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Shiv Purana Sri Rudra Samhita (second volume) From the twenty-first chapter to the twenty-fifth chapter

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£Â  शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता (दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡) के इकà¥à¤•ीसवें अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ से पचà¥à¤šà¥€à¤¸à¤µà¥‡à¤‚ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ तक (From the twenty-first chapter to the twenty-fifth chapter of Shiv Purana Sri Rudra Samhita (second volume)

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

इकà¥à¤•ीसवां अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिव-सती विहार"

नारद जी ने पूछा ;- हे पितामह बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€! शिवजी के विवाह के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ सभी पधारे देवी देवताओं और ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ सहित शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ और आपको विदा करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†? हे पà¥à¤°à¤­à¥! इससे आगे की कथा का वरà¥à¤£à¤¨ भी आप मà¥à¤à¤¸à¥‡ करें। यह सà¥à¤¨à¤•र बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ कहा- हे महरà¥à¤·à¤¿ नारद! सभी उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ देवताओं को विवाहोपरांत भगवान शिव और देवी सती ने पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• विदा कर दिया। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ देवी सती ने सभी शिवगणों को भी कà¥à¤› समय के लिठकैलाश परà¥à¤µà¤¤ से जाने की आजà¥à¤žà¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की। सभी शिवगणों ने महादेव जी को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® कर उनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ की। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भगवान शंकर से वहां से जाने की आजà¥à¤žà¤¾ मांगी। आजà¥à¤žà¤¾ देते हà¥à¤ महादेव जी ने कहा- जाà¤à¤‚ लेकिन मेरे सà¥à¤®à¤°à¤£ करने पर आप सभी तà¥à¤°à¤‚त मेरे समकà¥à¤· उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हो जाà¤à¤‚। तब नंदी समेत सभी गण वहां भगवान शिव और देवी सती को अकेला छोड़कर कà¥à¤› समय के लिठकैलाश परà¥à¤µà¤¤ से चले गà¤à¥¤

अब कैलाश परà¥à¤µà¤¤ पर भगवान शिव सती के साथ अकेले थे। देवी सती भगवान शिव को पति रूप में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ थीं। बहà¥à¤¤ कठिन तप के उपरांत ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ भगवान शिव का सानà¥à¤¨à¤¿à¤§à¥à¤¯ मिल पाया था। यह सोचकर वह बहà¥à¤¤ रोमांचित थीं। उधर देवी सती के अनà¥à¤ªà¤® सौंदरà¥à¤¯ को देखकर शिवजी भी मोहित हो चà¥à¤•े थे। वे भी देवी सती का साथ पाकर अपने को धनà¥à¤¯ समठरहे थे। à¤à¤•ांत पाकर शिवजी अपनी पतà¥à¤¨à¥€ सती के साथ कैलाश परà¥à¤µà¤¤ के शिखर पर रमण करने लगे।

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

बाईसवां अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिव-सती का हिमालय गमन"

कैलाश परà¥à¤µà¤¤ पर शà¥à¤°à¥€à¤¶à¤¿à¤µ और दकà¥à¤· कनà¥à¤¯à¤¾ सती के विविध विहारों का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से वरà¥à¤£à¤¨ करने के बाद बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा,

नारद! à¤à¤• दिन की बात है कि देवी सती भगवान शिव को पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करके दोनों हाथ जोड़कर खड़ी हो गईं। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª खड़े देखकर भगवान शिव समठगठकि देवी सती के मन में कà¥à¤› बात अवशà¥à¤¯ है, जिसे वह कहना चाह रही हैं। तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤•र देवी सती से पूछा कि हे पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤µà¤¤à¥à¤¸à¤²à¤¾ ! कहिठआप कà¥à¤¯à¤¾ कहना चाहती हैं? यह सà¥à¤¨à¤•र देवी सती बोलीं,

हे भगवनà¥! वरà¥à¤·à¤¾ ऋतॠआ गई है। चारों ओर का वातावरण सà¥à¤‚दर व मनोहारी हो गया है। हे देवाधिदेव! मैं चाहती हूं कि कà¥à¤› समय हम कैलाश परà¥à¤µà¤¤ से दूर पृथà¥à¤µà¥€ पर या हिमालय परà¥à¤µà¤¤ पर जाकर रहें। वरà¥à¤·à¤¾ काल के लिठहम किसी योगà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर चले जाà¤à¤‚ और कà¥à¤› समय वहीं निवास करें। देवी सती की यह पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ सà¥à¤¨à¤•र भगवान शिव हंसने लगे। हंसते हà¥à¤ ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी पतà¥à¤¨à¥€ सती से कहा कि पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‡ ! जहां पर मैं निवास करता हूं, वहां पर मेरी इचà¥à¤›à¤¾ के विरà¥à¤¦à¥à¤§ कोई भी आ-जा नहीं सकता है। मेघ भी मेरी आजà¥à¤žà¤¾ के बिना कैलाश परà¥à¤µà¤¤ की ओर कभी नहीं आà¤à¤‚गे। वरà¥à¤·à¤¾ काल में भी मेघ सिरà¥à¤« नीचे की ओर ही घूमकर चले जाà¤à¤‚गे। हे पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‡ ! तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ इचà¥à¤›à¤¾ के विरà¥à¤¦à¥à¤§ कोई भी तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ परेशान नहीं कर सकता।

फिर भी यदि आप चाहती हैं तो हम हिमालय परà¥à¤µà¤¤ पर चलते हैं। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ भगवान शिव अपनी पतà¥à¤¨à¥€ सती के साथ हिमालय पर चले गà¤à¥¤ कà¥à¤› समय वहां पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• विहार करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ वे पà¥à¤¨à¤ƒ अपने निवास पर लौट आà¤à¥¤

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

तेईसवां अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिव दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और मोकà¥à¤· का वरà¥à¤£à¤¨"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- हे महरà¥à¤·à¤¿ नारद! भगवान शिव और सती के हिमालय से वापस आने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ वे पà¥à¤¨à¤ƒ पहले की तरह कैलाश परà¥à¤µà¤¤ पर अपना निवास करने लगे। à¤à¤• दिन देवी सती ने भगवान शिव को भकà¥à¤¤à¤¿à¤­à¤¾à¤µ से नमसà¥à¤•ार किया और कहने लगीं- हे देवाधिदेव! महादेव! कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤¸à¤¾à¤—र! आप सभी की रकà¥à¤·à¤¾ करते हैं। हे भगवनà¥! मà¥à¤ पर भी अपनी कृपादृषà¥à¤Ÿà¤¿ कीजिà¤à¥¤ पà¥à¤°à¤­à¥, आप परम पà¥à¤°à¥à¤· और सबके सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ हैं। आप रजोगà¥à¤£, तमोगà¥à¤£ और सतà¥à¤µà¤—à¥à¤£ से दूर हैं। आपको पति रूप में पाकर मेरा जनà¥à¤® सफल हो गया। हे करà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¾à¤¨! आपने मà¥à¤à¥‡ हर पà¥à¤°à¤•ार का सà¥à¤– दिया है तथा मेरी हर इचà¥à¤›à¤¾ को पूरा किया है परंतॠअब मेरा मन ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ खोज करता है। मैं उस परम ततà¥à¤µ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करना चाहती हूं जो सभी को सà¥à¤– पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। जिसे पाकर जीव संसार के दà¥à¤–ों और मोह-माया से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है और उसका उदà¥à¤§à¤¾à¤° हो जाता है। पà¥à¤°à¤­à¥! मà¥à¤ पर कृपा कर आप मेरा जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤µà¤°à¥à¤¦à¥à¤§à¤¨ करें।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- मà¥à¤¨à¥‡! इस पà¥à¤°à¤•ार आदिशकà¥à¤¤à¤¿ देवी सती ने जीवों के उदà¥à¤§à¤¾à¤° के लिठभगवान शिव से पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ किया। उस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ को सà¥à¤¨à¤•र महान योगी, सबके सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ भगवान शिव पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• बोले—हे देवी! हे दकà¥à¤·à¤¨à¤‚दिनी! मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ उस अमृतमयी कथा को सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¾ हूं, जिसे सà¥à¤¨à¤•र मनà¥à¤·à¥à¤¯ संसार के बंधनों से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है। यही वह परमततà¥à¤µ विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ है जिसके उदय होने से मेरा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प है। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने पर उस विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¥à¤· की बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ शà¥à¤¦à¥à¤§ हो जाती है। उस विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की माता मेरी भकà¥à¤¤à¤¿ है। यह भोग और मोकà¥à¤· रूप को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती है। भकà¥à¤¤à¤¿ और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सदा सà¥à¤– पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। भकà¥à¤¤à¤¿ के बिना जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के बिना भकà¥à¤¤à¤¿ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ नहीं होती है। हे देवी! मैं सदा अपने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के अधीन हूं।

भकà¥à¤¤à¤¿ दो पà¥à¤°à¤•ार की होती है ,— सगà¥à¤£ और निरà¥à¤—à¥à¤£à¥¤ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ और हृदय के सहज पà¥à¤°à¥‡à¤® से पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ भकà¥à¤¤à¤¿ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  होती है परंतॠकिसी वसà¥à¤¤à¥ की कामनासà¥à¤µà¤°à¥‚प की गई भकà¥à¤¤à¤¿, निमà¥à¤¨à¤•ोटि की होती है। हे पà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‡! मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने सगà¥à¤£à¤¾ और निरà¥à¤—à¥à¤£à¤¾ नामक दोनों भकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के नौ-नौ भेद बताठहैं। शà¥à¤°à¤µà¤£, कीरà¥à¤¤à¤¨, सà¥à¤®à¤°à¤£, सेवन, दासà¥à¤¯, अरà¥à¤šà¤¨, वंदन, सखà¥à¤¯ और आतà¥à¤®à¤¸à¤®à¤°à¥à¤ªà¤£ ही भकà¥à¤¤à¤¿ के अंग माने जाते हैं। जो à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• बैठकर तन-मन को à¤à¤•ागà¥à¤°à¤šà¤¿à¤¤à¥à¤¤ करके मेरी कथा और कीरà¥à¤¤à¤¨ को पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ सà¥à¤¨à¤¤à¤¾ है, इसे 'शà¥à¤°à¤µà¤£' कहा जाता है। जो अपने हृदय में मेरे दिवà¥à¤¯ जनà¥à¤®-करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का चिंतन करता है और उसका अपनी वाणी से उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करता है, इसे भजन रूप में गाना ही 'कीरà¥à¤¤à¤¨' कहा जाता है।

मेरे सà¥à¤µà¤°à¥‚प को नितà¥à¤¯ अपने आस-पास हर वसà¥à¤¤à¥ में तलाश कर मà¥à¤à¥‡ सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• मानना तथा सदैव मेरा चिंतन करना ही 'सà¥à¤®à¤°à¤£' है। सूरà¥à¤¯ निकलने से लेकर रातà¥à¤°à¤¿ तक (सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ तक) हृदय और इंदà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से निरंतर मेरी सेवा करना ही 'सेवन' कहा जाता है। सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को पà¥à¤°à¤­à¥ का किंकर समà¤à¤•र अपने हृदयामृत के भोग से भगवान का सà¥à¤®à¤°à¤£ 'दासà¥à¤¯' कहा जाता है।

अपने धन और वैभव के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° सोलह उपचारों के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की गई मेरी पूजा 'अरà¥à¤šà¤¨' कहलाती है। मन, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ और वाणी से मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करते हà¥à¤ इषà¥à¤Ÿà¤¦à¥‡à¤µ को नमसà¥à¤•ार करना 'वंदन' कहा जाता है। ईशà¥à¤µà¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किठगठफैसले को अपना हित समà¤à¤•र उसे सदैव मंगल मानना ही 'सखà¥à¤¯' है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ के पास जो भी वसà¥à¤¤à¥ है वह भगवान की पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ के लिठउनके चरणों में अरà¥à¤ªà¤£ कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ कर देना ही 'आतà¥à¤®à¤¸à¤®à¤°à¥à¤ªà¤£' कहलाता है। भकà¥à¤¤à¤¿ के यह नौ अंग भोग और मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले हैं। ये सभी जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के साधन मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं।

मेरी सांगोपांग भकà¥à¤¤à¤¿ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और वैरागà¥à¤¯ को जनà¥à¤® देती है। इससे सभी अभीषà¥à¤Ÿ फलों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। मà¥à¤à¥‡ मेरे भकà¥à¤¤ बहà¥à¤¤ पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥‡ हैं। तीनों लोकों और चारों यà¥à¤—ों में भकà¥à¤¤à¤¿ के समान दूसरा कोई भी सà¥à¤–दायक मारà¥à¤— नहीं है। कलियà¥à¤— में, जब जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और वैरागà¥à¤¯ का हà¥à¤°à¤¾à¤¸ हो जाà¤à¤—ा तब भी भकà¥à¤¤à¤¿ ही शà¥à¤­ फल पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली होगी। मैं सदा ही अपने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के वश में रहता हूं। मैं अपने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की विपरीत परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में सदैव सहायता करता हूं और उसके सभी कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ को दूर करता हूं। मैं अपने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ का रकà¥à¤·à¤• हूं।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;– नारद! देवी सती को भकà¥à¤¤ और भकà¥à¤¤à¤¿ का महतà¥à¤µ सà¥à¤¨à¤•र बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ हà¥à¤ˆà¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भगवान शिव को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया और पà¥à¤¨à¤ƒ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के बारे में पूछा। वे यह जानना चाहती थीं कि सभी जीवों का उदà¥à¤§à¤¾à¤° करने वाला, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤– पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला सभी साधनों का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤• शासà¥à¤¤à¥à¤° कौन-सा है? वे à¤à¤¸à¥‡ शासà¥à¤¤à¥à¤° का माहातà¥à¤®à¥à¤¯ सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ चाहती थीं। सती का पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ सà¥à¤¨à¤•र शिवजी ने पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• सब शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के विषय में देवी सती को बताया। महेशà¥à¤µà¤° ने पांचों अंगों सहित तंतà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°, यंतà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤° तथा सभी देवेशà¥à¤µà¤°à¥‹à¤‚ की महिमा का वरà¥à¤£à¤¨ किया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इतिहास की कथा भी सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆà¥¤ पà¥à¤¤à¥à¤° और सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के धरà¥à¤® की महिमा भी बताई। मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤– पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले वैदà¥à¤¯à¤• शासà¥à¤¤à¥à¤° तथा जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· शासà¥à¤¤à¥à¤° का भी वरà¥à¤£à¤¨ किया। भगवान शिव ने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ का माहातà¥à¤®à¥à¤¯ और राज धरà¥à¤® भी बताया।

इसी पà¥à¤°à¤•ार भगवान शिव ने सती को उनके पूछे सभी पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ का उतà¥à¤¤à¤° देते हà¥à¤ सभी कथाà¤à¤‚ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆà¤‚।

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

चौबीसवां अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिव की आजà¥à¤žà¤¾ से सती दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® की परीकà¥à¤·à¤¾"

नारद जी बोले ;– हे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¨à¥! हे महापà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤ž! हे दयानिधे! आपने मà¥à¤à¥‡ भगवान शंकर तथा देवी सती के मंगलकारी चरितà¥à¤° के बारे में बताया। हे पà¥à¤°à¤­à¥! मैं महादेव जी का सपतà¥à¤¨à¥€à¤• यश वरà¥à¤£à¤¨ सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ चाहता हूं। कृपया अब मà¥à¤à¥‡ आप यह बताइठकि ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ शिवजी व सती ने कà¥à¤¯à¤¾ किया? उनके सभी चरितà¥à¤°à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ मà¥à¤à¤¸à¥‡ करें।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा ;- मà¥à¤¨à¥‡! à¤à¤• बार की बात है कि सतीजी को अपने पति का वियोग पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ यह वियोग भी उनकी लीला का ही रूप था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इनका परसà¥à¤ªà¤° वियोग तो हो ही नहीं सकता है। यह वाणी और अरà¥à¤¥ के समान है, यह शकà¥à¤¤à¤¿ और शकà¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ है तथा चितà¥à¤°à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प है। सती और शिव तो ईशà¥à¤µà¤° हैं। वे समय-समय पर नई-नई लीलाà¤à¤‚ रचते हैं।

सूत जी कहते हैं ;- महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ की बात सà¥à¤¨à¤•र नारद जी ने बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ से देवी सती और भगवान शिव के बारे में पूछा कि भगवान शिव ने अपनी पतà¥à¤¨à¥€ सती का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ किया? à¤à¤¸à¤¾ किसलिठहà¥à¤† कि सà¥à¤µà¤¯à¤‚ वर देने के बाद भी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने देवी सती को छोड़ दिया? पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· ने अपने यजà¥à¤ž के आयोजन में भगवान शिव को निमंतà¥à¤°à¤£ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं दिया? और यजà¥à¤ž सà¥à¤¥à¤² पर भगवान शंकर का अनादर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ किया। उस यजà¥à¤ž में सती ने अपने शरीर का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ किया तथा इसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ वहां पर कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†? हे पà¥à¤°à¤­à¥! कृपा कर मà¥à¤à¥‡ इस विषय में सविसà¥à¤¤à¤¾à¤° बताइà¤à¥¤

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- हे महापà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤ž नारद! मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ उतà¥à¤¸à¥à¤•ता देखकर तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ सभी जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾à¤“ं को शांत करने के लिठतà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ सारी बातें बताता हूं। ये सभी भगवान शिव की ही लीला है। उनका सà¥à¤µà¤°à¥‚प सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤° और निरà¥à¤µà¤¿à¤•ार है। देवी सती भी उनके अनà¥à¤°à¥‚प ही हैं। à¤à¤• समय की बात है, भगवान शिव अपनी पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ पतà¥à¤¨à¥€ सती के साथ अपनी सवारी नंदी पर बैठकर पृथà¥à¤µà¥€à¤²à¥‹à¤• का भà¥à¤°à¤®à¤£ कर रहे थे। घूमते-घूमते वे दणà¥à¤¡à¤•ारणà¥à¤¯ में आ गà¤à¥¤ उस वन में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भगवान शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® को उनके भà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤¾ लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ के साथ जंगलों में भटकते हà¥à¤ देखा। वे अपनी पतà¥à¤¨à¥€ सीता को खोज रहे थे, जिसे लंका का राजा रावण उठाकर ले गया था। वे जगह-जगह भटकते हà¥à¤ उनका नाम पà¥à¤•ार कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ढूंॠरहे थे। पतà¥à¤¨à¥€ के बिछà¥à¤¡à¤¼ जाने के कारण शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® अतà¥à¤¯à¤‚त दà¥à¤–ी दिखाई दे रहे थे। उनकी कांति फीकी पड़ गई थी। भगवान शिव ने वन में राम जी को भटकते देखा परंतॠउनके सामने पà¥à¤°à¤•ट नहीं हà¥à¤à¥¤ देवी सती को यह देखकर बड़ा आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हà¥à¤†à¥¤ वे शिवजी से बोलीं

हे सरà¥à¤µà¥‡à¤¶! हे करà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¾à¤¨ सदाशिव! हे परमेशà¥à¤µà¤° ! बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ सहित सभी देवता आपकी ही सेवा करते हैं। आप सब के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पूजित हैं। वेदांत और शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ आप ही निरà¥à¤µà¤¿à¤•ार पà¥à¤°à¤­à¥ हैं। हे नाथ! ये दोनों पà¥à¤°à¥à¤· कौन हैं? ये दोनों विरह वà¥à¤¯à¤¥à¤¾ से वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² रहते हैं। ये दोनों धनà¥à¤°à¥à¤§à¤° वीर जंगलों में कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ भटक रहे हैं? भगवनॠइनमें जà¥à¤¯à¥‡à¤·à¥à¤  पà¥à¤°à¥à¤· की अंगकांति नीलकमल के समान शà¥à¤¯à¤¾à¤® है। आप उसे देखकर इतना आनंद विभोर कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हो रहे हैं? आपने पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ किया? सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ कभी भकà¥à¤¤ को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® नहीं करता। हे कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी शिव! आप मेरे संशय को दूर कीजिठऔर मà¥à¤à¥‡ इस विषय में बताइà¤à¥¤

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- नारद! कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤®à¤¯à¥€ आदिशकà¥à¤¤à¤¿ देवी सती ने जब भगवान शिव से इस पà¥à¤°à¤•ार पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ पूछने आरंभ किठतो देवों के देव महादेव भगवान हंसकर बोले- देवी यह सभी तो पूरà¥à¤µ निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ है। मैंने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दिठगठवरदान सà¥à¤µà¤°à¥‚प ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नमसà¥à¤•ार किया था। ये दोनों भाई सभी वीरों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ हैं। इनके शà¥à¤­ नाम शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ हैं। ये सूरà¥à¤¯à¤µà¤‚शी राजा दशरथ के पà¥à¤¤à¥à¤° हैं। इनमें गोरे रंग के छोटे भाई साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ शेष के अंश हैं तथा उनका नाम लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ है। बड़े भाई शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® भगवान विषà¥à¤£à¥ का अवतार हैं। धरती पर इनका जनà¥à¤® साधà¥à¤“ं की रकà¥à¤·à¤¾ और पृथà¥à¤µà¥€ वासियों के कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ के लिठही हà¥à¤† है। भगवान शिव की ये बातें सà¥à¤¨à¤•र सती को विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ नहीं हà¥à¤†à¥¤ à¤à¤¸à¤¾ विभà¥à¤°à¤® भगवान शिव की माया के कारण ही हà¥à¤† था। जब भगवान शिव को यह जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हà¥à¤† कि देवी सती को उनकी बातों पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ नहीं हà¥à¤† है तो वे अपनी पतà¥à¤¨à¥€ दकà¥à¤·à¤•नà¥à¤¯à¤¾ सती से बोले- देवी! यदि तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ मेरी बातों पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ नहीं है तो तà¥à¤® सà¥à¤µà¤¯à¤‚ शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® की परीकà¥à¤·à¤¾ ले लो। जब तक तà¥à¤® इस बात से आशà¥à¤µà¤¸à¥à¤¤ न हो जाओ कि वे दोनों पà¥à¤°à¥à¤· ही राम और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ हैं, और तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ मोह न नषà¥à¤Ÿ हो जाà¤, तब तक मैं यहीं बरगद के नीचे खड़ा हूं। तà¥à¤® जाकर शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ की परीकà¥à¤·à¤¾ लो।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- हे महामà¥à¤¨à¥‡ नारद! अपने पति भगवान शिव के वचन सà¥à¤¨à¤•र सती ने अपने पति का आदेश पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ की परीकà¥à¤·à¤¾ लेने की ठान ली परंतॠउनके मन में बार-बार à¤à¤• ही विचार उठ रहा था कि मैं कैसे उनकी परीकà¥à¤·à¤¾ लूं। तब उनके मन में यह विचार आया कि मैं देवी सीता का रूप धारण कर शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के सामने जाती हूं। यदि वे साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ का अवतार हैं, तो वे मà¥à¤à¥‡ आसानी से पहचान लेंगे अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ वे मà¥à¤à¥‡ पहचान नहीं पाà¤à¤‚गे। à¤à¤¸à¤¾ विचार कर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सीता का वेश धारण कर लिया और रामजी के समकà¥à¤· चली गईं। सती ने à¤à¤¸à¤¾ भगवान शिव की माया से मोहित होकर ही किया था। सती को सीता के रूप में देखकर, राम जी सबकà¥à¤› जान गà¤à¥¤ वे हंसते हà¥à¤ देवी सती को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करके बोले

हे देवी सती! आपको मैं नमसà¥à¤•ार करता हूं। हे देवी! आप तो यहां हैं, परंतॠतà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•ीनाथ भगवान शिव कहीं भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। बताइठदेवी, आप इस निरà¥à¤œà¤¨ वन में अकेली कà¥à¤¯à¤¾ कर रही हैं? और आपने अपने परम सà¥à¤‚दर और कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी रूप को तà¥à¤¯à¤¾à¤—कर यह नया रूप कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ धारण किया है?

शà¥à¤°à¥€ रामचंदà¥à¤° जी की बातें सà¥à¤¨à¤•र देवी सती आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤šà¤•ित हो गईं। तब वे शिवजी की बातों का सà¥à¤®à¤°à¤£ कर तथा सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ को जानकर बहà¥à¤¤ शरà¥à¤®à¤¿à¤‚दा हà¥à¤ˆà¤‚ और मन ही मन अपने पति भगवान शंकर के चरणों का सà¥à¤®à¤°à¤£ करती हà¥à¤ˆ बोलीं- हम अपने पति करà¥à¤£à¤¾à¤¨à¤¿à¤§à¤¾à¤¨ भगवान शिव तथा अनà¥à¤¯ पारà¥à¤·à¤¦à¥‹à¤‚ के साथ पृथà¥à¤µà¥€ का भà¥à¤°à¤®à¤£ करते हà¥à¤ इस वन में आ गठथे। यहां आपको लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ जी के साथ सीता की खोज में भटकते हà¥à¤ देखकर भगवान शिव ने आपको पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया और वहीं बरगद के पीछे खड़े हो गà¤à¥¤ आपको वहां देख भगवान शिव आनंदित होकर आपकी महिमा का गान करने लगे। वे आपके दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ से आनंदविभोर हो गà¤à¥¤ मेरे दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾

इस विषय में पूछने पर जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ बताया कि आप शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥ का अवतार हैं तो मà¥à¤à¥‡ इस पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ ही नहीं हà¥à¤† और मैं सà¥à¤µà¤¯à¤‚ आपकी परीकà¥à¤·à¤¾ लेने यहां आ गई। आपके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मà¥à¤à¥‡ पहचान लेने से मेरा सारा भà¥à¤°à¤® दूर हो गया है। हे शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿! अब मà¥à¤à¥‡ आप यह बताइठकि आप भगवान शिव के भी वंदनीय कैसे हो गà¤? मेरे मन में यही à¤à¤• संशय है। कृपया, आप मà¥à¤à¥‡ इस विषय में बताकर मेरे संशय को दूर कर मà¥à¤à¥‡ शांति पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें।

देवी सती के à¤à¤¸à¥‡ वचन सà¥à¤¨à¤•र शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हà¥à¤ तथा अपने मन में शिवजी का सà¥à¤®à¤°à¤£ करते हà¥à¤ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤µà¤¿à¤­à¥‹à¤° हो उठे। वे पà¥à¤°à¤­à¥ शिव के चरणों का चिंतन करते हà¥à¤ मन में उनकी महिमा का वरà¥à¤£à¤¨ करने लगे।

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

पचà¥à¤šà¥€à¤¸à¤µà¤¾à¤‚ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® का सती के संदेह को दूर करना"

शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® बोले ;– हे देवी सती! पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤•ाल की बात है। à¤à¤• बार भगवान शिव ने अपने लोक में विशà¥à¤µà¤•रà¥à¤®à¤¾ को बà¥à¤²à¤¾à¤•र उसमें à¤à¤• मनोहर गोशाला बनवाई, जो बहà¥à¤¤ बड़ी थी। उसमें उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• मनोहर विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ भवन का भी निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करवाया। उसमें à¤à¤• दिवà¥à¤¯ सिंहासन तथा à¤à¤• दिवà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  छतà¥à¤° भी बनवाया। यह बहà¥à¤¤ ही अदà¥à¤­à¥à¤¤ और परम उतà¥à¤¤à¤® था। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सब ओर से इंदà¥à¤°, देवगणों, सिदà¥à¤§à¥‹à¤‚, गंधरà¥à¤µà¥‹à¤‚, समसà¥à¤¤ उपदेवों तथा नाग आदि को भी शीघà¥à¤° ही उस मनोहर भवन में बà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ सभी वेदों और आगमों को, पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ सहित बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ को, मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, अपà¥à¤¸à¤°à¤¾à¤“ं सहित समसà¥à¤¤ देवियों सहित सोलह नाग कनà¥à¤¯à¤¾à¤“ं आदि सभी को उसमें आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया, जो कि अनेक मांगलिक वसà¥à¤¤à¥à¤“ं के साथ वहां आईं। संगीतजà¥à¤žà¥‹à¤‚ ने वीणा-मृदंग आदि बाजे बजाकर अपूरà¥à¤µ संगीत का गान किया।

इस पà¥à¤°à¤•ार यह à¤à¤• बड़ा समारोह और उतà¥à¤¸à¤µ था। राजà¥à¤¯à¤¾à¤­à¤¿à¤·à¥‡à¤• की सारी सामगà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¤•तà¥à¤°à¤¿à¤¤ हà¥à¤ˆà¤‚ और तीरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के जल से भरे घड़े मंगाठगà¤à¥¤ अनेक दिवà¥à¤¯ सामगà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ भी गणों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मंगवाई गईं। फिर उचà¥à¤š सà¥à¤µà¤°à¥‹à¤‚ में वेदमंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का घोष कराया गया।

हे देवी! भगवान शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ विषà¥à¤£à¥ की उतà¥à¤¤à¤® भकà¥à¤¤à¤¿ से भगवान शिव सदा पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ रहते थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बड़े पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ को बैकà¥à¤‚ठ से बà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¯à¤¾ और शà¥à¤­ मà¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  सिंहासन पर बैठाया। महादेव जी ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ अपने हाथों से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ से आभूषण और अलंकार पहनाठ। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भगवान विषà¥à¤£à¥ के सिर पर मà¥à¤•à¥à¤Ÿ पहनाकर उनका अभिषेक किया। उस समय वहां अनेक मंगल गान गाठगà¤à¥¤ तब भगवान शिव ने अपना सारा à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯, जो कि किसी के पास भी नहीं था, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया। इसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ भगवान शंकर ने उनकी बहà¥à¤¤ सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ की और जगतकरà¥à¤¤à¤¾ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ से बोले- हे लोकेश ! आज से शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ विषà¥à¤£à¥ मेरे वंदनीय हà¥à¤à¥¤ यह सà¥à¤¨à¤•र सभी देवता सà¥à¤¤à¤¬à¥à¤§ रह गà¤à¥¤ तब वे पà¥à¤¨à¤ƒ बोले कि आप सहित सभी देवी-देवता भगवान विषà¥à¤£à¥ को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® कर उनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करें तथा सभी वेद मेरे साथ-साथ शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥ जी का भी वरà¥à¤£à¤¨ करें।

शà¥à¤°à¥€ रामचंदà¥à¤° जी बोले ;- हे देवी! भगवान शिव अपने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के ही अधीन हैं। वे अतà¥à¤¯à¤‚त दयालॠऔर कृपानिधान हैं। वे सदा ही भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के वश में रहते हैं। इसलिठभगवान विषà¥à¤£à¥ की शिव भकà¥à¤¤à¤¿ से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर भकà¥à¤¤à¤µà¤¤à¥à¤¸à¤² शिव ने यह सबकà¥à¤› किया तथा इसके उपरांत उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ के वाहन गरà¥à¤¡à¤¼à¤§à¥à¤µà¤œ को भी पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ सभी देवी-देवताओं और ऋषि मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने भी शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ की सचà¥à¤šà¥‡ मन से सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ की।

तब भगवान शिव ने विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ को बहà¥à¤¤ से वरदान दिठतथा कहा - शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿! आप मेरी आजà¥à¤žà¤¾ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° संपूरà¥à¤£ लोकों के करà¥à¤¤à¤¾, पालक और संहारक हों। धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥ और काम के दाता तथा बà¥à¤°à¥‡ अथवा अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯ करने वाले दà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ को दंड तथा उनका नाश करने वाले हों। आप पूरे जगत में पूजित हों तथा सभी मनà¥à¤·à¥à¤¯ सदैव आपका पूजन करें। तà¥à¤® कभी भी पराजित नहीं होगे। मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ इचà¥à¤›à¤¾ की सिदà¥à¤§à¤¿, लीला करने की शकà¥à¤¤à¤¿ और सदैव सà¥à¤µà¤¤à¤‚तà¥à¤°à¤¤à¤¾ का वरदान पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता हूं। हे हरे। जो तà¥à¤®à¤¸à¥‡ बैर रखेंगे उनको अवशà¥à¤¯ ही दंड मिलेगा। मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को भी मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करूंगा तथा उनके सभी कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ का भी निवारण करूंगा। तà¥à¤® मेरी बायीं भà¥à¤œà¤¾ से और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ मेरी दायीं भà¥à¤œà¤¾ से पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ हो। रà¥à¤¦à¥à¤° देव, जो साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ मेरा ही रूप हैं, मेरे ही हृदय से पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ हैं। हे विषà¥à¤£à¥‹! आप सदा सबकी रकà¥à¤·à¤¾ करेंगे। मेरे धाम में तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ उजà¥à¤œà¥à¤µà¤² à¤à¤µà¤‚ वैभवशाली है। वह गोलोक नाम से जाना जाà¤à¤—ा। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ धारण किठगठसभी अवतार सबके रकà¥à¤·à¤• और मेरे परम भकà¥à¤¤ होंगे। मैं उनका दरà¥à¤¶à¤¨ करूंगा।

शà¥à¤°à¥€ रामचंदà¥à¤° जी कहते हैं ;- देवी! शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ को अपना अखंड à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ सौंपकर भगवान शिव सà¥à¤µà¤¯à¤‚ कैलाश परà¥à¤µà¤¤ पर रहते हà¥à¤ अपने पारà¥à¤·à¤¦à¥‹à¤‚ के साथ कà¥à¤°à¥€à¤¡à¤¼à¤¾ करते हैं। तभी भगवान लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¤ªà¤¤à¤¿ विषà¥à¤£à¥ गोपवेश धारण करके आठऔर गोप-गोपी तथा गौओं के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ बनकर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• विचरने लगे तथा जगत की रकà¥à¤·à¤¾ करने लगे। वे अनेक पà¥à¤°à¤•ार के अवतार गà¥à¤°à¤¹à¤£ करते हà¥à¤ जगत का पालन करने लगे। वे ही भगवान शिव की आजà¥à¤žà¤¾ से चार भाइयों के रूप में पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤à¥¤ अब इस समय मैं (विषà¥à¤£à¥) ही अवतार रूप में पà¥à¤°à¤•ट होकर चार भाइयों में सबसे बड़ा राम हूं। दूसरे भरत हैं, तीसरे लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ हैं और चौथे भाई शतà¥à¤°à¥à¤˜à¥à¤¨ हैं। मैं अपनी माता के आदेशानà¥à¤¸à¤¾à¤° वनवास भोगने के लिठलकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ और सीता के साथ इस वन में आया था। किसी राकà¥à¤·à¤¸ ने मेरी पतà¥à¤¨à¥€ सीता का अपहरण कर लिया है और मैं यहां-वहां भटकता हà¥à¤† अपनी पतà¥à¤¨à¥€ को ही ढूंॠरहा हूं। सौभागà¥à¤¯à¤µà¤¶ मà¥à¤à¥‡ आपके दरà¥à¤¶à¤¨ हो गà¤à¥¤ अब निशà¥à¤šà¤¯ ही मà¥à¤à¥‡ मेरे कारà¥à¤¯ में सफलता मिलेगी। हे माता! आप मà¥à¤ पर कृपादृषà¥à¤Ÿà¤¿ करें और मà¥à¤à¥‡ यह वरदान दें कि मैं उस पापी राकà¥à¤·à¤¸ को मारकर अपनी पतà¥à¤¨à¥€ सीता को उसके चंगà¥à¤² से मà¥à¤•à¥à¤¤ कर सकूं। मेरा यह महान सौभागà¥à¤¯ है कि मà¥à¤à¥‡ आपके दरà¥à¤¶à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤à¥¤ मैं धनà¥à¤¯ हो गया।

इस पà¥à¤°à¤•ार देवी की अनेक पà¥à¤°à¤•ार से सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करके शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® जी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अनेकों बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया। शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® की बातें सà¥à¤¨à¤•र सती मन ही मन बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆà¤‚ और भकà¥à¤¤à¤µà¤¤à¥à¤¸à¤² भगवान शिव की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ à¤à¤µà¤‚ चिंतन करने लगीं। अपनी भूल पर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लजà¥à¤œà¤¾ आ रही थी। वे उदास मन से शिवजी के पास चल दीं। वे रासà¥à¤¤à¥‡ में सोच रही थीं कि मैंने अपने पति महादेव जी की बात न मानकर बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾ किया और शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® जी के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ भी बà¥à¤°à¥‡ विचार अपने मन में लाई। अब मैं भगवान शिव को कà¥à¤¯à¤¾ उतà¥à¤¤à¤° दूंगी? उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी करनी पर बहà¥à¤¤ पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª हो रहा था। वे शिवजी के समीप गईं और चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª खड़ी हो गईं। सती को इस पà¥à¤°à¤•ार चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª और दà¥à¤ƒà¤–ी देखकर भगवान शंकर ने पूछा- देवी! आपने शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® की परीकà¥à¤·à¤¾ किस पà¥à¤°à¤•ार ली? यह पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ सà¥à¤¨à¤•र देवी सती चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª सिर à¤à¥à¤•ाकर खड़ी हो गईं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शिवजी को कोई उतà¥à¤¤à¤° नहीं दिया। वे असमंजस में थीं कि कà¥à¤¯à¤¾ उतà¥à¤¤à¤° दें। लेकिन महायोगी शिव ने धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से सारा विवरण जान लिया और उनका मन से तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिया। भगवान शिव ने सोचा, अब यदि मैं सती को पहले जैसा ही सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ करूं तो मेरी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ भंग हो जाà¤à¤—ी। वेद धरà¥à¤® के पालक शिवजी ने अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ पूरी करते हà¥à¤ सती का मन से तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिया। फिर सती से कà¥à¤› न कहकर वे कैलाश की ओर बढ़े। मारà¥à¤— में सबको, विशेषकर सती जी को सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठआकाशवाणी

हà¥à¤ˆ कि महायोगी शिव आप धनà¥à¤¯ हैं। आपके समान तीनों लोक में कोई भी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾-पालक नहीं है। इस आकाशवाणी को सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ ही देवी सती शांत हो गईं। उनकी कांति फीकी पड़ गई। तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भगवान शिव से पूछा

हे पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¨à¤¾à¤¥! आपने कौन सी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ की है? कृपया आप मà¥à¤à¥‡ बताइà¤à¥¤ परंतॠभगवान शिव ने विवाह के समय भगवान विषà¥à¤£à¥ के समकà¥à¤· जो पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ की थी, उसे सती को नहीं बताया। तब देवी सती ने भगवान शिव का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करके उन सभी कारणों को जान लिया, जिसके कारण भगवनॠने उनका तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिया था। तà¥à¤¯à¤¾à¤— देने की बात जानकर देवी सती अतà¥à¤¯à¤‚त दà¥à¤–ी हो गईं। दà¥à¤– बढ़ने के कारण उनकी आखों में आंसू आ गठऔर वह सिसकने लगीं। उनके मनोभावों को समà¤à¤•र और देवी सती की à¤à¤¸à¥€ हालत देखकर भगवान शिव ने अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ की बात उनके सामने नहीं कही। तब सती का मन बहलाने के लिठशिवजी उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अनेकानेक कथाà¤à¤‚ सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ कैलाश की ओर चल दिà¤à¥¤ कैलाश पर पहà¥à¤‚चकर, शिवजी अपने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर बैठकर समाधि लगाकर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करने लगे। सती ने दà¥à¤–ी मन से अपने धाम में रहना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया।

भगवान शिव को समाधि में बैठे बहà¥à¤¤ समय बीत गया। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ शिवजी ने अपनी समाधि तोड़ी। जब देवी सती को पता चला तो वे तà¥à¤°à¤‚त शिवजी के पास दौड़ी चली आईं। वहां आकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शिवजी के चरणों में पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया। भगवान शिव ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने समà¥à¤®à¥à¤– आसन दिया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• बहà¥à¤¤ सी कथाà¤à¤‚ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆà¤‚। इससे देवी सती का शोक दूर हो गया परंतॠशिवजी ने अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ नहीं तोड़ी। हे नारद ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ आदि सभी शिव और सती की इन कथाओं को उनकी लीला का ही रूप मानते हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वे तो साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ परमेशà¥à¤µà¤° हैं। à¤à¤•-दूसरे के पूरक हैं। भला उनमें वियोग कैसे संभव हो सकता है। सती और शिव वाणी और अरà¥à¤¥ की भांति à¤à¤•-दूसरे से मिले हà¥à¤ हैं। उनमें वियोग होना असंभव है। उनकी इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं और लीलाओं से ही उनमें वियोग हो सकता है।

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