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Shiva Purana Mahatmya The first, second, third, fourth, fifth, sixth and seventh chapters

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ Ep 1 माहातà¥à¤®à¥à¤¯ का पहला,दूसरा,तिसरा, चौथा,पाचवाà¤,छठा व सातवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ (The first, second, third, fourth, fifth, sixth and seventh chapters of Shiva Purana Mahatmya)

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ माहातà¥à¤®à¥à¤¯

पहला अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"सूत जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की महिमा का वरà¥à¤£à¤¨"

शà¥à¤°à¥€ शौनक जी ने पूछा :- महाजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ सूत जी, आप संपूरà¥à¤£ सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚तों के जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ हैं। कृपया मà¥à¤à¤¸à¥‡ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के सार का वरà¥à¤£à¤¨ करें। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और वैरागà¥à¤¯ सहित भकà¥à¤¤à¤¿ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ विवेक की वृदà¥à¤§à¤¿ कैसे होती है? तथा साधà¥à¤ªà¥à¤°à¥à¤· कैसे अपने काम, कà¥à¤°à¥‹à¤§ आदि विकारों का निवारण करते हैं? इस कलियà¥à¤— में सभी जीव आसà¥à¤°à¥€ सà¥à¤µà¤­à¤¾à¤µ के हो गठहैं। अतः कृपा करके मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¸à¤¾ साधन बताइà¤, जो कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी à¤à¤µà¤‚ मंगलकारी हो तथा पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ लिठहो। पà¥à¤°à¤­à¥, वह à¤à¤¸à¤¾ साधन हो, जिससे मनà¥à¤·à¥à¤¯ की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ हो जाठऔर उस निरà¥à¤®à¤² हृदय वाले पà¥à¤°à¥à¤· को सदैव के लिठ'शिव' की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हो जाà¤à¥¤

शà¥à¤°à¥€ सूत ' जी ने उतà¥à¤¤à¤° दिया :-- शौनक जी आप धनà¥à¤¯ हैं, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आपके मन में पà¥à¤°à¤¾à¤£ कथा को सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के लिठअपार पà¥à¤°à¥‡à¤® व लालसा है। इसलिठमैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ परम उतà¥à¤¤à¤® शासà¥à¤¤à¥à¤° की कथा सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¾ हूं। वतà¥à¤¸! संपूरà¥à¤£ सिदà¥à¤§à¤¾à¤‚त से संपनà¥à¤¨ भकà¥à¤¤à¤¿ को बढ़ाने वाला तथा शिवजी को संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ करने वाला अमृत के समान दिवà¥à¤¯ शासà¥à¤¤à¥à¤° है- 'शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£'। इसका पूरà¥à¤µ काल में शिवजी ने ही पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ किया था। गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ ने सनतà¥à¤•à¥à¤®à¤¾à¤° मà¥à¤¨à¤¿ का उपदेश पाकर आदरपूरà¥à¤µà¤• इस पà¥à¤°à¤¾à¤£ की रचना की है। यह पà¥à¤°à¤¾à¤£ कलियà¥à¤— में मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के हित का परम साधन है।

'शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£' परम उतà¥à¤¤à¤® शासà¥à¤¤à¥à¤° है। इस पृथà¥à¤µà¥€à¤²à¥‹à¤• में सभी मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को भगवान शिव के विशाल सà¥à¤µà¤°à¥‚प को समà¤à¤¨à¤¾ चाहिà¤à¥¤ इसे पà¥à¤¨à¤¾ à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ सरà¥à¤µà¤¸à¤¾à¤§à¤¨ है। यह मनोवांछित फलों को देने वाला है। इससे मनà¥à¤·à¥à¤¯ निषà¥à¤ªà¤¾à¤ª हो जाता है तथा इस लोक में सभी सà¥à¤–ों का उपभोग करके अंत में शिवलोक को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है।

'शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£' में चौबीस हजार शà¥à¤²à¥‹à¤• हैं, जिसमें सात संहिताà¤à¤‚ हैं। शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ परबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® परमातà¥à¤®à¤¾ के समान गति पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ को पूरी भकà¥à¤¤à¤¿ à¤à¤µà¤‚ संयमपूरà¥à¤µà¤• इसे सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ चाहिà¤à¥¤ जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• नितà¥à¤¯ इसको बांचता है या इसका पाठ करता है, वह निःसंदेह पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ है।

भगवान शिव उस विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¥à¤· पर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर उसे अपना धाम पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं। पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ आदरपूरà¥à¤µà¤• शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ का पूजन करने वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ संसार में संपूरà¥à¤£ भोगों को भोगकर भगवान शिव के पद को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करते हैं। वे सदा सà¥à¤–ी रहते हैं।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ में भगवान शिव का सरà¥à¤µà¤¸à¥à¤µ है। इस लोक और परलोक में सà¥à¤– की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठआदरपूरà¥à¤µà¤• इसका सेवन करना चाहिà¤à¥¤ यह निरà¥à¤®à¤² शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥, काम और मोकà¥à¤·à¤°à¥‚प चारों पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥à¥‹à¤‚ को देने वाला है। अतः सदा पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• इसे सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ à¤à¤µà¤‚ पढ़ना चाहिà¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ माहातà¥à¤®à¥à¤¯

दूसरा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"देवराज को शिवलोक की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ चंचà¥à¤²à¤¾ का संसार से वैरागà¥à¤¯"

शà¥à¤°à¥€ शौनक जी ने कहा :- आप धनà¥à¤¯ हैं। सूत जी! आप परमारà¥à¤¥ ततà¥à¤µ के जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ हैं। आपने

हम पर कृपा करके हमें यह अदà¥à¤­à¥à¤¤ और दिवà¥à¤¯ कथा सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ है। भूतल पर इस कथा के समान कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ का और कोई साधन नहीं है। आपकी कृपा से यह बात हमने समठली है । सूत जी! इस कथा के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कौन से पापी शà¥à¤¦à¥à¤§ होते हैं? उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कृपापूरà¥à¤µà¤• बताकर इस जगत को कृतारà¥à¤¥ कीजिठ।

सूत जी बोले :– मà¥à¤¨à¥‡, जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ पाप, दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤° तथा काम-कà¥à¤°à¥‹à¤§, मद, लोभ में निरंतर डूबे रहते हैं, वे भी शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ पढ़ने अथवा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ से शà¥à¤¦à¥à¤§ हो जाते हैं तथा उनके पापों का पूरà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ नाश हो जाता है। इस विषय में मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• कथा सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¾ हूं।

"देवराज बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ की कथा"

बहà¥à¤¤ पहले की बात है ... किरातों के नगर में देवराज नाम का à¤à¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ रहता था। वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ में दà¥à¤°à¥à¤¬à¤², गरीब, रस बेचने वाला तथा वैदिक धरà¥à¤® से विमà¥à¤– था । वह सà¥à¤¨à¤¾à¤¨-संधà¥à¤¯à¤¾ नहीं करता था तथा उसमें वैशà¥à¤¯-वृतà¥à¤¤à¤¿ बढ़ती ही जा रही थी। वह भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को ठगता था। उसने अनेक मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को मारकर उन सबका धन हड़प लिया था। उस पापी ने थोड़ा-सा भी धन धरà¥à¤® के काम में नहीं लगाया था। वह वेशà¥à¤¯à¤¾à¤—ामी तथा आचार भà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ था।

à¤à¤• दिन वह घूमता हà¥à¤† दैवयोग से पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾à¤¨à¤ªà¥à¤° (à¤à¥‚सी-पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—) जा पहà¥à¤‚चा। वहां उसने à¤à¤• शिवालय देखा, जहां बहà¥à¤¤ से साधà¥-महातà¥à¤®à¤¾ à¤à¤•तà¥à¤° हà¥à¤ थे। देवराज वहीं ठहर गया। वहां रात में उसे जà¥à¤µà¤° आ गया और उसे बड़ी पीड़ा होने लगी। वहीं पर à¤à¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ देवता शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा सà¥à¤¨à¤¾ रहे थे। जà¥à¤µà¤° में पड़ा देवराज भी बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के मà¥à¤– से शिवकथा को निरंतर सà¥à¤¨à¤¤à¤¾ रहता था। à¤à¤• मास बाद देवराज जà¥à¤µà¤° से पीड़ित अवसà¥à¤¥à¤¾ में चल बसा। यमराज के दूत उसे बांधकर यमपà¥à¤°à¥€ ले गà¤à¥¤ तभी वहां शिवलोक से भगवान शिव के पारà¥à¤·à¤¦à¤—ण आ गà¤à¥¤ वे करà¥à¤ªà¥‚र के समान उजà¥à¤œà¥à¤µà¤² थे। उनके हाथ में तà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥‚ल, संपूरà¥à¤£ शरीर पर भसà¥à¤® और गले में रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤· की माला उनके शरीर की शोभा बढ़ा रही थी।

उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यमराज के दूतों को मार-पीटकर देवराज को यमदूतों के चंगà¥à¤² से छà¥à¤¡à¤¼à¤¾ लिया और वे उसे अपने अदà¥à¤­à¥à¤¤ विमान में बिठाकर जब कैलाश परà¥à¤µà¤¤ पर ले जाने लगे तो यमपà¥à¤°à¥€ में कोलाहल मच गया, जिसे सà¥à¤¨à¤•र यमराज अपने भवन से बाहर आà¤à¥¤ साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ रà¥à¤¦à¥à¤°à¥‹à¤‚ के समान पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होने वाले इन दूतों का धरà¥à¤®à¤°à¤¾à¤œ ने विधिपूरà¥à¤µà¤• पूजन कर जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से सारा मामला जान लिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भय के कारण भगवान शिव के दूतों से कोई बात नहीं पूछी। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ शिवदूत देवराज को लेकर कैलाश चले गà¤

और वहां पहà¥à¤‚चकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ को करà¥à¤£à¤¾à¤µà¤¤à¤¾à¤° भगवान शिव के हाथों में सौंप दिया।

शौनक जी ने कहा :- महाभाग सूत जी! आप सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž हैं। आपके कृपापà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ से मैं कृतारà¥à¤¥ हà¥à¤†à¥¤ इस इतिहास को सà¥à¤¨à¤•र मेरा मन आनंदित हो गया है। अतः भगवान शिव मैं पà¥à¤°à¥‡à¤® बढ़ाने वाली दूसरी कथा भी कहिà¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ माहातà¥à¤®à¥à¤¯

तीसरा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"बिंदà¥à¤— बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ की कथा"

शà¥à¤°à¥€ सूत जी बोले :- शौनक ! सà¥à¤¨à¥‹, मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ सामने à¤à¤• अनà¥à¤¯ गोपनीय कथा का वरà¥à¤£à¤¨ करूंगा, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि तà¥à¤® शिव भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में अगà¥à¤°à¤—णà¥à¤¯ व वेदवेतà¥à¤¤à¤¾à¤“ं में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  हो । समà¥à¤¦à¥à¤° के निकटवरà¥à¤¤à¥€ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में वाषà¥à¤•ल नामक गांव है, जहां वैदिक धरà¥à¤® से विमà¥à¤– महापापी मनà¥à¤·à¥à¤¯ रहते हैं। वे सभी दà¥à¤·à¥à¤Ÿ हैं à¤à¤µà¤‚ उनका मन दूषित विषय भोगों में ही लगा रहता है। वे देवताओं à¤à¤µà¤‚ भागà¥à¤¯ पर विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ नहीं करते। वे सभी कà¥à¤Ÿà¤¿à¤² वृतà¥à¤¤à¤¿ वाले हैं। किसानी करते हैं और विभिनà¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार के असà¥à¤¤à¥à¤°-शसà¥à¤¤à¥à¤° रखते हैं। वे वà¥à¤¯à¤­à¤¿à¤šà¤¾à¤°à¥€ हैं। वे इस बात से पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ अनजान हैं कि जà¥à¤žà¤¾à¤¨, वैरागà¥à¤¯ तथा सदà¥à¤§à¤°à¥à¤® ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ के लिठपरम पà¥à¤°à¥à¤·à¤¾à¤°à¥à¤¥ हैं। वे सभी पशà¥à¤¬à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ हैं। अनà¥à¤¯ समà¥à¤¦à¤¾à¤¯ के लोग भी उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ की तरह बà¥à¤°à¥‡ विचार रखने वाले, धरà¥à¤® से विमà¥à¤– हैं। वे नितà¥à¤¯ कà¥à¤•रà¥à¤® में लगे रहते हैं à¤à¤µà¤‚ सदा विषयभोगों में डूबे रहते हैं। वहां की सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ भी बà¥à¤°à¥‡ सà¥à¤µà¤­à¤¾à¤µ की, सà¥à¤µà¥‡à¤šà¥à¤›à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€, पाप में डूबी, कà¥à¤Ÿà¤¿à¤² सोच वाली और वà¥à¤¯à¤­à¤¿à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ हैं। वे सभी सदà¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° तथा सदाचार से सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ शूनà¥à¤¯ हैं। वहां सिरà¥à¤« दà¥à¤·à¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ का निवास है।

वाषà¥à¤•ल नामक गांव में बिंदà¥à¤— नाम का à¤à¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ रहता था। वह अधरà¥à¤®à¥€, दà¥à¤°à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ à¤à¤µà¤‚ महापापी था। उसकी सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ बहà¥à¤¤ सà¥à¤‚दर थी । उसका नाम चंचà¥à¤²à¤¾ था। वह सदा उतà¥à¤¤à¤® धरà¥à¤® का पालन करती थी परंतॠबिंदà¥à¤— वेशà¥à¤¯à¤¾à¤—ामी था। इस तरह कà¥à¤•रà¥à¤® करते हà¥à¤ बहà¥à¤¤ समय वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ हो गया। उसकी सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ काम से पीड़ित होने पर भी सà¥à¤µà¤§à¤°à¥à¤®à¤¨à¤¾à¤¶ के भय से कà¥à¤²à¥‡à¤¶ सहकर भी काफी समय तक धरà¥à¤® भà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ परंतॠआगे चलकर वह भी अपने दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ पति के आचरण से पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ होकर, दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¤¿à¤£à¥€ और अपने धरà¥à¤® से विमà¥à¤– हो गई। इस तरह दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤° में डूबे हà¥à¤ उन पति-पतà¥à¤¨à¥€ का बहà¥à¤¤ सा समय वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ बीत गया।

वेशà¥à¤¯à¤¾à¤—ामी, दूषित बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ वाला वह दà¥à¤·à¥à¤Ÿ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ बिंदà¥à¤— समयानà¥à¤¸à¤¾à¤° मृतà¥à¤¯à¥ को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो, नरक में चला गया। बहà¥à¤¤ दिनों तक नरक के दà¥à¤–ों को भोगकर वह मूॠबà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पापी विंधà¥à¤¯à¤ªà¤°à¥à¤µà¤¤ पर भयंकर पिशाच हà¥à¤†à¥¤ इधर, उस दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥€ बिंदà¥à¤— के मर जाने पर वह चंचà¥à¤²à¤¾ नामक सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ बहà¥à¤¤ समय तक पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के साथ अपने घर में रहती रही। पति की मृतà¥à¤¯à¥ के बाद वह भी अपने धरà¥à¤® से गिरकर पर पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ का संग करने लगी थी। सतियां विपतà¥à¤¤à¤¿ में भी अपने धरà¥à¤® का पालन करना नहीं छोड़तीं। यही तो तप है। तप कठिन तो होता है, लेकिन इसका फल मीठा होता है। विषयी इस सतà¥à¤¯ को नहीं जानता इसीलिठवह विषयों के विषफल का सà¥à¤µà¤¾à¤¦ लेते हà¥à¤ भोग करता है।

à¤à¤• दिन दैवयोग से किसी पà¥à¤£à¥à¤¯ परà¥à¤µ के आने पर वह अपने भाई-बंधà¥à¤“ं के साथ गोकरà¥à¤£ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में गई। उसने तीरà¥à¤¥ के जल में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ किया à¤à¤µà¤‚ बंधà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ के साथ यतà¥à¤°-ततà¥à¤° घूमने लगी । घूमते-घूमते वह à¤à¤• देव मंदिर में गई। वहां उसने à¤à¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के मà¥à¤– से भगवान शिव की परम पवितà¥à¤° à¤à¤µà¤‚ मंगलकारी कथा सà¥à¤¨à¥€à¥¤ कथावाचक बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ कह रहे थे कि 'जो सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ वà¥à¤¯à¤­à¤¿à¤šà¤¾à¤° करती हैं,

वे मरने के बाद जब यमलोक जाती हैं, तब यमराज के दूत उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ तरह तरह से यंतà¥à¤°à¤£à¤¾ देते हैं। वे उसके कामांगों को तपà¥à¤¤ लौह दणà¥à¤¡à¥‹à¤‚ से दागते हैं। तपà¥à¤¤ लौह के पà¥à¤°à¥à¤· से उसका संसरà¥à¤— कराते हैं। ये सारे दणà¥à¤¡ इतनी वेदना देने वाले होते हैं कि जीव पà¥à¤•ार-पà¥à¤•ार कर कहता है कि अब वह à¤à¤¸à¤¾ नहीं करेगा। लेकिन यमदूत उसे छोड़ते नहीं। करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल तो सभी को भोगना पड़ता है। देव, ऋषि, मनà¥à¤·à¥à¤¯ सभी इससे बंधे हà¥à¤ हैं।' बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के मà¥à¤– से यह वैरागà¥à¤¯ बढ़ाने वाली कथा सà¥à¤¨à¤•र चंचà¥à¤²à¤¾ भय से वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² हो गई। कथा समापà¥à¤¤ होने पर सभी लोग वहां से चले गà¤,

तब कथा बांचने वाले बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ देवता से चंचà¥à¤²à¤¾ ने कहा :– हे बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£! धरà¥à¤® को न जानने के कारण मेरे दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बहà¥à¤¤ बड़ा दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤° हà¥à¤† है। सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€! मेरे ऊपर कृपा कर मेरा उदà¥à¤§à¤¾à¤° कीजिà¤à¥¤ आपके पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ को सà¥à¤¨à¤•र मà¥à¤à¥‡ इस संसार से वैरागà¥à¤¯ हो गया है। मà¥à¤ मूढ़ चितà¥à¤¤à¤µà¤¾à¤²à¥€ पापिनी को धिकà¥à¤•ार है। मैं निंदा के योगà¥à¤¯ हूं। मैं बà¥à¤°à¥‡ विषयों में फंसकर अपने धरà¥à¤® से विमà¥à¤– हो गई थी। कौन मà¥à¤ जैसी कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥à¤— में मन लगाने वाली पापिनी का साथ देगा? जब यमदूत मेरे गले में फंदा डालकर मà¥à¤à¥‡ बांधकर ले जाà¤à¤‚गे और नरक में मेरे शरीर के टà¥à¤•ड़े करेंगे, तब मैं कैसे उन महायातनाओं को सहन कर पाऊंगी? मैं सब पà¥à¤°à¤•ार से नषà¥à¤Ÿ हो गई हूं, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अभी तक मैं हर तरह से पाप में डूबी रही हूं। हे बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ ! आप मेरे गà¥à¤°à¥ हैं, आप ही मेरे माता-पिता हैं। मैं आपकी शरण में आई हूं। मà¥à¤ अबला का अब आप ही उदà¥à¤§à¤¾à¤° कीजिठ।

सूत जी कहते हैं :— शौनक, इस पà¥à¤°à¤•ार विलाप करती हà¥à¤ˆ चंचà¥à¤²à¤¾ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ देवता के चरणों में गिर पड़ी। तब बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ ने उसे कृपापूरà¥à¤µà¤• उठाया ओर इसपà¥à¤°à¤•ार कहा ...

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ माहातà¥à¤®à¥à¤¯

चौथा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"चंचà¥à¤²à¤¾ की शिव कथा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ में रà¥à¤šà¤¿ और शिवलोक गमन"

बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ बोले :– नारी तà¥à¤® सौभागà¥à¤¯à¤¶à¤¾à¤²à¥€ हो, जो भगवान शंकर की कृपा से तà¥à¤®à¤¨à¥‡ वैरागà¥à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤£ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा सà¥à¤¨à¤•र समय से अपनी गलती का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ कर लिया है। तà¥à¤® डरो मत और भगवान शिव की शरण में जाओ। उनकी परम कृपा से तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ सभी पाप नषà¥à¤Ÿ हो जाà¤à¤‚गे। मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ भगवान शिव की कथा सहित वह मारà¥à¤— बताऊंगा जिसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤– देने वाली उतà¥à¤¤à¤® गति पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होगी। शिव कथा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ से तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ शà¥à¤¦à¥à¤§ हो गई है और तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª हà¥à¤† है तथा मन में वैरागà¥à¤¯ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤† है। पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª ही पाप करने वाले पापियों के लिठसबसे बड़ा पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ है। पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª ही पापों का शोधक है। इससे ही पापों की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होती है। सतà¥à¤ªà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°, पापों की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ के लिठपà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤, पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª से ही संपनà¥à¤¨ होता है। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपने कà¥à¤•रà¥à¤® के लिठपशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª नहीं करता वह उतà¥à¤¤à¤® गति पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं करता परंतॠजिसे अपने कà¥à¤•ृतà¥à¤¯ पर हारà¥à¤¦à¤¿à¤• पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¤¾à¤ª होता है, वह अवशà¥à¤¯ उतà¥à¤¤à¤® गति का भागीदार होता है। इसमें कोई शक नहीं है।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ से चितà¥à¤¤ की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ à¤à¤µà¤‚ मन निरà¥à¤®à¤² हो जाता है। शà¥à¤¦à¥à¤§ चितà¥à¤¤ में ही भगवान शिव व पारà¥à¤µà¤¤à¥€ का वास होता है। वह शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ पà¥à¤°à¥à¤· सदाशिव के पद को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है। इस कथा का शà¥à¤°à¤µà¤£ सभी मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठकलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤•ारी है। अतः इसकी आराधना व सेवा करनी चाहिà¤à¥¤ यह कथा भवबंधनरूपी रोग का नाश करने वाली है। भगवान शिव की कथा सà¥à¤¨à¤•र हृदय में उसका मनन करना चाहिà¤à¥¤ इससे चितà¥à¤¤ की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होती है। चितà¥à¤¤à¤¶à¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होने से जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और वैरागà¥à¤¯ के साथ महेशà¥à¤µà¤° की भकà¥à¤¤à¤¿ निशà¥à¤šà¤¯ ही पà¥à¤°à¤•ट होती है तथा उनके अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ से दिवà¥à¤¯ मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होती है। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ माया के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आसकà¥à¤¤ है, वह इस संसार बंधन से मà¥à¤•à¥à¤¤ नहीं हो पाता।

हे बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ पतà¥à¤¨à¥€ तà¥à¤® अनà¥à¤¯ विषयों से अपने मन को हटाकर भगवान शंकर की इस परम पावन कथा को सà¥à¤¨à¥‹ – इससे तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ चितà¥à¤¤ की शà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ होगी और तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ मोकà¥à¤· की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होगी। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ निरà¥à¤®à¤² हृदय से भगवान शिव के चरणों का चिंतन करता है, उसकी à¤à¤• ही जनà¥à¤® में मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ हो जाती है ।

सूत जी कहते हैं :— शौनक । यह कहकर वे बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ चà¥à¤ª हो गà¤à¥¤ उनका हृदय करà¥à¤£à¤¾ से भर गया। वे धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में मगà¥à¤¨ हो गà¤à¥¤ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ का उकà¥à¤¤ उपदेश सà¥à¤¨à¤•र चंचà¥à¤²à¤¾ के नेतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में आनंद के आंसू छलक आà¤à¥¤ वह हरà¥à¤· भरे हृदय से बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ देवता के चरणों में गिर गई और हाथ जोड़कर

बोली :- मैं कृतारà¥à¤¥ हो गई। हे बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£! शिवभकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  सà¥à¤µà¤¾à¤®à¤¿à¤¨ आप धनà¥à¤¯ हैं। आप परमारà¥à¤¥à¤¦à¤°à¥à¤¶à¥€ हैं और सदा परोपकार में लगे रहते हैं। साधो ! मैं नरक के समà¥à¤¦à¥à¤° में गिर रही हूं।

कृपा कर मेरा उदà¥à¤§à¤¾à¤° कीजिà¤à¥¤ जिस पौराणिक व अमृत के समान सà¥à¤‚दर शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ कथा की बात आपने की है उसे सà¥à¤¨à¤•र ही मेरे मन में वैरागà¥à¤¯ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤† है। उस अमृतमयी शिवपà¥à¤°à¤¾à¤£ कथा को सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के लिठमेरे मन में बड़ी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ हो रही है। कृपया आप मà¥à¤à¥‡ उसे सà¥à¤¨à¤¾à¤‡à¤ ।

सूत जी कहते हैं :– शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ की इचà¥à¤›à¤¾ मन में लिठहà¥à¤ चंचà¥à¤²à¤¾ उन बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ देवता की सेवा में वहीं रहने लगी। उस गोकरà¥à¤£ नामक महाकà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में उन बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ देवता के मà¥à¤– से चंचà¥à¤²à¤¾ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की भकà¥à¤¤à¤¿, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और वैरागà¥à¤¯ बढ़ाने वाली और मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ देने वाली परम उतà¥à¤¤à¤® कथा सà¥à¤¨à¤•र कृतारà¥à¤¥ हà¥à¤ˆà¥¤ उसका चितà¥à¤¤ शà¥à¤¦à¥à¤§ हो गया। वह अपने हृदय में शिव के सगà¥à¤£ रूप का चिंतन करने लगी। वह सदैव शिव के सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤‚दमय सà¥à¤µà¤°à¥‚प का सà¥à¤®à¤°à¤£ करती थी। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤, अपना समय पूरà¥à¤£ होने पर चंचà¥à¤²à¤¾ ने बिना किसी कषà¥à¤Ÿ के अपना शरीर तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया। उसे लेने के लिठà¤à¤• दिवà¥à¤¯ विमान वहां पहà¥à¤‚चा। यह विमान शोभा-साधनों से सजा था à¤à¤µà¤‚ शिव गणों से सà¥à¤¶à¥‹à¤­à¤¿à¤¤ था।

चंचà¥à¤²à¤¾ विमान से शिवपà¥à¤°à¥€ पहà¥à¤‚ची। उसके सारे पाप धà¥à¤² गà¤à¥¤ वह दिवà¥à¤¯à¤¾à¤‚गना हो गई। वह गौरांगीदेवी मसà¥à¤¤à¤• पर अरà¥à¤§à¤šà¤‚दà¥à¤° का मà¥à¤•à¥à¤Ÿ व अनà¥à¤¯ दिवà¥à¤¯ आभूषण पहने शिवपà¥à¤°à¥€ पहà¥à¤‚ची। वहां उसने सनातन देवता तà¥à¤°à¤¿à¤¨à¥‡à¤¤à¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¥€ महादेव शिव को देखा। सभी देवता उनकी सेवा में भकà¥à¤¤à¤¿à¤­à¤¾à¤µ से उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे। उनकी अंग कांति करोड़ों सूरà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के समान पà¥à¤°à¤•ाशित हो रही थी। पांच मà¥à¤– और हर मà¥à¤– में तीन-तीन नेतà¥à¤° थे, मसà¥à¤¤à¤• पर अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤šà¤‚दà¥à¤°à¤¾à¤•ार मà¥à¤•à¥à¤Ÿ शोभायमान हो रहा था। कंठ में नील चिनà¥à¤¹ था। उनके साथ में देवी गौरी विराजमान थीं, जो विदà¥à¤¯à¥à¤¤ पà¥à¤‚ज के समान पà¥à¤°à¤•ाशित हो रही थीं। महादेव जी की कांति कपूर के समान गौर थी। उनके शरीर पर शà¥à¤µà¥‡à¤¤ वसà¥à¤¤à¥à¤° थे तथा शरीर शà¥à¤µà¥‡à¤¤ भसà¥à¤® से यà¥à¤•à¥à¤¤ था।

इस पà¥à¤°à¤•ार भगवान शिव के परम उजà¥à¤œà¥à¤µà¤² रूप के दरà¥à¤¶à¤¨ कर चंचà¥à¤²à¤¾ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆà¥¤ उसने भगवान को बारंबार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया और हाथ जोड़कर पà¥à¤°à¥‡à¤®, आनंद और संतोष से यà¥à¤•à¥à¤¤ हो विनीतभाव से खड़ी हो गई। उसके नेतà¥à¤°à¥‹à¤‚ से आनंदाशà¥à¤°à¥à¤“ं की धारा बहने लगी। भगवान शंकर व भगवती गौरी उमा ने करà¥à¤£à¤¾ के साथ सौमà¥à¤¯ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से देखकर चंचà¥à¤²à¤¾ को अपने पास बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ गौरी उमा ने उसे पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• अपनी सखी बना लिया। चंचà¥à¤²à¤¾ सà¥à¤–पूरà¥à¤µà¤• भगवान शिव के धाम में, उमा देवी की सखी के रूप में निवास करने लगी।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ माहातà¥à¤®à¥à¤¯

पाचवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"बिंदà¥à¤— का पिशाच योनि से उदà¥à¤§à¤¾à¤°"

सूत जी बोले :- शौनक ! à¤à¤• दिन चंचà¥à¤²à¤¾ आनंद में मगà¥à¤¨ उमा देवी के पास गई और दोनों हाथ जोड़कर उनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करने लगी ।

चंचà¥à¤²à¤¾ बोली :- हे गिरिराजनंदिनी! सà¥à¤•ंदमाता, उमा, आप सभी मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ à¤à¤µà¤‚ देवताओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पूजà¥à¤¯ तथा समसà¥à¤¤ सà¥à¤–ों को देने वाली हैं। आप शंभà¥à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ हैं। आप ही सगà¥à¤£à¤¾ और निरà¥à¤—à¥à¤£à¤¾ हैं

हे सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤‚दसà¥à¤µà¤°à¥‚पिणी! आप ही पà¥à¤°à¤•ृति की पोषक हैं। हे माता! आप ही संसार की सृषà¥à¤Ÿà¤¿, पालन और संहार करने वाली हैं। आप ही बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ और महेश को उतà¥à¤¤à¤® पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¾ देने वाली परम शकà¥à¤¤à¤¿ हैं।

सूत जी कहते हैं :- शौनक ! सदà¥à¤—ति पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ चंचà¥à¤²à¤¾ इस पà¥à¤°à¤•ार देवी की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ कर शांत हो गई। उसकी आंखों में पà¥à¤°à¥‡à¤® के आंसू उमड़ आà¤à¥¤ तब शंकरपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ भकà¥à¤¤à¤µà¤¤à¥à¤¸à¤²à¤¾ उमा देवी ने बड़े पà¥à¤°à¥‡à¤® से चंचà¥à¤²à¤¾ को चà¥à¤ª कराते हà¥à¤ कहा- सखी चंचà¥à¤²à¤¾ ! मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हूं। बोलो, कà¥à¤¯à¤¾ वर मांगती हो?

चंचà¥à¤²à¤¾ बोली :-- हे गिरिराज कà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€à¥¤ मेरे पति बिंदà¥à¤— इस समय कहां हैं? उनकी कैसी हà¥à¤ˆ है ? मà¥à¤à¥‡ बताइठऔर कà¥à¤› उपाय कीजिà¤, ताकि हम फिर से मिल सकें । हे महादेवी ! मेरे पति à¤à¤• शूदà¥à¤° जाति वेशà¥à¤¯à¤¾ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आसकà¥à¤¤ थे और पाप में ही डूबे रहते थे।

गिरिजा बोलीं :- बेटी तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ पति बिंदà¥à¤— बड़ा पापी था। उसका अंत बड़ा भयानक हà¥à¤†à¥¤ वेशà¥à¤¯à¤¾ का उपभोग करने के कारण वह मूरà¥à¤– नरक में अनेक वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक अनेक पà¥à¤°à¤•ार के दà¥à¤– भोगकर अब शेष पाप को भोगने के लिठविंधà¥à¤¯à¤ªà¤°à¥à¤µà¤¤ पर पिशाच की योनि में रह रहा है। वह दà¥à¤·à¥à¤Ÿ वहीं वायॠपीकर रहता है और सब पà¥à¤°à¤•ार के कषà¥à¤Ÿ सहता है।

सूत जी कहते हैं :- शौनक ! गौरी देवी की यह बात सà¥à¤¨à¤•र चंचà¥à¤²à¤¾ अतà¥à¤¯à¤‚त दà¥à¤–ी हो गई। फिर मन को किसी तरह सà¥à¤¥à¤¿à¤° करती हà¥à¤ˆ दà¥à¤–ी हृदय से मां गौरी से उसने à¤à¤• बार फिर पूछा ।

हे महादेवी ! मà¥à¤ पर कृपा कीजिठऔर मेरे पापी पति का अब उदà¥à¤§à¤¾à¤° कर दीजिठ। कृपा करके मà¥à¤à¥‡ वह उपाय बताइठजिससे मेरे पति को उतà¥à¤¤à¤® गति पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो सके।

गौरी देवी ने कहा :– यदि तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ पति बिंदà¥à¤— शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की पà¥à¤£à¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ उतà¥à¤¤à¤® कथा सà¥à¤¨à¥‡ तो वह इस दà¥à¤°à¥à¤—ति को पार करके उतà¥à¤¤à¤® गति का भागी हो सकता है।

अमृत के समान मधà¥à¤° गौरी देवी का यह वचन सà¥à¤¨à¤•र चंचà¥à¤²à¤¾ ने दोनों हाथ जोड़कर मसà¥à¤¤à¤• à¤à¥à¤•ाकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बारंबार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया तथा पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की कि मेरे पति को शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ कीजिठ।

बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ पतà¥à¤¨à¥€ चंचà¥à¤²à¤¾ के बार-बार पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने पर शिवपà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ गौरी देवी ने भगवान शिव की महिमा का गान करने वाले गंधरà¥à¤µà¤°à¤¾à¤œ तà¥à¤®à¥à¤¬à¥à¤°à¥‹ को बà¥à¤²à¤¾à¤•र कहा- - तà¥à¤®à¥à¤¬à¥à¤°à¥‹ ! तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ भगवान शिव में पà¥à¤°à¥€à¤¤à¤¿ है। तà¥à¤® मेरे मन की सभी बातें जानकर मेरे कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सिदà¥à¤§ करते हो। तà¥à¤® मेरी इस सखी के साथ विंधà¥à¤¯ पर जाओ। वहां à¤à¤• महाघोर और भयंकर पिशाच रहता है। पूरà¥à¤µ जनà¥à¤® में वह पिशाच बिंदà¥à¤— नामक बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ मेरी इस सखी चंचà¥à¤²à¤¾ का पति था। वह वेशà¥à¤¯à¤¾à¤—ामी हो गया।

उसने सà¥à¤¨à¤¾à¤¨-संधà¥à¤¯à¤¾ आदि नितà¥à¤¯à¤•रà¥à¤® छोड़कर अपवितà¥à¤° रहने लगा । कà¥à¤°à¥‹à¤§ के कारण उसकी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ भà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ हो गई। दà¥à¤°à¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ से उसकी मितà¥à¤°à¤¤à¤¾ तथा सजà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ से दà¥à¤µà¥‡à¤· बढ़ गया था। वह असà¥à¤¤à¥à¤°-शसà¥à¤¤à¥à¤° से हिंसा करता, लोगों को सताता और उनके घरों में आग लगा देता था। चाणà¥à¤¡à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ से दोसà¥à¤¤à¥€ करता व रोज वेशà¥à¤¯à¤¾ के पास जाता था। पतà¥à¤¨à¥€ को तà¥à¤¯à¤¾à¤—कर दà¥à¤·à¥à¤Ÿ लोगों से दोसà¥à¤¤à¥€ कर उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के संपरà¥à¤• में रहता था। वह मृतà¥à¤¯à¥ तक दà¥à¤°à¤¾à¤šà¤¾à¤° में फंसा रहा। मृतà¥à¤¯à¥ के बाद उसे पापियों के भोग सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ यमपà¥à¤° ले जाया गया। वहां घोर नरकों को सहकर इस समय वह विंधà¥à¤¯ परà¥à¤µà¤¤ पर पिशाच बनकर रह रहा है और पापों का फल भोग रहा है। तà¥à¤® उसके सामने परम पà¥à¤£à¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ पापों का नाश करने वाली शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की दिवà¥à¤¯ कथा का पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ करो। इस कथा को सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ से उसका हृदय सभी पापों से मà¥à¤•à¥à¤¤ होकर शà¥à¤¦à¥à¤§ हो जाà¤à¤—ा और वह पà¥à¤°à¥‡à¤¤ योनि से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाà¤à¤—ा। दà¥à¤°à¥à¤—ति मà¥à¤•à¥à¤¤ होने पर उस बिंदà¥à¤— नामक पिशाच को विमान पर बिठाकर तà¥à¤® भगवान शिव के पास ले आना।
सूत जी कहते हैं :- शौनक ! मां उमा का आदेश पाकर गंधरà¥à¤µà¤°à¤¾à¤œ तà¥à¤®à¥à¤¬à¥à¤°à¥‹ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• अपने भागà¥à¤¯ की सराहना करते हà¥à¤ चंचà¥à¤²à¤¾ को साथ लेकर विमान से पिशाच के निवास सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ विंधà¥à¤¯à¤ªà¤°à¥à¤µà¤¤ गया। वहां पहà¥à¤‚चकर उसने उस विकराल आकृति वाले पिशाच को देखा। उसका शरीर विशाल था। उसकी ठोढ़ी बड़ी थी। वह कभी हंसता, कभी रोता और कभी उछलता था। महाबली तà¥à¤®à¥à¤¬à¥à¤°à¥‹ ने बिंदà¥à¤— नामक पिशाच को पाशों से बांध लिया। उसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ तà¥à¤®à¥à¤¬à¥à¤°à¥‹ ने शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा बांचने के लिठसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तलाश कर मंडप की रचना की ।

शीघà¥à¤° ही इस बात का पता लोगों को चल गया कि à¤à¤• पिशाच के उदà¥à¤§à¤¾à¤° हेतॠदेवी पारà¥à¤µà¤¤à¥€ की आजà¥à¤žà¤¾ से तà¥à¤®à¥à¤¬à¥à¤°à¥‹ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की अमृत कथा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ विंधà¥à¤¯à¤ªà¤°à¥à¤µà¤¤ पर आया है।

उस कथा को सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के लोभ से बहà¥à¤¤ से देवरà¥à¤·à¤¿ वहां पहà¥à¤‚च गà¤à¥¤ सभी को आदरपूरà¥à¤µà¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ दिया गया। पिशाच बिंदà¥à¤— को पाशों में बांधकर आसन पर बिठाया गया और तब तà¥à¤®à¥à¤¬à¥à¤°à¥‹ ने परम उतà¥à¤¤à¤® शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की अमृत कथा का गान शà¥à¤°à¥‚ किया। उसने पहली विदà¥à¤¯à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° संहिता से लेकर सातवीं वायà¥à¤¸à¤‚हिता तक शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा का सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ वरà¥à¤£à¤¨ किया।

सातों संहिताओं सहित शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ को सà¥à¤¨à¤•र सभी शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ कृतारà¥à¤¥ हो गà¤à¥¤ परम पà¥à¤£à¥à¤¯à¤®à¤¯ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ को सà¥à¤¨à¤•र पिशाच सभी पापों से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो गया और उसने पिशाच शरीर का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिया। शीघà¥à¤° ही उसका रूप दिवà¥à¤¯ हो गया। उसका शरीर गौर वरà¥à¤£ का हो गया। शरीर पर शà¥à¤µà¥‡à¤¤ वसà¥à¤¤à¥à¤° à¤à¤µà¤‚ पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के आभूषण आ गà¤à¥¤

इस पà¥à¤°à¤•ार दिवà¥à¤¯ देहधारी होकर बिंदà¥à¤— अपनी पतà¥à¤¨à¥€ चंचà¥à¤²à¤¾ के साथ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ भी भगवान शिव का गà¥à¤£à¤—ान करने लगा। उसे इस दिवà¥à¤¯ रूप में देखकर सभी को बहà¥à¤¤ आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हà¥à¤†à¥¤ उसका मन परम आनंद से परिपूरà¥à¤£ हो गया।

सभी भगवान महेशà¥à¤µà¤° के अदà¥à¤­à¥à¤¤ चरितà¥à¤° को सà¥à¤¨à¤•र कृतारà¥à¤¥ हो, उनका यशोगान करते हà¥à¤ अपने-अपने धाम को चले गà¤à¥¤ बिंदà¥à¤— अपनी पतà¥à¤¨à¥€ चंचà¥à¤²à¤¾ के साथ विमान में बैठकर शिवपà¥à¤°à¥€ की ओर चल दिया।

महेशà¥à¤µà¤° के गà¥à¤£à¥‹à¤‚ का गान करता हà¥à¤† बिंदà¥à¤— अपनी पतà¥à¤¨à¥€ चंचà¥à¤²à¤¾ व तà¥à¤®à¥à¤¬à¥à¤°à¥‹ के साथ शीघà¥à¤° ही शिवधाम पहà¥à¤‚च गया। भगवान शिव व देवी पारà¥à¤µà¤¤à¥€ ने उसे अपना पारà¥à¤·à¤¦ बना लिया। दोनों पति-पतà¥à¤¨à¥€ सà¥à¤–पूरà¥à¤µà¤• भगवान महेशà¥à¤µà¤° à¤à¤µà¤‚ देवी गौरी के शà¥à¤°à¥€à¤šà¤°à¤£à¥‹à¤‚ में अविचल निवास पाकर धनà¥à¤¯ हो गà¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ माहातà¥à¤®à¥à¤¯

छठा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ के शà¥à¤°à¤µà¤£ की विधि"

शौनक जी कहते हैं :– महापà¥à¤°à¤¾à¤œà¥à¤ž सूत जी! आप धनà¥à¤¯ à¤à¤µà¤‚ शिवभकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  हैं। हम पर कृपा कर हमें कलà¥à¤¯à¤¾à¤£à¤®à¤¯ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ के शà¥à¤°à¤µà¤£ की विधि बताइà¤, जिससे सभी शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤“ं को संपूरà¥à¤£ उतà¥à¤¤à¤® फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हो ।

सूत जी ने कहा :- मà¥à¤¨à¥‡ शौनक ! तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ संपूरà¥à¤£ फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिठमैं शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की विधि सविसà¥à¤¤à¤¾à¤° बताता हूं। सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤®, किसी जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·à¥€ को बà¥à¤²à¤¾à¤•र दान से संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ कर उससे कथा का शà¥à¤­ मà¥à¤¹à¥‚रà¥à¤¤ निकलवाना चाहिठऔर उसकी सूचना का संदेश सभी लोगों तक पहà¥à¤‚चाना चाहिठकि हमारे यहां शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा होने वाली है। अपने कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ की इचà¥à¤›à¤¾ रखने वालों को इसे सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ अवशà¥à¤¯ पधारना चाहिà¤à¥¤ देश-देश में जो भी भगवान शिव के भकà¥à¤¤ हों तथा शिव कथा के कीरà¥à¤¤à¤¨ और शà¥à¤°à¤µà¤£ के उतà¥à¤¸à¥à¤• हों, उन सभी को आदरपूरà¥à¤µà¤• बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¤¾ चाहिठऔर उनका आदर-सतà¥à¤•ार करना चाहिà¤à¥¤ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ के लिठमंदिर, तीरà¥à¤¥, वनपà¥à¤°à¤¾à¤‚त अथवा घर में ही उतà¥à¤¤à¤® सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करना चाहिà¤à¥¤ केले के खंभों से सà¥à¤¶à¥‹à¤­à¤¿à¤¤ कथामणà¥à¤¡à¤ª तैयार कराà¤à¤‚। उसे सब ओर फल-पà¥à¤·à¥à¤ª, सà¥à¤‚दर चंदोवे से अलंकृत करना चाहिà¤à¥¤ चारों कोनों पर धà¥à¤µà¤œ लगाकर उसे विभिनà¥à¤¨ सामगà¥à¤°à¥€ से सà¥à¤¶à¥‹à¤­à¤¿à¤¤ करें। भगवान शंकर के लिठभकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• दिवà¥à¤¯ आसन का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करना चाहिठतथा कथा वाचक के लिठभी दिवà¥à¤¯ आसन का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ करना चाहिà¤à¥¤ नियमपूरà¥à¤µà¤• कथा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ वालों के लिठभी सà¥à¤¯à¥‹à¤—à¥à¤¯ आसन की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करें तथा अनà¥à¤¯ लोगों के बैठने की भी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करें। कथा बांचने वाले विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ के

पà¥à¤°à¤¤à¤¿ कभी बà¥à¤°à¥€ भावना न रखें। संसार में जनà¥à¤® तथा गà¥à¤£à¥‹à¤‚ के कारण बहà¥à¤¤ से गà¥à¤°à¥ होते हैं परंतॠउन सबमें पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¤à¤¾ ही परम गà¥à¤°à¥ माना जाता है। पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤µà¥‡à¤¤à¥à¤¤à¤¾ पवितà¥à¤°, शांत, साधà¥, ईरà¥à¤·à¥à¤¯à¤¾ पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने वाला और दयालॠहोना चाहिà¤à¥¤ à¤à¤¸à¥‡ गà¥à¤£à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को इस पà¥à¤£à¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ कथा को बांचना चाहिठसूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ से साढ़े तीन पहर तक इसे बांचने का उपयà¥à¤•à¥à¤¤ समय है। मधà¥à¤¯à¤¾à¤¹à¥à¤¨à¤•ाल में दो घड़ी तक कथा बंद रखनी चाहिठताकि लोग मल-मूतà¥à¤° का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर सकें।

जिस दिन से कथा शà¥à¤°à¥‚ हो रही है उससे à¤à¤• दिन पहले वà¥à¤°à¤¤ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करें। कथा के दिनों में पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ काल का नितà¥à¤¯à¤•रà¥à¤® संकà¥à¤·à¥‡à¤ª में कर लेना चाहिà¤à¥¤ वकà¥à¤¤à¤¾ के पास उसकी सहायता हेतॠà¤à¤• विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को बैठाना चाहिठजो कि सब पà¥à¤°à¤•ार के संशयों को दूर कर लोगों को समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ में कà¥à¤¶à¤² हो कथा में आने वाले विघà¥à¤¨à¥‹à¤‚ को दूर करने के लिठसरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® गणेश जी का पूजन करना चाहिà¤à¥¤ भगवान शिव व शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की भकà¥à¤¤à¤¿à¤­à¤¾à¤µ से पूजा करें। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ तन मन से शà¥à¤¦à¥à¤§ होकर आदरपूरà¥à¤µà¤• शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा सà¥à¤¨à¥‡à¤‚ । जो वकà¥à¤¤à¤¾ और शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ अनेक पà¥à¤°à¤•ार के करà¥à¤®à¥‹à¤‚ से भटक रहे हों, काम आदि छः विकारों से यà¥à¤•à¥à¤¤ हों, वे पà¥à¤£à¥à¤¯ के भागी नहीं हो सकते। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ अपनी सभी चिंताओं को भूलकर कथा में मन लगाते हैं, उन शà¥à¤¦à¥à¤§ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को उतà¥à¤¤à¤® फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है ।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ माहातà¥à¤®à¥à¤¯

सातवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤“ं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पालन किठजाने वाले नियम"

सूत जी बोले :- शौनक ! शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ का वà¥à¤°à¤¤ लेने वाले पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के लिठजो नियम हैं, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ भकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• सà¥à¤¨à¥‹à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की पà¥à¤£à¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ कथा नियमपूरà¥à¤µà¤• सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ से बिना किसी विघà¥à¤¨-बाधा के उतà¥à¤¤à¤® फल की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है। दीकà¥à¤·à¤¾ रहित मनà¥à¤·à¥à¤¯ को कथा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ का अधिकार नहीं है। अतः पहले वकà¥à¤¤à¤¾ से दीकà¥à¤·à¤¾ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करनी चाहिà¤à¥¤ नियमपूरà¥à¤µà¤• कथा सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ वाले मनà¥à¤·à¥à¤¯ को बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ का अचà¥à¤›à¥€ तरह से पालन करना चाहिà¤à¥¤ उसे भूमि पर सोना चाहिà¤, पतà¥à¤¤à¤² में खाना चाहिठतथा कथा समापà¥à¤¤ होने पर ही अनà¥à¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ करना चाहिà¤à¥¤ समरà¥à¤¥ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को शà¥à¤¦à¥à¤§à¤­à¤¾à¤µ से शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की कथा की समापà¥à¤¤à¤¿ तक उपवास रखना चाहिठऔर à¤à¤• ही बार भोजन करना चाहिठ। गरिषà¥à¤  अनà¥à¤¨, दाल, जला अनà¥à¤¨, सेम, मसूर तथा बासी अनà¥à¤¨ नहीं खाना चाहिà¤à¥¤ जिसने कथा का वà¥à¤°à¤¤ ले रखा हो, उसे पà¥à¤¯à¤¾à¤œ, लहसà¥à¤¨, हींग, गाजर, मादक वसà¥à¤¤à¥ तथा आमिष कही जाने वाली वसà¥à¤¤à¥à¤“ं को तà¥à¤¯à¤¾à¤— देना चाहिà¤à¥¤ à¤à¤¸à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ सतà¥à¤¯, शौच, दया, मौन, सरलता, विनय तथा हारà¥à¤¦à¤¿à¤• उदारता आदि सदà¥à¤—à¥à¤£à¥‹à¤‚ को अपनाठतथा साधà¥-संतों की निंदा का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर नियमपूरà¥à¤µà¤• कथा सà¥à¤¨à¥‡ सकाम मनà¥à¤·à¥à¤¯ इस कथा के पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ से अपनी अभीषà¥à¤Ÿ कामना पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है और निषà¥à¤•ाम मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करता है। सभी सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को विधिविधान से शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की उतà¥à¤¤à¤® कथा को सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ चाहिà¤

महरà¥à¤·à¥‡! शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की समापà¥à¤¤à¤¿ पर शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾à¤“ं को भकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• भगवान शिव की पूजा की तरह पà¥à¤°à¤¾à¤£-पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• की पूजा भी करनी चाहिठतथा इसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ विधिपूरà¥à¤µà¤• वकà¥à¤¤à¤¾ का भी पूजन करना चाहिठपà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• को रखने के लिठनया और सà¥à¤‚दर बसà¥à¤¤à¤¾ बनाà¤à¤‚। पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• व वकà¥à¤¤à¤¾ की पूजा के उपरांत वकà¥à¤¤à¤¾ की सहायता हेतॠबà¥à¤²à¤¾à¤ गठपंडित का भी सतà¥à¤•ार करना चाहिà¤à¥¤

कथा में पधारे अनà¥à¤¯ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को भी अनà¥à¤¨-धन का दान दें। गीत, वादà¥à¤¯ और नृतà¥à¤¯ से उतà¥à¤¸à¤µ को महान बनाà¤à¤‚। विरकà¥à¤¤ मनà¥à¤·à¥à¤¯ को कथा समापà¥à¤¤à¤¿ पर गीता का पाठ करना चाहिठतथा गृहसà¥à¤¥ को शà¥à¤°à¤µà¤£ करà¥à¤® की शांति हेतॠहोम करना चाहिà¤à¥¤ होम रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¸à¤‚हिता के शà¥à¤²à¥‹à¤•ों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अथवा गायतà¥à¤°à¥€ मंतà¥à¤° के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ करें। यदि हवन करने में असमरà¥à¤¥ हों तो भकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• शिव सहसà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤® का पाठ करें।

कथाशà¥à¤°à¤µà¤£ संबंधी वà¥à¤°à¤¤ की पूरà¥à¤£à¤¤à¤¾ के लिठशहद से बनी खीर का भोजन गà¥à¤¯à¤¾à¤°à¤¹ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को कराकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ दें। समृदà¥à¤§ मनà¥à¤·à¥à¤¯ तीन तोले सोने का à¤à¤• सà¥à¤‚दर सिंहासन बनाठऔर उसके ऊपर लिखी अथवा लिखाई हà¥à¤ˆ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ की लिखी पोथी विधिपूरà¥à¤µà¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ करें तथा पूजा करके दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ चढ़ाà¤à¤‚। फिर आचारà¥à¤¯ का वसà¥à¤¤à¥à¤°, आभूषण à¤à¤µà¤‚ गंध से पूजन करके दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ सहित वह पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤• उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ भेंट कर दें। शौनक, इस पà¥à¤°à¤¾à¤£ के दान के पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ से भगवान शिव का अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ पाकर मनà¥à¤·à¥à¤¯ भवबंधन से मà¥à¤•à¥à¤¤ हो जाता है। शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ को विधिपूरà¥à¤µà¤• संपनà¥à¤¨ करने पर यह संपूरà¥à¤£ फल देता है तथा भोग और मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। मà¥à¤¨à¥‡! शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ का सारा माहातà¥à¤®à¥à¤¯, जो संपूरà¥à¤£ फल देने वाला है, मैंने तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤¨à¤¾ दिया है।

अब आप और कà¥à¤¯à¤¾ सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ चाहते हो ? शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¾à¤¨ शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ सभी पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ के माथे का तिलक है। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ सदा भगवान शिव का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करते हैं, जिनकी वाणी शिव के गà¥à¤£à¥‹à¤‚ की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करती है और जिनके दोनों कान उनकी कथा सà¥à¤¨à¤¤à¥‡ हैं, उनका जीवन सफल हो जाता है, वे संसार सागर से पार हो जाते हैं। à¤à¤¸à¥‡ लोग इहलोक और परलोक में सदा सà¥à¤–ी रहते हैं। भगवान शिव के सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤‚दमय सà¥à¤µà¤°à¥‚प का सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ पाकर ही समसà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤•ार के कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ का निवारण हो जाता है। उनकी महिमा जगत के बाहर और भीतर दोनों जगह विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है। उन अनंत आनंदरूप परम शिव की मैं शरण लेता हूं।

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