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Shiva Purana Sri Rudra Samhita (1st Volume) The first, second, third, fourth, fifth, sixth and seventh chapters

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता (पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡) का पहला,दूसरा,तिसरा, चौथा,पाचवाà¤,छठा व सातवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ (The first, second, third, fourth, fifth, sixth and seventh chapters of Shiva Purana Sri Rudra Samhita (1st Volume))

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

पहला अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"ऋषिगणों की वारà¥à¤¤à¤¾"

जो विशà¥à¤µ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿, सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ और लय आदि के à¤à¤•मातà¥à¤° कारण हैं, गिरिराजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ उमा के पति हैं, जिनकी कीरà¥à¤¤à¤¿ का कहीं अंत नहीं है, जो माया के आशà¥à¤°à¤¯ होकर भी उससे दूर हैं तथा जिनका सà¥à¤µà¤°à¥‚प दà¥à¤°à¥à¤²à¤­ है, मैं उन भगवान शंकर की वंदना करता हूं। जिनकी माया विशà¥à¤µ की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ करती है। जैसे लोहा चà¥à¤‚बक से आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ होकर उसके पास ही लटका रहता है, उसी पà¥à¤°à¤•ार ये सारे जगत जिसके आसपास ही भà¥à¤°à¤®à¤£ करते हैं, जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इन पà¥à¤°à¤ªà¤‚चों को रचने की विधि बताई है, जो सभी के भीतर अंतरà¥à¤¯à¤¾à¤®à¥€ रूप से विराजमान हैं, मैं उन भगवान शिव को नमन करता हूं।
ऋषि बोले :– हे सूत जी! अब आप हमसे भगवान शिव व पारà¥à¤µà¤¤à¥€ के परम उतà¥à¤¤à¤® व दिवà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प का वरà¥à¤£à¤¨ कीजिठ। सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की रचना से पूरà¥à¤µ, सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के मधà¥à¤¯à¤•ाल व अंतकाल में महेशà¥à¤µà¤° किस पà¥à¤°à¤•ार व किस रूप में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ होते हैं? सभी लोकों का कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ करने वाले भगवान शिव कैसे पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हैं? तथा पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होने पर अपने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को कौन-कौन से उतà¥à¤¤à¤® फल देते हैं? हमने सà¥à¤¨à¤¾ है कि भगवान शिव महान दयालॠहैं। अपने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को कषà¥à¤Ÿ में नहीं देख सकते। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ और महेश तीनों देवता शिवजी के अंग से ही उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ हैं। हम पर कृपा कर शिवजी के पà¥à¤°à¤¾à¤•टà¥à¤¯, देवी उमा की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿, शिव-उमा विवाह, गृहसà¥à¤¥ धरà¥à¤® à¤à¤µà¤‚ शिवजी के अनंत चरितà¥à¤°à¥‹à¤‚ को सà¥à¤¨à¤¾à¤‡à¤ ।

सूत जी बोले ;- हे ऋषियो! आप लोगों के पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ पतित-पावनी शà¥à¤°à¥€ गंगाजी के समान हैं। ये सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ वालों, कहने वालों और पूछने वालों इन तीनों को पवितà¥à¤° करने वाले हैं। आपकी इस कथा को सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ की आंतरिक इचà¥à¤›à¤¾ है, इसलिठआप धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ के पातà¥à¤° हैं। बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹! भगवान शंकर का रूप साधà¥, राजसी और तामसी तीनों पà¥à¤°à¤•ृति के मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को सदा आनंद पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला है। वे मनà¥à¤·à¥à¤¯, जिनके मन में कोई तृषà¥à¤£à¤¾ नहीं है, à¤à¤¸à¥‡-à¤à¤¸à¥‡ महातà¥à¤®à¤¾ पà¥à¤°à¥à¤· भगवान शिव के गà¥à¤£à¥‹à¤‚ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ करते हैं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि शिव की भकà¥à¤¤à¤¿ मन और कानों को पà¥à¤°à¤¿à¤¯ लगने वाली और संपूरà¥à¤£ मनोरथों को देने वाली है। हे ऋषियो! मैं आपके पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ही शिव के चरितà¥à¤°à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ करता हूं, आप उसे आदरपूरà¥à¤µà¤• शà¥à¤°à¤µà¤£ करें। आपके पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° ही नारद जी ने अपने पिता बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ से यही पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ किया था, तब बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर शिव चरितà¥à¤° सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ था। उसी संवाद को मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¾ हूं कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उस संवाद में भवसागर से मà¥à¤•à¥à¤¤ कराने वाले गौरीश की अनेकों आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤®à¤¯à¥€ लीलाà¤à¤‚ वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ हैं।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

दूसरा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"नारद जी की काम वासना"

सूत जी बोले :– हे ऋषियो! à¤à¤• समय की बात है। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ पà¥à¤¤à¥à¤° नारद जी हिमालय परà¥à¤µà¤¤ की à¤à¤• गà¥à¤«à¤¾ में बहà¥à¤¤ दिनों से तपसà¥à¤¯à¤¾ कर रहे थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दृढ़तापूरà¥à¤µà¤• समाधि लगाई थी और तप करने लगे थे। उनके उगà¥à¤° तप का समाचार पाकर देवराज इंदà¥à¤° कांप उठे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सोचा कि नारद मà¥à¤¨à¤¿ मेरे सà¥à¤µà¤°à¥à¤—लोक के राजà¥à¤¯ को छीनना चाहते हैं। यह खयाल आते ही इंदà¥à¤° ने उनकी तपसà¥à¤¯à¤¾ में विघà¥à¤¨ डालने की कोशिश की।

उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कामदेव को बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ और कहने लगे :– हे कामदेव! तà¥à¤® मेरे परम मितà¥à¤° à¤à¤µà¤‚ हितैषी हो । नारद हिमाचल परà¥à¤µà¤¤ की गà¥à¤«à¤¾ में बैठकर तपसà¥à¤¯à¤¾ कर रहा है। कहीं à¤à¤¸à¤¾ न हो कि वह वरदान में बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ से मेरा सà¥à¤µà¤°à¥à¤— का राजà¥à¤¯ ही मांग बैठे। अतः तà¥à¤® वहां जाकर उसका तप भंग कर दो। यह आजà¥à¤žà¤¾ पाकर कामदेव वसंत को साथ ले बड़े गरà¥à¤µ से उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर गठऔर अपनी सारी कलाà¤à¤‚ रच डालीं। कामदेव और वसंत के बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ करने पर भी नारद मà¥à¤¨à¤¿ के मन में कोई विकार उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ नहीं हà¥à¤†à¥¤ महादेव जी के अनà¥à¤—à¥à¤°à¤¹ से उन दोनों का गरà¥à¤µ चूरà¥à¤£ हो गया।

à¤à¤¸à¤¾ इसलिठहà¥à¤† कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि महादेव जी की कृपा से नारद मà¥à¤¨à¤¿ पर कामदेव का कोई पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ नहीं पड़ा था। पहले उस आशà¥à¤°à¤® में भगवान शिव ने भी तपसà¥à¤¯à¤¾ की थी। उसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तपसà¥à¤¯à¤¾ का नाश करने वाले कामदेव को भसà¥à¤® कर डाला था। कामदेव को भसà¥à¤® देखकर उनकी पतà¥à¤¨à¥€ रति ने बिलखते हà¥à¤ भगवान शंकर से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जीवित करने की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की तथा सभी देवता भी शिवजी से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने लगे तो भगवान महादेव जी ने कहा था कि कà¥à¤› समय पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ कामदेव सà¥à¤µà¤¯à¤‚ जीवित हो जाà¤à¤‚गे। किंतॠइस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर और इसके आस-पास जहां तक भसà¥à¤® दिखाई देती है, वहां तक की पृथà¥à¤µà¥€ पर कामदेव की माया और काम बाण का कोई पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ नहीं पड़ेगा। इस पà¥à¤°à¤•ार उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से कामदेव लजà¥à¤œà¤¿à¤¤ होकर वापस लौट आया। देवराज इंदà¥à¤° ने जब यह सà¥à¤¨à¤¾ कि नारद जी पर कामदेव का कोई पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ नहीं पड़ा तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने नारद जी की खूब पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा की। भगवान शिव की माया के कारण वे भूल गठथे कि शिवजी के शाप के कारण उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर कामदेव की माया नहीं चल सकती। नारद जी भगवान शिव की कृपा से बहà¥à¤¤ समय तक तपसà¥à¤¯à¤¾ करते रहे। अपने तप को पूरà¥à¤£à¤‚ हà¥à¤† समà¤à¤•र नारद जी उठे तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कामदेव पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आया। तब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मन ही मन इस बात का घमंड हà¥à¤† कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कामदेव पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर ली है। इस पà¥à¤°à¤•ार अभिमान से उनका जà¥à¤žà¤¾à¤¨ नषà¥à¤Ÿ हो गया। वे यह समठनहीं सके कि कामदेव के पराजित होने में भगवान शंकर की ही माया थी। तब वे अपनी काम विजय की कथा सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ के लिठशीघà¥à¤° ही कैलाश परà¥à¤µà¤¤ पर जा पहà¥à¤‚चे और भगवान शिव को नमसà¥à¤•ार करके अपनी तपसà¥à¤¯à¤¾ की सफलता का समाचार तथा कामदेव पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने का समाचार कह सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤

यह सब सà¥à¤¨à¤•र महादेव जी ने नारद की पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा करते हà¥à¤ कहा-

हे नारद जी! आप परम धनà¥à¤¯ हैं परंतॠमेरी à¤à¤• बात याद रखना कि यह समाचार किसी अनà¥à¤¯ देवता को मत सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾, विशेषकर भगवान विषà¥à¤£à¥ से तो इस बात को कदापि न कहना। यह वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त सबसे छिपाकर रखने योगà¥à¤¯ है। तà¥à¤® मेरे पà¥à¤°à¤¿à¤¯ हो, इसलिठमैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ यह आजà¥à¤žà¤¾ देता हूं कि यह बात किसी के सामने पà¥à¤°à¤•ट मत करना। परंतॠवे तो शिव की माया से मोहित हो चà¥à¤•े थे। इसलिठउनकी दी शिकà¥à¤·à¤¾ को धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में न रखते हà¥à¤ वे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• चले गà¤à¥¤ वहां बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ को नमसà¥à¤•ार कर बोले मैंने अपने तपोबल से कामदेव को जीत लिया है। यह सà¥à¤¨à¤•र बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने भगवान शिव के चरणों का चिंतन करके सारा कारण जान लिया तथा अपने पà¥à¤¤à¥à¤° नारद को यह सब किसी और से कहने के लिठमना कर दिया।

नारद के मन में अभिमान के अंकà¥à¤° उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो गठथे जिसके फलसà¥à¤µà¤°à¥‚प उनकी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ नषà¥à¤Ÿ हो गई थी। वे तो तà¥à¤°à¤‚त विषà¥à¤£à¥à¤²à¥‹à¤• पहà¥à¤‚चकर भगवान विषà¥à¤£à¥ को यह सारा किसà¥à¤¸à¤¾ सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾ चाहते थे। अतः शीघà¥à¤° ही वे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• से चल दिà¤à¥¤ नारद मà¥à¤¨à¤¿ को आते देखकर भगवान विषà¥à¤£à¥ सिंहासन से उठ खड़े हà¥à¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने नारद को गले लगा लिया और आदर सहित आसन पर बैठाया।

भगवान शिव के चरणों का सà¥à¤®à¤°à¤£ करके भगवान विषà¥à¤£à¥ ने नारद जी से पूछा, नारद जी! आप कहां से आ रहे हैं और इस लोक में आपका शà¥à¤­à¤¾à¤—मन किसलिठहà¥à¤† है ? यह सà¥à¤¨à¤•र नारद जी ने अहंकार सहित अपने तप के पूरà¥à¤£ होने à¤à¤µà¤‚ कामदेव पर विजय पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने का समसà¥à¤¤ हाल उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कह सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤ भगवान विषà¥à¤£à¥ काम के विजय के असली कारण को समठचà¥à¤•े थे।

वे नारद जी से बोले :— हे नारद जी ! आपकी कीरà¥à¤¤à¤¿ à¤à¤µà¤‚ निरà¥à¤®à¤² बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ धनà¥à¤¯ है। काम-कà¥à¤°à¥‹à¤§ à¤à¤µà¤‚ लोभ-मोह उन मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पीड़ित करते हैं, जो भकà¥à¤¤à¤¿à¤¹à¥€à¤¨ हैं। आप तो जà¥à¤žà¤¾à¤¨, वैरागà¥à¤¯ से यà¥à¤•à¥à¤¤ à¤à¤µà¤‚ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ हैं, फिर भला यह काम आपका कà¥à¤¯à¤¾ बिगाड़ सकता था?

देवरà¥à¤·à¤¿ नारद बोले :- हे भगवनà¥! यह सब आपकी कृपा का ही फल है। आपकी कृपा के आगे कामदेव की कà¥à¤¯à¤¾ सामरà¥à¤¥à¥à¤¯ है जो मेरा कà¥à¤› बिगाड़ सके। मैं तो सदा ही निरà¥à¤­à¤¯ हूं। इतना कहकर नारद जी विषà¥à¤£à¥ भगवान को नमसà¥à¤•ार कर वहां से चल दिà¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

तिसरा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"नारद जी का भगवान विषà¥à¤£à¥ से उनका रूप मांगना"

सूत जी बोले ;- महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! नारद जी के चले जाने पर शिवजी की इचà¥à¤›à¤¾ से विषà¥à¤£à¥ भगवान ने à¤à¤• अदà¥à¤­à¥à¤¤ माया रची। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जिस ओर नारद जी जा रहे थे, वहां à¤à¤• सà¥à¤‚दर नगर बना दिया। वह नगर बैकà¥à¤£à¥à¤ à¤²à¥‹à¤• से भी अधिक रमणीय था। वहां बहà¥à¤¤ से विहार-सà¥à¤¥à¤² थे। उस नगर के राजा का नाम 'शीलनिधि' था। उस राजा की à¤à¤• बहà¥à¤¤ सà¥à¤‚दर कनà¥à¤¯à¤¾ थी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के लिठसà¥à¤µà¤¯à¤‚वर का आयोजन किया था। उनकी कनà¥à¤¯à¤¾ का वरण करने के लिठउतà¥à¤¸à¥à¤• बहà¥à¤¤ से राजकà¥à¤®à¤¾à¤° पधारे थे। वहां बहà¥à¤¤ चहल-पहल थी। इस नगर की शोभा देखते ही नारद जी का मन मोहित हो गया। जब राजा शीलनिधि ने नारद जी को आते देखा तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ सादर पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करके सà¥à¤µà¤°à¥à¤£ सिंहासन पर बैठाकर उनकी पूजा की। फिर अपनी देव-सà¥à¤‚दरी कनà¥à¤¯à¤¾ को बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ जिसने महरà¥à¤·à¤¿ के चरणों में पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया।

नारद जी से उसका परिचय कराते हà¥à¤ शीलनिधि ने निवेदन किया- महरà¥à¤·à¤¿ ! यह मेरी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ 'शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€' है। इसके सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर का आयोजन किया गया है। इस कनà¥à¤¯à¤¾ के गà¥à¤£ दोषों को बताने की कृपा कीजिठ।

राजा के à¤à¤¸à¥‡ वचन सà¥à¤¨à¤•र नारद जी बोले ;- राजन! आपकी कनà¥à¤¯à¤¾ साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ है। इसका भावी पति भगवान शिव के समान वैभवशाली, तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•जयी, वीर तथा कामदेव को भी जीतने वाला होगा। à¤à¤¸à¤¾ कहकर नारद मà¥à¤¨à¤¿ वहां से चल दिà¤à¥¤ शिव की माया के कारण वे काम के वशीभूत हो सोचने लगे कि राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ को कैसे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करूं? सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर में आठसà¥à¤‚दर à¤à¤µà¤‚ वैभवशाली राजाओं को छोड़कर भला यह मेरा वरण कैसे करेगी? वे सोचने लगे कि नारियों को सौंदरà¥à¤¯ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¿à¤¯ होता है। सौंदरà¥à¤¯ को देखकर ही 'शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€' मेरा वरण कर सकती है। à¤à¤¸à¤¾ विचार कर नारद जी फिर विषà¥à¤£à¥à¤²à¥‹à¤• में जा पहà¥à¤‚चे और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ राजा शीलनिधि की कनà¥à¤¯à¤¾ के सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर के बारे में बताया तथा उस कनà¥à¤¯à¤¾ के साथ विवाह करने की इचà¥à¤›à¤¾ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ की। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने भगवान विषà¥à¤£à¥ से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की कि वे अपना रूप उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करें ताकि शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ही वरे ।

सूत जी कहते हैं ;— महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! नारद मà¥à¤¨à¤¿ की à¤à¤¸à¥€ बात सà¥à¤¨à¤•र भगवान मधà¥à¤¸à¥‚दन हंस पड़े और भगवान शंकर के पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ का अनà¥à¤­à¤µ करके उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इस पà¥à¤°à¤•ार उतà¥à¤¤à¤° दिया।

भगवान विषà¥à¤£à¥ बोले ;- हे नारद ! वहां आप अवशà¥à¤¯ जाइà¤, मैं आपका हित उसी पà¥à¤°à¤•ार करूंगा, जिस पà¥à¤°à¤•ार पीड़ित वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ का शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  वैदà¥à¤¯ करता है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि तà¥à¤® मà¥à¤à¥‡ विशेष पà¥à¤°à¤¿à¤¯ हो । à¤à¤¸à¤¾ कहकर भगवान विषà¥à¤£à¥ ने नारद मà¥à¤¨à¤¿ को वानर का मà¥à¤– तथा शेष अंगों को अपना मनोहर रूप पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर दिया। तब नारद जी अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हà¥à¤ अपने को परम सà¥à¤‚दर समà¤à¤•र शीघà¥à¤° ही सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर में आ गठऔर उस राजà¥à¤¯ सभा में जा बैठे। उस सभा में रà¥à¤¦à¥à¤°à¤—ण बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ के रूप में बैठे हà¥à¤ थे। नारद जी का वानर रूप केवल कनà¥à¤¯à¤¾ और रà¥à¤¦à¥à¤°à¤—णों को ही दिखाई दे रहा था, बाकी सबको नारद जी का वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• रूप ही दिखाई दे रहा था। नारद मन ही मन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हà¥à¤ शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रहे थे।

हे ऋषियो! वह कनà¥à¤¯à¤¾ हाथ में जयमाला लिठअपनी सखियों के साथ सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर में आई। उसके हाथों में सोने की सà¥à¤‚दर माला थी । वह शà¥à¤­à¤²à¤•à¥à¤·à¤£à¤¾ राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ के समान अपूरà¥à¤µ शोभा पा रही थी। नारद मà¥à¤¨à¤¿ का भगवान विषà¥à¤£à¥ जैसा शरीर और वानर जैसा मà¥à¤– देख वह कà¥à¤ªà¤¿à¤¤ हो गई और उनकी ओर से दृषà¥à¤Ÿà¤¿ हटाकर मनोवांछित वर की तलाश में आगे चली गई। सभा में अपने मनपसंद वर को न पाकर वह उदास हो गई। उसने किसी के भी गले में वरमाला नहीं डाली। तभी भगवान विषà¥à¤£à¥ राजा की वेशभूषा धारण कर वहां आ पहà¥à¤‚चे। विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ को देखते ही उस परम सà¥à¤‚दरी ने उनके गले में वरमाला डाल दी। विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ को साथ लेकर तà¥à¤°à¤‚त अपने लोक को चले गà¤à¥¤ यह देखकर नारद जी विचलित हो गà¤à¥¤ तब बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ के रूप में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ रà¥à¤¦à¥à¤°à¤—णों ने नारद जी से कहा- हे नारद जी! आप वà¥à¤¯à¤°à¥à¤¥ ही काम से मोहित हो सौंदरà¥à¤¯ के बल से राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ को पाना चाहते हैं। पहले जरा अपना वानर के समान मà¥à¤– तो देख लीजिà¤à¥¤

सूत जी बोले ;- यह वचन सà¥à¤¨à¤•र नारद जी को बड़ा आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हà¥à¤†à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दरà¥à¤ªà¤£ में अपना मà¥à¤‚ह देखा वानर के समान मà¥à¤– को देखकर वे अतà¥à¤¯à¤‚त कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ हो उठे तथा दोनों रà¥à¤¦à¥à¤°à¤—णों को शाप देते हà¥à¤ बोले तà¥à¤®à¤¨à¥‡ à¤à¤• बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ का मजाक उड़ाया है। अतः तà¥à¤® बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ कà¥à¤² में पैदा होकर भी राकà¥à¤·à¤¸ बन जाओ। यह सà¥à¤¨à¤•र वे शिवगण कà¥à¤› नहीं बोले बलà¥à¤•ि इसे भगवान शिव की इचà¥à¤›à¤¾ मानते हà¥à¤ उदासीन भाव से अपने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को चले गठऔर भगवान शिव की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करने लगे।

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

चौथा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"नारद जी का भगवान विषà¥à¤£à¥ को शाप देना"

ऋषि बोले ;- हे सूत जी! रà¥à¤¦à¥à¤°à¤—णों के चले जाने पर नारद जी ने कà¥à¤¯à¤¾ किया और वे कहां गà¤? इस सबके बारे में भी हमें बताइठ।

सूत जी बोले ;- हे ऋषियो! माया से मोहित नारद जी उन दोनों शिवगणों को शाप देकर भी मोहवश कà¥à¤› जान न सके। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ होते हà¥à¤ वे तालाब के पास पहà¥à¤‚चे और वहां जल में पà¥à¤¨à¤ƒ अपनी परछाईं देखी तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ फिर वानर जैसी आकृति दिखाई दी। उसे देखकर नारद जी को और अधिक कà¥à¤°à¥‹à¤§ चढ़ आया। वे सीधे विषà¥à¤£à¥à¤²à¥‹à¤• की ओर चल दिà¤à¥¤

वहां पहà¥à¤‚चकर भगवान विषà¥à¤£à¥ से वे बोले :- हे हरि! तà¥à¤® बड़े दà¥à¤·à¥à¤Ÿ हो। अपने कपट से विशà¥à¤µ को मोहने वाले तà¥à¤® दूसरों को सà¥à¤–ी होता नहीं देख सकते। तभी तो तà¥à¤®à¤¨à¥‡ सागर मंथन के समय 'मोहिनी' का रूप धारण कर दैतà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से अमृत का कलश छीन लिया था और उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अमृत की जगह मदिरा पिलाकर पागल बना दिया था। यदि उस समय भगवान शंकर दया करके विष को न पीते तो तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ सारा कपट पà¥à¤°à¤•ट हो जाता। तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ कपटपूरà¥à¤£ चालें अधिक पà¥à¤°à¤¿à¤¯ हैं। भगवान महादेव जी ने बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£à¥‹à¤‚ को सरà¥à¤µà¥‹à¤ªà¤°à¤¿ बताया है। आज तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ मैं à¤à¤¸à¥€ सीख दूंगा, जिससे तà¥à¤® फिर कभी कहीं भी à¤à¤¸à¤¾ कारà¥à¤¯ नहीं कर सकोगे। अब तक तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ किसी शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯ से पाला नहीं पड़ा है। इसलिठतà¥à¤® निडर बने हà¥à¤ हो परंतॠअब तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ करनी का पूरा फल मिलेगा। माया मोहित नारद जी कà¥à¤°à¥‹à¤§ से खिनà¥à¤¨ थे। वे भगवान विषà¥à¤£à¥ को शाप देते हà¥à¤ बोले – विषà¥à¤£à¥ ! तà¥à¤®à¤¨à¥‡ सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के लिठमà¥à¤à¥‡ वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² किया है। तà¥à¤® सभी को मोह में डालते हो। तà¥à¤®à¤¨à¥‡ राजा का रूप धारण करके मà¥à¤à¥‡ छला था। इसलिठमैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ शाप देता हूं कि तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ जिस रूप ने कपटपूरà¥à¤µà¤• मà¥à¤à¥‡ छला है, तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ वही रूप मिले। तà¥à¤® राजा होगे और इसी तरह सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ का वियोग भोगोगे, जिस तरह मैं भोग रहा हूं। तà¥à¤®à¤¨à¥‡ जिन वानरों के समान मेरी आकृति बना दी है, वही वानर तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ सहायता करेंगे। तà¥à¤® दूसरों को सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ वियोग का दà¥à¤– देते हो, इसलिठतà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ भी यही दà¥à¤– भोगना पड़ेगा। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से मोहित मनà¥à¤·à¥à¤¯ जैसी हो जाà¤à¤—ी।

अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से मोहित नारद जी का शाप विषà¥à¤£à¥ भगवान ने सà¥à¤µà¥€à¤•ार कर लिया। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने महालीला करने वाली मोहिनी माया को समापà¥à¤¤ कर दिया। माया के जाते ही नारद जी का खोया हà¥à¤† जà¥à¤žà¤¾à¤¨ लौट आया और उनकी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पहले की तरह हो गई। उनकी सारी वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤²à¤¤à¤¾ चली गई तथा मन में आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हो गया। यह सब जानकर नारद जी बहà¥à¤¤ पछताने लगे और अपने को धिकà¥à¤•ारते हà¥à¤ भगवान विषà¥à¤£à¥ के चरणों में गिर पड़े और उनसे कà¥à¤·à¤®à¤¾ मांगने लगे। नारद जी कहने लगे कि मैंने अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤µà¤¶ होकर और माया के कारण आपको जो शाप दे दिया है, वह à¤à¥‚ठा हो जाà¤à¥¤ भगवान मेरी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ खराब हो गई थी, जो मैंने आपके लिठबà¥à¤°à¥‡ वचन अपनी जबान से निकाले । मैंने बहà¥à¤¤ बड़ा पाप किया है। हे पà¥à¤°à¤­à¥! मà¥à¤ पर कृपा कर मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¸à¤¾ कोई उपाय बताइठजिससे मेरा सारा पाप नषà¥à¤Ÿ हो जाà¤à¥¤ कृपया मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ का तरीका बताइठ। तब शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उठाकर मधà¥à¤° वाणी में कहा हे महरà¥à¤·à¤¿ ! आप दà¥à¤–ी न हों, आप मेरे शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  भकà¥à¤¤ हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है। नारद जी आप चिंता मत कीजिà¤, आप परम धनà¥à¤¯ हैं। आपने अहंकार के वशीभूत होकर भगवान शिव की आजà¥à¤žà¤¾ का पालन नहीं किया था इसलिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ही आपका गरà¥à¤µ नषà¥à¤Ÿ करने के लिठयह लीला रची थी। वे निरà¥à¤—à¥à¤£ और निरà¥à¤µà¤¿à¤•ार हैं और सत, रज और तम आदि गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से परे हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी माया से बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ और महेश तीनों रूपों को पà¥à¤°à¤•ट किया है। निरà¥à¤—à¥à¤£ अवसà¥à¤¥à¤¾ में उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ का नाम शिव है, वे ही परमातà¥à¤®à¤¾, महेशà¥à¤µà¤°, परबà¥à¤°à¤¹à¥à¤®, अविनाशी, अनंत और महादेव नामों से जाने जाते हैं। उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ की आजà¥à¤žà¤¾ से बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ जगत के सà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾ हà¥à¤ हैं, मैं तीनों लोकों का पालन करता हूं और शिवजी रà¥à¤¦à¥à¤°à¤°à¥‚प में सबका संहार करते हैं। वे शिवसà¥à¤µà¤°à¥‚प सबके साकà¥à¤·à¥€ हैं। वे माया से भिनà¥à¤¨ और निरà¥à¤—à¥à¤£ हैं। वे अपने भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर सदा दया करते हैं। मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ समसà¥à¤¤ पापों का नाश करने वाला, भोग à¤à¤µà¤‚ मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाला उपाय बताता हूं। अपने सारे शकों à¤à¤µà¤‚ चिंताओं को तà¥à¤¯à¤¾à¤—कर भगवान शंकर की यश और कीरà¥à¤¤à¤¿ का गà¥à¤£à¤—ान करो और सदा अननà¥à¤¯ भाव से शिवजी के शतनाम सà¥à¤¤à¥‹à¤¤à¥à¤° का पाठ करो। उनकी उपासना करो तथा पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ उनकी पूजा-अरà¥à¤šà¤¨à¤¾ करो । जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ शरीर, मन और वाणी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ भगवान शिव की उपासना करते हैं, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤ या जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ कहा जाता है। जो मनà¥à¤·à¥à¤¯ शिवजी की भकà¥à¤¤à¤¿ करते हैं, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ संसाररूपी भवसागर से ततà¥à¤•ाल मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ मिल जाती है। जो लोग पाप रूपी दावानल से पीड़ित हैं, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शिव नाम रूपी अमृत का पान करना चाहिà¤à¥¤ वेदों का पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ ही जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ ने शिवजी की पूजा को जनà¥à¤®-मरण रूपी बंधनों से मà¥à¤•à¥à¤¤ होने का 'मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ सरà¥à¤µà¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  साधन बताया है।

इसलिठआज से ही रोज भगवान शिव की कथा सà¥à¤¨à¥‹ और कहा करो तथा उनका पूजन किया करो। अपने हृदय में भगवान शिव के चरणों की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ करो तथा उनके तीरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में निवास करते हà¥à¤ उनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ कर उनका गà¥à¤£à¤—ान करो इसके बाद नारद जी तà¥à¤® मेरी आजà¥à¤žà¤¾ से अपने मनोरथ की सिदà¥à¤§à¤¿ के लिठबà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• जाना। वहां अपने पिता बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करके उनसे शिव महिमा के बारे में पूछना। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ में शिवभकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  हैं। वे तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ भगवान शंकर का माहातà¥à¤®à¥à¤¯ और शतनाम सà¥à¤¤à¥‹à¤¤à¥à¤° अवशà¥à¤¯ सà¥à¤¨à¤¾à¤à¤‚गे। आज से तà¥à¤® शिवभकà¥à¤¤à¤¿ में लीन हो जाओ। वे अवशà¥à¤¯ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ करेंगे। यह कहकर विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो गà¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

पाचवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"नारद जी का शिवतीरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ में भà¥à¤°à¤®à¤£ व बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ से पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨"

सूत जी बोले ;– महरà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹! भगवान शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ के अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो जाने पर मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  नारद शिवलिंगों का भकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• दरà¥à¤¶à¤¨ करने के लिठनिकल गà¤à¥¤ इस पà¥à¤°à¤•ार भकà¥à¤¤à¤¿-मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ देने वाले अनेक शिवलिंगों के उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दरà¥à¤¶à¤¨ किà¤à¥¤ जब उन रà¥à¤¦à¥à¤°à¤—णों ने नारद जी को वहां देखा तो वे दोनों गण अपने शाप की मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ के लिठउनके चरणों पर गिर पड़े और उनसे पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने लगे कि वे उनका उदà¥à¤§à¤¾à¤° करें। नारद मà¥à¤¨à¥‡! हम आपके अपराधी हैं। राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ के सà¥à¤µà¤¯à¤‚वर में आपका मन माया से मोहित था। उस समय भगवान शिव की पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ से आपने हमें शाप दे दिया था। अब आप हमारी जीवन रकà¥à¤·à¤¾ का उपाय कीजिà¤à¥¤ हमने अपने करà¥à¤®à¥‹à¤‚ का फल भोग लिया हौ । कृपा कर हम पर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर हमें शापमà¥à¤•à¥à¤¤ कीजिà¤à¥¤

नारद जी ने कहा ;- हे रà¥à¤¦à¥à¤°à¤—णों! आप महादेव के गण हैं à¤à¤µà¤‚ सभी के लिठआदरणीय हैं।

उस समय भगवान शिव की इचà¥à¤›à¤¾ से मेरी बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ भà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿ हो गई थी। इसलिठमोहवश मैंने आपको शाप दे दिया था। आप लोग मेरे इस अपराध को कà¥à¤·à¤®à¤¾ कर दें। परंतॠमेरा वचन à¤à¥‚ठा नहीं हो सकता। इसलिठमैं आपको शाप से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ का उपाय बताता हूं। मà¥à¤¨à¤¿à¤µà¤° विशà¥à¤°à¤µà¤¾ के वीरà¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ तà¥à¤® à¤à¤• राकà¥à¤·à¤¸à¥€ के गरà¥à¤­ में जनà¥à¤® लोगे। समसà¥à¤¤ दिशाओं में रावण और कà¥à¤‚भकरà¥à¤£ के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§à¤¿ पाओगे। राकà¥à¤·à¤¸à¤°à¤¾à¤œ का पद पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करोगे। तà¥à¤® बलवान व वैभव से यà¥à¤•à¥à¤¤ होओगे।

तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª सभी लोकों में फैलेगा। समसà¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ के राजा होकर भी भगवान शिव के परम भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ में होओगे। भगवान शिव के ही दूसरे सà¥à¤µà¤°à¥‚प शà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤·à¥à¤£à¥ के अवतार के हाथों से मृतà¥à¤¯à¥ पाकर तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ उदà¥à¤§à¤¾à¤° होगा तथा फिर अपने पद पर पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ à¤¿à¤¤ हो जाओगे।

सूत जी कहने लगे कि इस पà¥à¤°à¤•ार नारद जी का कथन सà¥à¤¨à¤•र वे दोनों रà¥à¤¦à¥à¤°à¤—ण पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हà¥à¤ वहां से चले गठऔर नारद जी भी आनंद से सराबोर हो मन ही मन शिवजी का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करते हà¥à¤ शिवतीरà¥à¤¥à¥‹à¤‚ का दरà¥à¤¶à¤¨ करने लगे। इसी पà¥à¤°à¤•ार भà¥à¤°à¤®à¤£ करते-करते वे शिव की पà¥à¤°à¤¿à¤¯ नगरी काशीपà¥à¤°à¥€ में पहà¥à¤‚चे और काशीनाथ का दरà¥à¤¶à¤¨ कर उनकी पूजा-उपासना की।

शà¥à¤°à¥€ नारद जी शिवजी की भकà¥à¤¤à¤¿ में डूबे, उनका सà¥à¤®à¤°à¤£ करते हà¥à¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤²à¥‹à¤• को चले गà¤à¥¤ वहां पहà¥à¤‚चकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ को आदरपूरà¥à¤µà¤• नमसà¥à¤•ार किया और उनकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करने लगे। उस समय उनका हृदय शà¥à¤¦à¥à¤§ हो चà¥à¤•ा था और उनके हृदय में शिवजी के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ भकà¥à¤¤à¤¿ भावना ही थी और कà¥à¤› नहीं।

नारद जी बोले :- हे पितामह ! आप तो परमबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® परमातà¥à¤®à¤¾ के सà¥à¤µà¤°à¥‚प को अचà¥à¤›à¥€ पà¥à¤°à¤•ार से जानते हो। आपकी कृपा से मैंने भगवान विषà¥à¤£à¥ के माहातà¥à¤®à¥à¤¯ का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया है à¤à¤µà¤‚ भकà¥à¤¤à¤¿ मारà¥à¤—, जà¥à¤žà¤¾à¤¨ मारà¥à¤—, तपो मारà¥à¤—, दान मारà¥à¤— तथा तीरà¥à¤¥ मारà¥à¤— के बारे में जाना है परंतॠमैं शिव ततà¥à¤µ के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को अभी तक नहीं जान पाया हूं। मैं उनकी पूजा विधि को भी नहीं जानता हूं। अतः अब मैं उनके बारे में सभी कà¥à¤› जानना चाहता हूं।

मैं भगवान शिव के विभिनà¥à¤¨ चरितà¥à¤°à¥‹à¤‚, उनके सà¥à¤µà¤°à¥‚प तथा वे सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के आरंभ में, मधà¥à¤¯ में, किस रूप में थे, उनकी लीलाà¤à¤‚ कैसी होती हैं और पà¥à¤°à¤²à¤¯ काल में भगवान शिव कहां निवास करते हैं? उनका विवाह तथा उनके पà¥à¤¤à¥à¤° कारà¥à¤¤à¤¿à¤•ेय के जनà¥à¤® आदि की कथाà¤à¤‚ मैं आपके शà¥à¤°à¥€à¤®à¥à¤– से सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ चाहता हूं। भगवान शिव कैसे पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते है और पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होने पर कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते हैं? इस संपूरà¥à¤£ वृतà¥à¤¤à¤¾à¤‚त को मà¥à¤à¥‡ बताने की कृपा करें।

अपने पà¥à¤¤à¥à¤° नारद की ये बातें सà¥à¤¨à¤•र पितामह बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

छठा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिवततà¥à¤µ का वरà¥à¤£à¤¨"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा ;– हे नारद! तà¥à¤® सदैव जगत के उपकार में लगे रहते हो। तà¥à¤®à¤¨à¥‡ जगत के लोगों के हित के लिठबहà¥à¤¤ उतà¥à¤¤à¤® बात पूछी है। जिसके सà¥à¤¨à¤¨à¥‡ से मनà¥à¤·à¥à¤¯ के सब जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ के पापों का नाश हो जाता है। उस परमबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® शिवततà¥à¤µ का वरà¥à¤£à¤¨ मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ लिठकर रहा हूं। शिव ततà¥à¤µ का सà¥à¤µà¤°à¥‚प बहà¥à¤¤ सà¥à¤‚दर और अदà¥à¤­à¥à¤¤ है। जिस समय महापà¥à¤°à¤²à¤¯ आई थी और पूरा संसार नषà¥à¤Ÿ हो गया था तथा चारों ओर सिरà¥à¤« अंधकार ही अंधकार था, आकाश व बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ तारों व गà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ से रहित होकर अंधकार में डूब गठथे, सूरà¥à¤¯ और चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ दिखाई देने बंद हो गठथे, सभी गà¥à¤°à¤¹à¥‹à¤‚ और नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का कहीं पता नहीं चल रहा था, दिन-रात, अगà¥à¤¨à¤¿-जल कà¥à¤› भी नहीं था। पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ आकाश और अनà¥à¤¯ तेज भी शूनà¥à¤¯ हो गठथे। शबà¥à¤¦, सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶, गंध, रूप, रस का अभाव हो गया था, सतà¥à¤¯-असतà¥à¤¯ सबकà¥à¤› खतà¥à¤® हो गया था, तब सिरà¥à¤« 'सतà¥' ही बचा था। उस ततà¥à¤µ को मà¥à¤¨à¤¿à¤œà¤¨ à¤à¤µà¤‚ योगी अपने हृदय के भीतर ही देखते हैं। वाणी, नाम, रूप, रंग आदि की वहां तक पहà¥à¤‚च नहीं है।

उस परबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® के विषय में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और अजà¥à¤žà¤¾à¤¨ से किठगठसंबोधन के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कà¥à¤› समय बाद अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का समय आने पर à¤à¤• से अनेक होने के संकलà¥à¤ª का उदय हà¥à¤†à¥¤ तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी लीला से मूरà¥à¤¤à¤¿ की रचना की। वह मूरà¥à¤¤à¤¿ संपूरà¥à¤£ à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ तथा गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤, संपनà¥à¤¨, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤®à¤¯à¥€ à¤à¤µà¤‚ सबकà¥à¤› पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने वाली है। यही सदाशिव की मूरà¥à¤¤à¤¿ है। सभी पणà¥à¤¡à¤¿à¤¤, विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ इसी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ मूरà¥à¤¤à¤¿ को ईशà¥à¤µà¤° कहते हैं। उसने अपने शरीर से सà¥à¤µà¤šà¥à¤› शरीर वाली à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤µà¤°à¥‚पभूता शकà¥à¤¤à¤¿ की रचना की। वही परमशकà¥à¤¤à¤¿, पà¥à¤°à¤•ृति गà¥à¤£à¤®à¤¯à¥€ और बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿à¤¤à¥à¤µ की जननी कहलाई। उसे शकà¥à¤¤à¤¿, अंबिका, पà¥à¤°à¤•ृति, संपूरà¥à¤£ लोकों की जननी, तà¥à¤°à¤¿à¤¦à¥‡à¤µà¥‹à¤‚ की माता, नितà¥à¤¯à¤¾ और मूल कारण भी कहते हैं। उसकी आठ भà¥à¤œà¤¾à¤“ं à¤à¤µà¤‚ मà¥à¤– की शोभा विचितà¥à¤° है। उसके मà¥à¤– के सामने चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ की कांति भी कà¥à¤·à¥€à¤£ हो जाती है। विभिनà¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार के आभूषण à¤à¤µà¤‚ गतियां देवी की शोभा बढ़ाती हैं। वे अनेक पà¥à¤°à¤•ार के असà¥à¤¤à¥à¤°-शसà¥à¤¤à¥à¤° धारण किठहà¥à¤ हैं।

सदाशिव को ही सब मनà¥à¤·à¥à¤¯ परम पà¥à¤°à¥à¤·, ईशà¥à¤µà¤°, शिव-शंभॠऔर महेशà¥à¤µà¤° कहकर पà¥à¤•ारते हैं। उनके मसà¥à¤¤à¤• पर गंगा, भाल में चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ और मà¥à¤– में तीन नेतà¥à¤° शोभा पाते हैं। उनके पांच मà¥à¤– हैं तथा दस भà¥à¤œà¤¾à¤“ं के सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ à¤à¤µà¤‚ तà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥‚लधारी हैं। वे अपने शरीर में भसà¥à¤® लगाठहैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शिवलोक नामक कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया है। यह परम पावन सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ काशी नाम से जाना जाता है। यह परम मोकà¥à¤·à¤¦à¤¾à¤¯à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ है। इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में परमानंद रूप 'शिव' पारà¥à¤µà¤¤à¥€ सहित निवास करते हैं। शिव और शिवा ने पà¥à¤°à¤²à¤¯à¤•ाल में भी उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को नहीं छोड़ा। इसलिठशिवजी ने इसका नाम आनंदवन रखा है।

à¤à¤• दिन आनंदवन में घूमते समय शिव-शिवा के मन में किसी दूसरे पà¥à¤°à¥à¤· की रचना करने की इचà¥à¤›à¤¾ हà¥à¤ˆà¥¤ तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सोचा कि इसका भार किसी दूसरे वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को सौंपकर हम यहीं काशी में विराजमान रहेंगे।

à¤à¤¸à¤¾ सोचकर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने वामभाग के दसवें अंग पर अमृत मल दिया। जिससे à¤à¤• सà¥à¤‚दर पà¥à¤°à¥à¤· वहां पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤†, जो शांत और सतà¥à¤µ गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ à¤à¤µà¤‚ गंभीरता का अथाह सागर था। उसकी कांति इंदà¥à¤°à¤¨à¥€à¤² मणि के समान शà¥à¤¯à¤¾à¤® थी। उसका पूरा शरीर दिवà¥à¤¯ शोभा से चमक रहा था तथा नेतà¥à¤° कमल के समान थे। उसने हाथ जोड़कर भगवान शिव और शिवा को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया तथा पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ की कि मेरा नाम निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ कीजिà¤à¥¤ यह सà¥à¤¨à¤•र भगवान शिव हंसकर बोले कि सरà¥à¤µà¤¤à¥à¤° वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• होने से तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ नाम 'विषà¥à¤£à¥' होगा। तà¥à¤® भकà¥à¤¤à¥‹à¤‚ को सà¥à¤– देने वाले होओगे। तà¥à¤® यहीं सà¥à¤¥à¤¿à¤° रहकर तप करो। वही सभी कारà¥à¤¯à¥‹à¤‚ का साधन है। à¤à¤¸à¤¾ कहकर शिवजी ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया तथा वहां से अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो गà¤à¥¤ तब विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ ने बारह वरà¥à¤· तक वहां दिवà¥à¤¯ तप किया। तपसà¥à¤¯à¤¾ के कारण उनके शरीर से अनेक जलधाराà¤à¤‚ निकलने लगीं। उस जल से सारा सूना आकाश वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो गया। वह बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤°à¥‚प जल अपने सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° से पापों का नाश करने वाला था। उस जल में भगवान विषà¥à¤£à¥ ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ शयन किया। नार अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ जल में निवास करने के कारण ही वे 'नारायण' कहलाà¤à¥¤ तभी से उन महातà¥à¤®à¤¾ से सब ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆà¥¤ पहले पà¥à¤°à¤•ृति से महान और उससे तीन गà¥à¤£ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ तथा उनसे अहंकार उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ उससे शबà¥à¤¦, सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶, रूप, रस और गंध à¤à¤µà¤‚ पांच भूत पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤à¥¤ उनसे जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥‡à¤‚दà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¤µà¤‚ करà¥à¤®à¥‡à¤‚दà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ बनीं। उस समय à¤à¤•ाकार 24 ततà¥à¤µ पà¥à¤°à¤•ृति से पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ à¤à¤µà¤‚ उनको गà¥à¤°à¤¹à¤£ करके परम पà¥à¤°à¥à¤· नारायण भगवान शिवजी की इचà¥à¤›à¤¾ से जल में सो गà¤à¥¤

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

पà¥à¤°à¤¥à¤® खणà¥à¤¡

सातवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"विवादगà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾-विषà¥à¤£à¥ के मधà¥à¤¯ अगà¥à¤¨à¤¿-सà¥à¤¤à¤‚भ का पà¥à¤°à¤•ट होना"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ कहते हैं :- हे देवरà¥à¤·à¤¿ ! जब नारायण जल में शयन करने लगे, तब शिवजी की इचà¥à¤›à¤¾ से विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ की नाभि से à¤à¤• बहà¥à¤¤ बड़ा कमल पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤†à¥¤ उसमें असंखà¥à¤¯ नालदणà¥à¤¡ थे। वह पीले रंग का था और उसकी ऊंचाई भी कई योजन थी। कमल सà¥à¤‚दर, अदà¥à¤­à¥à¤¤ और संपूरà¥à¤£ ततà¥à¤µà¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ था। वह रमणीय और पà¥à¤£à¥à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के योगà¥à¤¯ था। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ भगवान शिव ने मà¥à¤à¥‡ अपने दाहिने अंग से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया। उन महेशà¥à¤µà¤° ने अपनी माया से मोहित कर नारायण देव के नाभि कमल में मà¥à¤à¥‡ डाल दिया और लीलापूरà¥à¤µà¤• मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤•ट किया। इस पà¥à¤°à¤•ार उस कमल से पà¥à¤¤à¥à¤° के रूप में मà¥à¤à¥‡ जनà¥à¤® मिला। मेरे चार मà¥à¤– लाल मसà¥à¤¤à¤• पर तà¥à¤°à¤¿à¤ªà¥à¤£à¥à¤¡ धारण किठहà¥à¤ थे। भगवान शिव की माया से मोहित होने के कारण मेरी जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¶à¤•à¥à¤¤à¤¿ बहà¥à¤¤ दà¥à¤°à¥à¤²à¤­ हो गई थी और मà¥à¤à¥‡ कमल के अतिरिकà¥à¤¤ और कà¥à¤› भी दिखाई नहीं दे रहा था। मैं कौन हूं? कहां से आया हूं? मेरा कारà¥à¤¯ कà¥à¤¯à¤¾ है? मैं किसका पà¥à¤¤à¥à¤° हूं? किसने मेरा निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया है? कà¥à¤› इसी पà¥à¤°à¤•ार के पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ ने मà¥à¤à¥‡ परेशानी में डाल दिया था। कà¥à¤› कà¥à¤·à¤£ बाद मà¥à¤à¥‡ बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ और मà¥à¤à¥‡ लगा कि इसका पता लगाना बहà¥à¤¤ सरल है। इस कमल का उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ इस जल में नीचे की ओर है और इसके नीचे मैं उस पà¥à¤°à¥à¤· को पा सकूंगा जिसने मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤•ट किया है। यह सोचकर à¤à¤• नाल को पकड़कर मैं सौ वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक नीचे की ओर उतरता रहा, परंतॠफिर भी मैंने कमल की जड़ को नहीं पाया। इसलिठमैं पà¥à¤¨à¤ƒ ऊपर की ओर बढ़ने लगा। बहà¥à¤¤ ऊपर जाने पर भी कमल कोश को नहीं पा सका। तब मैं और अधिक परेशान हो गया। उसी समय भगवान शिव की इचà¥à¤›à¤¾ से मंगलमयी आकाशवाणी पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ˆà¥¤ उस वाणी ने कहा, 'तपसà¥à¤¯à¤¾ करो'।

उस आकाशवाणी को सà¥à¤¨à¤•र अपने पिता का दरà¥à¤¶à¤¨ करने हेतॠमैंने तपसà¥à¤¯à¤¾ करना आरंभ कर दिया और बारह वरà¥à¤· तक घोर तपसà¥à¤¯à¤¾ की। तब चार भà¥à¤œà¤¾à¤§à¤¾à¤°à¥€, सà¥à¤‚दर नेतà¥à¤°à¥‹à¤‚ से शोभित भगवान विषà¥à¤£à¥ पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हाथों में शंख, चकà¥à¤°, गदा और पदà¥à¤® धारण कर रखे थे। उनका शरीर शà¥à¤¯à¤¾à¤® कांति से सà¥à¤¶à¥‹à¤­à¤¿à¤¤ था। उनके मसà¥à¤¤à¤• पर मà¥à¤•à¥à¤Ÿ विराजमान था तथा उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पीतांबर वसà¥à¤¤à¥à¤° और बहà¥à¤¤ से आभूषण धारण किठहà¥à¤ थे। वे करोड़ों कामदेवों के समान मनोहर दिखाई दे रहे थे और सांवली व सà¥à¤¨à¤¹à¤°à¥€ आभा से शोभित थे। उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वहां देखकर मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ हरà¥à¤· व आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ हà¥à¤†à¥¤

भगवान शिव की लीला से हम दोनों में विवाद छिड़ गया कि हम में बड़ा कौन है ? उसी समय हम दोनों के बीच में à¤à¤• जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤®à¤¯ लिंग पà¥à¤°à¤•ट हो गया। हमने उसका पता लगाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। मैंने ऊपर की ओर और विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ ने नीचे की ओर उस सà¥à¤¤à¤‚भ के आरंभ और अंत का पता लगाने के लिठचलना आरंभ किया परंतॠहम दोनों को उस सà¥à¤¤à¤‚भ का कोई ओर छोर नहीं मिला। थककर हम दोनों अपने उसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर आ गà¤à¥¤

हम दोनों ही शिवजी की माया से मोहित थे। शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ ने सभी ओर से परमेशà¥à¤µà¤° शिव को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया। धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ करने पर भी हमें कà¥à¤› जà¥à¤žà¤¾à¤¤ न हो सका। तब मैंने और शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ ने अपने मन को शà¥à¤¦à¥à¤§ करते हà¥à¤ अगà¥à¤¨à¤¿ सà¥à¤¤à¤‚भ को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया।

हम दोनों कहने लगे :– महापà¥à¤°à¤­à¥! हम आपके सà¥à¤µà¤°à¥‚प को नहीं जानते। आप जो भी हैं, हम आपको नमसà¥à¤•ार करते हैं! आप शीघà¥à¤° ही हमें अपने असली रूप में दरà¥à¤¶à¤¨ दें। इस पà¥à¤°à¤•ार हम दोनों अपने अहंकार को भूलकर भगवान शिव को नमसà¥à¤•ार करने लगे। à¤à¤¸à¤¾ करते हà¥à¤ सौ वरà¥à¤· बीत गà¤à¥¤

One thought on “Shiva Purana Sri Rudra Samhita (1st Volume) The first, second, third, fourth, fifth, sixth and seventh chapters

  1. Best Post Hara Hara Mahadev

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Bhanu Pratap Shastri

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