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Shiva Purana Sri Rudra Samhita (second Volume) The first, second, third, fourth, fifth, sixth and seventh chapters

शिव पà¥à¤°à¤¾à¤£ शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता (दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡) का पहला,दूसरा,तिसरा, चौथा,पाचवाà¤,छठा व सातवाठअधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ (The first, second, third, fourth, fifth, sixth and seventh chapters of Shiva Purana Sri Rudra Samhita ( second Volume)

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

पहला अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"सती चरितà¥à¤°"

नारद जी ने पूछा :- हे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€! आपके शà¥à¤°à¥€à¤®à¥à¤– से मंगलकारी व अमृतमयी शिव कथा सà¥à¤¨à¤•र मà¥à¤à¤®à¥‡à¤‚ उनके विषय में और अधिक जानने की लालसा उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ गई है। अतः भगवान शिव के बारे में मà¥à¤à¥‡ बताइठ। विशà¥à¤µ की सृषà¥à¤Ÿà¤¿ करने वाले हे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€! मैं सती के विषय में भी जानना चाहता हूं। सदाशिव योगी होते हà¥à¤ à¤à¤• सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के साथ विवाह करके गृहसà¥à¤¥ कैसे हो गà¤? उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ विवाह करने का विचार कैसे आया? जो पहले दकà¥à¤· की कनà¥à¤¯à¤¾ थी, फिर हिमालय की कनà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤ˆ, वे सती (पारà¥à¤µà¤¤à¥€) किस पà¥à¤°à¤•ार शंकरजी को पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤ˆ? पारà¥à¤µà¤¤à¥€ ने किस पà¥à¤°à¤•ार घोर तपसà¥à¤¯à¤¾ की और कैसे उनका विवाह हà¥à¤†? कामदेव को भसà¥à¤® कर देने वाले भगवान शिव के आधे शरीर में वे किस पà¥à¤°à¤•ार सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पा सकीं? उनका अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¨à¤¾à¤°à¥€à¤¶à¥à¤µà¤° रूप कà¥à¤¯à¤¾ है? हे पà¥à¤°à¤­à¥‹! आप ही मेरे इन पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤¤à¤° दे सकते हैं। आप ही मेरे संशयों का निवारण कर सकते हैं।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा ;- हे नारद! देवी सती और भगवान शिव का शà¥à¤­ यश परमपावन दिवà¥à¤¯ और गोपनीय है। उसके रहसà¥à¤¯ को वे ही समà¤à¤¤à¥‡ हैं। सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ पर मैं सती के चरितà¥à¤° को बताता हूं।

पहले मेरे à¤à¤• कनà¥à¤¯à¤¾ पैदा हà¥à¤ˆà¥¤ जिसे देखकर मैं काम पीड़ित हो गया। तब रà¥à¤¦à¥à¤° ने धरà¥à¤® का सà¥à¤®à¤°à¤£ कराते हà¥à¤ मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ धिकà¥à¤•ारा। फिर वे अपने निवास कैलाश परà¥à¤µà¤¤ को चले गà¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मैंने समà¤à¤¾à¤¨à¥‡ की कोशिश की, परंतॠमेरे सभी पà¥à¤°à¤¯à¤¤à¥à¤¨ निषà¥à¤«à¤² हो गà¤à¥¤ तब मैंने शिवजी की आराधना की। शिवजी ने मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ परंतॠमैंने हठ नहीं छोड़ा और फिर रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¦à¥‡à¤µ को मोहित करने के लिठशकà¥à¤¤à¤¿ का उपयोग करने लगा। मेरे पà¥à¤¤à¥à¤° दकà¥à¤· के यहां सती का जनà¥à¤® हà¥à¤†à¥¤ वह दकà¥à¤· सà¥à¤¤à¤¾ 'उमा' नाम से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होकर कठिन तप करके रà¥à¤¦à¥à¤° की सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ हà¥à¤ˆà¥¤ रà¥à¤¦à¥à¤° ने गृहसà¥à¤¥à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® में सà¥à¤–पूरà¥à¤µà¤• समय वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ किया। उधर शिवजी की माया से दकà¥à¤· को घमंड हो गया और वह महादेव जी की निंदा करने लगा।

दकà¥à¤· ने à¤à¤• विशाल यजà¥à¤ž का आयोजन किया। उस यजà¥à¤ž में दकà¥à¤· ने मà¥à¤à¥‡, विषà¥à¤£à¥à¤œà¥€ को, सभी देवी-देवताओं को और ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को निमंतà¥à¤°à¤£ दिया परनà¥à¤¤à¥ महादेव शिवजी à¤à¤µà¤‚ अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सती को उस विशाल यजà¥à¤ž का निमंतà¥à¤°à¤£ नहीं दिया। सती को जब इस बात की जानकारी मिली, तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शिव-चरणों में वंदना कर उनसे दकà¥à¤· यजà¥à¤ž में जाने की इचà¥à¤›à¤¾ पà¥à¤°à¤•ट की। भगवान शिव ने देवी सती को बहà¥à¤¤ समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ कि बिना बà¥à¤²à¤¾à¤ à¤à¤¸à¥‡ आयोजनों में जाना अपमान और अनिषà¥à¤Ÿà¤•ारक होता है। लेकिन सती ने जाने का हठ किया। शिव ने भावी को देखते हà¥à¤ आजà¥à¤žà¤¾ दे दी। शिव सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž हैं। सती पिता के घर चली गई। वहां यजà¥à¤ž में महादेव जी के लिठभाग न देख और अपने पिता के मà¥à¤– से अपने पति की घोर निंदा सà¥à¤¨à¤•र उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बहà¥à¤¤ कà¥à¤°à¥‹à¤§ आया। वे महादेव की निंदा सहन न कर सकीं और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उसी यजà¥à¤ž कà¥à¤‚ड में कूदकर अपने शरीर का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दिया।

जब इसका समाचार शिव तक पहà¥à¤‚चा, तो वे बहà¥à¤¤ कà¥à¤ªà¤¿à¤¤ हà¥à¤à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपनी जटा का à¤à¤• बाल उखाड़कर वीरभदà¥à¤° नामक अपने गण को उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ किया। भगवान शिव ने वीरभदà¥à¤° को आजà¥à¤žà¤¾ दी कि वह दकà¥à¤· के यजà¥à¤ž का विधà¥à¤µà¤‚स कर दे। वीरभदà¥à¤° ने शिव आजà¥à¤žà¤¾ का पालन करते हà¥à¤ यजà¥à¤ž का विधà¥à¤µà¤‚स कर दिया और दकà¥à¤· का सिर काट दिया। इस उपदà¥à¤°à¤µ को देखकर सभी लोग भगवान शिव की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ करने लगे। तब भगवान शिव ने दकà¥à¤· को पà¥à¤¨à¤ƒ जीवित कर दिया और उनके यजà¥à¤ž को पूरà¥à¤£ कराया। भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर वहां से चले गà¤à¥¤ उस समय सती के शरीर से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾ परà¥à¤µà¤¤ पर गिरी थी। वही परà¥à¤µà¤¤ आज भी जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾à¤®à¥à¤–ी के नाम से पूजित है। आज भी उसके दरà¥à¤¶à¤¨ से मनोकामनाà¤à¤‚ पूरी होती हैं।

वही सती दूसरे जनà¥à¤® में हिमाचल के घर में पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ रूप में पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ˆà¤‚, जिनका नाम पारà¥à¤µà¤¤à¥€ था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कठोर तप दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤¨à¤ƒ महादेव शिव को अपने पति के रूप में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर लिया।

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

दूसरा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"शिव-पारà¥à¤µà¤¤à¥€ चरितà¥à¤°"

सूत जी बोले ;- हे ऋषियो! बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ के ये वचन सà¥à¤¨à¤•र नारद जी पà¥à¤¨à¤ƒ पूछने लगे। हे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€! मैं सती और शंकरजी के परम पवितà¥à¤° व दिवà¥à¤¯ चरितà¥à¤° को पà¥à¤¨à¤ƒ सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ चाहता हूं कि सती की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ कैसे हà¥à¤ˆ और महादेव जी का मन विवाह करने के लिठकैसे तैयार हà¥à¤†? दकà¥à¤· से नाराज होकर देवी सती ने अपनी देह को कैसे तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया और फिर कैसे हिमाचल की पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ पारà¥à¤µà¤¤à¥€ के रूप में जनà¥à¤® लिया? उनके तप, विवाह, काम-नाश आदि की सभी कथाà¤à¤‚ मà¥à¤à¥‡ सविसà¥à¤¤à¤¾à¤° सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ की कृपा करें।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- हे नारद! पहले भगवान शिव निरà¥à¤—à¥à¤£, निरà¥à¤µà¤¿à¤•लà¥à¤ª, निरà¥à¤µà¤¿à¤•ारी और दिवà¥à¤¯ थे परंतॠदेवी उमा से विवाह करने के बाद वे सगà¥à¤£ और शकà¥à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤¨ हो गà¤à¥¤ उनके बाà¤à¤‚ अंग से बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ और दाà¤à¤‚ अंग से विषà¥à¤£à¥ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤à¥¤ तभी से भगवान सदाशिव के तीन रूप बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ और रà¥à¤¦à¥à¤°-सृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•रà¥à¤¤à¤¾, पालनकरà¥à¤¤à¤¾ और संहारकरà¥à¤¤à¤¾ के रूप में विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ हà¥à¤à¥¤ उनकी आराधना करते हà¥à¤ मैं सà¥à¤°à¤¾à¤¸à¥à¤° सहित मनà¥à¤·à¥à¤¯ आदि जीवों की रचना करने लगा। मैंने सभी जातियों का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया। मैंने ही मरीच, अतà¥à¤°à¤¿, पà¥à¤²à¤¹, पà¥à¤²à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¯, अंगिरा, कà¥à¤°à¤¤à¥, वशिषà¥à¤ , नारद, दकà¥à¤· और भृगॠकी उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ की और ये मेरे मानस पà¥à¤¤à¥à¤° कहलाठ। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤, मेरे मन में माया का मोह उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होने लगा। तब मेरे हृदय से अतà¥à¤¯à¤‚त मनोहारी और सà¥à¤‚दर रूप वाली नारी पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ˆà¥¤ उसका नाम संधà¥à¤¯à¤¾ था। वह दिन में कà¥à¤·à¥€à¤£ होती, परंतॠरात में उसका रूप-सौंद और निखर जाता था। वह सायं संधà¥à¤¯à¤¾ ही थी। संधà¥à¤¯à¤¾ निरंतर मंतà¥à¤° का जाप करती थी। उसके सौंदरà¥à¤¯ से ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का मन भी भà¥à¤°à¤®à¤¿à¤¤ हो जाता था। इसी पà¥à¤°à¤•ार मेरे मन से à¤à¤• मनोहर रूप वाला पà¥à¤°à¥à¤· भी पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤†à¥¤ वह अतà¥à¤¯à¤‚त सà¥à¤‚दर और अदà¥à¤­à¥à¤¤ रूप वाला था। उसके शरीर का मधà¥à¤¯ भाग पतला था। वह काले बालों से यà¥à¤•à¥à¤¤ था। उसके दांत सफेद मोतियों से चमक रहे थे। उसके शà¥à¤µà¤¾à¤¸ से सà¥à¤—ंधि निकल रही थी। उसकी चाल मदमसà¥à¤¤ हाथी के समान थी। उसकी आंखें कमल के समान थीं। उसके अंगों में लगे केसर की सà¥à¤—ंध नासिका को तृपà¥à¤¤ कर रही थी। तभी उस रूपवान पà¥à¤°à¥à¤· ने विनयपूरà¥à¤µà¤• अपने सिर को मà¥à¤ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ के सामने à¤à¥à¤•ाकर, मà¥à¤à¥‡ पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया और मेरी बहà¥à¤¤ सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ की।

वह पà¥à¤°à¥à¤· बोला ;- बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤¨à¥! आप अतà¥à¤¯à¤‚त शकà¥à¤¤à¤¿à¤¶à¤¾à¤²à¥€ हैं। आपने ही मेरी उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ की है। पà¥à¤°à¤­à¥ मà¥à¤ पर कृपा करें और मेरे योगà¥à¤¯ काम मà¥à¤à¥‡ बताà¤à¤‚ ताकि मैं आपकी आजà¥à¤žà¤¾ से उस कारà¥à¤¯ को पूरा कर सकूं।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा ;- हे भदà¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¥à¤·! तà¥à¤® सनातनी सृषà¥à¤Ÿà¤¿ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करो। तà¥à¤® अपने इसी सà¥à¤µà¤°à¥‚प में फूल के पांच बाणों से सà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ और पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को मोहित करो। इस चराचर जगत में कोई भी जीव तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ तिरसà¥à¤•ार नहीं कर पाà¤à¤—ा। तà¥à¤® छिपकर पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के हृदय में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करके सà¥à¤– का हेतॠबनकर सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का सनातन कारà¥à¤¯ आगे बढ़ाओगे। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पà¥à¤·à¥à¤ªà¤®à¤¯ बाण समसà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को भेदकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मदमसà¥à¤¤ करेंगे। आज से तà¥à¤® 'पà¥à¤·à¥à¤ª बाण' नाम से जाने जाओगे। इसी पà¥à¤°à¤•ार तà¥à¤® सृषà¥à¤Ÿà¤¿ के पà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¤• के रूप में जाने जाओगे।

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

तीसरा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"कामदेव को बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शाप देना"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा ;– हे नारद! सभी ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ उस पà¥à¤°à¥à¤· के लिठउचित नाम खोजने लगे। तब सोच-विचारकर वे बोले कि तà¥à¤®à¤¨à¥‡ उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ होते ही बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ का मन मंथन कर दिया है। अतः तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ पहला नाम मनà¥à¤®à¤¥ होगा। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ जैसा इस संसार में कोई नहीं है इसलिठतà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ दूसरा नाम काम होगा। तीसरा नाम मदन और चौथा नाम कंदरà¥à¤ª होगा। अपने नामों के विषय में जानते ही काम ने अपने पांच बाणों का नामकरण कर उनका परीकà¥à¤·à¤£ किया। काम ने अपने पांच बाणों को हरà¥à¤·à¤£, रोचन, मोहन, शोषण और मारण नाम से सà¥à¤¶à¥‹à¤­à¤¿à¤¤ किया। ये बाण ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को भी मोहित कर सकते थे। उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर बहà¥à¤¤ से देवता व ऋषि उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे। उस समय संधà¥à¤¯à¤¾ भी वहीं थी। कामदेव दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ चलाठगठबाणों के फलसà¥à¤µà¤°à¥‚प सभी मोहित हो गà¤à¥¤ सबके मनों में विकार आ गया। सभी काम के वशीभूत हो चà¥à¤•े थे। पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿, मरीचि, अतà¥à¤°à¤¿, दकà¥à¤· आदि सब मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ-साथ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ भी काम के वश में होकर संधà¥à¤¯à¤¾ को पाने की इचà¥à¤›à¤¾ करने लगे। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ व उनके मानस पà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚, सभी को à¤à¤• कनà¥à¤¯à¤¾ पर मोहित होते देखकर धरà¥à¤® को बहà¥à¤¤ दà¥à¤– हà¥à¤†à¥¤ धरà¥à¤® ने धरà¥à¤®à¤°à¤•à¥à¤·à¤• तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•ीनाथ का सà¥à¤®à¤°à¤£ किया। तब मà¥à¤à¥‡ देखकर शिवजी हंसे और कहने लगे- हे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ ! अपनी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के ही पà¥à¤°à¤¤à¤¿ तà¥à¤® मोहित कैसे हो गà¤? सूरà¥à¤¯ का दरà¥à¤¶à¤¨ करने वाले दकà¥à¤·, मरीचि आदि योगियों का निरà¥à¤®à¤² मन कैसे सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ को देखते ही मलिन हो गया? जिन देवताओं का मन सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ आसकà¥à¤¤ हो, उनके साथ शासà¥à¤¤à¥à¤° संगति किस पà¥à¤°à¤•ार की जा सकती है?

इस पà¥à¤°à¤•ार के शिव वचन सà¥à¤¨à¤•र मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ लजà¥à¤œà¤¾ का अनà¥à¤­à¤µ हà¥à¤† और मेरा पूरा शरीर पसीने-पसीने हो गया। मेरा विकार समापà¥à¤¤ हो गया परंतॠमेरे शरीर से जो पसीना नीचे गिरा उससे पितृगणों की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆà¥¤ उससे चौंसठ हजार आगà¥à¤¨à¥‡à¤·à¥à¤µà¤¾à¤¤à¥‹ पितृगण उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ और छियासी हजार बहिरà¥à¤·à¤¦ पितर हà¥à¤à¥¤ à¤à¤• सरà¥à¤µ गà¥à¤£ संपनà¥à¤¨, अति सà¥à¤‚दर कनà¥à¤¯à¤¾ भी उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ, जिसका नाम रति था। उसका रूप-सौंदरà¥à¤¯ देखकर ऋतॠआदि सà¥à¤–लित हो गठà¤à¤µà¤‚ उससे अनेक पितरों की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆà¥¤ इस पà¥à¤°à¤•ार संधà¥à¤¯à¤¾ से बहà¥à¤¤ से पितरों की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆà¥¤

शिवजी के वहां से अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ होने पर मैं काम पर कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ हà¥à¤†à¥¤ मेरे कà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤§ होने पर काम ने वह बाण वापस खींच लिया। बाण के निकलते ही मैं कà¥à¤°à¥‹à¤§ की अगà¥à¤¨à¤¿ से जलने लगा। मैंने काम को शिव बाण से भसà¥à¤® होने का शाप दे डाला। यह सà¥à¤¨à¤•र काम और रति दोनों मेरे चरणों में गिर पड़े और मेरी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ करने लगे तथा कà¥à¤·à¤®à¤¾ याचना करने लगे।

तब काम ने कहा ;- हे पà¥à¤°à¤­à¥! आपने ही तो मà¥à¤à¥‡ वर देते हà¥à¤ कहा था कि बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥, रà¥à¤¦à¥à¤° समेत सभी देवता, ऋषि-मà¥à¤¨à¤¿ और मनà¥à¤·à¥à¤¯ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ वश में होंगे। मैं तो सिरà¥à¤« अपनी उस शकà¥à¤¤à¤¿ का परीकà¥à¤·à¤£ कर रहा था। इसलिठमैं निरपराध हूं। पà¥à¤°à¤­à¥ मà¥à¤ पर कृपा करें। इस शाप के पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ को समापà¥à¤¤ करने का उपाय बताà¤à¤‚।

इस पà¥à¤°à¤•ार काम के वचनों को सà¥à¤¨à¤•र बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ का कà¥à¤°à¥‹à¤§ शांत हà¥à¤†à¥¤ तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा कि मेरा शाप à¤à¥‚ठा नहीं हो सकता। इसलिठतà¥à¤® महादेव के तीसरे नेतà¥à¤° रूपी अगà¥à¤¨à¤¿ बाण से भसà¥à¤® हो जाओगे। परंतॠकà¥à¤› समय पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ जब शिवजी विवाह करेंगे अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ उनके जीवन में देवी पारà¥à¤µà¤¤à¥€ आà¤à¤‚गी, तब तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ शरीर तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤¨à¤ƒ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो जाà¤à¤—ा।

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

चौथा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"काम-रति विवाह"

नारद जी ने पूछा ;-- हे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€! इसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†? आप मà¥à¤à¥‡ इससे आगे की कथा भी बताइà¤à¥¤ भगवनॠकाम और रति का विवाह हà¥à¤† या नहीं? आपके शाप का कà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†? कृपया इसके बारे में भी मà¥à¤à¥‡ सविसà¥à¤¤à¤¾à¤° बताइà¤à¥¤

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- शिवजी के वहां से अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो जाने पर दकà¥à¤· ने काम से कहा कामदेव! आपके ही समान गà¥à¤£à¥‹à¤‚ वाली परम सà¥à¤‚दरी à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤¶à¥€à¤²à¤¾ मेरी कनà¥à¤¯à¤¾ को तà¥à¤® पतà¥à¤¨à¥€ के रूप में सà¥à¤µà¥€à¤•ार करो । मेरी पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ सरà¥à¤µà¤—à¥à¤£ संपनà¥à¤¨ है तथा हर तरीके से आपके लिठसà¥à¤¯à¥‹à¤—à¥à¤¯ है । हे महातेजसà¥à¤µà¥€ मनोभव! यह हमेशा तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ साथ रहेगी और तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ इचà¥à¤›à¤¾à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° कारà¥à¤¯ करेगी। यह कहकर दकà¥à¤· ने अपनी कनà¥à¤¯à¤¾, जो उनके पसीने से उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ थी, का नाम 'रति' रख दिया। ततà¥à¤ªà¤¶à¥à¤šà¤¾à¤¤ कामदेव और रति का विवाह सोलà¥à¤²à¤¾à¤¸ संपनà¥à¤¨ हà¥à¤†à¥¤ हे नारद! दकà¥à¤· की पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ रति बड़ी रमणीय और परम सà¥à¤‚दरी थी। उसका रूप लावणà¥à¤¯ मà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को भी मोह लेने वाला था। रति से विवाह होने पर कामदेव अतà¥à¤¯à¤‚त पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤à¥¤ वे रति पर पूरà¥à¤£ मोहित थे। उनके विवाह पर बहà¥à¤¤ बड़ा उतà¥à¤¸à¤µ हà¥à¤†à¥¤ पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ के लिठसà¥à¤¯à¥‹à¤—à¥à¤¯ वर पाकर बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ थे। दकà¥à¤·à¤•नà¥à¤¯à¤¾ देवी रति भी कामदेव को पाकर धनà¥à¤¯ हो गई थी। जिस पà¥à¤°à¤•ार बादलों में बिजली शोभा पाती है, उसी पà¥à¤°à¤•ार कामदेव के साथ रति शोभा पा रही थी। कामदेव ने रति को अपने हृदय सिंहासन में बैठाया तो रति भी कामदेव को पाकर उसी पà¥à¤°à¤•ार पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ˆ, जिस पà¥à¤°à¤•ार शà¥à¤°à¥€à¤¹à¤°à¤¿ को पाकर देवी लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€à¥¤ उस समय आनंद और खà¥à¤¶à¥€ से सराबोर कामदेव व रति भगवान शिव का शाप भूल गà¤à¥¤

सूत जी कहते हैं ;- बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ का यह कथन सà¥à¤¨à¤•र महरà¥à¤·à¤¿ नारद बड़े पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ और हरà¥à¤·à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• बोले- हे महामते! आपने भगवान शिव की अदà¥à¤­à¥à¤¤ लीला मà¥à¤à¥‡ सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ है। पà¥à¤°à¤­à¥‹! अब मà¥à¤à¥‡ आप यह बताइठकि कामदेव और रति के विवाह के उपरांत सब देवताओं के अपने धाम चले जाने के बाद, पितरों को उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ करने वाली बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ संधà¥à¤¯à¤¾ कहां गई? उनका विवाह कब और किससे हà¥à¤†? संधà¥à¤¯à¤¾ के विषय में मेरी जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ शांत करिà¤à¥¤

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

पांचवां अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"संधà¥à¤¯à¤¾ का चरितà¥à¤°"

सूत जी बोले ;- हे ऋषियो! नारद जी के इस पà¥à¤°à¤•ार पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ करने पर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ ने कहा ;- मà¥à¤¨à¥‡! संधà¥à¤¯à¤¾ का चरितà¥à¤° सà¥à¤¨à¤•र समसà¥à¤¤ कामनियां सती-साधà¥à¤µà¥€ हो सकती हैं। वह संधà¥à¤¯à¤¾ मेरी मानस पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ थी, जिसने घोर तपसà¥à¤¯à¤¾ करके अपना शरीर तà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया था। फिर वह मà¥à¤¨à¤¿à¤¶à¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  मेधातिथि की पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ अरà¥à¤‚धती के रूप में जनà¥à¤®à¥€à¥¤ संधà¥à¤¯à¤¾ ने तपसà¥à¤¯à¤¾ करते हà¥à¤ अपना शरीर इसलिठतà¥à¤¯à¤¾à¤— दिया था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वह सà¥à¤µà¤¯à¤‚ को पापिनी समà¤à¤¤à¥€ थी। उसे देखकर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ उसके पिता और भाइयों में काम की इचà¥à¤›à¤¾ जागà¥à¤°à¤¤ हà¥à¤ˆ थी। तब उसने इसका पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¤¶à¥à¤šà¤¿à¤¤ करने के बारे में सोचा तथा निशà¥à¤šà¤¯ किया कि वह अपना शरीर वैदिक अगà¥à¤¨à¤¿ में जला देगी, जिससे मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हो । भूतल पर जनà¥à¤® लेने वाला कोई भी जीव तरà¥à¤£à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ से पहले काम के पà¥à¤°à¤­à¤¾à¤µ में नहीं आ पाà¤à¤—ा। यह मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर मैं अपने जीवन का तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर दूंगी।

मन में à¤à¤¸à¤¾ विचार करके संधà¥à¤¯à¤¾ चंदà¥à¤°à¤­à¤¾à¤— नामक परà¥à¤µà¤¤ पर चली गई। यहीं से चंदà¥à¤°à¤­à¤¾à¤—ा नदी का आरंभ हà¥à¤†à¥¤ इस बात का जà¥à¤žà¤¾à¤¨ होने पर मैंने वेद-शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के पारंगत, विदà¥à¤µà¤¾à¤¨, सरà¥à¤µà¤œà¥à¤ž और जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¯à¥‹à¤—ी पà¥à¤¤à¥à¤° वशिषà¥à¤  को वहां जाने की आजà¥à¤žà¤¾ दी। मैंने वशिषà¥à¤  जी को संधà¥à¤¯à¤¾ को विधिपूरà¥à¤µà¤• दीकà¥à¤·à¤¾ देने के लिठवहां भेजा था।

नारद! चंदà¥à¤°à¤­à¤¾à¤— परà¥à¤µà¤¤ पर à¤à¤• देव सरोवर है, जो जलाशयोचित गà¥à¤£à¥‹à¤‚ से पूरà¥à¤£ है। उस सरोवर के तट पर बैठी संधà¥à¤¯à¤¾ इस पà¥à¤°à¤•ार सà¥à¤¶à¥‹à¤­à¤¿à¤¤ हो रही थी, जैसे पà¥à¤°à¤¦à¥‹à¤· काल में उदित चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ और नकà¥à¤·à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ से यà¥à¤•à¥à¤¤ आकाश शोभा पाता है। तभी उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चंदà¥à¤°à¤­à¤¾à¤—ा नदी का भी दरà¥à¤¶à¤¨ किया। तब उस सरोवर के तट पर बैठी संधà¥à¤¯à¤¾ से वशिषà¥à¤  जी ने आदरपूरà¥à¤µà¤• पूछा, हे देवी! तà¥à¤® इस निरà¥à¤œà¤¨ परà¥à¤µà¤¤ पर कà¥à¤¯à¤¾ कर रही हो? तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ माता-पिता कौन हैं? यदि यह छिपाने योगà¥à¤¯ न हो तो कृपया मà¥à¤à¥‡ बताओ। यह वचन सà¥à¤¨à¤•र संधà¥à¤¯à¤¾ ने महरà¥à¤·à¤¿ वशिषà¥à¤  की ओर देखा। उनका शरीर दिवà¥à¤¯ तेज से पà¥à¤°à¤•ाशित था। मसà¥à¤¤à¤• पर जटा धारण किठवे साकà¥à¤·à¤¾à¤¤ कोई पà¥à¤£à¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ जान पड़ते थे। संधà¥à¤¯à¤¾ ने आदरपूरà¥à¤µà¤• पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करते हà¥à¤ वशिषà¥à¤  जी को अपना परिचय देते हà¥à¤ कहा- बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¨à¥à¥¤ मैं बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ की पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ संधà¥à¤¯à¤¾ हूं। मैं इस निरà¥à¤œà¤¨ परà¥à¤µà¤¤ पर तपसà¥à¤¯à¤¾ करने आई हूं। यदि आप उचित समà¤à¥‡à¤‚ तो मà¥à¤à¥‡ तपसà¥à¤¯à¤¾ की विधि बताइà¤à¥¤ मैं तपसà¥à¤¯à¤¾ के नियमों को नहीं जानती हूं। अतः मà¥à¤ पर कृपा करके आप मेरा उचित मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ करें। संधà¥à¤¯à¤¾ की बात सà¥à¤¨à¤•र वशिषà¥à¤  जी ने जान लिया कि देवी संधà¥à¤¯à¤¾ मन में तपसà¥à¤¯à¤¾ का दृढ़ संकलà¥à¤ª कर चà¥à¤•ी हैं। इसलिठवशिषà¥à¤  जी ने भकà¥à¤¤à¤µà¤¤à¥à¤¸à¤² भगवान शिव का सà¥à¤®à¤°à¤£ करते हà¥à¤ कहा

हे देवी! जो सबसे महान और उतà¥à¤•ृषà¥à¤Ÿ हैं, सभी के परम आराधà¥à¤¯ हैं, जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ परमातà¥à¤®à¤¾ कहा जाता है, तà¥à¤® उन महादेव शिव को अपने हृदय में धारण करो। भगवान शिव ही धरà¥à¤®, अरà¥à¤¥, काम और मोकà¥à¤· के सà¥à¤°à¥‹à¤¤ हैं। तà¥à¤® उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ का भजन करो। 'ॠनमः शिवाय' मंतà¥à¤° का जाप करते हà¥à¤ मौन तपसà¥à¤¯à¤¾ करो। उसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° मौन रहकर ही सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ तथा शिव-पूजन करो। पà¥à¤°à¤¥à¤® दो बार छठे समय में जल को आहार के रूप में लो। तीसरी बार छठा समय आने पर उपवास करो। देवी! इस पà¥à¤°à¤•ार की गई तपसà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ का फल देने वाली तथा अभीषà¥à¤Ÿ मनोरथों को पूरा करने वाली होती है। अपने मन में शà¥à¤­ उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ लेकर शिवजी का मनन व चिंतन करो। वे पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ मनोकामना अवशà¥à¤¯ पूरी करेंगे। इस पà¥à¤°à¤•ार संधà¥à¤¯à¤¾ को तपसà¥à¤¯à¤¾ की विधि बताकर और उपदेश देकर मà¥à¤¨à¤¿ वशिषà¥à¤  वहां से अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो गà¤à¥¤

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

छठा अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"संधà¥à¤¯à¤¾ की तपसà¥à¤¯à¤¾"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- हे महापà¥à¤°à¤œà¥à¤ž नारद! तपसà¥à¤¯à¤¾ की विधि बताकर जब वशिषà¥à¤  जी चले गà¤, तब संधà¥à¤¯à¤¾ आसन लगाकर कठोर तप शà¥à¤°à¥‚ करने लगी। वशिषà¥à¤  जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बताठगठविधान à¤à¤µà¤‚ मंतà¥à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ संधà¥à¤¯à¤¾ ने भगवान शिव की आराधना करनी आरंभ कर दी। उसने अपना मन शिवभकà¥à¤¤à¤¿ में लगा दिया और à¤à¤•ागà¥à¤° होकर तपसà¥à¤¯à¤¾ में मगà¥à¤¨ हो गई। तपसà¥à¤¯à¤¾ करते-करते चार यà¥à¤— बीत गà¤à¥¤ तब भगवान शिव पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ और संधà¥à¤¯à¤¾ को अपने सà¥à¤µà¤°à¥‚प के दरà¥à¤¶à¤¨ दिà¤, जिसका चिंतन संधà¥à¤¯à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ किया गया था। भगवान का मà¥à¤– पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ था। उनके सà¥à¤µà¤°à¥‚प से शांति बरस रही थी। संधà¥à¤¯à¤¾ के मन में विचार आया कि मैं महादेव की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ कैसे करूं ? इसी सोच में संधà¥à¤¯à¤¾ ने नेतà¥à¤° बंद कर लिà¤à¥¤ भगवान शिव ने संधà¥à¤¯à¤¾ के हृदय में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर उसे दिवà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ दिया। साथ ही दिवà¥à¤¯-वाणी और दिवà¥à¤¯-दृषà¥à¤Ÿà¤¿ भी पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की। संधà¥à¤¯à¤¾ ने पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ मन से भगवान शिव की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ की।

संधà¥à¤¯à¤¾ बोली ;- हे निराकार! परमजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€, लोकसà¥à¤°à¤·à¥à¤Ÿà¤¾, भगवान शिव, मैं आपको नमसà¥à¤•ार करती हूं। जो शांत, निरà¥à¤®à¤², निरà¥à¤µà¤¿à¤•ार और जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के सà¥à¤°à¥‹à¤¤ हैं। जो पà¥à¤°à¤•ाश को पà¥à¤°à¤•ाशित करते हैं, उन भगवान शिव को मैं पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करती हूं। जिनका रूप अदà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯, शà¥à¤¦à¥à¤§, माया रहित, पà¥à¤°à¤•ाशमान, सचà¥à¤šà¤¿à¤¦à¤¾à¤¨à¤‚दमय, नितà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤‚दमय, सतà¥à¤¯, à¤à¤¶à¥à¤µà¤°à¥à¤¯ से यà¥à¤•à¥à¤¤ तथा लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ और सà¥à¤– वाला है, उन परमपिता परमेशà¥à¤µà¤° को मेरा नमसà¥à¤•ार है। जो सतà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨, धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ योगà¥à¤¯, आतà¥à¤®à¤¸à¥à¤µà¤°à¥‚प, सारभूत सबको पार लगाने वाला तथा परम पवितà¥à¤° है, उन पà¥à¤°à¤­à¥ को मेरा पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® है। भगवान शिव आपका सà¥à¤µà¤°à¥‚प शà¥à¤¦à¥à¤§, मनोहर, रतà¥à¤¨à¤®à¤¯, आभूषणों से अलंकृत à¤à¤µà¤‚ कपूर के समान है। आपके हाथों में डमरू, रà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤· और तà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥‚ल शोभा पाते हैं। आपके इस दिवà¥à¤¯, चिनà¥à¤®à¤¯, सगà¥à¤£, साकार रूप को मैं नमसà¥à¤•ार करती हूं। आकाश, पृथà¥à¤µà¥€, दिशाà¤à¤‚, जल, तेज और काल सभी आपके रूप हैं।

हे पà¥à¤°à¤­à¥! आप ही बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ के रूप में जगत की सृषà¥à¤Ÿà¤¿, विषà¥à¤£à¥ रूप में संसार का पालन करते हैं। आप ही रà¥à¤¦à¥à¤° रूप धरकर संहार करते हैं। जिनके चरणों से पृथà¥à¤µà¥€ तथा अनà¥à¤¯ शरीर से सारी दिशाà¤à¤‚, सूरà¥à¤¯, चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ देवता पà¥à¤°à¤•ट हà¥à¤ हैं, जिनकी नाभि से अंतरिकà¥à¤· का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤† है, वे ही सदà¥à¤¬à¥à¤°à¤¹à¥à¤® तथा परबà¥à¤°à¤¹à¥à¤® हैं। आपसे ही सारे जगत की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ हà¥à¤ˆ है। जिनके सà¥à¤µà¤°à¥‚प और गà¥à¤£à¥‹à¤‚ का वरà¥à¤£à¤¨ सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ भी नहीं कर सकते, भला उन तà¥à¤°à¤¿à¤²à¥‹à¤•ीनाथ भगवान शिव की सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ मैं कैसे कर सकती हूं? मैं à¤à¤• अजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ और मूरà¥à¤– सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ हूं। मैं किस तरह आपको पूजूं कि आप मà¥à¤ पर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हों। हे पà¥à¤°à¤­à¥! मैं बारंबार आपको नमसà¥à¤•ार करती हूं।

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ बोले ;- नारद! संधà¥à¤¯à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कहे गठवचनों से भगवान शिव बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤à¥¤ उसकी सà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दà¥à¤°à¤µà¤¿à¤¤ कर दिया। भगवान शिव बोले- हे देवी! मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ तपसà¥à¤¯à¤¾ से बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हूं। अतः तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ जो इचà¥à¤›à¤¾ हो वह वर मांगो।

तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ इचà¥à¤›à¤¾ मैं अवशà¥à¤¯ पूरà¥à¤£ करूंगा। भगवान शिव के ये वचन सà¥à¤¨à¤•र संधà¥à¤¯à¤¾ खà¥à¤¶à¥€ से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बार-बार पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करती हà¥à¤ बोली- हे महेशà¥à¤µà¤°! यदि आप मà¥à¤ पर पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर कोई वर देना चाहते हैं और यदि मैं अपने पूरà¥à¤µ पापों से शà¥à¤¦à¥à¤§ हो गई हूं तो हे महेशà¥à¤µà¤°! हे देवेश! आप मà¥à¤à¥‡ वरदान दीजिठकि आकाश, पृथà¥à¤µà¥€ और किसी भी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में रहने वाले जो भी पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ इस संसार में जनà¥à¤® लें, वे जनà¥à¤® लेते ही काम भाव से यà¥à¤•à¥à¤¤ न हो जाà¤à¤‚। हे पà¥à¤°à¤­à¥! मेरे पति सà¥à¤¹à¥ƒà¤¦à¤¯ और मितà¥à¤° के समान हों और अधिक कामी न हों। उनके अलावा जो भी मनà¥à¤·à¥à¤¯ मà¥à¤à¥‡ सकाम भाव से देखे, वह पà¥à¤°à¥à¤·à¤¤à¥à¤µà¤¹à¥€à¤¨ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ नपà¥à¤‚सक हो जाà¤à¥¤ हे पà¥à¤°à¤­à¥! मà¥à¤à¥‡ यह वरदान भी दीजिठकि मेरे समान विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ और परम तपसà¥à¤µà¤¿à¤¨à¥€ तीनों लोकों में और कोई न हो।

निषà¥à¤ªà¤¾à¤ª संधà¥à¤¯à¤¾ के वरदान मांगने को सà¥à¤¨à¤•र भगवान शिव बोले- हे देवी संधà¥à¤¯à¤¾! तथासà¥à¤¤à¥! तà¥à¤® जो चाहती हो, मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता हूं। पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के जीवन में अब चार अवसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤‚ होंगी। पहली शैशव अवसà¥à¤¥à¤¾, दूसरी कौमारà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾, तीसरी यौवनावसà¥à¤¥à¤¾ और चौथी वृदà¥à¤§à¤¾à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ । तीसरी अवसà¥à¤¥à¤¾ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ यौवनावसà¥à¤¥à¤¾ में ही मनà¥à¤·à¥à¤¯ सकाम होगा। कहीं-कहीं दूसरी अवसà¥à¤¥à¤¾ के अंत में भी पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ सकाम हो सकते हैं। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ तपसà¥à¤¯à¤¾ से पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होकर ही मैंने यह मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ की है। तà¥à¤® परम सती होगी और तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ पति के अतिरिकà¥à¤¤ जो भी मनà¥à¤·à¥à¤¯ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ सकाम भाव से देखेगा वह तà¥à¤°à¤‚त पà¥à¤°à¥à¤·à¤¤à¥à¤µà¤¹à¥€à¤¨ हो जाà¤à¤—ा। तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¤¾ पति महान तपसà¥à¤µà¥€ होगा, जो कि सात कलà¥à¤ªà¥‹à¤‚ तक जीवित रहेगा। इस पà¥à¤°à¤•ार मैंने तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मांगे गठदोनों वरदान तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर दिठहैं। अब मैं तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ को पूरà¥à¤£ करने का साधन बताता हूं। तà¥à¤®à¤¨à¥‡ अगà¥à¤¨à¤¿ में अपना शरीर तà¥à¤¯à¤¾à¤—ने की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ की थी। मà¥à¤¨à¤¿à¤µà¤° मेधातिथि का à¤à¤• यजà¥à¤ž चल रहा है, जो कि बारह वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक चलेगा। उसमें अगà¥à¤¨à¤¿ बड़े जोरों से जल रही है। तà¥à¤® उसी अगà¥à¤¨à¤¿ में अपना शरीर तà¥à¤¯à¤¾à¤— दो। चंदà¥à¤°à¤­à¤¾à¤—ा नदी के तट पर ही तपसà¥à¤µà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का आशà¥à¤°à¤® है, जहां महायजà¥à¤ž हो रहा है। तà¥à¤® उसी अगà¥à¤¨à¤¿ से पà¥à¤°à¤•ट होकर मेधातिथि की पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ होगी। अपने मन में जिस पà¥à¤°à¥à¤· की इचà¥à¤›à¤¾ करके तà¥à¤® शरीर तà¥à¤¯à¤¾à¤—ोगी वही पà¥à¤°à¥à¤· तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ पति रूप में पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होगा। संधà¥à¤¯à¤¾, जब तà¥à¤® इस परà¥à¤µà¤¤ पर तपसà¥à¤¯à¤¾ कर रही थीं तब तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾ यà¥à¤— में पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¤à¤¿ दकà¥à¤· की बहà¥à¤¤ सी कनà¥à¤¯à¤¾à¤à¤‚ हà¥à¤ˆà¤‚। उनमें से सतà¥à¤¤à¤¾à¤ˆà¤¸ कनà¥à¤¯à¤¾à¤“ं का विवाह उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चंदà¥à¤°à¤®à¤¾à¤‚ से कर दिया। चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ उन सबको छोड़कर केवल रोहिणी से पà¥à¤°à¥‡à¤® करते थे। तब दकà¥à¤· ने कà¥à¤°à¥‹à¤§à¤¿à¤¤ होकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शाप दे दिया। चंदà¥à¤°à¤®à¤¾ को शाप से मà¥à¤•à¥à¤¤ कराने के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने चंदà¥à¤°à¤­à¤¾à¤—ा नदी की रचना की। उसी समय मेधातिथि यहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हà¥à¤ थे। उनके समान कोई तपसà¥à¤µà¥€ न है, न होगा। उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ का 'जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¥‹à¤®' नामक यजà¥à¤ž चल रहा है, जिसमें अगà¥à¤¨à¤¿à¤¦à¥‡à¤µ पà¥à¤°à¤œà¥à¤µà¤²à¤¿à¤¤ हैं। तà¥à¤® उसी आग में अपना शरीर डालकर पवितà¥à¤° हो जाओ और अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾ पूरी करो इस पà¥à¤°à¤•ार उपदेश देकर भगवान शिव वहां से अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो गà¤à¥¤

शà¥à¤°à¥€à¤°à¥à¤¦à¥à¤° संहिता

दà¥à¤µà¤¿à¤¤à¥€à¤¯ खणà¥à¤¡

सातवां अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯

"संधà¥à¤¯à¤¾ की आतà¥à¤®à¤¾à¤¹à¥à¤¤à¤¿"

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤œà¥€ कहते हैं ;- नारद! जब भगवान शिव देवी संधà¥à¤¯à¤¾ को वरदान देकर वहां से अंतरà¥à¤§à¤¾à¤¨ हो गà¤, तब संधà¥à¤¯à¤¾ उस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर गई, जहां पर मà¥à¤¨à¤¿ मेधातिथि यजà¥à¤ž कर रहे थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने हृदय में तेजसà¥à¤µà¥€ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ वशिषà¥à¤  जी का सà¥à¤®à¤°à¤£ किया तथा उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ को पतिरूप में पाने की इचà¥à¤›à¤¾ लेकर संधà¥à¤¯à¤¾ महायजà¥à¤ž की पà¥à¤°à¤œà¥à¤µà¤²à¤¿à¤¤ अगà¥à¤¨à¤¿ में कूद गई। अगà¥à¤¨à¤¿ में उसका शरीर जलकर सूरà¥à¤¯ मणà¥à¤¡à¤² में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गया। तब सूरà¥à¤¯ ने पितरों और देवताओं की तृपà¥à¤¤à¤¿ के लिठउसे दो भागों में बांटकर रथ में सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर दिया। उसके शरीर का ऊपरी भाग पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ संधà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤† और शेष भाग सायं संधà¥à¤¯à¤¾ हà¥à¤†à¥¤ सायं संधà¥à¤¯à¤¾ से पितरों को संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ मिलती है। सूरà¥à¤¯à¥‹à¤¦à¤¯ से पूरà¥à¤µ जब आकाश में लाली छाई होती है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ अरà¥à¤£à¥‹à¤¦à¤¯ होता है उस समय देवताओं का पूजन करें। जिस समय लाल कमल के समान सूरà¥à¤¯ असà¥à¤¤ होता है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ डूबता है उस समय पितरों का पूजन करना चाहिà¤à¥¤ भगवान शिव ने संधà¥à¤¯à¤¾ के पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ को दिवà¥à¤¯ शरीर पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ कर दिया। जब मेधातिथि मà¥à¤¨à¤¿ का यजà¥à¤ž समापà¥à¤¤ हà¥à¤†, तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• कनà¥à¤¯à¤¾ को, जिसकी कांति सोने के समान थी, अगà¥à¤¨à¤¿ में पड़े देखा। उसे मà¥à¤¨à¤¿ ने भली पà¥à¤°à¤•ार सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कराया और अपनी गोद में बैठा लिया। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उसका नाम 'अरà¥à¤‚धती' रखा। यजà¥à¤ž के निरà¥à¤µà¤¿à¤˜à¥à¤¨ समापà¥à¤¤ होने और पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होने के कारण मेधातिथि मà¥à¤¨à¤¿ बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अरà¥à¤‚धती का पालन आशà¥à¤°à¤® में ही किया। वह धीरे-धीरे उसी चंदà¥à¤°à¤­à¤¾à¤—ा नदी के तट पर रहते हà¥à¤ बड़ी होने लगी। जब वह विवाह योगà¥à¤¯ हà¥à¤ˆ तो हम तà¥à¤°à¤¿à¤¦à¥‡à¤µ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾, विषà¥à¤£à¥ और महेश ने मेधा मà¥à¤¨à¤¿ से बात कर, उसका विवाह मà¥à¤¨à¤¿ वशिषà¥à¤  से करा दिया।

मà¥à¤¨à¥‡, ! मेधातिथि की पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ महासाधà¥à¤µà¥€ अरà¥à¤‚धती अति पतिवà¥à¤°à¤¤à¤¾ थी। वह मà¥à¤¨à¤¿ वशिषà¥à¤  को पति रूप में पाकर बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ थी। वह उनके साथ रमण करने लगी। उससे शकà¥à¤¤à¤¿ आदि शà¥à¤­ à¤à¤µà¤‚ शà¥à¤°à¥‡à¤·à¥à¤  पà¥à¤¤à¥à¤° उतà¥à¤ªà¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤à¥¤ हे नारद! इस पà¥à¤°à¤•ार मैंने तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ परम पवितà¥à¤° देवी संधà¥à¤¯à¤¾ का चरितà¥à¤° सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ है। यह समसà¥à¤¤ अभीषà¥à¤Ÿ फलों को देने वाला है। यह परम पावन और दिवà¥à¤¯ है। जो सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€-पà¥à¤°à¥à¤· इस शà¥à¤­ वà¥à¤°à¤¤ का पालन करते हैं, उनकी सभी कामनाà¤à¤‚ पूरी होती हैं।

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