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Shiv Purana Vidyeshwara Samhita From the first chapter to the tenth chapter

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता का पहला अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ से दशवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ तक (From the first chapter to the tenth chapter of Shiv Purana Vidyeshwara Samhita)

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता

पहला अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— में सूतजी से मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का तà¥à¤°à¤‚त पापनाश करने वाले साधन के विषय में पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨"

"जो आदि से लेकर अंत में हैं, नितà¥à¤¯ मंगलमय हैं, जो आतà¥à¤®à¤¾ के सà¥à¤µà¤°à¥‚प को पà¥à¤°à¤•ाशित करने वाले हैं, जिनके पांच मà¥à¤– हैं और जो खेल-खेल में जगत की रचना, पालन और संहार तथा अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ à¤à¤µà¤‚ तिरोभावरूप पांच पà¥à¤°à¤¬à¤² करà¥à¤® करते हैं, उन सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  अजर-अमर उमापति भगवान शंकर का मैं मन ही मन चिंतन करता हूं।"

वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी कहते हैं :- धरà¥à¤® का महान कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°, जहां गंगा-यमà¥à¤¨à¤¾ का संगम है, उस पà¥à¤£à¥à¤¯à¤®à¤¯ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—, जो बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• का मारà¥à¤— है, वहां à¤à¤• बार महातेजसà¥à¤µà¥€, महाभाग, महातà¥à¤®à¤¾ मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने विशाल यजà¥à¤ž का आयोजन किया। उस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ यजà¥à¤ž का समाचार सà¥à¤¨à¤•र पौराणिक-शिरोमणि वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी के शिषà¥à¤¯ सूत जी वहां मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठआà¤à¥¤ सूत जी का सभी मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने विधिवत सà¥à¤µà¤¾à¤—त व सतà¥à¤•ार किया तथा उनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करते हà¥à¤ हाथ जोड़कर उनसे कहा- हे सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ रोमहरà¥à¤·à¤£ जी । आप बड़े भागà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¥€ हैं। आपने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी के मà¥à¤– से पà¥à¤°à¤¾à¤£ विदà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ की है। आप आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प कथाओं का भंडार हैं। आप भूत, भविषà¥à¤¯ और वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ के जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ हैं। हमारा सौभागà¥à¤¯ है कि आपके दरà¥à¤¶à¤¨ हà¥à¤à¥¤ आपका यहां आना निररà¥à¤¥à¤• नहीं हो सकता। आप कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी हैं।

उतà¥à¤¤à¤® बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ वाले सूत जी ! यदि आपका अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ हो तो गोपनीय होने पर भी आप शà¥à¤­à¤¾à¤¶à¥à¤­ ततà¥à¤µ का वरà¥à¤£à¤¨ करें, जिससे हमारी तृपà¥à¤¤à¤¿ नहीं होती और उसे सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ की हमारी इचà¥à¤›à¤¾ à¤à¤¸à¥‡ ही रहती है। कृपा कर उस विषय का वरà¥à¤£à¤¨ करें। घोर कलियà¥à¤— आने पर मनà¥à¤·à¥à¤¯ पà¥à¤£à¥à¤¯à¤•रà¥à¤® से दूर होकर दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤° में फंस जाà¤à¤‚गे। दूसरों की बà¥à¤°à¤¾à¤ˆ करेंगे, पराई सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आसकà¥à¤¤ होंगे। हिंसा करेंगे, मूरà¥à¤–, नासà¥à¤¤à¤¿à¤• और पशà¥à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ हो जाà¤à¤‚गे।

सूत जी ! कलियà¥à¤— में वेद पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ वरà¥à¤£ आशà¥à¤°à¤® वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नषà¥à¤Ÿ हो जाà¤à¤—ी। पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• वरà¥à¤£ और आशà¥à¤°à¤® में रहने वाले अपने-अपने धरà¥à¤®à¥‹à¤‚ के आचरण का परितà¥à¤¯à¤¾à¤— कर विपरीत आचरण करने में सà¥à¤– पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करेंगे! इस सामाजिक वरà¥à¤£ संकरता से लोगों का पतन होगा। परिवार टूट जाà¤à¤‚गे, समाज बिखर जाà¤à¤—ा। पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक आपदाओं से जगह-जगह लोगों की मृतà¥à¤¯à¥ होगी। धन का कà¥à¤·à¤¯ होगा। सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ और लोभ की पà¥à¤°à¤µà¥ƒà¤¤à¥à¤¤à¤¿ बढ़ जाà¤à¤—ी। बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ लोभी हो जाà¤à¤‚गे और वेद बेचकर धन पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करेंगे। मद से मोहित होकर दूसरों को ठगेंगे, पूजा-पाठ नहीं करेंगे और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ से शूनà¥à¤¯ होंगे। कà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯ अपने धरà¥à¤® को तà¥à¤¯à¤¾à¤—कर कà¥à¤¸à¤‚गी, पापी और वà¥à¤¯à¤­à¤¿à¤šà¤¾à¤°à¥€ हो जाà¤à¤‚गे। शौरà¥à¤¯ से रहित हो वे शूदà¥à¤°à¥‹à¤‚ जैसा वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° करेंगे और काम के अधीन हो जाà¤à¤‚गे। वैशà¥à¤¯ धरà¥à¤® से विमà¥à¤– हो संसà¥à¤•ारभà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ होकर कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤—ी, धनोपारà¥à¤œà¤¨-परायण होकर नाप-तौल में धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ लगाà¤à¤‚गे। शूदà¥à¤° अपना धरà¥à¤®-करà¥à¤® छोड़कर अचà¥à¤›à¥€ वेशभूषा से सà¥à¤¶à¥‹à¤­à¤¿à¤¤ हो वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ घूमेंगे। वे कà¥à¤Ÿà¤¿à¤² और ईरà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾à¤²à¥ होकर अपने धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•ूल हो जाà¤à¤‚गे, कà¥à¤•रà¥à¤®à¥€ और वाद-विवाद करने वाले होंगे। वे सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को कà¥à¤²à¥€à¤¨ मानकर सभी धरà¥à¤®à¥‹à¤‚ और वरà¥à¤£à¥‹à¤‚ में विवाह करेंगे। सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सदाचार से विमà¥à¤– हो जाà¤à¤‚गी । वे अपने पति का अपमान करेंगी और सास-ससà¥à¤° से लड़ेंगी। मलिन भोजन करेंगी। उनका शील सà¥à¤µà¤­à¤¾à¤µ बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¾ होगा।

सूत जी ! इस तरह जिनकी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ नषà¥à¤Ÿ हो गई है और जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने धरà¥à¤® का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिया है, à¤à¤¸à¥‡ लोग लोक-परलोक में उतà¥à¤¤à¤® गति कैसे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करेंगे ? इस चिंता से हम सभी वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² हैं। परोपकार के समान कोई धरà¥à¤® नहीं है। इस धरà¥à¤® का पालन करने वाला दूसरों को सà¥à¤–ी करता हà¥à¤†, सà¥à¤µà¤¯à¤‚ भी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ अनà¥à¤­à¤µ करता है । यह भावना यदि निषà¥à¤•ाम हो, तो करà¥à¤¤à¤¾ का हृदय शà¥à¤¦à¥à¤§ करते हà¥à¤ उसे परमगति पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती है। हे महामà¥à¤¨à¥‡! आप समसà¥à¤¤ सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚तों के जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ हैं। कृपा कर कोई à¤à¤¸à¤¾ उपाय बताइà¤, जिससे इन सबके पापों का ततà¥à¤•ाल नाश हो जाà¤à¥¤

वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी कहते हैं :– उन शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की यह बात सà¥à¤¨à¤•र सूत जी मन ही मन परम शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  भगवान शंकर का सà¥à¤®à¤°à¤£ करके उनसे इस पà¥à¤°à¤•ार बोले

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता

दूसरा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ का परिचय और महिमा"

सूत जी कहते हैं :- साधॠमहातà¥à¤®à¤¾à¤“! आपने बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ बात पूछी है। यह पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ तीनों लोकों का हित करने वाला है। आप लोगों के सà¥à¤¨à¥‡à¤¹à¤ªà¥‚रà¥à¤£ आगà¥à¤°à¤¹ पर, गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ का सà¥à¤®à¤°à¤£ कर मैं समसà¥à¤¤ पापराशियों से उदà¥à¤§à¤¾à¤° करने वाले शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की अमृत कथा का वरà¥à¤£à¤¨ कर रहा हूं। ये वेदांत का सारसरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µ है। यही परलोक में परमारà¥à¤¥ को देने वाला है तथा दà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ का विनाश करने वाला है। इसमें भगवान शिव के उतà¥à¤¤à¤® यश का वरà¥à¤£à¤¨ है। धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥, काम और मोकà¥à¤· आदि पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥‹à¤‚ को देने वाला पà¥à¤°à¤¾à¤£ अपने पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से वृदà¥à¤§à¤¿ तथा विसà¥à¤¤à¤¾à¤° को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो रहा है। शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ से कलियà¥à¤— के सभी पापों में लिपà¥à¤¤ जीव उतà¥à¤¤à¤® गति को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होंगे। इसके उदय से ही कलियà¥à¤— का उतà¥à¤ªà¤¾à¤¤ शांत हो जाà¤à¤—ा। शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ को वेद तà¥à¤²à¥à¤¯ माना जाà¤à¤—ा। इसका पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® भगवान शिव ने ही किया था। इस पà¥à¤°à¤¾à¤£ के बारह खणà¥à¤¡ या भेद हैं।

ये बारह संहिताà¤à¤‚ हैं :- (1) विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता, (2) रà¥à¤¦à¥à¤° संहिता, (3) विनायक संहिता, (4) उमा संहिता, (5) सहसà¥à¤°à¤•ोटिरà¥à¤¦à¥à¤° संहिता, ( 6 ) à¤à¤•ादशरà¥à¤¦à¥à¤° संहिता, (7) कैलास संहिता, (8) शतरà¥à¤¦à¥à¤° संहिता, (9) कोटिरà¥à¤¦à¥à¤° संहिता, (10) मातृ संहिता, (11) वायवीय संहिता तथा (12) धरà¥à¤® संहिता ।

विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता में दस हजार शà¥à¤²à¥‹à¤• हैं। रà¥à¤¦à¥à¤° संहिता, विनायक संहिता, उमा संहिता और मातृ संहिता पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• में आठ-आठ हजार शà¥à¤²à¥‹à¤• हैं। à¤à¤•ादश रà¥à¤¦à¥à¤° संहिता में तेरह हजार, कैलाश संहिता में छः हजार, शतरà¥à¤¦à¥à¤° संहिता में तीन हजार, कोटिरà¥à¤¦à¥à¤° संहिता में नौ हजार, सहसà¥à¤°à¤•ोटिरà¥à¤¦à¥à¤° संहिता में गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ हजार, वायवीय संहिता में चार हजार तथा धरà¥à¤® संहिता में बारह हजार शà¥à¤²à¥‹à¤• हैं।

मूल शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ में कà¥à¤² à¤à¤• लाख शà¥à¤²à¥‹à¤• हैं परंतॠवà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी ने इसे चौबीस हजार शà¥à¤²à¥‹à¤•ों में संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ कर दिया है। पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ की कà¥à¤°à¤® संखà¥à¤¯à¤¾ में शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ का चौथा सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है, जिसमें सात संहिताà¤à¤‚ हैं।

पूरà¥à¤µà¤•ाल में भगवान शिव ने सौ करोड़ शà¥à¤²à¥‹à¤•ों का पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤—à¥à¤°à¤‚थ गà¥à¤°à¤‚थित किया था। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरंभ में निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ यह पà¥à¤°à¤¾à¤£ साहितà¥à¤¯ अधिक विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ था। दà¥à¤µà¤¾à¤ªà¤° यà¥à¤— में दà¥à¤µà¥ˆà¤ªà¤¾à¤¯à¤¨ आदि महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ ने पà¥à¤°à¤¾à¤£ को अठारह भागों में विभाजित कर चार लाख शà¥à¤²à¥‹à¤•ों में इसको संकà¥à¤·à¤¿à¤ªà¥à¤¤ कर दिया । इसके उपरांत वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी ने चौबीस हजार शà¥à¤²à¥‹à¤•ों में इसका पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ किया।

यह वेदतà¥à¤²à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤£ विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता, शतरà¥à¤¦à¥à¤° संहिता, कोटिरà¥à¤¦à¥à¤° संहिता, उमा संहिता, कैलाश संहिता और वायवीय संहिता नामक सात संहिताओं में विभाजित है। यह सात संहिताओं वाला शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ वेद के समान पà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤• तथा उतà¥à¤¤à¤® गति पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। इस निरà¥à¤®à¤² शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की रचना भगवान शिव दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की गई है तथा इसको संकà¥à¤·à¥‡à¤ª में संकलित करने का शà¥à¤°à¥‡à¤¯ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी को जाता है। शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ सभी जीवों का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ करने वाला, सभी पापों का नाश करने वाला है। यही सतà¥à¤ªà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। यह तà¥à¤²à¤¨à¤¾ रहित है तथा इसमें वेद पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ अदà¥à¤µà¥ˆà¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ तथा निषà¥à¤•पट धरà¥à¤® का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ है। शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  मंतà¥à¤°-समूहों का संकलन है तथा यही सभी के लिठशिवधाम की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ का साधन है। समसà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ में सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ ईरà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾ रहित अंतःकरण वाले विदà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठजानने की वसà¥à¤¤à¥ है। इसमें परमातà¥à¤®à¤¾ का गान किया गया है। इस अमृतमयी शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ को आदर से पढ़ने और सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ वाला मनà¥à¤·à¥à¤¯ भगवान शिव का पà¥à¤°à¤¿à¤¯ होकर परम गति को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेता है।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता

तीसरा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शà¥à¤°à¤µà¤£, कीरà¥à¤¤à¤¨ और मनन साधनों की शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤ à¤¤à¤¾"

वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी कहते हैं :— सूत जी के वचनों को सà¥à¤¨à¤•र सभी महरà¥à¤·à¤¿ बोले- भगवनॠआप वेदतà¥à¤²à¥à¤¯, अदà¥à¤­à¥à¤¤ à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤£à¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा सà¥à¤¨à¤¾à¤‡à¤ ।

सूत जी ने कहा :- हे महरà¥à¤·à¤¿à¤—ण! आप कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤®à¤¯ भगवान शिव का सà¥à¤®à¤°à¤£ करके, वेद के सार से पà¥à¤°à¤•ट शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की अमृत कथा सà¥à¤¨à¤¿à¤à¥¤ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ में भकà¥à¤¤à¤¿, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और वैरागà¥à¤¯ का गान किया गया है। जब सृषà¥à¤Ÿà¤¿ आरंभ हà¥à¤ˆ, तो छः कà¥à¤²à¥‹à¤‚ के महरà¥à¤·à¤¿ आपस में वाद-विवाद करने लगे कि अमà¥à¤• वसà¥à¤¤à¥ उतà¥à¤•ृषà¥à¤Ÿ है, अमà¥à¤• नहीं। जब इस विवाद ने बड़ा रूप धारण कर लिया तो सभी अपनी शंका के समाधान के लिठसृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना करने वाले अविनाशी बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ के पास जाकर हाथ जोड़कर कहने लगे- हे पà¥à¤°à¤­à¥! आप संपूरà¥à¤£ जगत को धारण कर उनका पोषण करने वाले हैं। पà¥à¤°à¤­à¥! हम जानना चाहते हैं कि संपूरà¥à¤£ ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ से परे परातà¥à¤ªà¤° पà¥à¤°à¤¾à¤£ पà¥à¤°à¥à¤· कौन हैं?

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा :- बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥, रà¥à¤¦à¥à¤° और इंदà¥à¤° आदि से यà¥à¤•à¥à¤¤ संपूरà¥à¤£ जगत समसà¥à¤¤ भूतों à¤à¤µà¤‚ इंदà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ पहले पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤† है। वे देव महादेव ही सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž और संपूरà¥à¤£ हैं। भकà¥à¤¤à¤¿ से ही इनका साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार होता है। दूसरे किसी उपाय से इनका दरà¥à¤¶à¤¨ नहीं होता। भगवान शिव में अटूट भकà¥à¤¤à¤¿ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को संसार-बंधन से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ दिलाती है। भकà¥à¤¤à¤¿ से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देवता का कृपापà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। जैसे अंकà¥à¤° से बीज और बीज से अंकà¥à¤° पैदा होता है। भगवान शंकर का कृपापà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के लिठआप सब बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤°à¥à¤·à¤¿ धरती पर सहसà¥à¤°à¥‹à¤‚ वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक चलने वाले विशाल यजà¥à¤ž करो। यजà¥à¤žà¤ªà¤¤à¤¿ भगवान शिव की कृपा से ही विदà¥à¤¯à¤¾ के सारततà¥à¤µ साधà¥à¤¯-साधन का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है।

शिवपद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ साधà¥à¤¯ और उनकी सेवा ही साधन है तथा जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ बिना किसी फल की कामना किठउनकी भकà¥à¤¤à¤¿ में डूबे रहते हैं, वही साधक हैं। करà¥à¤® के अनà¥à¤·à¥à¤ à¤¾à¤¨ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ फल को भगवान शिव के शà¥à¤°à¥€à¤šà¤°à¤£à¥‹à¤‚ में समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करना ही परमेशà¥à¤µà¤° की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ का उपाय है तथा यही मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ का à¤à¤•मातà¥à¤° साधन है। साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ महेशà¥à¤µà¤° ने ही भकà¥à¤¤à¤¿ के साधनों का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¦à¤¨ किया है। कान से भगवान के नाम, गà¥à¤£ और लीलाओं का शà¥à¤°à¤µà¤£, वाणी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उनका कीरà¥à¤¤à¤¨ तथा मन में उनका मनन शिवपद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के महान साधन हैं तथा इन साधनों से ही संपूरà¥à¤£ मनोरथों की सिदà¥à¤§ होती है। जिस वसà¥à¤¤à¥ को हम पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· अपनी आंखों के सामने देख सकते हैं, उसकी तरफ आकरà¥à¤·à¤£ सà¥à¤µà¤¾à¤­à¤¾à¤µà¤¿à¤• है परंतॠजिस वसà¥à¤¤à¥ को पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· रूप से देखा नहीं जा सकता उसे केवल सà¥à¤¨à¤•र और समà¤à¤•र ही उसकी पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठपà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ किया जाता है । अतः शà¥à¤°à¤µà¤£ पहला साधन है। शà¥à¤°à¤µà¤£ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ ही गà¥à¤°à¥ मà¥à¤– से ततà¥à¤µ को सà¥à¤¨à¤•र शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ वाला विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ अनà¥à¤¯ साधन कीरà¥à¤¤à¤¨ और मनन की शकà¥à¤¤à¤¿ व सिदà¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने का यतà¥à¤¨ करता है। मनन के बाद इस साधन की साधना करते रहने से धीरे-धीरे भगवान शिव का संयोग पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है और लौकिक आनंद की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है।

भगवान शिव की पूजा, उनके नामों का जाप तथा उनके रूप, गà¥à¤£, विलास के हृदय में निरंतर चिंतन को ही मनन कहा जाता है। महेशà¥à¤µà¤° की कृपादृषà¥à¤Ÿà¤¿ से उपलबà¥à¤§ इस साधन को ही पà¥à¤°à¤®à¥à¤– साधन कहा जाता है।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

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चौथा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"सनतà¥à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°-वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ संवाद"

सूत जी कहते हैं :- हे मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹! इस साधन का माहातà¥à¤®à¥à¤¯ बताते समय मैं à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त का वरà¥à¤£à¤¨ करूंगा, जिसे आप धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• सà¥à¤¨à¥‡à¤‚।

बहà¥à¤¤ पहले की बात है, पराशर मà¥à¤¨à¤¿ के पà¥à¤¤à¥à¤° मेरे गà¥à¤°à¥ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¦à¥‡à¤µ जी सरसà¥à¤µà¤¤à¥€ नदी के तट पर तपसà¥à¤¯à¤¾ कर रहे थे। à¤à¤• दिन सूरà¥à¤¯ के समान तेजसà¥à¤µà¥€ विमान से यातà¥à¤°à¤¾ करते हà¥à¤ भगवान सनतà¥à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° वहां जा पहà¥à¤‚चे। मेरे गà¥à¤°à¥ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में मगà¥à¤¨ थे। जागने पर अपने सामने सनतà¥à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° जी को देखकर वे बड़ी तेजी से उठे और उनके चरणों का सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अरà¥à¤˜à¥à¤¯ देकर योगà¥à¤¯ आसन पर विराजमान किया। पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर सनतà¥à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° जी गंभीर वाणी में बोले – मà¥à¤¨à¤¿ तà¥à¤® सतà¥à¤¯ का चिंतन करो । सतà¥à¤¯ ततà¥à¤µ का चिंतन ही शà¥à¤°à¥‡à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ का मारà¥à¤— है। इसी से कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ का मारà¥à¤— पà¥à¤°à¤¶à¤¸à¥à¤¤ होता है। यही कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी है। यह जब जीवन में आ जाता है, तो सब सà¥à¤‚दर हो जाता है। सतà¥à¤¯ का अरà¥à¤¥ है- सदैव रहने वाला । इस काल का कोई पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ नहीं पड़ता। यह सदा à¤à¤• समान रहता है ।

सनतà¥à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° जी ने महरà¥à¤·à¤¿ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ को आगे समà¤à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ कहा, महरà¥à¤·à¥‡! सतà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ भगवान शिव ही हैं। भगवान शंकर का शà¥à¤°à¤µà¤£, कीरà¥à¤¤à¤¨ और मनन ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  साधन हैं। पूरà¥à¤µà¤•ाल में मैं दूसरे अनेकानेक साधनों के भà¥à¤°à¤® में पड़ा घूमता हà¥à¤† तपसà¥à¤¯à¤¾ करने मंदराचल पर जा पहà¥à¤‚चा। कà¥à¤› समय बाद महेशà¥à¤µà¤° शिव की आजà¥à¤žà¤¾ से सबके साकà¥à¤·à¥€ तथा शिवगणों के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ नंदिकेशà¥à¤µà¤° वहां आठऔर सà¥à¤¨à¥‡à¤¹à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ का साधन बताते हà¥à¤ बोले भगवान शंकर का शà¥à¤°à¤µà¤£, कीरà¥à¤¤à¤¨ और मनन ही मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ का सà¥à¤°à¥‹à¤¤ है। यह बात मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ देवाधिदेव भगवान शिव ने बताई है। अतः तà¥à¤® इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ साधनों का अनà¥à¤·à¥à¤ à¤¾à¤¨ करो ।

वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ जी से à¤à¤¸à¤¾ कहकर अनà¥à¤—ामियों सहित सनतà¥à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤§à¤¾à¤® को चले गà¤à¥¤ इस पà¥à¤°à¤•ार इस उतà¥à¤¤à¤® वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त का संकà¥à¤·à¥‡à¤ª में मैंने वरà¥à¤£à¤¨ किया है।

ऋषि बोले :- सूत जी! आपने शà¥à¤°à¤µà¤£, कीरà¥à¤¤à¤¨ और मनन को मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ का उपाय बताया है,

किंतॠजो मनà¥à¤·à¥à¤¯ इन तीनों साधनों में असमरà¥à¤¥ हो, वह मनà¥à¤·à¥à¤¯ कैसे मà¥à¤•à¥à¤¤ हो सकता है ? किस करà¥à¤® के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बिना यतà¥à¤¨ के ही मोकà¥à¤· मिल सकता है?

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

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पाचवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिवलिंग का रहसà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ महतà¥à¤µ"

सूत जी कहते हैं :– हे शौनक जी! शà¥à¤°à¤µà¤£, कीरà¥à¤¤à¤¨ और मनन जैसे साधनों को करना पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• के लिठसà¥à¤—म नहीं है। इसके लिठयोगà¥à¤¯ गà¥à¤°à¥ और आचारà¥à¤¯ चाहिà¤à¥¤ गà¥à¤°à¥à¤®à¥à¤– से सà¥à¤¨à¥€ गई वाणी मन की शंकाओं को दगà¥à¤§ करती है। गà¥à¤°à¥à¤®à¥à¤– से सà¥à¤¨à¥‡ शिव ततà¥à¤µ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिव के रूप-सà¥à¤µà¤°à¥‚प के दरà¥à¤¶à¤¨ और गà¥à¤£à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¾à¤¦ में रसानà¥à¤­à¥‚ति होती है। तभी भकà¥à¤¤ कीरà¥à¤¤à¤¨ कर पाता है। यदि à¤à¤¸à¤¾ कर पाना संभव न हो, तो मोकà¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥€ को चाहिठकि वह भगवान शंकर के लिंग à¤à¤µà¤‚ मूरà¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करके रोज उनकी पूजा करे। इसे अपनाकर वह इस संसार सागर से पार हो सकता है। संसार सागर से पार होने के लिठइस तरह की पूजा आसानी से भकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• की जा सकती है। अपनी शकà¥à¤¤à¤¿ à¤à¤µà¤‚ सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° धनराशि से शिवलिंग या शिवमूरà¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ कर भकà¥à¤¤à¤¿à¤­à¤¾à¤µ से उसकी पूजा करनी चाहिà¤à¥¤ मंडप, गोपà¥à¤°, तीरà¥à¤¥, मठ à¤à¤µà¤‚ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ कर उतà¥à¤¸à¤µ का आयोजन करना चाहिठतथा पà¥à¤·à¥à¤ª, धूप, वसà¥à¤¤à¥à¤°, गंध, दीप तथा पà¥à¤† और तरह-तरह के भोजन नैवेदà¥à¤¯ के रूप में अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करने चाहिà¤à¥¤ शà¥à¤°à¥€ शिवजी बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤°à¥‚प और निषà¥à¤•ल अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ कला रहित भी हैं और कला सहित भी मनà¥à¤·à¥à¤¯ इन दोनों सà¥à¤µà¤°à¥‚पों की पूजा करते हैं। शंकर जी को ही बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® पदवी भी पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है। कलापूरà¥à¤£ भगवान शिव की मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा भी मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की जाती है और वेदों ने भी इस तरह की पूजा की आजà¥à¤žà¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की है।

सनतà¥à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° जी ने पूछा :- हे नंदिकेशà¥à¤µà¤° ! पूरà¥à¤µà¤•ाल में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ लिंग बेर अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ मूरà¥à¤¤à¤¿ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के संबंध में आप हमें विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से बताइà¤à¥¤

नंदिकेशà¥à¤µà¤° ने बताया :– मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤µà¤° ! पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ काल में à¤à¤• बार बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और विषà¥à¤£à¥ के मधà¥à¤¯ यà¥à¤¦à¥à¤§ हà¥à¤† तो उनके बीच सà¥à¤¤à¤‚भ रूप में शिवजी पà¥à¤°à¤•ट हो गà¤à¥¤ इस पà¥à¤°à¤•ार उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पृथà¥à¤µà¥€à¤²à¥‹à¤• का संरकà¥à¤·à¤£ किया। उसी दिन से महादेव जी का लिंग के साथ-साथ मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजन भी जगत में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हो गया। अनà¥à¤¯ देवताओं की साकार अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ मूरà¥à¤¤à¤¿ पूजा होने लगी, जो कि अभीषà¥à¤Ÿ फल पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली थी। परंतॠशिवजी के लिंग और मूरà¥à¤¤à¤¿, दोनों रूप ही पूजनीय हैं।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

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छठा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾-विषà¥à¤£à¥ यà¥à¤¦à¥à¤§"

नंदिकेशà¥à¤µà¤° बोले :– पूरà¥à¤µ काल में शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥ अपनी पतà¥à¤¨à¥€ शà¥à¤°à¥€ लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ जी के साथ शेष-शयà¥à¤¯à¤¾ पर शयन कर रहे थे। तब à¤à¤• बार बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ वहां पहà¥à¤‚चे और विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ को पà¥à¤¤à¥à¤° कहकर पà¥à¤•ारने लगे -पà¥à¤¤à¥à¤° उठो! मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ ईशà¥à¤µà¤° तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ सामने खड़ा हूं। यह सà¥à¤¨à¤•र विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ को कà¥à¤°à¥‹à¤§ आ गया। फिर भी शांत रहते हà¥à¤ वे बोले - पà¥à¤¤à¥à¤° ! तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ हो । कहो अपने पिता के पास कैसे आना हà¥à¤†? यह सà¥à¤¨à¤•र बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ कहने लगे- मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ रकà¥à¤·à¤• हूं। सारे जगत का पितामह हूं। सारा जगत मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚ निवास करता है | तू मेरी नाभि कमल से पà¥à¤°à¤•ट होकर मà¥à¤à¤¸à¥‡ à¤à¤¸à¥€ बातें कर रहा है। इस पà¥à¤°à¤•ार दोनों में विवाद होने लगा। तब वे दोनों अपने को पà¥à¤°à¤­à¥ कहते-कहते à¤à¤•-दूसरे का वध करने को तैयार हो गà¤à¥¤ हंस और गरà¥à¤¡à¤¼ पर बैठे दोनों परसà¥à¤ªà¤° यà¥à¤¦à¥à¤§ करने लगे। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ के वकà¥à¤·à¤¸à¥à¤¥à¤² में विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ ने अनेकों असà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤° करके उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² कर दिया। इससे कà¥à¤ªà¤¿à¤¤ हो बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने भी पलटकर भयानक पà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤° किà¤à¥¤ उनके पारसà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• आघातों से देवताओं में हलचल मच गई। वे घबराठऔर तà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥‚लधारी भगवान शिव के पास गठऔर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सारी वà¥à¤¯à¤¥à¤¾ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆà¥¤ भगवान शिव अपनी सभा में उमा देवी सहित सिंहासन पर विराजमान थे और मंद-मंद मà¥à¤¸à¥à¤•रा रहे थे ।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

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सातवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिव निरà¥à¤£à¤¯"

महादेव जी बोले :– पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹ ! मैं जानता हूं कि तà¥à¤® बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और विषà¥à¤£à¥ के परसà¥à¤ªà¤° यà¥à¤¦à¥à¤§ से बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हो। तà¥à¤® डरो मत, मैं अपने गणों के साथ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ साथ चलता हूं। तब भगवान शिव अपने नंदी पर आरूढ़ हो, देवताओं सहित यà¥à¤¦à¥à¤§à¤¸à¥à¤¥à¤² की ओर चल दिà¤à¥¤ वहां छिपकर वे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾-विषà¥à¤£à¥ के यà¥à¤¦à¥à¤§ को देखने लगे। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जब यह जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हà¥à¤† कि वे दोनों à¤à¤•-दूसरे को मारने की इचà¥à¤›à¤¾ से माहेशà¥à¤µà¤° और पाशà¥à¤ªà¤¾à¤¤ असà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— करने जा रहे हैं तो वे यà¥à¤¦à¥à¤§ को शांत करने के लिठमहाअगà¥à¤¨à¤¿ के तà¥à¤²à¥à¤¯ à¤à¤• सà¥à¤¤à¤‚भ रूप में बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और विषà¥à¤£à¥ के मधà¥à¤¯ खड़े हो गठ। महाअगà¥à¤¨à¤¿ के पà¥à¤°à¤•ट होते ही दोनों के असà¥à¤¤à¥à¤° सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही शांत हो गà¤à¥¤ असà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ को शांत होते देखकर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और विषà¥à¤£à¥ दोनों कहने लगे कि इस अगà¥à¤¨à¤¿ सà¥à¤µà¤°à¥‚प सà¥à¤¤à¤‚भ के बारे में हमें जानकारी करनी चाहिà¤à¥¤ दोनों ने उसकी परीकà¥à¤·à¤¾ लेने का निरà¥à¤£à¤¯ लिया। भगवान विषà¥à¤£à¥ ने शूकर रूप धारण किया और उसको देखने के लिठनीचे धरती में चल दिà¤à¥¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ हंस का रूप धारण करके ऊपर की ओर चल दिठ। पाताल में बहà¥à¤¤ नीचे जाने पर भी विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ को सà¥à¤¤à¤‚भ का अंत नहीं मिला। अतः वे वापस चले आà¤à¥¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने आकाश में जाकर केतकी का फूल देखा। वे उस फूल को लेकर विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ के पास गठ। विषà¥à¤£à¥ ने उनके चरण पकड़ लिà¤à¥¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ के छल को देखकर भगवान शिव पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤à¥¤

विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ की महानता से शिव पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर बोले - हे विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€! आप सतà¥à¤¯ बोलते हैं। अतः मैं आपको अपनी समानता का अधिकार देता हूं।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

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आठवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ का अभिमान भंग"

नंदिकेशà¥à¤µà¤° बोले :– महादेव जी बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ के छल पर अतà¥à¤¯à¤‚त कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ हà¥à¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने तà¥à¤°à¤¿à¤¨à¥‡à¤¤à¥à¤° (तीसरी आंख) से भैरव को पà¥à¤°à¤•ट किया और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ आजà¥à¤žà¤¾ दी कि वह तलवार से बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ को दंड दें। आजà¥à¤žà¤¾ पाते ही भैरव ने बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ के बाल पकड़ लिठऔर उनका पांचवां सिर काट दिया । बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ डर के मारे कांपने लगे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भैरव के चरण पकड़ लिठतथा कà¥à¤·à¤®à¤¾ मांगने लगे। इसे देखकर शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥ ने भगवान शिव से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की कि आपकी कृपा से ही बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ को पांचवां सिर मिला था। अतः आप इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤·à¤®à¤¾ कर दें। तब शिवजी की आजà¥à¤žà¤¾ पाकर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ को भैरव ने छोड़ दिया। शिवजी ने कहा तà¥à¤®à¤¨à¥‡ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ और ईशà¥à¤µà¤°à¤¤à¥à¤µ को दिखाने के लिठछल किया है। इसलिठमैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ शाप देता हूं कि तà¥à¤® सतà¥à¤•ार, सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ व उतà¥à¤¸à¤µ से विहीन रहोगे। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ को अपनी गलती का पछतावा हो चà¥à¤•ा था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भगवान शिव के चरण पकड़कर कà¥à¤·à¤®à¤¾ मांगी और निवेदन किया कि वे उनका पांचवां सिर पà¥à¤¨à¤ƒ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें।

महादेव जी ने कहा :– जगत की सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ को बिगड़ने से बचाने के लिठपापी को दंड अवशà¥à¤¯ देना चाहिà¤, ताकि लोक मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बनी रहे। मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ वरदान देता हूं कि तà¥à¤® गणों के आचारà¥à¤¯ कहलाओगे और तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ बिना यजà¥à¤ž पूरà¥à¤£ न होंगे।

फिर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने केतकी के पà¥à¤·à¥à¤ª से कहा - अरे दà¥à¤·à¥à¤Ÿ केतकी पà¥à¤·à¥à¤ª ! अब मेरी पूजा के अयोगà¥à¤¯ रहोगे। तब केतकी पà¥à¤·à¥à¤ª बहà¥à¤¤ दà¥à¤–ी हà¥à¤† और उनके चरणों में गिरकर माफी मांगने लगा। तब महादेव जी ने कहा- मेरा वचन तो à¤à¥‚ठा नहीं हो सकता। इसलिठतू मेरे भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के योगà¥à¤¯ होगा। इस पà¥à¤°à¤•ार तेरा जनà¥à¤® सफल हो जाà¤à¤—ा।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

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नवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"लिंग पूजन का महतà¥à¤µ"

नंदिकेशà¥à¤µà¤° कहते हैं :- बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और विषà¥à¤£à¥ भगवान शिव को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® कर चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª उनके दाà¤à¤‚ बाà¤à¤‚ भाग में खड़े हो गà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पूजनीय महादेव जी को शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  आसन पर बैठाकर पवितà¥à¤° वसà¥à¤¤à¥à¤“ं से उनका पूजन किया। दीरà¥à¤˜à¤•ाल तक सà¥à¤¥à¤¿à¤° रहने वाली वसà¥à¤¤à¥à¤“ं को 'पà¥à¤·à¥à¤ª वसà¥à¤¤à¥' तथा अलà¥à¤ªà¤•ाल तक टिकने वाली वसà¥à¤¤à¥à¤“ं को 'पà¥à¤°à¤¾à¤•ृत वसà¥à¤¤à¥' कहते हैं। हार, नूपà¥à¤°, कियूर, किरीट, मणिमय कà¥à¤‚डल, यजà¥à¤žà¥‹à¤ªà¤µà¥€à¤¤, उतà¥à¤¤à¤°à¥€à¤¯ वसà¥à¤¤à¥à¤°, पà¥à¤·à¥à¤ªà¤®à¤¾à¤²à¤¾, रेशमी वसà¥à¤¤à¥à¤°, हार, मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤•ा, पà¥à¤·à¥à¤ª, तांबूल, कपूर, चंदन à¤à¤µà¤‚ अगरॠका अनà¥à¤²à¥‡à¤ª, धूप, दीप, शà¥à¤µà¥‡à¤¤ छतà¥à¤°, वà¥à¤¯à¤‚जन, धà¥à¤µà¤œà¤¾, चंवर तथा अनेक दिवà¥à¤¯ उपहारों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾, जिनका वैभव वाणी और मन की पहà¥à¤‚च से परे था, जो केवल परमातà¥à¤®à¤¾ के योगà¥à¤¯ थे, उनसे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और विषà¥à¤£à¥ ने अपने सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ महेशà¥à¤µà¤° का पूजन किया। इससे पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर भगवान शिव ने दोनों देवताओं से मà¥à¤¸à¥à¤•राकर कहा

पà¥à¤¤à¥à¤°! आज तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की गई पूजा से मैं बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हूं। इसी कारण यह दिन परम पवितà¥à¤° और महान होगा। यह तिथि 'शिवरातà¥à¤°à¤¿' के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ होगी और मà¥à¤à¥‡ परम पà¥à¤°à¤¿à¤¯ होगी । इस दिन जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ मेरे लिंग अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ निराकार रूप की या मेरी मूरà¥à¤¤à¤¿ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ साकार रूप की दिन-रात निराहार रहकर अपनी शकà¥à¤¤à¤¿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° निशà¥à¤šà¤² भाव से यथोचित पूजा करेगा, वह मेरा परम पà¥à¤°à¤¿à¤¯ भकà¥à¤¤ होगा। पूरे वरà¥à¤· भर निरंतर मेरी पूजा करने पर जो फल मिलता है, वह फल शिवरातà¥à¤°à¤¿ को मेरा पूजन करके मनà¥à¤·à¥à¤¯ ततà¥à¤•ाल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लेता है। जैसे पूरà¥à¤£ चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ का उदय समà¥à¤¦à¥à¤° की वृदà¥à¤§à¤¿ का अवसर है, उसी पà¥à¤°à¤•ार शिवरातà¥à¤°à¤¿ की तिथि मेरे धरà¥à¤® की वृदà¥à¤§à¤¿ का समय है। इस तिथि को मेरी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ का मंगलमय उतà¥à¤¸à¤µ होना चाहिà¤à¥¤ मैं मारà¥à¤—शीरà¥à¤· मास में आरà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° से यà¥à¤•à¥à¤¤ पूरà¥à¤£à¤®à¤¾à¤¸à¥€ या पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ को जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¯ सà¥à¤¤à¤‚भ के रूप में पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤† था। इस दिन जो भी मनà¥à¤·à¥à¤¯ पारà¥à¤µà¤¤à¥€ सहित मेरा दरà¥à¤¶à¤¨ करता है अथवा मेरी मूरà¥à¤¤à¤¿ या लिंग की à¤à¤¾à¤‚की निकालता है, वह मेरे लिठकारà¥à¤¤à¤¿à¤•ेय से भी अधिक पà¥à¤°à¤¿à¤¯ है। इस शà¥à¤­ दिन मेरे दरà¥à¤¶à¤¨ मातà¥à¤° से पूरा फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। यदि दरà¥à¤¶à¤¨ के साथ मेरा पूजन भी किया जाठतो इतना अधिक फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है कि वाणी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उसका वरà¥à¤£à¤¨ नहीं किया जा सकता।

लिंग रूप में पà¥à¤°à¤•ट होकर मैं बहà¥à¤¤ बड़ा हो गया था। अतः लिंग के कारण यह भूतल 'लिंग सà¥à¤¥à¤¾à¤¨' के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हà¥à¤†à¥¤ जगत के लोग इसका दरà¥à¤¶à¤¨ और पूजन कर सकें, इसके लिठयह अनादि और अनंत जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ सà¥à¤¤à¤‚भ अथवा जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¯ लिंग अतà¥à¤¯à¤‚त छोटा हो जाà¤à¤—ा। यह लिंग सब पà¥à¤°à¤•ार के भोग सà¥à¤²à¤­ कराने वाला तथा भोग और मोकà¥à¤· का à¤à¤•मातà¥à¤° साधन है। इसका दरà¥à¤¶à¤¨, सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ और धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को जनà¥à¤® और मृतà¥à¤¯à¥ के कषà¥à¤Ÿ से छà¥à¤¡à¤¼à¤¾à¤¨à¥‡ वाला है। शिवलिंग के यहां पà¥à¤°à¤•ट होने के कारण यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ 'अरà¥à¤£à¤¾à¤šà¤²' नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ होगा तथा यहां

बड़े-बड़े तीरà¥à¤¥ पà¥à¤°à¤•ट होंगे। इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर रहने या मरने से जीवों को मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होगा। मेरे दो रूप हैं— साकार और निराकार । पहले मैं सà¥à¤¤à¤‚भ रूप में पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤†à¥¤ फिर अपने साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ रूप में। ‘बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤­à¤¾à¤µ' मेरा निराकार रूप है तथा 'महेशà¥à¤µà¤°à¤­à¤¾à¤µ' मेरा साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ रूप है। ये दोनों ही मेरे सिदà¥à¤§ रूप हैं। मैं ही परबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® परमातà¥à¤®à¤¾ हूं। जीवों पर अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ करना मेरा कारà¥à¤¯ है । मैं जगत की वृदà¥à¤§à¤¿ करने वाला होने के कारण 'बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®' कहलाता हूं। सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होने के कारण मैं ही सबकी आतà¥à¤®à¤¾ हूं। सरà¥à¤— से लेकर अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ तक जो जगत संबंधी पांच कृतà¥à¤¯ हैं, वे सदा ही मेरे हैं।

मेरी बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤°à¥‚पता का बोध कराने के लिठपहले लिंग पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤†à¥¤ फिर अजà¥à¤žà¤¾à¤¤ ईशà¥à¤µà¤°à¤¤à¥à¤µ का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार कराने के लिठमैं जगदीशà¥à¤µà¤° रूप में पà¥à¤°à¤•ट हो गया। मेरा सकल रूप मेरे ईशतà¥à¤µ का और निषà¥à¤•ल रूप मेरे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प का बोध कराता है। मेरा लिंग मेरा सà¥à¤µà¤°à¥‚प है और मेरे सामीपà¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ कराने वाला है।

मेरे लिंग की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करने वाले मेरे उपासक को मेरी समानता की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हो जाती है तथा मेरे साथ à¤à¤•तà¥à¤µ का अनà¥à¤­à¤µ करता हà¥à¤† संसार सागर से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है। वह जीते जी परमानंद की अनà¥à¤­à¥‚ति करता हà¥à¤†, शरीर का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर शिवलोक को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ मेरा ही सà¥à¤µà¤°à¥‚प हो जाता है । मूरà¥à¤¤à¤¿ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ लिंग की अपेकà¥à¤·à¤¾ गौण है। यह उन भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के लिठहै, जो शिवततà¥à¤µ के अनà¥à¤¶à¥€à¤²à¤¨ में सकà¥à¤·à¤® नहीं हैं।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता

दशवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"पà¥à¤°à¤£à¤µ à¤à¤µà¤‚ पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° की महतà¥à¤¤à¤¾"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और विषà¥à¤£à¥ ने पूछा :- पà¥à¤°à¤­à¥‹ ! सृषà¥à¤Ÿà¤¿ आदि पांच कृतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लकà¥à¤·à¤£ कà¥à¤¯à¤¾ हैं? यह हम दोनों को बताइà¤à¥¤

भगवान शिव बोले :- मेरे करà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को समà¤à¤¨à¤¾ अतà¥à¤¯à¤‚त गहन है, तथापि मैं कृपापूरà¥à¤µà¤• तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ बता रहा हूं। 'सृषà¥à¤Ÿà¤¿', 'पालन', 'संहार', 'तिरोभाव' और 'अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹' मेरे जगत संबंधी पांच कारà¥à¤¯ हैं, जो नितà¥à¤¯ सिदà¥à¤§ हैं। संसार की रचना का आरंभ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ कहलाता है। मà¥à¤à¤¸à¥‡ पालित होकर सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का सà¥à¤¸à¥à¤¥à¤¿à¤° रहना उसका पालन है। उसका विनाश ही 'संहार' है । पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤•à¥à¤°à¤®à¤£ को 'तिरोभाव' कहते हैं। इन सबसे छà¥à¤Ÿà¤•ारा मिल जाना ही मेरा 'अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹' अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ 'मोकà¥à¤·' है। ये मेरे पांच कृतà¥à¤¯ हैं। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ आदि चार कृतà¥à¤¯ संसार का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° करने वाले हैं। पांचवां कृतà¥à¤¯ मोकà¥à¤· का है। मेरे भकà¥à¤¤à¤œà¤¨ इन पांचों कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पांच भूतों में देखते हैं। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ धरती पर, सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ जल में, संहार अगà¥à¤¨à¤¿ में, तिरोभाव वायॠमें और अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ आकाश में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। पृथà¥à¤µà¥€ से सबकी सृषà¥à¤Ÿà¤¿ होती है। जल से वृदà¥à¤§à¤¿ होती है। आग सबको जला देती है। वायॠà¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से दूसरे सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर ले जाती है और आकाश सबको अनà¥à¤—ृहीत करता है। इन पांचों कृतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का भार वहन करने के लिठही मेरे पांच मà¥à¤– हैं।

चार दिशाओं में चार मà¥à¤– और इनके बीच में पांचवां मà¥à¤– है। पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹, तà¥à¤® दोनों ने मà¥à¤à¥‡ तपसà¥à¤¯à¤¾ से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ कर सृषà¥à¤Ÿà¤¿ और पालन दो कारà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किठहैं। इसी पà¥à¤°à¤•ार मेरी 'विभूतिसà¥à¤µà¤°à¥‚प रà¥à¤¦à¥à¤°' और 'महेशà¥à¤µà¤°' ने संहार और तिरोभाव कारà¥à¤¯ मà¥à¤à¤¸à¥‡ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किठहैं परंतॠमोकà¥à¤· मैं सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता हूं। मैंने पूरà¥à¤µà¤•ाल में अपने सà¥à¤µà¤°à¥‚पभूत मंतà¥à¤° का उपदेश किया है, जो ओंकार रूप में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। यह मंगलकारी मंतà¥à¤° है। सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® मेरे मà¥à¤– से ओंकार (à¥) पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤† जो मेरे सà¥à¤µà¤°à¥‚प का बोध कराता है। इसका सà¥à¤®à¤°à¤£ निरंतर करने से मेरा ही सदा सà¥à¤®à¤°à¤£ होता है।

मेरे उतà¥à¤¤à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ मà¥à¤– से अकार का, पशà¥à¤šà¤¿à¤® मà¥à¤– से उकार का, दकà¥à¤·à¤¿à¤£ मà¥à¤– से मकार का, पूरà¥à¤µà¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ मà¥à¤– से बिंदॠका तथा मधà¥à¤¯à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ मà¥à¤– से नाद का पà¥à¤°à¤•टीकरण हà¥à¤† है। इस पà¥à¤°à¤•ार इन पांच अवयवों से ओंकार का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° हà¥à¤† है। इन पांचों अवयवों के à¤à¤•ाकार होने पर पà¥à¤°à¤£à¤µ 'à¥' नामक अकà¥à¤·à¤° उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ जगत में उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ सभी सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पà¥à¤°à¥à¤· इस पà¥à¤°à¤£à¤µ-मंतà¥à¤° में वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हैं। यह मंतà¥à¤° शिव-शकà¥à¤¤à¤¿ दोनों का बोधक है। इसी से पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° 'ॠनमः शिवाय' की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆ है। यह मेरे साकार रूप का बोधक है। इस पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° से मातृका वरà¥à¤£ पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ हैं, जो पांच भेद वाले हैं। इसी से शिरोमंतà¥à¤° सहित तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¤¦à¤¾ गायतà¥à¤°à¥€ का पà¥à¤°à¤¾à¤•टà¥à¤¯ हà¥à¤† है। इस गायतà¥à¤°à¥€ से संपूरà¥à¤£ वेद पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ और उन वेदों से करोड़ों मंतà¥à¤° निकले हैं। उन मंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ से विभिनà¥à¤¨ कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की सिदà¥à¤§à¤¿ होती है। इस पंचाकà¥à¤·à¤° पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° से सभी मनोरथ पूरà¥à¤£ होते हैं। इस मंतà¥à¤° से भोग और मोकà¥à¤· दोनों पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होते हैं।

नंदिकेशà¥à¤µà¤° कहते हैं :- जग दंबा उमा गौरी पारà¥à¤µà¤¤à¥€ के साथ बैठे महादेव ने उतà¥à¤¤à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ मà¥à¤– बैठे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और विषà¥à¤£à¥ को परदा करने वाले वसà¥à¤¤à¥à¤° से आचà¥à¤›à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ कर उनके मसà¥à¤¤à¤• पर अपना हाथ रखकर धीरे-धीरे उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ कर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उतà¥à¤¤à¤® मंतà¥à¤° का उपदेश दिया। तीन बार मंतà¥à¤° का उचà¥à¤šà¤¾à¤°à¤£ करके भगवान शिव ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के रूप में दीकà¥à¤·à¤¾ दी । गà¥à¤°à¥à¤¦à¤•à¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ के रूप में दोनों ने अपने आपको समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करते हà¥à¤ दोनों हाथ जोड़कर उनके समीप खड़े हो, जगदà¥à¤—à¥à¤°à¥ भगवान शिव की इस पà¥à¤°à¤•ार सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करने लगे।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾-विषà¥à¤£à¥ बोले :– पà¥à¤°à¤­à¥‹! आपके साकार और निराकार दो रूप हैं। आप तेज से पà¥à¤°à¤•ाशित हैं, आप सबके सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ हैं, आप सरà¥à¤µà¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ को नमसà¥à¤•ार है। आप पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° के बताने वाले हैं तथा आप ही पà¥à¤°à¤£à¤µ लिंग वाले हैं। सृषà¥à¤Ÿà¤¿, पालन, संहार, तिरोभाव और अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ आदि आपके ही कारà¥à¤¯ हैं। आपके पांच मà¥à¤– हैं, आप ही परमेशà¥à¤µà¤° हैं, आप सबकी आतà¥à¤®à¤¾ हैं, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® हैं।

आपके गà¥à¤£ और शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ अनंत हैं। हम आपको नमसà¥à¤•ार करते हैं। इन पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करते हà¥à¤ गà¥à¤°à¥ महेशà¥à¤µà¤° को पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ कर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ और विषà¥à¤£à¥ ने उनके चरणों में पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया।

महेशà¥à¤µà¤° बोले :– आरà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° में चतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¥€ को यदि इस पà¥à¤°à¤£à¤µ मंतà¥à¤° का जप किया जाठतो यह अकà¥à¤·à¤¯ फल देने वाला है। सूरà¥à¤¯ की संकà¥à¤°à¤¾à¤‚ति में महा आरà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° में à¤à¤• बार किया पà¥à¤°à¤£à¤µ जप करोड़ों गà¥à¤¨à¤¾ जप का फल देता है। 'मृगशिरा' नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤° का अंतिम भाग तथा 'पà¥à¤¨à¤°à¥à¤µà¤¸à¥' का शà¥à¤°à¥‚ का भाग पूजा, होम और तरà¥à¤ªà¤£ के लिठसदा आरà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ के समान ही है। मेरे लिंग का दरà¥à¤¶à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ काल अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ मधà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¹ से पूरà¥à¤µà¤•ाल में करना चाहिà¤à¥¤ मेरे दरà¥à¤¶à¤¨-पूजन के लिठचतà¥à¤°à¥à¤¦à¤¶à¥€ तिथि उतà¥à¤¤à¤® है। पूजा करने वालों के लिठमेरी मूरà¥à¤¤à¤¿ और लिंग दोनों समान हैं। फिर भी मूरà¥à¤¤à¤¿ की अपेकà¥à¤·à¤¾ लिंग का सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ ऊंचा है। इसलिठमनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को शिवलिंग का ही पूजन करना चाहिठ। लिंग का 'à¥' मंतà¥à¤° से और मूरà¥à¤¤à¤¿ का पंचाकà¥à¤·à¤° मंतà¥à¤° से पूजन करना चाहिà¤à¥¤ शिवलिंग की सà¥à¤µà¤¯à¤‚ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करके या दूसरों से सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करवाकर उतà¥à¤¤à¤® दà¥à¤°à¤µà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से पूजा करने से मेरा पद सà¥à¤²à¤­ होता है । इस पà¥à¤°à¤•ार दोनों शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को उपदेश देकर भगवान शिव अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो गà¤à¥¤

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