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Shiva Purana Sri Rudra Samhita (Second Volume) From the twenty-sixth to the thirtieth chapter

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता (दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡) के छबà¥à¤¬à¥€à¤¸à¤µà¤¾à¤ से तीसवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ तक (From the twenty-sixth to the thirtieth chapter of the Shiva Purana Sri Rudra Samhita (Second Volume)
शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता
दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡
छबà¥à¤¬à¥€à¤¸à¤µà¤¾à¤‚ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
"दकà¥à¤· का भगवान शिव को शाप देना"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;-- हे नारद! पूरà¥à¤µà¤•ाल में समसà¥à¤¤ महातà¥à¤®à¤¾ और ऋषि पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— में इकटà¥à¤ à¤¾ हà¥à¤à¥¤ वहां पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• बहà¥à¤¤ विशाल यजà¥à¤ž का आयोजन किया था। उस यजà¥à¤ž में देवरà¥à¤·à¤¿, देवता, ऋषि मà¥à¤¨à¤¿, साधà¥-संत, सिदà¥à¤§à¤—ण तथा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार करने वाले महान जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ पधारे। जिसमें मैं सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अपने महातेजसà¥à¤µà¥€ निगमों-आगमों सहित परिवार को लेकर वहां पहà¥à¤‚चा। वहां बहà¥à¤¤ बड़ा उतà¥à¤¸à¤µ हो रहा था। अनेक शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की चरà¥à¤šà¤¾ à¤à¤µà¤‚ वाद-विवाद हो रहा था। उस यजà¥à¤ž में तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•ीनाथ भगवान शिव भी देवी सती और अपने गणों सहित पधारे थे। भगवान शिव को वहां आया देख मैंने, सभी देवताओं, ऋषियों-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥à¤•कर, भकà¥à¤¤à¤¿à¤­à¤¾à¤µ से पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया तथा अनेक पà¥à¤°à¤•ार से उनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ की। शिवजी की आजà¥à¤žà¤¾ पाकर सभी ने अपना आसन गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर लिया। इसी समय पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· भी वहां आ पहà¥à¤‚चे। वे बड़े ही तेजसà¥à¤µà¥€ थे। पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· ने मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करके अपना आसन गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर लिया। वे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ के अधिपति थे। इसी कारण उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने पद का घमंड हो गया था। उनके मन में अहंकार ने घर कर लिया था। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ के अधिपति होने के कारण वे सभी देवताओं के वंदनीय थे। सभी ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ सहित देवरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने भी मसà¥à¤¤à¤• à¤à¥à¤•ाकर पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया और उनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ कर उनका आदर-सतà¥à¤•ार किया। परंतॠतà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•ीनाथ भगवान शिव शंभॠने न तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया और न ही अपने आसन से उठकर दकà¥à¤· का सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया। इस बात पर दकà¥à¤· कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ हो गà¤à¥¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¶à¥‚नà¥à¤¯ होने के कारण पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· ने कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ नेतà¥à¤°à¥‹à¤‚ से महादेव जी को देखा और सबको सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उचà¥à¤š सà¥à¤µà¤° में कहने लगे।

पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· बोले ;- सभी देवता, असà¥à¤°, बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£, ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ सभी मà¥à¤à¥‡ नमà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® कर मेरे आगे सिर à¤à¥à¤•ाते हैं। ये सभी उतà¥à¤¤à¤® भकà¥à¤¤à¤¿ भाव से मेरी आराधना करते हैं परंतॠसदैव पà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥‹à¤‚ और पिशाचों से घिरा रहने वाला यह दà¥à¤·à¥à¤Ÿ मनà¥à¤·à¥à¤¯ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मà¥à¤à¥‡ देखकर अनदेखा कर रहा है? शà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¨ में निवास करने वाला यह निरà¥à¤²à¤œà¥à¤œ जीव कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मेरे सामने मसà¥à¤¤à¤• नहीं à¤à¥à¤•ाता? भूतों-पिशाचों का साथ करने के कारण कà¥à¤¯à¤¾ यह शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की विधि भी भूल गया है। इसने नीति के मारà¥à¤— को भी कलंकित किया है। इसके साथ रहने वाले या इसकी बातों का अनà¥à¤¸à¤°à¤£ करने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ पाखणà¥à¤¡à¥€, दà¥à¤·à¥à¤Ÿ और पाप का आचरण करने वाले होते हैं। वे बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ की बà¥à¤°à¤¾à¤ˆ करते हैं तथा सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ होते हैं। यह रà¥à¤¦à¥à¤° चारों वरà¥à¤—ों से पृथक और कà¥à¤°à¥‚प है। इसलिठइस पावन यजà¥à¤ž से इसे बहिषà¥à¤•ृत कर दिया जाà¤à¥¤ यह उतà¥à¤¤à¤® कà¥à¤² और जनà¥à¤® से हीन है। अतः इसे यजà¥à¤ž में भाग न लेने दिया जाà¤à¥¤

पà¥à¤¤à¥à¤°! कà¥à¤°à¥‹à¤§ से विवेक समापà¥à¤¤ हो जाता है। दकà¥à¤· ने शिव के लिठअपशबà¥à¤¦ कहते समय उसके परिणाम पर तनिक भी विचार नहीं किया। अहंकार के कारण वह शिव के सà¥à¤µà¤°à¥‚प को भूल गया। वह यह भी भूल गया कि आदिशकà¥à¤¤à¤¿ ने जिसका तप दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ वरण किया है, वह कोई साधारण मनà¥à¤·à¥à¤¯, ऋषि या देव नहीं है।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- हे नारद! दकà¥à¤· की ये बातें सà¥à¤¨à¤•र भृगॠआदि बहà¥à¤¤ से महरà¥à¤·à¤¿ रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¦à¥‡à¤µ को दà¥à¤·à¥à¤Ÿ मानकर उनकी निंदा करने लगे। ये बातें सà¥à¤¨à¤•र नंदी को बà¥à¤°à¤¾ लगा। उनका कà¥à¤°à¥‹à¤§ बढ़ने लगा और वे दकà¥à¤· को शाप देते हà¥à¤ बोले कि है महामूॠ! दà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¬à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ दकà¥à¤·! तू मेरे सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ देवाधिदेव महेशà¥à¤µà¤° को यजà¥à¤ž से निकालने वाला कौन होता है? जिनके सà¥à¤®à¤°à¤£ मातà¥à¤° से यजà¥à¤ž सफल हो जाते हैं और तीरà¥à¤¥ पवितà¥à¤° हो जाते हैं तू उन महादेव जी को कैसे शाप दे सकता है? मेरे सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ निरà¥à¤¦à¥‹à¤· हैं और तूने अपने सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ की सिदà¥à¤§à¤¿ के लिठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शाप दिया है और उनका मजाक उड़ाया है। जिन सदाशिव ने इस जगत की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की, इसका पालन किया और जो इसका संहार करते हैं, तू उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ महेशà¥à¤µà¤° को शाप देता है।

नंदी के à¤à¤¸à¥‡ वचनों को सà¥à¤¨à¤•र पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· के कà¥à¤°à¥‹à¤§ की कोई सीमा न रही। वे आग-बबूला हो गठऔर नंदी समेत सभी रà¥à¤¦à¥à¤°à¤—णों को शाप देते हà¥à¤ बोले- अरे दà¥à¤·à¥à¤Ÿ रà¥à¤¦à¥à¤°à¤—णो। मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ शाप देता हूं कि तà¥à¤® सब वेदों से बहिषà¥à¤•ृत हो जाओ। तà¥à¤® वैदिक मारà¥à¤— से भटक जाओ और सभी जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दें। तà¥à¤® शिषà¥à¤Ÿ आचरण न करो और पाखंडी हो जाओ। सिर पर जटा, शरीर पर भसà¥à¤® à¤à¤µà¤‚ हडà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के आभूषण धारण कर मदà¥à¤¯à¤ªà¤¾à¤¨ (शराब का सेवन) करो। जब दकà¥à¤· ने शिवजी के पà¥à¤°à¤¿à¤¯ पारà¥à¤·à¤¦à¥‹à¤‚ को इस पà¥à¤°à¤•ार शाप दे दिया तो नंदी बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ हो गà¤à¥¤ नंदी भगवान शिव के पà¥à¤°à¤¿à¤¯ पारà¥à¤·à¤¦ हैं। वे बड़े गरà¥à¤µ से दकà¥à¤· को उतà¥à¤¤à¤° देते हà¥à¤ बोले ।

नंदीशà¥à¤µà¤° ने कहा ;—हे दà¥à¤°à¥à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ दकà¥à¤·! तà¥à¤à¥‡ शिव ततà¥à¤µ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नहीं है। तूने अहंकार में शिवगणों को शाप दे दिया है। तेरे कहने पर भृगॠआदि बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ ने भी अभिमान के कारण भगवान शिव का मजाक उड़ाया है। अतः मैं भगवान शिव के तेज के पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ से तà¥à¤à¥‡ शाप देता हूं कि तà¥à¤ जैसे अहंकारी मनà¥à¤·à¥à¤¯, जो सिरà¥à¤« करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के फल को देखते हैं, वेदवाद में फंसकर रह जाà¤à¤‚गे। उनका वेद ततà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ शूनà¥à¤¯ हो जाà¤à¤—ा। वे सदैव मोह-माया में ही लिपà¥à¤¤ रहेंगे। वे पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ विहीन होंगे और सà¥à¤µà¤°à¥à¤— को ही महतà¥à¤µ देंगे। वे कà¥à¤°à¥‹à¤§à¥€ व लोभी होंगे। वे सदा ही दान लेने में लगे रहेंगे।

हे दकà¥à¤·! जो भी भगवान शिव को सामानà¥à¤¯ देवता समà¤à¤•र उनका अनादर करेगा, वह सदैव के लिठततà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ से विमà¥à¤– हो जाà¤à¤—ा। वह आतà¥à¤®à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ को भूलकर पशॠके समान हो जाà¤à¤—ा तथा यह दकà¥à¤·, जो कि करà¥à¤®à¥‹à¤‚ से भà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ हो चà¥à¤•ा है, इसका मà¥à¤– बकरे के समान हो जाà¤à¤—ा। इस पà¥à¤°à¤•ार बहà¥à¤¤ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ से भरे नंदी ने जब दकà¥à¤· और बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को शाप दिया तो वहां बहà¥à¤¤ शोर मच गया। भगवान शिव मधà¥à¤° वाणी में नंदी को समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ लगे कि वे शांत हो जाà¤à¤‚।

पà¥à¤°à¤­à¥ शिव बोले ;- नंदी! तà¥à¤® तो परम जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ हो। तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤°à¥‹à¤§ नहीं करना चाहिà¤à¥¤ तà¥à¤®à¤¨à¥‡ बिना कà¥à¤› जाने और समà¤à¥‡ ही दकà¥à¤· तथा समसà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ कà¥à¤² को शाप दे दिया है। सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ तो यह है कि मà¥à¤à¥‡ कोई भी शाप छू ही नहीं सकता है। इसलिठतà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने कà¥à¤°à¥‹à¤§ पर नियंतà¥à¤°à¤£ रखना चाहिठथा। किसी की बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ कितनी ही दूषित कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न हो, वह कभी वेदों को शाप नहीं दे सकता। नंदी! तà¥à¤® तो सिदà¥à¤§à¥‹à¤‚ को भी ततà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ का उपदेश देने वाले हो। तà¥à¤® तो जानते हो कि मैं ही यजà¥à¤ž हूं, मैं ही यजà¥à¤žà¤•रà¥à¤® हूं। यजà¥à¤ž की आतà¥à¤®à¤¾ मैं हूं, यजà¥à¤žà¤ªà¤°à¤¾à¤¯à¤£ यजमान भी मैं हूं। फिर मैं कैसे यजà¥à¤ž से बहिषà¥à¤•ृत हो सकता हूं? तà¥à¤®à¤¨à¥‡ वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ ही बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को शाप दे दिया है।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- नारद! जब भगवान शिव ने अनेक पà¥à¤°à¤•ार से नंदी को समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ तो उनका कà¥à¤°à¥‹à¤§ शांत हो गया। तब शिवजी अपने अनà¥à¤¯ गणों व पारà¥à¤·à¤¦à¥‹à¤‚ के साथ अपने निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ कैलाश परà¥à¤µà¤¤ पर चले गà¤à¥¤ कà¥à¤°à¥‹à¤§ से भरे दकà¥à¤· भी बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ के साथ अपने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर चले गठपरंतॠउनके मन में महादेव जी के लिठकà¥à¤°à¥‹à¤§ à¤à¤µà¤‚ ईरà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾ का भाव à¤à¤¸à¤¾ ही रहा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शिवजी के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ को तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया और उनकी निंदा करने लगे। दिन-ब-दिन उनकी ईरà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾ बढ़ती जा रही थी।

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता
दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡
सतà¥à¤¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤µà¤¾à¤‚ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
"दकà¥à¤· दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ महान यजà¥à¤ž का आयोजन"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- हे महरà¥à¤·à¤¿ नारद! इस पà¥à¤°à¤•ार, कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ व अपमानित दकà¥à¤· ने कनखल नामक तीरà¥à¤¥ में à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़े यजà¥à¤ž का आयोजन किया। उस यजà¥à¤ž में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सभी देवरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ तथा देवताओं को दीकà¥à¤·à¤¾ देने के लिठबà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ अगसà¥à¤¤à¥à¤¯, कशà¥à¤¯à¤ª, अतà¥à¤°à¤¿, वामदेव, भृगà¥, दधीचि, भगवान वà¥à¤¯à¤¾à¤¸, भारदà¥à¤µà¤¾à¤œ, गौतम, पैल, पराशर, गरà¥à¤—, भारà¥à¤—व, ककà¥à¤·, सित, सà¥à¤®à¤‚तà¥, तà¥à¤°à¤¿à¤•, कंक और वैशंपायन सहित अनेक ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ अपनी पतà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ व पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ सहित पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· के यजà¥à¤ž में समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ हà¥à¤à¥¤ समसà¥à¤¤ देवता अपने देवगणों के साथ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• यजà¥à¤ž में गà¤à¥¤ अपने पà¥à¤¤à¥à¤° दकà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ सà¥à¤µà¥€à¤•ार करके मैं विशà¥à¤µà¤¸à¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और बैकà¥à¤£à¥à¤ à¤²à¥‹à¤• से भगवान विषà¥à¤£à¥ भी उस यजà¥à¤ž में पहà¥à¤‚चे। वहां दकà¥à¤· ने सभी पधारे हà¥à¤ अतिथियों का खूब आदर-सतà¥à¤•ार किया। उस यजà¥à¤ž के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ देवताओं के शिलà¥à¤ªà¥€ विशà¥à¤µà¤•रà¥à¤®à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किया गया था। विशà¥à¤µà¤•रà¥à¤®à¤¾ ने बहà¥à¤¤ से दिवà¥à¤¯ भवनों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया। उन भवनों में दकà¥à¤· ने यजà¥à¤ž पधारे अतिथियों को ठहराया। दकà¥à¤· ने भृगॠऋषि को ऋतà¥à¤µà¤¿à¤œ बनाया। भगवान विषà¥à¤£à¥ यजà¥à¤ž के अधिषà¥à¤ à¤¾à¤¤à¤¾ थे। इस विधि को मैंने ही बताया। दकà¥à¤· सà¥à¤‚दर रूप धारण कर यजà¥à¤ž मणà¥à¤¡à¤² में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ था। उस महान यजà¥à¤ž में अटà¥à¤ à¤¾à¤¸à¥€ हजार ऋषि à¤à¤• साथ हवन कर सकते थे। चौंसठ हजार देवरà¥à¤·à¤¿ मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ कर रहे थे। सभी सहित यजà¥à¤ž में पधारे थे। कौतà¥à¤• और मंगलाचार कर दकà¥à¤· ने यजà¥à¤ž की दीकà¥à¤·à¤¾ ली परंतॠउस दà¥à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ दकà¥à¤· ने तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•ीनाथ करà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¾à¤¨ भगवान शिव को यजà¥à¤ž के लिठनिमंतà¥à¤°à¤£ नहीं भेजा था। न ही अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सती को ही बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ था। दकà¥à¤· अनà¥à¤¸à¤¾à¤° भगवान शिव कपालधारी हैं, इसलिठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यजà¥à¤ž में सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ देना गलत है। सती भी शिवजी की पतà¥à¤¨à¥€ होने के कारण 'कंपाली भारà¥à¤¯à¤¾' हà¥à¤ˆà¤‚। अतः उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ भी बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¤¾ पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ अनà¥à¤šà¤¿à¤¤ था। दकà¥à¤· का यजà¥à¤ž महोतà¥à¤¸à¤µ अतà¥à¤¯à¤‚त धूमधाम à¤à¤µà¤‚ हरà¥à¤· उलà¥à¤²à¤¾à¤¸ से आरंभ हà¥à¤†à¥¤ सभी ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ अपने-अपने कारà¥à¤¯ में संलगà¥à¤¨ हो गà¤à¥¤ तभी वहां महरà¥à¤·à¤¿ दधीचि पधारे।

उस यजà¥à¤ž में भगवान शंकर को न पाकर दधीचि बोले ;— हे शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  देवताओ और महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! मैं आप सभी को शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• नमसà¥à¤•ार करता हूं। हे शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ à¤œà¤¨à¥‹! आप सभी यहां इस महान यजà¥à¤ž में पधारे हैं। मैं आप सबसे यह पूछना चाहता हूं कि मà¥à¤à¥‡ इस यजà¥à¤ž में तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•ीनाथ भगवान शंकर कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। उनके बिना यह यजà¥à¤ž मà¥à¤à¥‡ सूना लग रहा है। उनकी अनà¥à¤ªà¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ से यजà¥à¤ž की शोभा कम हो गई है। जैसा कि आप जानते ही हैं कि भगवान शिव की कृपा से सभी कारà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ होते हैं। वे परम सिदà¥à¤§ पà¥à¤°à¥à¤·, नीलकंठधारी पà¥à¤°à¤­à¥ शंकर, यहां कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं दिखाई दे रहे हैं? जिनकी से कृपा अमंगल भी मंगल हो जाता है, जो सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ सबका मंगल करते हैं, उन भगवान शिव का यजà¥à¤ž में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होना बहà¥à¤¤ आवशà¥à¤¯à¤• है। इसलिठआप सभी को यजà¥à¤ž के सकà¥à¤¶à¤² पूरà¥à¤£ होने के लिठपरम कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी भगवान शिव को अनà¥à¤¨à¤¯-विनय कर इस यजà¥à¤ž लाना चाहिà¤à¥¤ तभी इस यजà¥à¤ž की पूरà¥à¤¤à¤¿ हो सकती है। इसलिठआप सभी शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ à¤œà¤¨ तà¥à¤°à¤‚त कैलाश परà¥à¤µà¤¤ पर जाà¤à¤‚ और भगवान शिव और देवी सती को यजà¥à¤ž में ले आà¤à¤‚। उनके आने से यह यजà¥à¤ž पवितà¥à¤° हो जाà¤à¤—ा। वे परम पà¥à¤£à¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ हैं। उनके यहां आने से ही यह यजà¥à¤ž पूरा हो सकता है।

महरà¥à¤·à¤¿ दधीचि की बातों को सà¥à¤¨à¤•र दकà¥à¤· हंसते हà¥à¤ बोला ;- कि भगवान विषà¥à¤£à¥ देवताओं के मूल हैं। अतः मैंने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सादर यहां बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ है। जब वे यहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं तो भला यजà¥à¤ž में कà¥à¤¯à¤¾ कमी हो सकती है। भगवान विषà¥à¤£à¥ के साथ-साथ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ भी वेदों, उपनिषदों और विविध • आगमों के साथ यहां पधारे हैं। देवगणों सहित इंदà¥à¤° भी यहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं। वेद और वेदततà¥à¤µà¥‹à¤‚ को जानने वाले तथा उनका पालन करने वाले सभी महरà¥à¤·à¤¿ यजà¥à¤ž में आ चà¥à¤•े हैं। जब सभी देवगण à¤à¤µà¤‚ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ à¤œà¤¨ यहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं तो रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¦à¥‡à¤µ की यहां कà¥à¤¯à¤¾ आवशà¥à¤¯à¤•ता है? मैंने सिरà¥à¤« बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ के कहने पर अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सती का विवाह शिवजी से कर दिया था। मैं जानता हूं कि वे कà¥à¤²à¤¹à¥€à¤¨ हैं। उनके माता-पिता का कà¥à¤› भी पता नहीं है। वे भूतों, पà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥‹à¤‚ और पिशाचों के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ हैं। वे सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही अपनी पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा करते वे मूढ़, जड़, मौनी और ईरà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾à¤²à¥ होने के कारण यजà¥à¤ž में बà¥à¤²à¤¾à¤ जाने के योगà¥à¤¯ नहीं हैं। अतः दधीचि जी, आप उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यजà¥à¤ž में बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठन कहें। आप सब ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ मिलकर अपने सहयोग से मेरे इस यजà¥à¤ž को सफल बनाà¤à¤‚।

दकà¥à¤· की बात सà¥à¤¨à¤•र दधीचि मà¥à¤¨à¤¿ बोले ;- हे दकà¥à¤· ! परम कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी भगवान शिव को यजà¥à¤ž में न बà¥à¤²à¤¾à¤•र तà¥à¤®à¤¨à¥‡ इस यजà¥à¤ž को पहले ही भंग कर दिया है। यह यजà¥à¤ž कहला ने के लायक ही नहीं है। तà¥à¤®à¤¨à¥‡ भगवान शिव को निमंतà¥à¤°à¤£ न देकर उनकी अवहेलना की है। इसलिठतà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ विनाश निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ है, यह कहकर दधीचि वहां से अपने आशà¥à¤°à¤® चले गà¤à¥¤ उनके पीछे-पीछे भगवान शिव का अनà¥à¤¸à¤°à¤£ करने वाले सभी ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ भी वहां से चले गà¤à¥¤ दकà¥à¤· के समरà¥à¤¥à¤•ों ने यजà¥à¤ž छोड़कर गठऋषियों-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ वà¥à¤¯à¤‚गà¥à¤¯ भरे वचनों का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— किया। इस पà¥à¤°à¤•ार पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर दकà¥à¤· बोलने लगे कि यह बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ बात है कि मंदबà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ और मिथà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¾à¤¦ में लगे दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ सभी इस यजà¥à¤ž का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करके सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही चले गठहैं। भगवान विषà¥à¤£à¥ और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€, जो कि सभी वेदों के जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ हैं और वेद ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ से परिपूरà¥à¤£ हैं, इस यजà¥à¤ž में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं। ये ही मेरे यजà¥à¤ž को सफल बनाà¤à¤‚गे।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले कि दकà¥à¤· की ये बातें सà¥à¤¨à¤•र वे सभी शिव माया से मोहित हो गà¤à¥¤ सभी देवरà¥à¤·à¤¿ आदि देवताओं का पूजन करने लगे। इस पà¥à¤°à¤•ार यजà¥à¤ž पà¥à¤¨à¤ƒ आरंभ हो गया। मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  ! इस पà¥à¤°à¤•ार वहां यजà¥à¤žà¤¸à¥à¤¥à¤² पर रà¥à¤•े अनेक देवरà¥à¤·à¤¿ और मà¥à¤¨à¤¿ वहां पà¥à¤¨à¤ƒ यजà¥à¤ž को पूरà¥à¤£ करने हेतॠपूजन करने लगे।

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता
दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡
अठà¥à¤ à¤¾à¤ˆà¤¸à¤µà¤¾à¤‚ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
"सती का दकà¥à¤· के यजà¥à¤ž में आना"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ कहते हैं ;– नारद! जिस समय देवता और ऋषिगण दकà¥à¤· के यजà¥à¤ž में भाग लेने के लिठउतà¥à¤¸à¤µ करते हà¥à¤ जा रहे थे, उस समय दकà¥à¤· की पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सती अपनी सखियों के साथ गंधमादन परà¥à¤µà¤¤ पर धारागृह में अनेक कà¥à¤°à¥€à¤¡à¤¼à¤¾à¤à¤‚ कर रही थीं। सती ने देखा कि रोहिणी के साथ चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ कहीं जा रहे थे। तब सती ने अपनी पà¥à¤°à¤¿à¤¯ सखी विजया से कहा कि विजये! जलà¥à¤¦à¥€ जाकर पूछो कि देवी रोहिणी और चंदà¥à¤° कहां जा रहे हैं? तब विजया दौड़कर चंदà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤µ के पास गई और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नमसà¥à¤•ार करके उनसे पूछा कि हे चंदà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤µ! आप कहां जा रहे हैं? चंदà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤µ ने उतà¥à¤¤à¤° दिया कि वे दकà¥à¤· दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ आयोजित यजà¥à¤ž में निमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ हैं, अतः वहीं जा रहे हैं। यजà¥à¤žà¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ के बारे में सà¥à¤¨à¤•र देवी विजया तà¥à¤°à¤‚त देवी सती के पास आई और सारी बातों से सती को अवगत कराया। तब देवी सती को बड़ा आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हà¥à¤† कि à¤à¤¸à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ बात है, जो पिताजी ने यजà¥à¤žà¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ के लिठअपनी बेटी-दामाद को निमंतà¥à¤°à¤£ तो दूर, सूचना भी नहीं दी। बहà¥à¤¤ सोचने पर उनकी समठमें कà¥à¤› नहीं आ सका। असमंजस की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में वे अपने पति महादेव जी के पास गईं और उनसे कहने लगीं।

सती बोलीं ;- हे महादेव जी! मà¥à¤à¥‡ जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हà¥à¤† है कि मेरे पिताशà¥à¤°à¥€ दकà¥à¤· जी ने à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़े यजà¥à¤žà¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ का आयोजन किया है। जिसमें उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सभी देवरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ देवताओं को आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया है। सभी देवता और ऋषिगण वहां à¤à¤•तà¥à¤°à¤¿à¤¤ हो चà¥à¤•े हैं। हे पà¥à¤°à¤­à¥! मà¥à¤à¥‡ बताइठकि आप वहां कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं जा रहे हैं? आप सभी सà¥à¤¹à¥ƒà¤¦à¤¯à¥‹à¤‚ से मिलने को हमेशा आतà¥à¤° रहते हैं। आप भकà¥à¤¤à¤µà¤¤à¥à¤¸à¤² हैं। पà¥à¤°à¤­à¥‹! उस महायजà¥à¤ž में सभी आपके भकà¥à¤¤ पधारे आप मेरी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ मानकर आज ही मेरे साथ मेरे पिता के उस महान यजà¥à¤ž में चलिà¤à¥¤ सती इस पà¥à¤°à¤•ार भगवान शंकर से यजà¥à¤žà¤¶à¤¾à¤²à¤¾ में चलने की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने लगीं।

सती की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ सà¥à¤¨à¤•र भगवान महेशà¥à¤µà¤° बोले-हे देवी! तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पिता दकà¥à¤· मेरे विशेष दà¥à¤°à¥‹à¤¹à¥€ हो गठहैं। वे मà¥à¤à¤¸à¥‡ बैर की भावना रखते हैं। इसी कारण उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ निमंतà¥à¤°à¤£ नहीं दिया और जो बिना बà¥à¤²à¤¾à¤ दूसरों के घर जाते हैं, वे मरण से भी अधिक अपमान पाते हैं। हे देवी! उस यजà¥à¤ž में सभी अभिमानी, मूढ़ और जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¶à¥‚नà¥à¤¯ देवता और ऋषि ही हैं। उतà¥à¤¤à¤® वà¥à¤°à¤¤ का पालन करने वाले और मेरा पूजन करने वाले सभी ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और देवताओं ने उस महायजà¥à¤ž का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिया है तथा अपने-अपने धाम को वापस चले गठहैं। अतः पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‡, हमारा उस यजà¥à¤ž में जाना अनà¥à¤šà¤¿à¤¤ है। वैसे भी बिना बà¥à¤²à¤¾à¤ जाना अपना अपमान कराना है।

शिवजी के इन वचनों को सà¥à¤¨à¤•र देवी सती कà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ हो गईं और शिवजी से बोलीं- हे पà¥à¤°à¤­à¥! आप तो सबके परमेशà¥à¤µà¤° हैं। आपके उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होने से यजà¥à¤ž सफल हो जाते हैं। आपको मेरे दà¥à¤·à¥à¤Ÿ पिता ने आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ नहीं करके आपका अपमान किया है। भगवनà¥! मैं à¤à¤¸à¤¾ करने का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ जानना चाहती हूं कि कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ मेरे पिता ने आपका अनादर किया है? इसलिठमैं अपने पिता के यजà¥à¤ž में जाना चाहती हूं, ताकि इस बात का पता लगा सकूं। अतः पà¥à¤°à¤­à¥! आप मà¥à¤à¥‡ आजà¥à¤žà¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें।

देवी सती के कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ को सà¥à¤¨à¤•र भगवान शंकर बोले- हे देवी! यदि तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ इचà¥à¤›à¤¾ वहां जाने की है तो मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ आजà¥à¤žà¤¾ देता हूं कि अपने पिता के यजà¥à¤ž में जाओ। नंदीशà¥à¤µà¤° को सजाकर, उस पर चढ़कर अपने संपूरà¥à¤£ वैभव के साथ अपने पिता के यहां जाओ। शिवजी की आजà¥à¤žà¤¾ मानकर देवी सती ने उतà¥à¤¤à¤® शृंगार किया और अनेक पà¥à¤°à¤•ार के आभूषण धारण करके देवी सती अपने पिता के घर की ओर चल दीं। उनके साथ शिवजी ने साठ हजार रौदà¥à¤°à¤—णों को भी भेजा। वे सभी गण उतà¥à¤¸à¤µ रचाकर देवी का गà¥à¤£à¤—ान करते हà¥à¤ दकà¥à¤· के घर की ओर जाने लगे। शिवगणों ने पूरे रासà¥à¤¤à¥‡ शिव-शिवा के यश का गान किया। उस यातà¥à¤°à¤¾ काल में जगदंबा बहà¥à¤¤ शोभा पा रही थीं। उनकी जय-जयकार से सारी दिशाà¤à¤‚ गूंज रही थीं।

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता
दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡
उनà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤µà¤¾à¤‚ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
"यजà¥à¤žà¤¶à¤¾à¤²à¤¾ में सती का अपमान"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- हे नारद! दकà¥à¤·à¤•नà¥à¤¯à¤¾ देवी सती उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर गईं जहां महान यजà¥à¤žà¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ चल रहा था। जहां देवता, असà¥à¤° और मà¥à¤¨à¤¿, साधà¥-संत अगà¥à¤¨à¤¿ में मंतà¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ के साथ आहà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ डाल रहे थे। सती ने अपने पिता के घर में अनेक आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• बहà¥à¤®à¥‚लà¥à¤¯ वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ देखीं। अनेक मनोहारी और उतà¥à¤¤à¤® आभा से परिपूरà¥à¤£ धनà¥à¤¯-धानà¥à¤¯ से यà¥à¤•à¥à¤¤ दकà¥à¤· का भवन अनोखी शोभा पा रहा था। देवी सती नंदी से उतरकर अकेली ही यजà¥à¤žà¤¶à¤¾à¤²à¤¾ के अंदर चली गईं। सती को वहां आया देखकर उनकी माता और बहिनें बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆà¤‚ और देवी सती का खूब आदर सतà¥à¤•ार करने लगीं। परंतॠउनके पिता दकà¥à¤· ने उनको देखकर कोई खà¥à¤¶à¥€ जाहिर न की और न ही उनकी तरफ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ दिया। दकà¥à¤· के भय से ही अनà¥à¤¯ लोगों ने भी देवी सती का आदर नहीं किया। सभी के वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° में तिरसà¥à¤•ार देखकर देवी सती को बहà¥à¤¤ आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हà¥à¤†à¥¤ फिर भी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने माता-पिता के चरणों में मसà¥à¤¤à¤• à¤à¥à¤•ाया। देवी सती ने यजà¥à¤ž में सभी देवताओं का अलग-अलग भाग देखा। जब सती को अपने पति भगवान शिव का भाग वहां दिखाई नहीं दिया तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥‹à¤§ आया। अपमानित होने के कारण देवी सती दकà¥à¤· को लताड़ते हà¥à¤ बोलीं- हे पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿! आपने परम मंगलकारी भगवान शिव को इस यजà¥à¤ž में कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ ? जिनकी उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ से ही सारा जगत पवितà¥à¤° हो जाता है। भगवान शिव यजà¥à¤žà¤µà¥‡à¤¤à¥à¤¤à¤¾à¤“ं में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  हैं। वे ही यजà¥à¤ž के अंग हैं। वे ही यजमान हैं। जब सबकà¥à¤› वे ही हैं तो उनके बिना इस महायजà¥à¤ž की वे सिदà¥à¤§à¤¿ कैसे हो सकती है? उनके बिना तो यह यजà¥à¤ž अपवितà¥à¤° आपने भगवान शिव को सामानà¥à¤¯ समà¤à¤•र उनका घोर अनादर किया है। शायद आपकी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के भà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ होने के कारण ही à¤à¤¸à¤¾ हà¥à¤† है। मà¥à¤à¥‡ तो यह समठमें नहीं आ रहा है कि बिना भगवान शिव के आठये विषà¥à¤£à¥ और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ सहित सभी ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ इस यजà¥à¤ž में कैसे आ गà¤?

तब देवी सती मेरे समà¥à¤®à¥à¤– खड़ी हà¥à¤ˆà¤‚ और विषà¥à¤£à¥ सहित सभी उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ देवताओं व ऋषियों और मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को डांटने लगीं और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ फटकारा ।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;– हे मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  नारद ! कà¥à¤°à¥‹à¤§ से भरी देवी जगदंबा ने अतà¥à¤¯à¤‚त दà¥à¤–ी मन से हम सभी देवता और मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को बहà¥à¤¤ सी बातें सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆà¤‚। देवी सती की बातें सà¥à¤¨à¤•र कोई भी कà¥à¤› नहीं बोला परंतॠउनके पिता दकà¥à¤· उनके वचनों से बहà¥à¤¤ अधिक कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ हो गठऔर इस पà¥à¤°à¤•ार बोले

दकà¥à¤· ने कहा ;– हे पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सती! तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ इस पà¥à¤°à¤•ार के वचनों से कà¥à¤¯à¤¾ लाभ होगा? तà¥à¤® बिना बात के सभी का अपमान कर रही हो। वैसे भी मैंने तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ यहां आने का कोई निमंतà¥à¤°à¤£ नहीं दिया था तो तà¥à¤® कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ चली आईं? तà¥à¤® यहां खड़ी रहो या वापस चली जाओ, तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ इचà¥à¤›à¤¾ है। वैसे भी यहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सभी देवता और ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ यह जानते हैं कि तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पति शिव अमंगलकारी हैं। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वेदों से बहिषà¥à¤•ृत किया गया है। वे भूतों, पà¥à¤°à¥‡à¤¤à¥‹à¤‚ तथा पिशाचों के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾ वेश धारण किया है। इसलिठमैंने रà¥à¤¦à¥à¤° को इस महायजà¥à¤ž में नहीं बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ है। मैंने बिना सोचे-समà¤à¥‡ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ के कहने पर तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ विवाह उनसे कर दिया। नहीं तो शिव इस योगà¥à¤¯ नहीं हैं कि उनसे किसी भी पà¥à¤°à¤•ार से कोई संबंध बनाया जाà¤à¥¤ अब तà¥à¤® आ ही गई हो तो सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर लो। आगे तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ जैसी इचà¥à¤›à¤¾à¥¤ हमारा कोई आगà¥à¤°à¤¹ नहीं है।

दकà¥à¤· की ये बातें सà¥à¤¨à¤•र उनकी दà¥à¤¹à¤¿à¤¤à¤¾ सती ने अपने पति की बà¥à¤°à¤¾à¤ˆ करने वाले अपने पिता को देखा तो उनके मन में रोष बॠगया। वे कà¥à¤°à¥‹à¤§ से भर गईं। तब वे मन में ही विचार करने लगीं कि अब मैं शिवजी के सामने कैसे जाऊंगी? यदि किसी तरह उनके पास चली भी गई तो उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ यजà¥à¤ž का समाचार पूछने पर कà¥à¤¯à¤¾ कहूंगी?

यह सब सोचकर वे अपने पिता दकà¥à¤· से बोलीं ;- जो तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•ीनाथ करà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¾à¤¨ महादेव जी की निंदा करता अथवा सà¥à¤¨à¤¤à¤¾ है वह हमेशा के लिठनरक में जाता है। अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ जब तक सूरà¥à¤¯ और चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ का असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ है, उसे नरक भोगना पड़ता है। इस पà¥à¤°à¤•ार देवी सती को वहां आने पर बहà¥à¤¤ पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª हो रहा था। अपने पति भगवान शिव की अवहेलना को वह सहन नहीं कर पा रही थीं। तब वे अपने पिता दकà¥à¤· सहित अनà¥à¤¯ देवताओं से कहने लगीं।

देवी सती बोलीं ;- तà¥à¤® सभी भगवान शिव के निंदक हो। तà¥à¤®à¤¨à¥‡ उनकी अवहेलना होते देखकर पà¥à¤°à¤­à¥ शिव का अपमान किया है। इस पाप का फल तà¥à¤® सभी को अवशà¥à¤¯ भोगना पड़ेगा। जो लोग भकà¥à¤¤à¤¿ और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से विमà¥à¤– हैं, वे यदि à¤à¤¸à¤¾ कारà¥à¤¯ करें तो कोई आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ नहीं होता परंतॠजिन लोगों ने अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ के अंधेरों को दूर कर अपने जà¥à¤žà¤¾à¤¨ चकà¥à¤·à¥à¤“ं को खोल लिया है, जो महातà¥à¤®à¤¾à¤“ं के चरणों की धूल से अपने को शà¥à¤¦à¥à¤§ और पवितà¥à¤° कर चà¥à¤•े हैं, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ किसी से बैर भाव रखना, ईरà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾ करना और निंदा करना कतई शोभा नहीं देता है। भगवान के शà¥à¤°à¥€à¤šà¤°à¤£à¥‹à¤‚ का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करते हà¥à¤ उनका दो अकà¥à¤·à¤° का नाम 'शिव' का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करने से ही सारे पाप धà¥à¤² जाते हैं। तà¥à¤® मूरà¥à¤–ता के वश में होकर उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ भगवान का अनादर कर रहे हो। उनसे दà¥à¤°à¥‹à¤¹ करके तॠकà¥à¤› भी हासिल नहीं होगा। उदार भगवान महादेव जी जटा और कपाल धारण किठशà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¨ में भूतों के साथ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• रहते हैं। वे शरीर पर भसà¥à¤® लगाठऔर गले में नरमà¥à¤‚डों की माला धारण करते हैं। फिर भी मनà¥à¤·à¥à¤¯ उनके चरणों की धूल अपने माथे पर लगाते हैं, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ परमेशà¥à¤µà¤° हैं। वे परम बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® परमातà¥à¤®à¤¾ हैं। वे à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ से सदा ही दूर रहते हैं। जो à¤à¤¸à¥‡ महापà¥à¤°à¥à¤· की निंदा करता है, उसके जीवन को धिकà¥à¤•ार है। मैंने भी तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की गई पति भगवान शिव की निंदा को सà¥à¤¨à¤¾ है। इसलिठमैं अपने शरीर को तà¥à¤¯à¤¾à¤— दूंगी। इस यजà¥à¤ž की अगà¥à¤¨à¤¿ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर मैं भसà¥à¤® हो जाऊंगी। मैंने अपने पà¥à¤°à¤¿à¤¯ पति भगवान शिव का अनादर देख भी लिया है और उनके पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अपने पिता के कटॠवचनों को भी सà¥à¤¨ लिया है। अतः अब मैं इस जीवन का कà¥à¤¯à¤¾ करूं? मैं इस समय पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ असमरà¥à¤¥ हूं।

इस यजà¥à¤žà¤¶à¤¾à¤²à¤¾ में जो भी शकà¥à¤¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¨ और सामरà¥à¤¥à¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¥à¤· हो, वह भगवान शिव की उपेकà¥à¤·à¤¾ करने वालों और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बà¥à¤°à¤¾ और अमंगलकारी कहने वाले की जीभ काट दे। तभी वह शिव निंदा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के पाप से बच सकता है। जो à¤à¤¸à¤¾ करने में समरà¥à¤¥ न हो तो उसे अपने दोनों कानों को बंद करके यहां से तà¥à¤°à¤‚त चले जाना चाहिà¤à¥¤ तभी वह दोषमà¥à¤•à¥à¤¤ होगा।

फिर देवी सती अपने पिता दकà¥à¤· की ओर मà¥à¤– करके बोलीं - जब मेरे पति महादेव जी मà¥à¤à¥‡ आपके साथ संबंध होने के कारण दाकà¥à¤·à¤¾à¤¯à¤£à¥€ कहकर पà¥à¤•ारेंगे तो मैं कैसे कà¥à¤› कह पाऊंगी। हे पिताजी! आपने मेरे पति का घोर अपमान करके मà¥à¤à¥‡ उनके सामने जाने लायक भी नहीं छोड़ा। इसलिठमेरे पास अब à¤à¤• ही रासà¥à¤¤à¤¾ शेष है। मैं आपके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ इस घृणित शरीर का आपके सामने ही तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दूंगी। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ सती वहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सभी देवताओं से बोलीं कि तà¥à¤® सबने करà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¾à¤¨ भगवान शिव की निंदा सà¥à¤¨à¥€ है। इसलिठतà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का दà¥à¤·à¥à¤ªà¤°à¤¿à¤£à¤¾à¤® तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ अवशà¥à¤¯ मिलेगा।

मेरे पति भगवान शिव तà¥à¤® सबको इसका दंड अवशà¥à¤¯ ही देंगे। उस समय देवी बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ थीं। यह सब कहकर वे चà¥à¤ª हो गईं और अपने मन में अपने पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤µà¤²à¥à¤²à¤­ भगवान शिव का सà¥à¤®à¤°à¤£ करने लगीं।

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता
दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡
तीसवां अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
"सती दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ योगागà¥à¤¨à¤¿ से शरीर को भसà¥à¤® करना"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ से शà¥à¤°à¥€ नारद जी ने पूछा ;- हे पितामह ! जब सती जी à¤à¤¸à¤¾ कहकर मौन हो गईं त वहां कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†? देवी सती ने आगे कà¥à¤¯à¤¾ किया? इस पà¥à¤°à¤•ार नारद जी ने अनेक पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ पूछ डाले और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की कि वे आगे की कथा सविसà¥à¤¤à¤¾à¤° सà¥à¤¨à¤¾à¤à¤‚। यह सà¥à¤¨à¤•र बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤, और पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• कहने लगे

हे नारद! मौन होकर देवी सती अपने पति भगवान शिव का सà¥à¤®à¤°à¤£ करने लगीं। उनका सà¥à¤®à¤°à¤£ करने के बाद उनका कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ मन शांत हो गया। तब शांत मनोभाव से शिवजी का चिंतन करती हà¥à¤ˆ देवी सती पृथà¥à¤µà¥€ पर उतà¥à¤¤à¤° की ओर मà¥à¤– करके बैठ गईं। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ विधिपूरà¥à¤µà¤• जल से आचमन करके उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वसà¥à¤¤à¥à¤° ओढ़ लिया। फिर पवितà¥à¤° भाव से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी दोनों आंखें मूंद लीं और पà¥à¤¨à¤ƒ शिवजी का चिंतन करने लगीं। सती ने पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¾à¤¯à¤¾à¤® से पà¥à¤°à¤¾à¤£ और अपान को à¤à¤•रूप करके नाभि में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ कर लिया। सांसों को संयत कर नाभिचकà¥à¤° के ऊपर हृदय में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर लिया। सती ने अपने शरीर में योगमारà¥à¤— के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° वायॠऔर अगà¥à¤¨à¤¿ को सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर लिया। तब उनका शरीर योग मारà¥à¤— में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हो गया। उनके हृदय में शिवजी विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ थे। यही वह समय था जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना शरीर तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया था। उनका शरीर यजà¥à¤ž की पवितà¥à¤° योगागà¥à¤¨à¤¿ में गिरा और पल भर में ही भसà¥à¤® हो गया। वहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ सहित देवताओं ने जब यह देखा कि देवी सती भसà¥à¤® हो गई हैं, तो आकाश और भूमि पर हाहाकार मच गया। यह हाहाकार सभी को भयभीत कर रहा था। सभी लोग कह रहे थे कि किस दà¥à¤·à¥à¤Ÿ के दà¥à¤°à¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° के कारण भगवान शिव पतà¥à¤¨à¥€ सती अपनी देह का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिया । तो कà¥à¤› लोग दकà¥à¤· की दà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¤¾ को धिकà¥à¤•ार रहे थे, जिसके वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° से दà¥à¤–ी होकर देवी सती ने यह कदम उठाया था। सभी सतà¥à¤ªà¥à¤°à¥à¤· उनका समà¥à¤®à¤¾à¤¨ करते थे। उनका हृदय असहिषà¥à¤£à¥ था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¸à¥€ महान देवी और उनके पति करà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¾à¤¨ भगवान शिव का अनादर और निंदा करने वाले दकà¥à¤· को भी कोसा। सभी कह रहे थे कि दकà¥à¤· ने अपनी ही पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ को पà¥à¤°à¤¾à¤£ तà¥à¤¯à¤¾à¤—ने के लिठमजबूर किया है। इसलिठदकà¥à¤· अवशà¥à¤¯ ही महा नरक में जाà¤à¤—ा और पूरे संसार में उसका अपयश होगा।

दूसरी ओर, देवी सती के साथ पधारे सभी शिवगणों ने जब यह दृशà¥à¤¯ देखा तो उनके कà¥à¤°à¥‹à¤§ की कोई सीमा न रही । वे तà¥à¤°à¤‚त अपने असà¥à¤¤à¥à¤°-शसà¥à¤¤à¥à¤° लेकर दकà¥à¤· को मारने के लिठदौड़े। वे साठ हजार पारà¥à¤·à¤¦à¤—ण कà¥à¤°à¥‹à¤§ से चिलà¥à¤²à¤¾ रहे थे और अपने को ही धिकà¥à¤•ार रहे थे कि यहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होते हà¥à¤ भी हम अपनी माता देवी सती की रकà¥à¤·à¤¾ नहीं कर पाà¤à¥¤ उनमें से कई पारà¥à¤·à¤¦à¥‹à¤‚ ने तो सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अपने शरीर का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिया। बचे हà¥à¤ सभी शिवगण दकà¥à¤· को मारने के लिठबड़ी तेजी से आगे बढ़ रहे थे। जब ऋषि भृगॠने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आकà¥à¤°à¤®à¤£ के लिठआगे बढ़ते हà¥à¤ देखा तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यजà¥à¤ž में विघà¥à¤¨ डालने वालों का नाश करने के लिठयजà¥à¤°à¥à¤®à¤‚तà¥à¤° पढ़कर दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾à¤—à¥à¤¨à¤¿ में

आहà¥à¤¤à¤¿ दे दी। आहà¥à¤¤à¤¿ के पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ के फलसà¥à¤µà¤°à¥‚प यजà¥à¤žà¤•à¥à¤£à¥à¤¡ में से ऋभॠनामक अनेक देवता, जो पà¥à¤°à¤¬à¤² वीर थे, वहां पà¥à¤°à¤•ट हो गà¤à¥¤ ऋभॠनामक सहसà¥à¤°à¥‹à¤‚ देवताओं और शिवगणों में भयानक यà¥à¤¦à¥à¤§ होने लगा। वे देवता बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¤à¥‡à¤œ से संपनà¥à¤¨ थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शिवगणों को मारकर तà¥à¤°à¤‚त भगा दिया। इससे वहां यजà¥à¤ž में और अशांति फैल गई। सभी देवता और मà¥à¤¨à¤¿ भगवान विषà¥à¤£à¥ से इस विघà¥à¤¨ को टालने की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने लगे। देवी सती का भसà¥à¤® हो जाना और भगवान शिव के गणों को मारकर वहां से भगाठजाने का परिणाम सोचकर सभी देवता और ऋषि विचलित थे। हे नारद! इस पà¥à¤°à¤•ार दकà¥à¤· के उस महायजà¥à¤žà¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤µ में बहà¥à¤¤ बड़ा उतà¥à¤ªà¤¾à¤¤ मच गया था और सब ओर तà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤¿-तà¥à¤°à¤¾à¤¹à¤¿ मच गई थी। सभी भावी परिणाम की आशंका से भयभीत दिखाई दे रहे थे।

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