पूजा करके जलधारा समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करनी चाहिà¤à¥¤ श रà¥à¤¦à¥à¤°à¥€à¤¯ मंतà¥à¤° से à¤à¤•ादश रà¥à¤¦à¥à¤° जप, सूकà¥à¤¤, षडंग, महामृतà¥à¤¯à¥à¤‚जय और गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° में नमः लगाकर नामों से अथवा पà¥à¤°à¤£à¤µ 'à¥' मंतà¥à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤•à¥à¤¤ मंतà¥à¤° से जलधारा शिवलिंग पर चढ़ाà¤à¤‚।

धारा पूजन से संतान की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। सà¥à¤– और संतान की वृदà¥à¤§à¤¿ के लिठजलधारा का पूजन उतà¥à¤¤à¤® होता है। उपासक को भसà¥à¤® धारण पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• शà¥à¤­ à¤à¤µà¤‚ दिवà¥à¤¯ दà¥à¤°à¤µà¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिव पूजन कर उनके सहसà¥à¤° नामों का जाप करते हà¥à¤ शिवलिंग पर घी की धारा चढ़ानी चाहिà¤à¥¤ इससे वंश का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° होता है। दस हजार मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ इस पà¥à¤°à¤•ार किया गया पूजन रोगों को समापà¥à¤¤ करता है तथा मनोवांछित फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है। नपà¥à¤‚सक पà¥à¤°à¥à¤· को शिवजी का पूजन घी से करना चाहिà¤à¥¤ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को भोजन कराना चाहिठऔर पà¥à¤°à¤¾à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¥à¤¯ का वà¥à¤°à¤¤ रखना चाहिठ।

बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤¹à¥€à¤¨ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को दूध में शकà¥à¤•र मिलाकर इसकी धारा शिवलिंग पर चढ़ानी चाहिà¤à¥¤ इससे भगवान पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर उतà¥à¤¤à¤® बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं। यदि मनà¥à¤·à¥à¤¯ का मन उदास रहता हो, जी उचट जाà¤, कहीं भी पà¥à¤°à¥‡à¤® न रहे, दà¥à¤– बढ़ जाठतथा घर में सदैव लड़ाई रहती हो तो मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को शकà¥à¤•र मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ दूध दस हजार मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का जाप करते हà¥à¤ शिवलिंग को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करना चाहिà¤à¥¤ खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ वाला तेल चढ़ाने पर भोगों की वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। यदि शिवजी पर शहद चढ़ाया जाठतो टी. बी. जैसा रोग भी समापà¥à¤¤ हो जाता है। शिवजी को गनà¥à¤¨à¥‡ का रस चढ़ाने से आनंद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। गंगाजल को चढ़ाने से भोग और मोकà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है।

उपरोकà¥à¤¤ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करते समय मृतà¥à¤¯à¥à¤‚जय मंतà¥à¤° के दस हजार जाप करने चाहिठऔर गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को भोजन कराना चाहिà¤à¥¤ इस पà¥à¤°à¤•ार शिवजी की विधि सहित पूजा करने से पà¥à¤¤à¥à¤°-पौतà¥à¤°à¤¾à¤¦à¤¿ सहित सब सà¥à¤–ों को भोगकर अंत में शिवलोक की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

पंदà¥à¤°à¤¹à¤µà¤¾à¤ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का वरà¥à¤£à¤¨"

नारद जी ने पूछा :- हे पितामह ! आपने बहà¥à¤¤ सी जà¥à¤žà¤¾à¤¨ बढ़ाने वाली उतà¥à¤¤à¤® बातों को सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ कृपया इसके अलावा और भी जो आप सृषà¥à¤Ÿà¤¿ à¤à¤µà¤‚ उससे संबंधित लोगों के बारे में जानते हैं, हमें बताने की कृपा करें।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले :- मà¥à¤¨à¥‡! हमें आदेश देकर जब महादेव जी अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो गठतो मैं उनकी आजà¥à¤žà¤¾ का पालन करते हà¥à¤ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤®à¤—à¥à¤¨ होकर अपने करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के विषय में सोचने लगा। उस समय भगवान शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ विषà¥à¤£à¥ से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर मैंने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना करने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। भगवान विषà¥à¤£à¥ मà¥à¤à¥‡ आवशà¥à¤¯à¤• उपदेश देकर वहां से चले गà¤à¥¤ भगवान शिव की कृपा से बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ से बाहर बैकà¥à¤£à¥à¤  धाम में जा पहà¥à¤‚चे और वहीं निवास करने लगे। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना करने के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से मैंने भगवान शिव और विषà¥à¤£à¥ का सà¥à¤®à¤°à¤£ करके, जल को हाथ में लेकर ऊपर की ओर उछाला। इससे वहां à¤à¤• अणà¥à¤¡ पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤†, जो चौबीस ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ का समूह कहा जाता है। वह विराट आकार वाला अणà¥à¤¡ जड़ रूप में था। उसे चेतनता पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने हेतॠमैं कठोर तप करने लगा और बारह वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक तप करता रहा। तब शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ विषà¥à¤£à¥ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ और पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• बोले।

शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥ ने कहा :– बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¨à¥! मैं तà¥à¤® पर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हूं। जो इचà¥à¤›à¤¾ हो वह वर मांग लो। भगवान शिव की कृपा से मैं सबकà¥à¤› देने में समरà¥à¤¥ हूं।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ बोले :- महाभाग ! आपने मà¥à¤ पर बड़ी कृपा की है। भगवान शंकर ने मà¥à¤à¥‡ आपके हाथों में सौंप दिया है। आपको मैं नमसà¥à¤•ार करता हूं। कृपा कर इस विराट चौबीस ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ से बने अणà¥à¤¡ को चेतना पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कीजिठमेरे à¤à¤¸à¤¾ कहने पर शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥ ने अनंतरूप धारण कर अणà¥à¤¡ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया। उस समय उनके सहसà¥à¤°à¥‹à¤‚ मसà¥à¤¤à¤•, सहसà¥à¤° आंखें और सहसà¥à¤° पैर थे। उनके अणà¥à¤¡ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही वह चेतन हो गया। पाताल से सतà¥à¤¯ लोक तक अणà¥à¤¡ के रूप में वहां विषà¥à¤£à¥ भगवान विराजने लगे। अणà¥à¤¡ में विराजमान होने के कारण विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ 'वैराज पà¥à¤°à¥à¤·' कहलाà¤à¥¤ पंचमà¥à¤– महादेव ने अपने निवास हेतॠकैलाश नगर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया। देवरà¥à¤·à¤¿ संपूरà¥à¤£ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ का नाश होने पर भी बैकà¥à¤£à¥à¤  और कैलाश अमर रहेंगे अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ इनका नाश नहीं हो सकता। महादेव की आजà¥à¤žà¤¾ से ही मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना करने की इचà¥à¤›à¤¾ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ है।

अनजाने में ही मà¥à¤à¤¸à¥‡ तमोगà¥à¤£à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆ, जिसे अविदà¥à¤¯à¤¾ पंचक कहते हैं। उसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ भगवान शिव की आजà¥à¤žà¤¾ से सà¥à¤¥à¤¾à¤µà¤°à¤¸à¤‚जà¥à¤žà¤• वृकà¥à¤·, जिसे पहला सरà¥à¤— कहते हैं, का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤† परंतॠपà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ का साधक नहीं था। अतः दूसरा सरà¥à¤— 'तिरà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾' पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤†à¥¤ यह दà¥à¤– से भरा हà¥à¤† था। तब बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ 'ऊरà¥à¤§à¥à¤µà¤¸à¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾' नामक तीसरे सरà¥à¤— की रचना की गई। यह सातà¥à¤µà¤¿à¤• सरà¥à¤— देव सरà¥à¤— के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हà¥à¤†à¥¤ यह सरà¥à¤— सतà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦à¥€ तथा परम सà¥à¤–दायक है। इसकी रचना के उपरांत मैंने पà¥à¤¨à¤ƒ शिव चिंतन आरंभ कर दिया। तब à¤à¤• रजोगà¥à¤£à¥€ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का आरंभ हà¥à¤† जो 'अरà¥à¤µà¤¾à¤•सà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾' नाम से विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ इसके बाद मैंने पांच विकृत सृषà¥à¤Ÿà¤¿ और तीन पà¥à¤°à¤¾à¤•ृत सरà¥à¤—ों को जनà¥à¤® दिया। पहला 'महतà¥à¤¤à¤¤à¥à¤µ', दूसरा 'भूतो' और तीसरा 'वैकारिक' सरà¥à¤— है। इसके अलावा पांच विकृत सरà¥à¤— हैं। दोनों को मिलाकर कà¥à¤² आठ सरà¥à¤— होते हैं। नवां 'कौमार' सरà¥à¤— है जिससे सनत सनंदन कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की रचना हà¥à¤ˆ है। सनत आदि मेरे चार मानस पà¥à¤¤à¥à¤° हैं, जो बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ के समान हैं। वे महान वà¥à¤°à¤¤ का पालन करने वाले हैं। वे संसार से विमà¥à¤– à¤à¤µà¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ हैं। उनका मन शिव चिंतन में लगा रहता है। मà¥à¤¨à¤¿ नारद! मेरी आजà¥à¤žà¤¾ पाकर भी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के कारà¥à¤¯ में मन नहीं लगाया। इससे मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚ कà¥à¤°à¥‹à¤§ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गया। तब भगवान विषà¥à¤£à¥ ने मà¥à¤à¥‡ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ और भगवान शिव की तपसà¥à¤¯à¤¾ करने के लिठकहा। मेरी घोर तपसà¥à¤¯à¤¾ से मेरी भौंहों और नाक के मधà¥à¤¯ भाग से महेशà¥à¤µà¤° की तीन मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ˆà¤‚, जो पूरà¥à¤£à¤¾à¤‚श, सरà¥à¤µà¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° à¤à¤µà¤‚ दया सागर थीं और भगवान शिव का अरà¥à¤§à¤¨à¤¾à¤°à¥€à¤¶à¥à¤µà¤° रूप पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤†à¥¤ जनà¥à¤®-मरण से रहित, परम तेजसà¥à¤µà¥€, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž, नीलकंठ, साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ उमावलà¥à¤²à¤­ भगवान महादेव के साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ दरà¥à¤¶à¤¨ कर मैं धनà¥à¤¯ हो गया। मैंने भकà¥à¤¤à¤¿à¤­à¤¾à¤µ से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ करने के लिठउनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करने लगा। तब मैंने उनसे जीवों की रचना करने की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की। मेरी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ सà¥à¤µà¥€à¤•ारते हà¥à¤ देवाधिदेव भगवान शिव ने रà¥à¤¦à¥à¤° गणों की रचना की ।

तब मैंने उनसे पà¥à¤¨à¤ƒ कहा :– देवेशà¥à¤µà¤° शिव शंकर! अब आप संसार की मोह-माया में लिपà¥à¤¤ à¤à¤¸à¥‡ जीवों की रचना करें, जो मृतà¥à¤¯à¥ और जनà¥à¤® के बंधन में बंधे हों। यह सà¥à¤¨à¤•र महादेव जी हंसते हà¥à¤ कहने लगे ।

शिवजी ने कहा :– हे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾! मैं जनà¥à¤® और मृतà¥à¤¯à¥ के भय में लिपà¥à¤¤ जीवों की रचना नहीं करूंगा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे जीव संसार रूपी बंधन में बंधे होने के कारण दà¥à¤–ों से यà¥à¤•à¥à¤¤ होंगे। मैं सिरà¥à¤« से उनका उदà¥à¤§à¤¾à¤° करूंगा। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ परम जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर उनके जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का विकास करूंगा। हे पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¥‡! इन जीवों की रचना आप करें। मोह-माया के बंधनों में बंधे इस पà¥à¤°à¤•ार के जीवों की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ करने पर भी आप इस माया में नहीं बंधेंगे। मà¥à¤à¤¸à¥‡ इस पà¥à¤°à¤•ार कहकर महादेव शिव शंकर अपने पारà¥à¤·à¤¦à¥‹à¤‚ के साथ वहां से अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो गà¤à¥¤

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