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Shiv Purana Vidyeshwara Samhita From the eleventh chapter to the fifteenth chapter

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता का गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹à¤µà¥‡à¤‚ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ से पंदà¥à¤°à¤¹à¤µà¥‡à¤‚ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ तक (From the eleventh chapter to the fifteenth chapter of Shiv Purana Vidyeshwara Samhita)

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता

गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹à¤µà¤¾à¤ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिवलिंग की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ और पूजन विधि का वरà¥à¤£à¤¨"

ऋषियों ने पूछा :- सूत जी! शिवलिंग की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ कैसे करनी चाहिठतथा उसकी पूजा कैसे, किस काल में तथा किस दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ करनी चाहिà¤?

सूत जी ने कहा :– महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! मैं तà¥à¤® लोगों के लिठइस विषय का वरà¥à¤£à¤¨ करता हूं, इसे धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से सà¥à¤¨à¥‹ और समà¤à¥‹à¥¤ अनà¥à¤•ूल à¤à¤µà¤‚ शà¥à¤­ समय में किसी पवितà¥à¤° तीरà¥à¤¥ में, नदी के तट पर, à¤à¤¸à¥€ जगह पर शिवलिंग की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करनी चाहिठजहां रोज पूजन कर सके। पारà¥à¤¥à¤¿à¤µ दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ से, जलमय दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ से अथवा तेजस दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ से पूजन करने से उपासक को पूजन का पूरा फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। शà¥à¤­ लकà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ में पूजा करने पर यह तà¥à¤°à¤‚त फल देने वाला है। चल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ के लिठछोटा शिवलिंग शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  माना जाता है। अचल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ हेतॠबड़ा शिवलिंग अचà¥à¤›à¤¾ रहता है। शिवलिंग की पीठ सहित सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करनी चाहिà¤à¥¤ शिवलिंग की पीठ गोल, चौकोर, तà¥à¤°à¤¿à¤•ोण अथवा खाट के पाठकी भांति ऊपर नीचे मोटा और बीच में पतला होना चाहिà¤à¥¤

à¤à¤¸à¤¾ लिंग पीठ महान फल देने वाला होता है। पहले मिटà¥à¤Ÿà¥€ अथवा लोहे से शिवलिंग का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करना चाहिà¤à¥¤ जिस दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ से लिंग का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हो उसी से उसका पीठ बनाना चाहिà¤à¥¤ यही अचल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ वाले शिवलिंग की विशेषता है । चल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ वाले शिवलिंग में लिंग व पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ à¤à¤• ही ततà¥à¤µ से बनानी चाहिà¤à¥¤ लिंग की लंबाई सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ के बारह अंगà¥à¤² के बराबर होनी चाहिà¤à¥¤ इससे कम होने पर फल भी कम पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। परंतॠबारह अंगà¥à¤² से लंबाई अधिक भी हो सकती है । चल लिंग में लंबाई सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करने वाले के à¤à¤• अंगà¥à¤² के बराबर होनी चाहिठउससे कम नहीं। यजमान को चाहिठकि पहले वह शिलà¥à¤ª शासà¥à¤¤à¥à¤° के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° देवालय बनवाठतथा उसमें सभी देवगणों की मूरà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करे | देवालय का गरà¥à¤­à¤—ृह सà¥à¤‚दर, सà¥à¤¦à¥ƒà¤¢à¤¼ और सà¥à¤µà¤šà¥à¤› होना चाहिà¤à¥¤ उसमें पूरà¥à¤µ और पशà¥à¤šà¤¿à¤® में दो मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° हों। जहां शिवलिंग की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करनी हो उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के गरà¥à¤¤ में नीलम, लाल वैदूरà¥à¤¯, शà¥à¤¯à¤¾à¤®, मरकत, मोती, मूंगा, गोमेद और हीरा इन नौ रतà¥à¤¨à¥‹à¤‚ को वैदिक मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ छोड़े। पांच वैदिक मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पांच सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ से पूजन करके अगà¥à¤¨à¤¿ में आहà¥à¤¤à¤¿ दें और परिवार सहित मेरी पूजा करके आचारà¥à¤¯ को धन से तथा भाई-बंधà¥à¤“ं को मनचाही वसà¥à¤¤à¥ से संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ करें। याचकों को सà¥à¤µà¤°à¥à¤£, गृह à¤à¤µà¤‚ भू संपतà¥à¤¤à¤¿ तथा गाय आदि पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें।

सà¥à¤¥à¤¾à¤µà¤° जंगम सभी जीवों को यतà¥à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ कर à¤à¤• गडà¥à¤¢à¥‡ में सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ तथा नौ पà¥à¤°à¤•ार के रतà¥à¤¨ भरकर वैदिक मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करके परम कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी महादेव जी का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करें। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ नाद घोष से यà¥à¤•à¥à¤¤ महामंतà¥à¤° ओंकार (à¥) का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करके गडà¥à¤¢à¥‡ में पीठयà¥à¤•à¥à¤¤ शिवलिंग की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करें। वहां परम सà¥à¤‚दर मूरà¥à¤¤à¤¿ की भी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करनी चाहिठतथा भूमि संसà¥à¤•ार की विधि जिस पà¥à¤°à¤•ार शिवलिंग के लिठकी गई है, उसी पà¥à¤°à¤•ार मूरà¥à¤¤à¤¿ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ भी करनी चाहिà¤à¥¤ मूरà¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° से करनी चाहिà¤à¥¤ मूरà¥à¤¤à¤¿ को बाहर से भी लिया जा सकता है, परंतॠवह साधॠपà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पूजित हो। इस पà¥à¤°à¤•ार शिवलिंग व मूरà¥à¤¤à¤¿ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की गई महादेव जी की पूजा शिवपद पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली है। सà¥à¤¥à¤¾à¤µà¤° और जंगम से लिंग भी दो तरह का हो गया है। वृकà¥à¤· लता आदि को 'सà¥à¤¥à¤¾à¤µà¤° लिंग' कहते हैं और कृमि कीट आदि को 'जंगम लिंग' । सà¥à¤¥à¤¾à¤µà¤° लिंग को सींचना चाहिठतथा जंगम लिंग को आहार à¤à¤µà¤‚ जल देकर तृपà¥à¤¤ करना चाहिठ। यों चराचर जीवों को भगवान शंकर का पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• मानकर उनका पूजन करना चाहिठ।

इस तरह महालिंग की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करके विविध उपचारों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उसका रोज पूजन करें तथा देवालय के पास धà¥à¤µà¤œà¤¾à¤°à¥‹à¤¹à¤£ करें। शिवलिंग साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ शिव का पद पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। आवाहन, आसन, अरà¥à¤˜à¥à¤¯, पादà¥à¤¯, पादà¥à¤¯à¤¾à¤‚ग, आचमन, सà¥à¤¨à¤¾à¤¨, वसà¥à¤¤à¥à¤°, यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤, गंध, पà¥à¤·à¥à¤ª, धूप, दीप, नैवेदà¥à¤¯, तांबूल, समरà¥à¤ªà¤£, नीराजन, नमसà¥à¤•ार और विसरà¥à¤œà¤¨ ये सोलह उपचार हैं। इनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पूजन करें। इस तरह किया गया भगवान शिव का पूजन शिवपद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ कराने वाला है। सभी शिवलिंगों की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ के उपरांत, चाहे वे मनà¥à¤·à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤, ऋषियों या देवताओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अथवा अपने आप पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ हों, सभी का उपरà¥à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ विधि से पूजन करना चाहिà¤, तभी फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। उसकी परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ और नमसà¥à¤•ार करने से शिवपद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। शिवलिंग का नियमपूरà¥à¤µà¤• दरà¥à¤¶à¤¨ भी कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी होता है। मिटà¥à¤Ÿà¥€, आटा, गाय के गोबर, फूल, कनेर पà¥à¤·à¥à¤ª, फल, गà¥à¤¡à¤¼, मकà¥à¤–न, भसà¥à¤® अथवा अनà¥à¤¨ से शिवलिंग बनाकर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पूजन करें तथा पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ दस हजार पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का जाप करें अथवा दोनों संधà¥à¤¯à¤¾à¤“ं के समय à¤à¤• सहसà¥à¤° पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का जाप करें। इससे भी शिव पद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है।

जपकाल में पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ मन की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ करता है। नाद और बिंदॠसे यà¥à¤•à¥à¤¤ ओंकार को कà¥à¤› विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ 'समान पà¥à¤°à¤£à¤µ' कहते हैं। पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ दस हजार पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° का जाप अथवा दोनों संधà¥à¤¯à¤¾à¤“ं को à¤à¤• सहसà¥à¤° मंतà¥à¤° का जाप शिव पद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ कराने वाला है। सभी बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ के लिठपà¥à¤°à¤£à¤µ से यà¥à¤•à¥à¤¤ पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° अति फलदायक है। कलश से किया सà¥à¤¨à¤¾à¤¨, मंतà¥à¤° की दीकà¥à¤·à¤¾, मातृकाओं का नà¥à¤¯à¤¾à¤¸, सतà¥à¤¯ से पवितà¥à¤° अंतःकरण, बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ तथा जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ गà¥à¤°à¥, सभी को उतà¥à¤¤à¤® माना गया है। पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° का पांच करोड़ जाप करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ भगवान शिव के समान हो जाता है। à¤à¤•, दो, तीन, अथवा चार करोड़ जाप करके मनà¥à¤·à¥à¤¯ कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥, रà¥à¤¦à¥à¤° तथा महेशà¥à¤µà¤° का पद पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेता है। यदि à¤à¤• हजार दिनों तक पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ à¤à¤• सहसà¥à¤° जाप पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का किया जाठऔर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को भोजन कराया जाठतो इससे अभीषà¥à¤Ÿ कारà¥à¤¯ की सिदà¥à¤§à¤¿ होती है।

बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•ाल à¤à¤• हजार आठ बार गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° का जाप करना चाहिठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° शिव पद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ कराता है। वेदमंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ और वैदिक सूकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का भी नियम से जाप करें। अनà¥à¤¯ मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में जितने अकà¥à¤·à¤° हैं उनके उतने लाख जाप करें। इस पà¥à¤°à¤•ार यथाशकà¥à¤¤à¤¿ जाप करने वाला मनà¥à¤·à¥à¤¯ मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। अपनी पसंद से कोई à¤à¤• मंतà¥à¤° अपनाकर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ उसका जाप करें अथवा ॠका नितà¥à¤¯ à¤à¤• सहसà¥à¤° जाप करें। à¤à¤¸à¤¾ करने से संपूरà¥à¤£ मनोरथों की सिदà¥à¤§à¤¿ होती है जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ भगवान शिव के लिठफà¥à¤²à¤µà¤¾à¤¡à¤¼à¥€ या बगीचे लगाता है तथा शिव मंदिर में à¤à¤¾à¤¡à¤¼à¤¨à¥‡-बà¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¨à¥‡ का सेवा कारà¥à¤¯ करता है à¤à¤¸à¥‡ शिवभकà¥à¤¤ को पà¥à¤£à¥à¤¯à¤•रà¥à¤® की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है, अंत समय में भगवान शिव उसे मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं। काशी में निवास करने से भी योग और मोकà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। इसलिठआमरण भगवान शिव के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में निवास करना चाहिठ। उस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ बावड़ी, तालाब, कà¥à¤‚आ और पोखर को शिवलिंग समà¤à¤•र वहां सà¥à¤¨à¤¾à¤¨, दान और जाप करके मनà¥à¤·à¥à¤¯ भगवान शिव को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेता है। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ शिव के कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में अपने किसी मृत संबंधी का दाह, दशाह, मासिक शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ अथवा वारà¥à¤·à¤¿à¤• शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§ करता है अथवा अपने पितरों को पिणà¥à¤¡ देता है, वह ततà¥à¤•ाल सभी पापों से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है और अंत में शिवपद पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। लोक में अपने वरà¥à¤£ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° आचरण करने व सदाचार का पालन करने से शिव पद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। निषà¥à¤•ाम भाव से किया गया कारà¥à¤¯ अभीषà¥à¤Ÿ फल देने वाला à¤à¤µà¤‚ शिवपद पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला होता है ।

दिन के पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ, मधà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥à¤¨ और सायं तीन विभाग होते हैं। इनमें सभी को à¤à¤•-à¤à¤• पà¥à¤°à¤•ार के करà¥à¤® का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•ाल रोजाना दैनिक शासà¥à¤¤à¥à¤° करà¥à¤®, मधà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥à¤¨ सकाम करà¥à¤® तथा सायंकाल शांति करà¥à¤® के लिठपूजन करना चाहिà¤à¥¤ इसी पà¥à¤°à¤•ार रातà¥à¤°à¤¿ में चार पà¥à¤°à¤¹à¤° होते हैं, उनमें से बीच के दो पà¥à¤°à¤¹à¤° निशीथकाल कहलाते हैं – इसी काल में पूजा करनी चाहिà¤, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह पूजा अभीषà¥à¤Ÿ फल देने वाली है। कलियà¥à¤— में करà¥à¤® दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही फल की सिदà¥à¤§à¤¿ होगी। इस पà¥à¤°à¤•ार विधिपूरà¥à¤µà¤• और समयानà¥à¤¸à¤¾à¤° भगवान शिव का पूजन करने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ को अपने करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का पूरा फल मिलता है।

ऋषियों ने कहा :- सूत जी ! à¤à¤¸à¥‡ पà¥à¤£à¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° कौन-कौन से हैं? जिनका आशà¥à¤°à¤¯ लेकर सभी सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पà¥à¤°à¥à¤· शिवपद को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लें? कृपया कर हमें बताइà¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता

बारहवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"मोकà¥à¤·à¤¦à¤¾à¤¯à¤• पà¥à¤£à¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨"

सूत जी बोले :– हे विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ और बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! मैं मोकà¥à¤· देने वाले शिवकà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ कर रहा हूं। परà¥à¤µà¤¤, वन और काननों सहित इस पृथà¥à¤µà¥€ का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° पचास करोड़ योजन है। भगवान शिव की इचà¥à¤›à¤¾ से पृथà¥à¤µà¥€ ने सभी को धारण किया है। भगवान शिव ने भूतल पर विभिनà¥à¤¨ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर वहां के पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को मोकà¥à¤· देने के लिठशिव कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया है। कà¥à¤› कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को देवताओं और ऋषियों ने अपना निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ बनाया है। इसलिठउसमें तीरà¥à¤¥à¤¤à¥à¤µ पà¥à¤°à¤•ट हो गया है। बहà¥à¤¤ से तीरà¥à¤¥ à¤à¤¸à¥‡ हैं, जो सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ हैं। तीरà¥à¤¥ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में जाने पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ को सदा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨, दान और जाप करना चाहिठअनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ रोग, गरीबी तथा मूकता आदि दोषों का भागी हो जाता है। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपने देश में मृतà¥à¤¯à¥ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है, वह इस पà¥à¤£à¥à¤¯ के फल से दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनि पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। परंतॠपापी मनà¥à¤·à¥à¤¯ दà¥à¤°à¥à¤—ति को ही पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। हे बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹! पà¥à¤£à¥à¤¯à¤•à¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में किया गया पाप करà¥à¤®, अधिक दृढ़ हो जाता है। अतः पà¥à¤£à¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में निवास करते समय पाप करà¥à¤® करने से बचना चाहिठ।

सिंधॠऔर सतलà¥à¤œ नदी के तट पर बहà¥à¤¤ से पà¥à¤£à¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° हैं। सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ नदी परम पवितà¥à¤° और साठ मà¥à¤–वाली है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ उसकी साठ धाराà¤à¤‚ हैं। इन धाराओं के तट पर निवास करने से परम पद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। हिमालय से निकली हà¥à¤ˆ पà¥à¤£à¥à¤¯ सलिला गंगा सौ मà¥à¤– वाली नदी है । इसके तट पर काशी, पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— आदि पà¥à¤£à¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° हैं। मकर राशि में सूरà¥à¤¯ होने पर गंगा की तटभूमि अधिक पà¥à¤°à¤¶à¤¸à¥à¤¤ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¦à¤¾à¤¯à¤• हो जाती है। सोनभदà¥à¤° नदी की दस धाराà¤à¤‚ हैं। बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ के मकर राशि में आने पर यह अतà¥à¤¯à¤‚त पवितà¥à¤° तथा अभीषà¥à¤Ÿ फल देने वाली है। इस समय यहां सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ और उपवास करने से विनायक पद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। पà¥à¤£à¥à¤¯ सलिला महानदी नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ के चौबीस मà¥à¤– हैं। इसमें सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करके तट पर निवास करने से मनà¥à¤·à¥à¤¯ को वैषà¥à¤£à¤µ पद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। तमसा के बारह तथा रेवा के दस मà¥à¤– हैं। परम पà¥à¤£à¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ गोदावरी के इकà¥à¤•ीस मà¥à¤– हैं। यह बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¹à¤¤à¥à¤¯à¤¾ तथा गोवध पाप का नाश करने वाली à¤à¤µà¤‚ रà¥à¤¦à¥à¤°à¤²à¥‹à¤• देने वाली है। कृषà¥à¤£à¤µà¥‡à¤£à¥€ नदी समसà¥à¤¤ पापों का नाश करने वाली है। इसके अठारह मà¥à¤– हैं तथा यह विषà¥à¤£à¥à¤²à¥‹à¤• पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली है। तà¥à¤‚गभदà¥à¤°à¤¾ दस मà¥à¤–ी है à¤à¤µà¤‚ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• देने वाली है। सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मà¥à¤–री के नौ मà¥à¤– हैं। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• से लौटे जीव इसी नदी के तट पर जनà¥à¤® लेते हैं। सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ नदी, पंपा सरोवर, कनà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ अंतरीप तथा शà¥à¤­à¤•ारक शà¥à¤µà¥‡à¤¤ नदी सभी पà¥à¤£à¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° हैं। इनके तट पर निवास करने से इंदà¥à¤°à¤²à¥‹à¤• की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। महानदी कावेरी परम पà¥à¤£à¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ है। इसके सतà¥à¤¤à¤¾à¤ˆà¤¸ मà¥à¤– है । यह संपूरà¥à¤£ अभीषà¥à¤Ÿ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं को देने वाली है। इसके तट बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ का पद देने वाले हैं। कावेरी के जो तट शैव कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के अंतरà¥à¤—त हैं, वे अभीषà¥à¤Ÿ फल तथा शिवलोक पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले हैं।

नैमिषारणà¥à¤¯ तथा बदरिकाशà¥à¤°à¤® में सूरà¥à¤¯ और बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ के मेष राशि में आने पर सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ और पूजन करने से बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। सिंह और करà¥à¤• राशि में सूरà¥à¤¯ की संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति होने पर सिंधॠनदी में किया सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ तथा केदार तीरà¥à¤¥ के जल का पान à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¦à¤¾à¤¯à¤• माना जाता है। बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ के सिंह राशि में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होने पर भादà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¸ में गोदावरी के जल में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने से शिवलोक की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है, à¤à¤¸à¤¾ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ भगवान शिव ने कहा था। सूरà¥à¤¯ और बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ के कनà¥à¤¯à¤¾ राशि में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होने पर यमà¥à¤¨à¤¾ और सोनभदà¥à¤° में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ से धरà¥à¤®à¤°à¤¾à¤œ और गणेश लोक में महान भोग की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है, à¤à¤¸à¥€ महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है। सूरà¥à¤¯ और बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ के तà¥à¤²à¤¾ राशि में होने पर कावेरी नदी में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने से भगवान विषà¥à¤£à¥ के वचन की महिमा से अभीषà¥à¤Ÿ फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। मारà¥à¤—शीरà¥à¤· माह में, सूरà¥à¤¯ और बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ के वृशà¥à¤šà¤¿à¤• राशि में आने पर, नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने से विषà¥à¤£à¥ पद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। सूरà¥à¤¯ और बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ के धनॠराशि में होने पर सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ मà¥à¤–री नदी में किया सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ शिवलोक पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। मकर राशि में सूरà¥à¤¯ और बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ के माघ मास में होने पर गंगाजी में किया गया सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ शिवलोक पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कराने वाला है। शिवलोक के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और विषà¥à¤£à¥ के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में सà¥à¤– भोगकर अंत में मनà¥à¤·à¥à¤¯ को जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। माघ मास में सूरà¥à¤¯ के कà¥à¤‚भ राशि में होने पर फालà¥à¤—à¥à¤¨ मास में गंगा तट पर किया शà¥à¤°à¤¾à¤¦à¥à¤§, पिणà¥à¤¡à¤¦à¤¾à¤¨ अथवा तिलोदक दान पिता और नाना, दोनों कà¥à¤²à¥‹à¤‚ के पितरों की अनेकों पीढ़ियों का उदà¥à¤§à¤¾à¤° करने वाला है। गंगा व कावेरी नदी का आशà¥à¤°à¤¯ लेकर तीरà¥à¤¥à¤µà¤¾à¤¸ करने से पाप का नाश हो जाता है।

तामà¥à¤°à¤ªà¤°à¥à¤£à¥€ और वेगवती नदियां बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ रूप फल देने वाली हैं। इनके तट पर सà¥à¤µà¤°à¥à¤—दायक कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° हैं। इन नदियों के मधà¥à¤¯ में बहà¥à¤¤ से पà¥à¤£à¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° हैं। यहां निवास करने वाला मनà¥à¤·à¥à¤¯ अभीषà¥à¤Ÿ फल का भागी होता है। सदाचार, उतà¥à¤¤à¤® वृतà¥à¤¤à¤¿ तथा सदà¥à¤­à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ के साथ मन में दयाभाव रखते हà¥à¤ विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¥à¤· को तीरà¥à¤¥ में निवास करना चाहिठअनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ उसे फल नहीं मिलता। पà¥à¤£à¥à¤¯ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में जीवन बिताने का निशà¥à¤šà¤¯ करने पर तथा वास करने पर पहले का सारा पाप ततà¥à¤•ाल नषà¥à¤Ÿ हो जाà¤à¤—ा। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पà¥à¤£à¥à¤¯ को à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯à¤¦à¤¾à¤¯à¤• कहा जाता है। हे बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹! तीरà¥à¤¥ में वास करने पर उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤£à¥à¤¯ कायिक, वाचिक और मानसिक – सभी पापों का नाश कर देता है। तीरà¥à¤¥ में किया मानसिक पाप कई कलà¥à¤ªà¥‹à¤‚ तक पीछा नहीं छोड़ता, यह केवल धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से ही नषà¥à¤Ÿ होता है। 'वाचिक' पाप जाप से तथा 'कायिक' पाप शरीर को सà¥à¤–ाने जैसे कठोर तप से नषà¥à¤Ÿ होता है। अतः सà¥à¤– चाहने वाले पà¥à¤°à¥à¤· को देवताओं की पूजा करते हà¥à¤ और बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को दान देते हà¥à¤, पाप से बचकर ही तीरà¥à¤¥ में निवास करना चाहिà¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता

तेरहवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"सदाचार, संधà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤‚दन, पà¥à¤°à¤£à¤µ, गायतà¥à¤°à¥€ जाप à¤à¤µà¤‚ अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° की विधि तथा महिमा"

ऋषियों ने कहा :- सूत जी! आप हमें वह सदाचार सà¥à¤¨à¤¾à¤‡à¤ जिससे विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¥à¤· पà¥à¤£à¥à¤¯ लोकों पर विजय पाता है। सà¥à¤µà¤°à¥à¤— पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले धरà¥à¤®à¤®à¤¯ तथा नरक का कषà¥à¤Ÿ देने वाले अधरà¥à¤®à¤®à¤¯ आचारों का वरà¥à¤£à¤¨ कीजिठ।

सूत जी बोले :- सदाचार का पालन करने वाला मनà¥à¤·à¥à¤¯ ही 'बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£' कहलाने का अधिकारी है । वेदों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° आचार का पालन करने वाले à¤à¤µà¤‚ वेद के अभà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को 'विपà¥à¤°' कहते हैं । सदाचार, वेदाचार तथा विदà¥à¤¯à¤¾ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ होने पर उसे 'दà¥à¤µà¤¿à¤œ' कहते हैं। वेदों का कम आचार तथा कम अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करने वाले à¤à¤µà¤‚ राजा के पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ अथवा सेवक बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को 'कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£' कहते हैं। जो बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ कृषि या वाणिजà¥à¤¯ करà¥à¤® करने वाला है तथा बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤šà¤¿à¤¤ आचार का भी पालन करता है वह 'वैशà¥à¤¯ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£' है तथा सà¥à¤µà¤¯à¤‚ खेत जोतने वाला 'शूदà¥à¤°-बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£' कहलाता है। जो दूसरों के दोष देखने वाला तथा परदà¥à¤°à¥‹à¤¹à¥€ है उसे 'चाणà¥à¤¡à¤¾à¤²-दà¥à¤µà¤¿à¤œ' कहते हैं। कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में जो पृथà¥à¤µà¥€ का पालन करता है, वह राजा है तथा अनà¥à¤¯ मनà¥à¤·à¥à¤¯ राजतà¥à¤µà¤¹à¥€à¤¨ कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ माने जाते हैं। जो धानà¥à¤¯ आदि वसà¥à¤¤à¥à¤“ं का कà¥à¤°à¤¯-विकà¥à¤°à¤¯ करता है, वह 'वैशà¥à¤¯' कहलाता है। दूसरों को 'वणिक' कहते हैं। जो बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚, कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और वैशà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की सेवा में लगा रहता है 'शूदà¥à¤°' कहलाता है। जो शूदà¥à¤° हल जोतता है, उसे 'वृषल' समà¤à¤¨à¤¾ चाहिà¤à¥¤ इन सभी वरà¥à¤—ों के मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को चाहिठकि वे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤®à¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ में उठकर पूरà¥à¤µ की ओर मà¥à¤– करके देवताओं का, धरà¥à¤® का, अरà¥à¤¥ का, उसकी पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठउठाठजाने वाले कà¥à¤²à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ का तथा आय और वà¥à¤¯à¤¯ का चिंतन करें।

रात के अंतिम पà¥à¤°à¤¹à¤° के मधà¥à¤¯ भाग में मनà¥à¤·à¥à¤¯ को उठकर मल-मूतà¥à¤° तà¥à¤¯à¤¾à¤— करना चाहिà¤à¥¤ घर से बाहर शरीर को ढककर जाकर उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤­à¤¿à¤®à¥à¤– होकर मल-मूतà¥à¤° का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करें। जल, अगà¥à¤¨à¤¿, बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ तथा देवताओं का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ बचाकर बैठें। उठने पर उस ओर न देखें। हाथ-पैरों की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ करके आठ बार कà¥à¤²à¥à¤²à¤¾ करें। किसी वृकà¥à¤· के पतà¥à¤¤à¥‡ से दातà¥à¤¨ करें। दातà¥à¤¨ करते समय तरà¥à¤œà¤¨à¥€ अंगà¥à¤²à¥€ का उपयोग नहीं करें। तदंतर जल-संबंधी देवताओं को नमसà¥à¤•ार कर मंतà¥à¤°à¤ªà¤¾à¤  करते हà¥à¤ जलाशय में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करें। यदि कंठ तक या कमर तक पानी में खड़े होने की शकà¥à¤¤à¤¿ न हो तो घà¥à¤Ÿà¤¨à¥‡ तक जल में खड़े होकर ऊपर जल छिड़ककर मंतà¥à¤°à¥‹à¤šà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करते हà¥à¤ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कर तरà¥à¤ªà¤£ करें। इसके उपरांत वसà¥à¤¤à¥à¤° धारण कर उतà¥à¤¤à¤°à¥€à¤¯ भी धारण करें। नदी अथवा तीरà¥à¤¥ में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने पर उतारे हà¥à¤ वसà¥à¤¤à¥à¤° वहां न धोà¤à¤‚। उसे किसी कà¥à¤‚à¤, बावड़ी अथवा घर ले जाकर धोà¤à¤‚। कपड़ों को निचोड़ने से जो जल गिरता है, वह à¤à¤• शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ के पितरों की तृपà¥à¤¤à¤¿ के लिठहोता है। इसके बाद जाबालि उपनिषद में बताठगठमंतà¥à¤° से भसà¥à¤® लेकर लगाà¤à¤‚। इस विधि का पालन करने से पूरà¥à¤µ यदि भसà¥à¤® गिर जाठतो गिराने वाला मनà¥à¤·à¥à¤¯ नरक में जाता है। 'आपो हिषà¥à¤ à¤¾â€™ मंतà¥à¤° से पाप शांति के लिठसिर पर जल छिड़ककर 'यसà¥à¤¯ कà¥à¤·à¤¯à¤¾à¤¯' मंतà¥à¤° पढ़कर पैर पर जल छिड़कें। 'आपो हिषà¥à¤ à¤¾' में तीन ऋचाà¤à¤‚ हैं।

पहली ऋचा का पाठ कर पैर, मसà¥à¤¤à¤• और हृदय में जल छिड़कें। दूसरी ऋचा का पाठ कर मसà¥à¤¤à¤•, हृदय और पैर पर जल छिड़कें तथा तीसरी ऋचा का पाठ करके हृदय, मसà¥à¤¤à¤• और पैर पर जल छिड़कें। इस पà¥à¤°à¤•ार के सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ को 'मंतà¥à¤° सà¥à¤¨à¤¾à¤¨' कहते हैं। किसी अपवितà¥à¤° वसà¥à¤¤à¥ से सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ हो जाने पर, सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ ठीक न रहने पर, यातà¥à¤°à¤¾ में या जल उपलबà¥à¤§ न होने की दशा में, मंतà¥à¤° सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करना चाहिà¤à¥¤

पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•ाल की संधà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ में 'गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° का जाप करके तीन बार सूरà¥à¤¯ को अरà¥à¤˜à¥à¤¯ दें। मधà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¹ में गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ कर सूरà¥à¤¯ को à¤à¤• अरà¥à¤˜à¥à¤¯ देना चाहिà¤à¥¤ सायंकाल में पशà¥à¤šà¤¿à¤® की ओर मà¥à¤– करके पृथà¥à¤µà¥€ पर ही सूरà¥à¤¯ को अरà¥à¤˜à¥à¤¯ दें। सायंकाल में सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ से दो घड़ी पहले की गई संधà¥à¤¯à¤¾ का कोई महतà¥à¤µ नहीं होता। ठीक समय पर ही संधà¥à¤¯à¤¾ करनी चाहिà¤à¥¤ यदि संधà¥à¤¯à¥‹à¤ªà¤¾à¤¸à¤¨à¤¾ किठबिना à¤à¤• दिन बीत जाठतो उसके पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ हेतॠअगली संधà¥à¤¯à¤¾ के समय सौ गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° का जाप करें। दस दिन छूटने पर à¤à¤• लाख तथा à¤à¤• माह छूटने पर अपना 'उपनयन संसà¥à¤•ार' कराà¤à¤‚ ।

अरà¥à¤¥à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¿ के लिठईश, गौरी, कारà¥à¤¤à¤¿à¤•ेय, विषà¥à¤£à¥, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ और यम व अनà¥à¤¯ देवताओं का शà¥à¤¦à¥à¤§ जल से तरà¥à¤ªà¤£ करें। तीरà¥à¤¥ के दकà¥à¤·à¤¿à¤£ में, मंतà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¯ में, देवालय में अथवा घर में आसन पर बैठकर अपनी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ को सà¥à¤¥à¤¿à¤° कर देवताओं को नमसà¥à¤•ार कर पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° का जाप करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° का जाप करें। पà¥à¤°à¤£à¤µ के 'अ', 'उ' और 'म' तीनों अकà¥à¤·à¤°à¥‹à¤‚ में जीव और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ की à¤à¤•ता का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ होता है। अतः पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° का जाप करते समय मन में यह भावना होनी चाहिठकि हम तीनों लोकों की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ करने वाले बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, पालन करने वाले विषà¥à¤£à¥ तथा संहार करने वाले रà¥à¤¦à¥à¤° की उपासना कर रहे हैं। यह बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प ओंकार हमारी करà¥à¤®à¥‡à¤‚दà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥‡à¤‚दà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚, मन की वृतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ तथा बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सदा भोग और मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाले धरà¥à¤® à¤à¤µà¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की ओर पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ करें । जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° के अरà¥à¤¥ का चिंतन करते हà¥à¤ इसका जाप करते हैं, वे निशà¥à¤šà¤¯ ही बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करते हैं तथा जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ बिना अरà¥à¤¥ जाने पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° का जाप करते हैं, उनको 'बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¤¤à¥à¤µ' की पूरà¥à¤¤à¤¿ होती है। इस हेतॠशà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ काल à¤à¤• सहसà¥à¤° गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° का जाप करना चाहिठ। मधà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥à¤¨ में सौ बार तथा सायं अटà¥à¤ à¤¾à¤ˆà¤¸ बार जाप करें। अनà¥à¤¯ वरà¥à¤£à¥‹à¤‚ के मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° जाप करना चाहिठ।

हमारे शरीर के भीतर मूलाधार, सà¥à¤µà¤¾à¤§à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾à¤¨, मणिपूर, अनाहत, आजà¥à¤žà¤¾ और सहसà¥à¤°à¤¾à¤° नामक छः चकà¥à¤° हैं। इन चकà¥à¤°à¥‹à¤‚ में कà¥à¤°à¤®à¤¶à¤ƒ विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥, ईश, जीवातà¥à¤®à¤¾ और परमेशà¥à¤µà¤° सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं। सदà¥à¤­à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• शà¥à¤µà¤¾à¤¸ के साथ 'सोऽहं' का जाप करें। सहसà¥à¤° बार किया गया जाप बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है । सौ बार किठजाप से इंदà¥à¤° पद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। आतà¥à¤®à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ के लिठजो मनà¥à¤·à¥à¤¯ अलà¥à¤ª मातà¥à¤°à¤¾ में इसका जाप करता है, वह बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ कà¥à¤² में जनà¥à¤® लेता है। बारह लाख गायतà¥à¤°à¥€ का जाप करने वाला मनà¥à¤·à¥à¤¯ 'बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£' कहा जाता है। जिस बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ ने à¤à¤• लाख गायतà¥à¤°à¥€ का भी जप न किया हो उसे वैदिक कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में न लगाà¤à¤‚। यदि à¤à¤• दिन उलà¥à¤²à¤‚घन हो जाठतो अगले दिन उसके बदले में उतने अधिक मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का जाप करना चाहिà¤à¥¤ à¤à¤¸à¤¾ करने से दोषों की शांति होती है। धरà¥à¤® से अरà¥à¤¥ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है, अरà¥à¤¥ से भोग सà¥à¤²à¤­ होता है। भोग से वैरागà¥à¤¯ की संभावना होती है। धरà¥à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• उपारà¥à¤œà¤¿à¤¤ धन से भोग पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है, उससे भोगों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आसकà¥à¤¤à¤¿ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होती है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ धरà¥à¤® से धन पाता है à¤à¤µà¤‚ तपसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं से दिवà¥à¤¯ रूप पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। कामनाओं का तà¥à¤¯à¤¾à¤— करने से अंतःकरण की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होती है, उस शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ का उदय होता है।

सतयà¥à¤— में 'तप' को तथा कलियà¥à¤— में 'दान' को धरà¥à¤® का अचà¥à¤›à¤¾ साधन माना गया है। सतयà¥à¤— में 'धà¥à¤¯à¤¾à¤¨' से, तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾ में 'तपसà¥à¤¯à¤¾' से और दà¥à¤µà¤¾à¤ªà¤° में 'यजà¥à¤ž' करने से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की सिदà¥à¤§à¤¿ होती है। परंतॠकलियà¥à¤— में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ की पूजा से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ लाभ होता है। अधरà¥à¤®, हिंसातà¥à¤®à¤• और दà¥à¤– देने वाला है। धरà¥à¤® से सà¥à¤– व अभà¥à¤¯à¥à¤¦à¤¯ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤° से दà¥à¤– तथा सदाचार से सà¥à¤– मिलता है। अतः भोग और मोकà¥à¤· की सिदà¥à¤§à¤¿ के लिठधरà¥à¤® का उपारà¥à¤œà¤¨ करना चाहिà¤à¥¤ किसी बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को सौ वरà¥à¤· के जीवन निरà¥à¤µà¤¾à¤¹ की सामगà¥à¤°à¥€ देने पर ही बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। à¤à¤• सहसà¥à¤° चांदà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤£ वà¥à¤°à¤¤ का अनà¥à¤·à¥à¤ à¤¾à¤¨ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• दायक माना जाता है। दान देने वाला पà¥à¤°à¥à¤· जिस देवता को सामने रखकर दान करता है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ जिस देवता को वह दान दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ करना चाहता है, उसी देवता का लोक उसे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। धनहीन पà¥à¤°à¥à¤· तपसà¥à¤¯à¤¾ कर अकà¥à¤·à¤¯ सà¥à¤– को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर सकते हैं।

बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को दान गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर तथा यजà¥à¤ž करके धन का अरà¥à¤œà¤¨ करना चाहिà¤à¥¤ कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ बाहà¥à¤¬à¤² से तथा वैशà¥à¤¯ कृषि à¤à¤µà¤‚ गोरकà¥à¤·à¤¾ से धन का उपारà¥à¤œà¤¨ करें। इस पà¥à¤°à¤•ार नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ से उपारà¥à¤œà¤¿à¤¤ धन को दान करने से दाता को जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की सिदà¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है à¤à¤µà¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से ही मोकà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ सà¥à¤²à¤­ होती है।

गृहसà¥à¤¥ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को धन-धानà¥à¤¯ आदि सभी वसà¥à¤¤à¥à¤“ं का दान करना चाहिà¤à¥¤ जिसके अनà¥à¤¨ को खाकर मनà¥à¤·à¥à¤¯ कथा शà¥à¤°à¤µà¤£ तथा सदà¥à¤•रà¥à¤® का पालन करता है तो उसका आधा फल दाता को मिलता है। दान लेने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ को दान में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ वसà¥à¤¤à¥ का दान तथा तपसà¥à¤¯à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पाप की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ करनी चाहिà¤à¥¤ उसे अपने धन के तीन भाग करने चाहिठ- à¤à¤• धरà¥à¤® के लिà¤, दूसरा वृदà¥à¤§à¤¿ के लिठà¤à¤µà¤‚ तीसरा उपभोग के लिठधरà¥à¤® के लिठरखे धन से नितà¥à¤¯, नैमितà¥à¤¤à¤¿à¤• और इचà¥à¤›à¤¿à¤¤ कारà¥à¤¯ करें। वृदà¥à¤§à¤¿ के लिठरखे धन से à¤à¤¸à¤¾ वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° करें, जिससे धन की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हो तथा उपभोग के धन से पवितà¥à¤° भोग भोगें। खेती से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ धन का दसवां भाग दान कर दें। इससे पाप की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होती है। वृदà¥à¤§à¤¿ के लिठकिठगठवà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ धन का छठा भाग दान देना चाहिà¤à¥¤

विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ को चाहिठकि वह दूसरों के दोषों का बखान न करे। बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ भी दोषवश दूसरों के सà¥à¤¨à¥‡ या देखे हà¥à¤ छिदà¥à¤° को कभी पà¥à¤°à¤•ट न करे। विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¥à¤· à¤à¤¸à¥€ बात न कहे, जो समसà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के हृदय में रोष पैदा करने वाली हो । दोनों संधà¥à¤¯à¤¾à¤“ं के समय अगà¥à¤¨à¤¿ को विधिपूरà¥à¤µà¤• दी हà¥à¤ˆ आहà¥à¤¤à¤¿ से संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ करे। चावल, धानà¥à¤¯, घी, फल, कंद तथा हविषà¥à¤¯ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤²à¥€à¤ªà¤¾à¤• बनाठतथा यथोचित रीति से सूरà¥à¤¯ और अगà¥à¤¨à¤¿ को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करे। यदि दोनों समय अगà¥à¤¨à¤¿à¤¹à¥‹à¤¤à¥à¤° करने में असमरà¥à¤¥ हो तो संधà¥à¤¯à¤¾ के समय जाप और सूरà¥à¤¯ की वंदना कर ले। आतà¥à¤®à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ की इचà¥à¤›à¤¾ रखने वाले तथा धनी पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को इसी पà¥à¤°à¤•ार उपासना करनी चाहिà¤à¥¤ जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ सदा बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¯à¤œà¥à¤ž करते हैं, देवताओं की पूजा, अगà¥à¤¨à¤¿à¤ªà¥‚जा और गà¥à¤°à¥à¤ªà¥‚जा पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ करते हैं तथा बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को भोजन तथा दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ देते हैं, वे सà¥à¤µà¤°à¥à¤—लोक के भागी होते हैं।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता

चौदहवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"अगà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤œà¥à¤ž, देवयजà¥à¤ž और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¯à¤œà¥à¤ž का वरà¥à¤£à¤¨"

ऋषियों ने कहा :- पà¥à¤°à¤­à¥‹! अगà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤œà¥à¤ž, देवयजà¥à¤ž और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¯à¤œà¥à¤ž का वरà¥à¤£à¤¨ करके हमें कृतारà¥à¤¥ करें।

सूत जी बोले :- महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! गृहसà¥à¤¥ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के लिठपà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ और सायंकाल अगà¥à¤¨à¤¿ में दो चावल और दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ की आहà¥à¤¤à¤¿ ही अगà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤œà¥à¤ž है। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठसमिधा का देना ही अगà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤œà¥à¤ž है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ अगà¥à¤¨à¤¿ में सामगà¥à¤°à¥€ की आहà¥à¤¤à¤¿ देना उनके लिठअगà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤œà¥à¤ž है। दà¥à¤µà¤¿à¤œà¥‹à¤‚ का जब तक विवाह न हो जाà¤, उनके लिठअगà¥à¤¨à¤¿ में समिधा की आहà¥à¤¤à¤¿, वà¥à¤°à¤¤ तथा जाप करना ही अगà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤œà¥à¤ž है। दà¥à¤µà¤¿à¤œà¥‹! जिसने अगà¥à¤¨à¤¿ को विसरà¥à¤œà¤¿à¤¤ कर उसे अपनी आतà¥à¤®à¤¾ में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर लिया है, à¤à¤¸à¥‡ वानपà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठयही अगà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤œà¥à¤ž है कि वे समय पर हितकर और पवितà¥à¤° अनà¥à¤¨ का भोजन कर लें। बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹! सायंकाल अगà¥à¤¨à¤¿ के लिठदी आहà¥à¤¤à¤¿ से संपतà¥à¤¤à¤¿ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है तथा पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•ाल सूरà¥à¤¯à¤¦à¥‡à¤µ को दी आहà¥à¤¤à¤¿ से आयॠकी वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। दिन में अगà¥à¤¨à¤¿à¤¦à¥‡à¤µ सूरà¥à¤¯ में हो पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿ हो जाते हैं। अतः पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•ाल सूरà¥à¤¯ को दी आहà¥à¤¤à¤¿ अगà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤œà¥à¤ž के समान ही होती है।

इंदà¥à¤° आदि समसà¥à¤¤ देवताओं को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ से जो आहà¥à¤¤à¤¿ अगà¥à¤¨à¤¿ में दी जाती है, वह देवयजà¥à¤ž कहलाती है। लौकिक अगà¥à¤¨à¤¿ में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¿à¤¤ जो संसà¥à¤•ार-निमितà¥à¤¤à¤¿à¤• हवन करà¥à¤® है, व देवयजà¥à¤ž है। देवताओं को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ करने के लिठनियम से विधिपूरà¥à¤µà¤• किया गया यजà¥à¤ž ही देवयजà¥à¤ž है। वेदों के नितà¥à¤¯ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ और सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯ को बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¯à¤œà¥à¤ž कहते हैं। मनà¥à¤·à¥à¤¯ को देवताओं की तृपà¥à¤¤à¤¿ के लिठपà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¯à¤œà¥à¤ž करना चाहिà¤à¥¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒà¤•ाल और सायंकाल को ही इसे किया जा सकता है।

अगà¥à¤¨à¤¿ के बिना देवयजà¥à¤ž कैसे होता है ? इसे शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ और आदर से सà¥à¤¨à¥‹à¥¤ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरंभ में सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž और सरà¥à¤µà¤¸à¤®à¤°à¥à¤¥ महादेव शिवजी ने समसà¥à¤¤ लोकों के उपकार के लिठवारों की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ की। भगवान शिव संसाररूपी रोग को दूर करने के लिठवैदà¥à¤¯ हैं। सबके जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ तथा समसà¥à¤¤ औषधियों के औषध हैं। भगवान शिव ने सबसे पहले अपने वार की रचना की जो आरोगà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ अपनी मायाशकà¥à¤¤à¤¿ का वार बनाया, जो संपतà¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। जनà¥à¤®à¤•ाल में दà¥à¤°à¥à¤—तिगà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ बालक की रकà¥à¤·à¤¾ के लिठकà¥à¤®à¤¾à¤° के वार की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ की। आलसà¥à¤¯ और पाप की निवृतà¥à¤¤à¤¿ तथा समसà¥à¤¤ लोकों का हित करने की इचà¥à¤›à¤¾ से लोकरकà¥à¤·à¤• भगवान विषà¥à¤£à¥ का वार बनाया। इसके बाद शिवजी ने पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ और रकà¥à¤·à¤¾ के लिठआयà¥à¤ƒà¤•रà¥à¤¤à¤¾ तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•सृषà¥à¤Ÿà¤¾ परमेषà¥à¤Ÿà¥€ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ का आयà¥à¤·à¥à¤•ारक वार बनाया। तीनों लोकों की वृदà¥à¤§à¤¿ के लिठपहले पà¥à¤£à¥à¤¯-पाप की रचना होने पर लोगों को शà¥à¤­à¤¾à¤¶à¥à¤­ फल देने वाले इंदà¥à¤° और यम के वारों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया। ये वार भोग देने वाले तथा मृतà¥à¤¯à¥à¤­à¤¯ को दूर करने वाले हैं। इसके उपरांत भगवान शिव ने सात गà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ को इन वारों का सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ किया। ये सभी गà¥à¤°à¤¹-नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¯ मंडल में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¿à¤¤ हैं। शिव के वार के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ सूरà¥à¤¯ हैं। शकà¥à¤¤à¤¿ संबंधी वार के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ सोम, कà¥à¤®à¤¾à¤° संबंधी वार के अधिपति मंगल, विषà¥à¤£à¥à¤µà¤¾à¤° के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ बà¥à¤¦à¥à¤§, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ के वार के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿, इंदà¥à¤°à¤µà¤¾à¤° के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शà¥à¤•à¥à¤° व यमवार के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ शनि हैं। अपने-अपने वार में की गई देवताओं की पूजा उनके फलों को देने वाली है।

सूरà¥à¤¯ आरोगà¥à¤¯ और चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ संपतà¥à¤¤à¤¿ के दाता हैं। बà¥à¤¦à¥à¤§ वà¥à¤¯à¤¾à¤§à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के निवारक तथा बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ हैं। बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ आयॠकी वृदà¥à¤§à¤¿ करते हैं। शà¥à¤•à¥à¤° भोग देते हैं और शनि मृतà¥à¤¯à¥ का निवारण करते हैं। इन सातों वारों के फल उनके देवताओं के पूजन से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं। अनà¥à¤¯ देवताओं की पूजा का फल भी भगवान शिव ही देते हैं। देवताओं की पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ के लिठपूजा की पांच पदà¥à¤§à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ हैं। पहले उन देवताओं के मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का जाप, दूसरा होम, तीसरा दान, चौथा तप तथा पांचवां वेदी पर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ में अगà¥à¤¨à¤¿ अथवा बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के शरीर में विशिषà¥à¤Ÿ देव की भावना करके सोलह उपचारों से पूजा तथा आराधना करना ।

दोनों नेतà¥à¤°à¥‹à¤‚ तथा मसà¥à¤¤à¤• के रोग में और कà¥à¤·à¥à¤  रोग की शांति के लिठभगवान सूरà¥à¤¯ की पूजा करके बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को भोजन कराà¤à¤‚। इससे यदि पà¥à¤°à¤¬à¤² पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤¬à¥à¤§ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हो जाठतो जरा à¤à¤µà¤‚ रोगों का नाश हो जाता है । इषà¥à¤Ÿà¤¦à¥‡à¤µ के नाम मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ का जाप वार के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° फल देते हैं। रविवार को सूरà¥à¤¯ देव व अनà¥à¤¯ देवताओं के लिठतथा अनà¥à¤¯ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ के लिठविशिषà¥à¤Ÿ वसà¥à¤¤à¥ अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करें। यह साधन विशिषà¥à¤Ÿ फल देने वाला होता है तथा इसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पापों की शांति होती है। सोमवार को संपतà¥à¤¤à¤¿ व लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठलकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ की पूजा करें तथा पतà¥à¤¨à¥€ के साथ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को घी में पका अनà¥à¤¨ भोजन कराà¤à¤‚। मंगलवार को रोगों की शांति के लिठकाली की पूजा करें। उड़द, मूंग à¤à¤µà¤‚ अरहर की दाल से यà¥à¤•à¥à¤¤ अनà¥à¤¨ का भोजन बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को कराà¤à¤‚। बà¥à¤§à¤µà¤¾à¤° को दधियà¥à¤•à¥à¤¤ अनà¥à¤¨ से भगवान विषà¥à¤£à¥ का पूजन करें। à¤à¤¸à¤¾ करने से पà¥à¤¤à¥à¤°-मितà¥à¤° की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। जो दीरà¥à¤˜à¤¾à¤¯à¥ होने की इचà¥à¤›à¤¾ रखते हैं, वे बृहसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤µà¤¾à¤° को देवताओं का वसà¥à¤¤à¥à¤°, यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤ तथा घी मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ खीर से पूजन करें। भोगों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठशà¥à¤•à¥à¤°à¤µà¤¾à¤° को à¤à¤•ागà¥à¤°à¤šà¤¿à¤¤à¥à¤¤ होकर देवताओं का पूजन करें और बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ की तृपà¥à¤¤à¤¿ के लिठषडà¥à¤¸ यà¥à¤•à¥à¤¤ अनà¥à¤¨ दें। सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ के लिठसà¥à¤‚दर वसà¥à¤¤à¥à¤° का विधान करें। शनिवार अपमृतà¥à¤¯à¥ का निवारण करने वाला है। इस दिन रà¥à¤¦à¥à¤° की पूजा करें। तिल के होम व दान से देवताओं को संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ करके, बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को तिल मिशà¥à¤°à¤¿à¤¤ भोजन कराà¤à¤‚। इस तरह से देवताओं की पूजा करने से आरोगà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ उतà¥à¤¤à¤® फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होगी।

देवताओं के नितà¥à¤¯ विशेष पूजन, सà¥à¤¨à¤¾à¤¨, दान, जाप, होम तथा बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£-तरà¥à¤ªà¤£ à¤à¤µà¤‚ रवि आदि वारों में विशेष तिथि और नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का योग पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने पर विभिनà¥à¤¨ देवताओं के पूजन में जगदीशà¥à¤µà¤° भगवान शिव ही उन देवताओं के रूप में पूजित होकर, सब लोगों को आरोगà¥à¤¯ फल पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं। देश, काल, पातà¥à¤°, दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯, शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ à¤à¤µà¤‚ लोक के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° उनका धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखते हà¥à¤ महादेव जी आराधना करने वालों को आरोगà¥à¤¯ दि फल देते हैं। मंगल कारà¥à¤¯ आरंभ में और अशà¥à¤­ कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के अंत में तथा जनà¥à¤® नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के आने पर गृहसà¥à¤¥ पà¥à¤°à¥à¤· अपने घर में आरोगà¥à¤¯ की समृदà¥à¤§à¤¿ के लिठसूरà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¹ का पूजन करें। इससे सिदà¥à¤§ होता है कि देवताओं का पूजन संपूरà¥à¤£ अभीषà¥à¤Ÿ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं को देने वाला है। पूजन वैदिक मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ही होना चाहिà¤à¥¤ शà¥à¤­ फल की इचà¥à¤›à¤¾ रखने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सातों दिन अपनी शकà¥à¤¤à¤¿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° देवपूजन करना चाहिà¤à¥¤

निरà¥à¤§à¤¨ मनà¥à¤·à¥à¤¯ तपसà¥à¤¯à¤¾ व वà¥à¤°à¤¤ आदि से तथा धनी धन के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ देवी-देवताओं की आराधना करें। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• इस तरह के धरà¥à¤® का अनà¥à¤·à¥à¤ à¤¾à¤¨ करता है, वह पà¥à¤£à¥à¤¯à¤²à¥‹à¤• में अनेक पà¥à¤°à¤•ार के फल भोगकर पà¥à¤¨à¤ƒ इस पृथà¥à¤µà¥€ पर जनà¥à¤® गà¥à¤°à¤¹à¤£ करता है। धनवान पà¥à¤°à¥à¤· सदा भोग सिदà¥à¤§à¤¿ के लिठमारà¥à¤— में वृकà¥à¤· लगाकर लोगों के लिठछाया की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करते हैं और उनके लिठकà¥à¤à¤‚, बावली बनवाकर पानी की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करते हैं। वेद-शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ के लिठपाठशाला का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ या अनà¥à¤¯ किसी भी पà¥à¤°à¤•ार से धरà¥à¤® का संगà¥à¤°à¤¹ करते हैं और सà¥à¤µà¤°à¥à¤—लोक को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं। समयानà¥à¤¸à¤¾à¤° पà¥à¤£à¥à¤¯ करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के परिपाक से अंतःकरण शà¥à¤¦à¥à¤§ होने पर जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की सिदà¥à¤§à¤¿ होती है। दà¥à¤µà¤¿à¤œà¥‹! इस अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ को जो सà¥à¤¨à¤¤à¤¾, पढ़ता अथवा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करता है, उसे 'देवयजà¥à¤ž' का फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है ।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता

पंदà¥à¤°à¤¹à¤µà¤¾à¤ अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"देश, काल, पातà¥à¤° और दान का विचार"

ऋषियों ने कहा :- समसà¥à¤¤ पदारà¥à¤¥à¥‹à¤‚ के जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾à¤“ं में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  सूत जी हमसे देश, काल और दान का वरà¥à¤£à¤¨ करें ।

"देश का वरà¥à¤£à¤¨"

सूत जी बोले :- अपने घर में किया देवयजà¥à¤ž शà¥à¤¦à¥à¤§ गृह के फल को देने वाला है। गोशाला का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ घर में किठगठदेवयजà¥à¤ž से दस गà¥à¤¨à¤¾ जबकि जलाशय का तट गोशाला से दस गà¥à¤¨à¤¾ है। à¤à¤µà¤‚ जहां तà¥à¤²à¤¸à¥€, बेल और पीपल वृकà¥à¤· का मूल हो, वह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ जलाशय तट से भी दस गà¥à¤¨à¤¾ महतà¥à¤µ देने वाला है। देवालय उससे भी अधिक महतà¥à¤µ रखता है। देवालय से दस गà¥à¤¨à¤¾ महतà¥à¤µ रखता है तीरà¥à¤¥ भूमि का तट। उससे भी शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  है नदी का किनारा तथा उसका दस गà¥à¤¨à¤¾ उतà¥à¤•ृषà¥à¤Ÿ है तीरà¥à¤¥ नदी का तट। इससे भी अधिक महतà¥à¤µ रखने वाला है सपà¥à¤¤à¤—ंगा का तट, जिसमें गंगा, गोदावरी, कावेरी, तामà¥à¤°à¤ªà¤°à¥à¤£à¥€, सिंधà¥, सरयू और रेवा नदियां आती हैं। इससे भी दस गà¥à¤¨à¤¾ अधिक फल समà¥à¤¦à¥à¤° का तट और उससे भी दस गà¥à¤¨à¤¾ अधिक फल परà¥à¤µà¤¤ चोटी पर पूजा करने से होता है और सबसे अधिक महतà¥à¤µ का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ वह होता है, जहां मन रम जाठ।

"काल का वरà¥à¤£à¤¨"

सतयà¥à¤— में यजà¥à¤ž, दान आदि से संपूरà¥à¤£ फलों की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾ में तिहाई, दà¥à¤µà¤¾à¤ªà¤° में आधा, कलियà¥à¤— में इससे भी कम फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। परंतॠशà¥à¤¦à¥à¤§ हृदय से किया गया पूजन फल देने वाला होता है। इससे दस गà¥à¤¨à¤¾ फल सूरà¥à¤¯-संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति के दिन, उससे दस गà¥à¤¨à¤¾ अधिक फल तà¥à¤²à¤¾ और मेष की संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति में तथा चंदà¥à¤° गà¥à¤°à¤¹à¤£ में उससे भी दस गà¥à¤¨à¤¾ फल मिलता है। सूरà¥à¤¯ गà¥à¤°à¤¹à¤£ में उससे भी दस गà¥à¤¨à¤¾ अधिक फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के साथ में वह काल करोड़ों सूरà¥à¤¯à¤—à¥à¤°à¤¹à¤£ के समान पावन है, à¤à¤¸à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ पà¥à¤°à¥à¤· मानते हैं।

"पातà¥à¤° वरà¥à¤£à¤¨"

तपोनिषà¥à¤  योगी और जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¨à¤¿à¤·à¥à¤  योगी पूजा के पातà¥à¤° होते हैं। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ये पापों के नाश के कारण होते हैं। जिस बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ ने चौबीस लाख गायतà¥à¤°à¥€ का जाप कर लिया हो वह भी पूजा का पातà¥à¤° है। वह संपूरà¥à¤£ काल और भोग का दाता है। गायतà¥à¤°à¥€ के जाप से शà¥à¤¦à¥à¤§ हà¥à¤† बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ पर पवितà¥à¤° है। इसलिठदान, जाप, होम और पूजा सभी करà¥à¤®à¥‹à¤‚ के लिठवही शà¥à¤¦à¥à¤§ पातà¥à¤° है।

सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ या पà¥à¤°à¥à¤· जो भी भूखा हो वही अनà¥à¤¨à¤¦à¤¾à¤¨ का पातà¥à¤° है। जिसे जिस वसà¥à¤¤à¥ की इचà¥à¤›à¤¾ हो, उसे वह वसà¥à¤¤à¥ बिना मांगे ही दे दी जाà¤, तो दाता को उस दान का पूरा फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है।

याचना करने के बाद दिया गया दान आधा ही फल देता है। सेवक को दिया दान चौथाई फल देने वाला होता है। दीन बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को दिठगठधन का दान दाता को इस भूतल पर दस वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक भोग पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। वेदवेतà¥à¤¤à¤¾ को दान देने पर वह सà¥à¤µà¤°à¥à¤—लोक में देवताओं के वरà¥à¤· से दस वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक दिवà¥à¤¯ भोग देने वाला है। गà¥à¤°à¥à¤¦à¤•à¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ धन शà¥à¤¦à¥à¤§ दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ कहलाता है। इसका दान संपूरà¥à¤£ फल देने वाला है। कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का शौरà¥à¤¯ से कमाया हà¥à¤†, वैशà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° से आया हà¥à¤† और शूदà¥à¤°à¥‹à¤‚ का सेवावृतà¥à¤¤à¤¿ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया धन उतà¥à¤¤à¤® दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯ है।

"दान का वरà¥à¤£à¤¨"

गौ, भूमि, तिल, सà¥à¤µà¤°à¥à¤£, घी, वसà¥à¤¤à¥à¤°, धानà¥à¤¯, गà¥à¤¡à¤¼, चांदी, नमक, कोहड़ा और कनà¥à¤¯à¤¾ नामक बारह वसà¥à¤¤à¥à¤“ं का दान करना चाहिà¤à¥¤ गोदान से सभी पापों का निवारण होता है और पà¥à¤£à¥à¤¯à¤•रà¥à¤®à¥‹à¤‚ की पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ होती है। भूमि का दान परलोक में आशà¥à¤°à¤¯ देने वाला होता है। तिल का दान बल देने वाला तथा मृतà¥à¤¯à¥ का निवारक होता है । सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ का दान वीरà¥à¤¯à¤¦à¤¾à¤¯à¤• और घी का दान पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤•ारक होता है। वसà¥à¤¤à¥à¤° का दान आयॠकी वृदà¥à¤§à¤¿ करता है । धानà¥à¤¯ का दान करने से अनà¥à¤¨ और धन की समृदà¥à¤§à¤¿ होती है। गà¥à¤¡à¤¼ का दान मधà¥à¤° भोजन की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ कराता है। चांदी के दान से वीरà¥à¤¯ की वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। लवण के दान से षडà¥à¤¸ भोजन की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। कोहड़ा या कूषà¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ के दान को पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤¦à¤¾à¤¯à¤• माना जाता है। कनà¥à¤¯à¤¾ का दान आजीवन भोग देने वाला होता है।

जिन वसà¥à¤¤à¥à¤“ं से शà¥à¤°à¤µà¤£ आदि इंदà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तृपà¥à¤¤à¤¿ होती है, उनका सदा दान करें। वेद और शासà¥à¤¤à¥à¤° को गà¥à¤°à¥à¤®à¥à¤– से गà¥à¤°à¤¹à¤£ करके करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल अवशà¥à¤¯ मिलता है, इसे ही उचà¥à¤šà¤•ोटि की आसà¥à¤¤à¤¿à¤•ता कहते हैं। भाई-बंधॠअथवा राजा के भय से जो आसà¥à¤¤à¤¿à¤•ता होती है, वह निमà¥à¤¨ शà¥à¤°à¥‡à¤£à¥€ की होती है। जिस मनà¥à¤·à¥à¤¯ के पास धन का अभाव है, वह वाणी और करà¥à¤® दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही पूजन करे। तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ और वà¥à¤°à¤¤ को शारीरिक पूजन माना जाता है। तपसà¥à¤¯à¤¾ और दान मनà¥à¤·à¥à¤¯ को सदा करने चाहिà¤à¥¤ देवताओं की तृपà¥à¤¤à¤¿ के लिठजो कà¥à¤› दान किया जाता है, वह सब पà¥à¤°à¤•ार के भोग पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। इससे इस लोक और परलोक में उतà¥à¤¤à¤® जनà¥à¤® और सदा सà¥à¤²à¤­ होने वाला भोग पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। ईशà¥à¤µà¤° को सबकà¥à¤› समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करने à¤à¤µà¤‚ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ से यजà¥à¤ž व दान करने से 'मोकà¥à¤·' की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है।

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